Aadhi najm ka pura geet - 13 in Hindi Fiction Stories by Ranju Bhatia books and stories PDF | आधी नज्म का पूरा गीत - 13

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आधी नज्म का पूरा गीत - 13

आधी नज्म का पूरा गीत

रंजू भाटिया

episode १३

वह सभ्यता का युग कब आएगा जब औरत की मर्ज़ी के बिना कोई उसको हाथ नहीं लगा सकेगा ?

अमृता प्रीतम जी ने अनेक कहानियाँ लिखी है इन कहानियों में प्रतिबिम्बित हैं स्त्री पुरुष योग वियोग की मर्म कथा और परिवार, समाज से दुखते नारी के दर्द के बोलते लफ्ज़ हैं. कई कहानियाँ अपनी अमिट छाप दिल में छोड़ जाती है. कुछ कहानियाँ अमृता जी ने खुद ही अपने लिखे से अलग संग्रह की थी और वह तो जैसे एक अमृत कलश बन गयी. उन्हीं कहानियों में से एक कहानी है गुलियाना का एक ख़त....जिसके नाम का अर्थ है फूलों फूलों सी औरत. पर वह लोहे के पैरों से लगातार दो साल चल कर युगोस्लाविया से चल कर अमृता तक आ पहुंची |अमृता ने मुस्करा कर उसका स्वागत किया और पूछा ---कि इतनी छोटी उम्र में क्यों इस तरह से देश देश भटक रही हो और क्या खोज रही हो ?उसने मुस्करा के बहुत विश्वास और आँखों में चमक भर कर जवाब दिया कि कुछ लिखना चाहती हूँ मगर लिखने से पहले दुनिया देखना चाहती हूँ..बहुत से देश घूम चुकीं हूँ..जैसे फ्रांस, इटली, जापान आदि पर बहुत से घूमने बाकी हैं...अच्छा बहुत अच्छा अमृता ने कहा..पर तुम्हारे देश में कोई तुम्हारी राह देखता होगा न ?हाँ मेरी माँ मेरी राह देख रही है..वह हर एक ख़त को मेरा आखिरी ख़त समझ लेती है उसके बाद दूसरे ख़त आने तक उसको यकीन नहीं आता कि मेरा कोई और ख़त आएगा...अच्छा ऐसा क्यों ? अमृता ने पूछावह सोचती है कि मैं यूँ चलते चलते मर जाउंगी एक दिन..इस लिए मैं उसको बहुत लम्बे लम्बे ख़त लिखती हूँ..वह पढ़ नहीं सकती पर वह ख़त को किसी न किसी तरह किसी से पढ़वा लेती है और इस तरह मेरी आँखों से सारी दुनिया देखती रहती है...अच्छा गुलियाना तुमने अब तक जितनी दुनिया देखी है वह तुम्हे कैसी लगी ? क्या कहीं किसी ने तुम्हारा हाथ थाम कर कहा नहीं कि बस यही रुक जाओ..आगे मत जाओ...हाँ मैं चाहती थी कि कोई मुझे बाँध ले रोक ले.........मुझे थाम ले...पर..ज़िन्दगी कभी किसी के हाथ आई है क्या ? मैं शायद ज़िन्दगी से कुछ अधिक मांगती हूँ..मेरा देश गुलाम था जब मैं इसकी लड़ाई में शामिल हो गयी इसको आज़ाद करवाने के लिए...कब..?१९४१ में हमने इस से बगावत करनी शुरू की..बहुत छोटी थी तब मैं...वह दिन तो बहुत मुश्किल रहे होंगे न..?हाँ चार साल बहुत मुश्किल थे..हम छिप छिप कर कई महीने यूँ ही काट देते थे...कई बार दुश्मन हमारा पता पा जाते थे..एक रात तो हम ६० मील तक चले थे...६० मील ? तुम्हारे नाजुक बदन में इतनी ताक़त थी क्या ?यह तो एक रात की बात है...तब हम तीन सौ साथी रहे होंगे..पर सारी उम्र चलने के लिए और कितनी जान चाहिए..और वह भी अकेले..अमृता ने लम्बी सांस भर कर कहा.."गुलियाना..!!"चलो कोई अच्छी बात करते हैं...मुझे कोई अपना गीत सुनाओतुमने कभी कोई गीत लिखा है गुलियाना ?पहले लिखा करती थी...फिर यूँ महसूस हुआ कि मैं गीत नहीं लिख सकती शायद अब लिखूंगीकैसे गीत लिखोंगी तुम ?प्यार के गीत ?प्यार के गीत में लिखना चाहती थी पर शायद अब नहीं लिख पाउंगी.हो सकता है वह प्यार के ही गीत हो पर उस प्यार के नहीं जो एक फूल की तरह गमले में उगते हैं..मैं उस प्यार के गीत लिखूंगी जो गमले में नहीं उगता जो सिर्फ धरती में उग सकता है...उसकी बात सुन कर अमृता चौंक गयी..उन्हें ऐसा लगा कि जैसे इस धरती को गुलियाना का बहुत सा कर्जा देना है उसके दिल और और उसके हुस्न का कर्जा बहुत सा कर्जा..पर धरती उसका यह कर्जा कभी नहीं चुका पाएगी..गुलियाना ने कहा मैंने कहा था न कि मैं ज़िन्दगी से कुछ अधिक मांग लेती हूँ..यह तो जरुरत से अधिक नहीं है गुलियाना सिर्फ उतना ही है जितना तुम्हारे दिल में समा सके...पर दिल के बराबर कुछ नहीं आता..हमारे देश का एक लोक गीत है..तेरी डोली कहारों ने उठायी खाट को कन्धा कौन देगा मेरी खाट को कन्धा कौन दे..सुन कर अमृता ने पूछा क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है गुलियाना ?कुछ किया जरुर था पर वह प्यार नहीं था.अगर प्यार होता तो ज़िन्दगी से लम्बा होता साथ ही उसको भी मेरी उतनी ही जरूरत होती जितनी मुझे उसको जरूरत थी..मैंने विवाह भी किए था पर वह विवाह उस गमले के फूलकी तरह था जिस से मेरे मन पर कभी फूल नहीं उगा पर यह धरती ?क्या तुम्हे इस धरती से डर लगता है ?धरती तो जरखेज है गुलियाना इस से कैसे डर लगेगा ? अमृता ने कहामुझे मालूम है तुम्हे किस से डर लगता है..क्यों कि मुझे भी उस से ही डर लगता है...इसी डर से रुष्ट हो कर तो मैं इस दुनिया में निकल पड़ी हूँ...आखिर एक फूल को इस धरती पर उगने का हक क्यों नहीं दिया जाता जिस फूल का नाम औरत हो...मैंने उन लोगों से हठ ठाना हुआ है जो किसी फूल को धरती में उगने नहीं देते हैं खासकर उस फूल को जिसका नाम औरत हो...यह सभ्यता का युग नहीं है सभ्यता का युग तब आएगा जब औरत की मर्ज़ी के बिना उसके जिस्म को हाथ नहीं लगाया जाएगा सही कहा तुमने गुलियाना..वैसे अपने गुजारे के लिए तुम क्या करती हो ?मैं छोटे छोटे सफरनामे लिखती हूँ उनको छपने के लिए अपने देश भेज देती हूँ..कुछ पैसे मिल जाते हैं कुछ अनुवाद कर देती हूँ मुझे फ्रेंच अच्छी तरह से आती है मैं फ्रेंच कि पुस्तकों का नुवाद अपनी देश की भाषा में करती हूँ..वापस जा कर शायद मैं बड़ा सफ़र नामा लिख सकूँ शायद वो गीत भी जो सोते हुए मेरे दिल में मंडराने लगता है पर जागने पर नजर नहीं आता..अच्छा मुझे वह गीत सुनाओ..वह गीत को तो मैं खोज रही हूँ...बिना बात के ही उस में दो पंक्तियाँ जुडी है इस से आगे का गीत बनता ही नहीं है कोई बात होगी तो गीत आगे बनेगा न.और एक टूटे हुए गीतकी तरह वह अमृता की तरफ देखने लगी..और उनको अपने अधूरे गीत की दो कडियाँ सुनाई.. आज किसने आसमान का जादू तोडा ?आज किसने तारों का गुच्छा उतारा ?और चाबियों को गुच्छे की तरह बाँधा, मेरी कमर से चाबियों को बाँधा ?और यह कह कर गुलियाना बोली मुझे यहाँ कमर पर चाबियों कभी तरह कई तरह के तार बंधे महसूस होते हैं....और अमृता सोचने लगी..कि इस धरती पर वे घर कब बनेंगे जिनके दरवाजे तारों की चाबियों से खुलते होंगे ?तुम क्या सोच रही होअमृता ने कहा मैं सोचती थी कि क्या तुम्हारे देश में भी औरते अपनी कमर में चाबियों के गुच्छे बंधा करती है ?हाँ दादी -नानी बाँधा करती थी..चाबियों से घर का ख्याल आता है और घर से आदिम सपने का...देखो ना इसी सपने को खोजती खोजती मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गयी हूँ...अब मैं अपने गीतों को सपनो की अमानत दे जाउंगी.धरती का कर्ज़ तुम्हारे सिर पर और हो जायेगा ? अमृता ने सुन कर कहाकर्ज़ की बात सुन कर गुलियाना हंसने लगी..और अमृता सोचने लगी कि यदि गुलियाना का हुलिया कोई अपने कागजों में दर्ज़ करे तो वह इस तरह से लिखेगा नाम..गुलियाना सायेनोबियाबाप का नाम...निकोलोयियन सायोनोबियाजन्म शहर.मेसेडोनियाकद..पाँच फुट तीन इंचबालों का रंग......भूराआँखों का रंग....स्लेटीपहचान का चिन्ह उसके निचले होंठो पर एक तिल है और बायीं और पलक पर एक जख्म का निशान हैऔर उस से बात करते हुए अमृता को महसूस हुआ कि किसी दिलवाले इंसान ने अगर अपनी ज़िन्दगी के कागजों में गुलियाना का हुलिया दर्ज़ किया तो वह इस तरह से लिखेगा नाम _ फूलों सी महक सी एक औरत बाप का नाम _ इंसान का एक सपना जन्म शहर _ धरती की बड़ी जरखेज मिटटी कद _ उसका माथा तारों से छूता है |बालों का रंग _ धरती के रंग जैसा आँखों का रंग _ आसमान के रंग जैसा पहचान का निशान _ उसके होंठो पर ज़िन्दगी की प्यास है और उसके रोम रोम पर सपनों का बौर पड़ा है |कितनी हैरानी की बात थी कि ज़िन्दगी ने गुलियाना को जन्म दिया था पर बाद में उसकी खबर लेना भूल गयी..पर अमृता हैरान नहीं थी क्यों कि यह ज़िन्दगी कि पुरानी आदत है बिसार देने की..इस लिए उन्होंने हँस कर गुलियाना से कहा कि हमारे देश में एक बूटी होती है जिसे ब्राम्ही बूटी कहते हैं कहते हैं यदि इसको पीस कर पी ले तो स्मरण शक्ति वापस आ जाती है..चल ज़िन्दगी को वही पिला देते हैं ताकि उसको हम याद आ जाएँ......यह सुन कर गुलियाना हंस पड़ी और बोली.कि जब भी तुम कोई प्यार का गीत लिखती हो..या कोई और भी तो वह जंगल में से वही बूटी ही तोड़ रहा होता है...शायद कभी वह दिन आये जब हम ज़िन्दगी को यह बूटी पिला दे गुलियाना तो यह कह कर चली गयी..पर उसके बाद जब भी अमृता कोई गीत लिखती उन्हें उसको बात याद आ जाती कि हम सब मन के जंगल से ब्राम्ही बूटियाँ बीन रहे हैं..हम शायद किसी दिन ज़िन्दगी को इतनी बूटी पिलादेंगे कि उसको हम याद आ जाएँ पांच महीने होने को आये गुलियाना का कोई ख़त नहीं आया और अब कई महीने बीत जायेंगे उसका कोई ख़त नहीं आएगा..क्यों कि आज के अखबार में खबर छपी है..कि दो देशों कि सीमा पर कुछ फोजियों ने एक परदेशी औरत को खेतों में घेर लिया..उसको बहुत चिंता जनक हालत में अस्पताल पहुंचाया गया है वहां उसकी मौत हो गयी...उसका पास पोर्ट और उसके कागज जली हुई हालत में मिले औरत का कद पांच फुट तीन इंच है..उसके बालों का रंग भूरा और आँखों का रंग स्लेटी है..उसके निचले होंठो पर एक तिल है..और बायीं पलक के नीचे एक जख्म का निशान है यह अखबार की खबर नहीं अमृता सोचती है यह तो उसका एक ख़त है..जो ज़िन्दगी के घर से जाते हुए उसने ज़िन्दगी को लिखा है और उसने ख़त में ज़िन्दगी से सबसे पहले यह सवाल पूछा है...कि आखिर...इस धरती पर उस फूल को कब आने का अधिकार क्यों नहीं दिया गया जिसका नाम औरत है ? और साथ ही पूछा है कि वह सभ्यता का युग कब आएगा जब औरत की मर्ज़ी के बिना कोई उसको हाथ नहीं लगा सकेगा ? और तीसरा सवाल यह पूछा है कि जिस घर के दरवाज़े खोलने के लिए उसने अपनी कमर में तारों के गुच्छे को चाबियों को गुच्छे की तरह बांधा था उस घर का दरवाजा आखिर कहाँ है ? अमृता की यह कहानी आज भी उतनी ही सच्ची बात कहती है...जो ज़िन्दगी से सवाल आज भी यही करती नजर आती है...और यह सवाल अक्सर बिना जवाब के हैं..

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