जो अच्छा लगा तो पढ लिया नही तो डाल दिया कचरे के ढेर में।
किसी ने कहा था एक बार कि कभी इश्क़ पर एतबार मत करना।
दिल के जज्बात को सीने में दबा लेना मगर किसी से इजहार मत करना।
मोहब्बत से इस जमाने को न जाने इतना गिला शिकवा क्यों है।
लगता है जैसे जमाने में इश्क़ से बड़ा और कोई गुनाह ही नही है।
तेरी नजरों में मैंने इश्क़ का एक उमड़ता दरिया देखा था।
लेकिन वो शायद इश्क़ नही बस मेरे नजरों का धोखा था।
लिख लेना कभी नाम मेरा भी अपने दिल के किताब में।
मौका मिला तो इसकी कीमत अपने जान से भी चुका दूँगा।
किसी को खबर कहाँ थी मेरे होने या न होने की।
वो तो हम थे के अनजानों को अपना समझ बैठे।
बड़े हसरतों के साथ निकले मोहब्बत का इजहार के लिये।
किस्मत का यह खेल था कि केवल इनकार ही मिला।
आ जाओ एक बार कि जी भर कर तेरा दीदार मैं कर लूँ।
कौन जाने कि कहीं ये अपनी आखिरी मुलाकात बन जाये।
यह अफसाना ए इश्क़ भी होता कितना गजब है।
इसमें हुए हर हार में भी आता जीतने की महग है।
आज जज्बातों की फिक्र होती कहाँ किसीको,रिश्ते तो होते है बहुत पर फर्क होता है किसको।
हमने तो रिश्तों को वफा के साथ जिया है,देख कर अब जमाने को फख्र होता है हमको।
किसीको भी नही थी खबर मेरे इस दुनियाँ से रुखसत होने की।
जमाने की निगाहों में मुझे इश्क़ ने इस कदर निकम्मा बना दिया।
मेरे दिल ने पूछा मुझसे बड़े मासूमियत से,इतनी बड़ी जहाँ में तुम इस कदर तन्हा क्यों हो।
मैंने कहा अपने दिल से वो जख्म जो तुमने जमाने से खाये उन्होंने ही मुझे तन्हा बना दिया।
आओ ना इस कदर याद कि और कुछ मुझे याद ही न कभी आये।
यूँही यादों में ये जिंदगी गुजर जाये और चुपचाप मौत आ जाये।
मेरी यह आखिरी ख्वाहिश है तुझसे,ए वेवफा इसे जरा गौर से सुन।
जब मेरी मौत की खबर आये ,दो बूंद आँसू मेरे कब्र पर तुम भी बहा देना।
एक इल्जाम था मुझपर कि मैंने की चोरी किसी हसीं के दिल का।
लेकिन उन कातिल निगाहों का क्या जिसने मुझे चोर बना दिया।
ठहर जाना दो पल को तुम वहाँ ,अगर कभी मिले फुरसत तुम्हें मेरे लिये भी जिंदगी में।
वह किसी पीर की मजार नही,इस आशिक की कब्र है जो सो रहा है तुम्हारे इन्तजार में।
हर वक्त मौत की ख्वाहिश लिए ही हम ने ये जिंदगी जी है।
तेरी एक झलक मिल जाये बस रब से इतनी गुजारिश की है।
कैसे मैं सुनाऊँ किसी को अपने अधूरी इश्क़ की यह अनकही दास्तान।
रोने को कंधा तो कोई नसीब न होगा,जमाना हँसकर कर देगा परेशान।
मेरे जिंदगी को मुझपे इतना भी रहम न आया,कुछ वक्त तो दे देता तेरे साथ गुजारने को।
हर लम्हा जो बिताये है मैंने तुमसे दूर होकर,ऐसा लगा जैसे जिंदगी बेमानी बन गयी हो।
कोई तो कह दे इस बेदर्द जमाने को,इश्क़ कोई खेल नही मन बहलाने को।
जज्बातों का यह वो पाक रिश्ता हैं, मिट जाते हैं कितने जिसे निभाने को।