Parda in Hindi Moral Stories by Shaihla Ansari books and stories PDF | परदा

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परदा

दिल्ली की सड़को पर घूमते घूमते मेरे पैर दुख गये थे और मुझे भूख का भी एहसास हो रहा था, ये ही सोचते हुए मैं एक मॉल की तरफ बढ़ गया कि चलो कुछ खा लिया जाए!! "मैं दिल्ली एक काम के सिलसिले में आया था और मेरा काम पूरा भी हो गया था, शाम को मुझे मेरठ वापस जाना था,मेरे वापस जाने मे अभी तीन घंटे थे तो मैने सोचा क्यों ना ये तीन घंटे दिल्ली घूमा जाए और अच्छी तरह से घूमने के बाद मैं अब एक शानदार मॉल की बड़ी सी शॉप मे बैठा पेट पूजा कर रहा था, जब मैं वेटर को बिल पे करके शॉप से बाहर निकल रहा था तो मैं किसी से बहुत बुरी तरह से टकरा गया!!                "क्या मुसीबत है"मैने अपने आप से कहा!!            "इमाद तुम यहां कैसे" किसी ने मुझे मेरे नाम से पुकारा, "मैने सिर सहलाते हुए सामने देखा तो अयाज़ मुसकुराते हुए मुझे देख रहा था!!  "अयाज़"मै उसका नाम लेते उसके गले लग गया!!      अयाज़ और मैं दोनों बचपन के दोस्त थे, हम दोनों ने स्कूल और कॉलेज साथ ही किया था, पढ़ाई पूरी करने के बाद अयाज़ अपनी फैमिली के साथ मेरठ छोड़ कर यहां दिल्ली शिफ्ट हो गया था और आज अचानक हमारी ऐसे मुलाकात हो गई!! अयाज़ से बात करते हुए मेरी नज़र उसके साथ खड़ी लड़की पर पड़ी,उस लड़की ने मुझे अपनी तरफ देखता पाकर अपने चेहरे पर नका़ब डाल लिया था, नका़ब मे सिर्फ उसकी आंखे ही दिखाई दे रही थी लेकिन मैंने उसे एक नज़र में ही पहचान लिया था, हा ये वहीं थी, बिल्कुल वहीं थी, जिसे मै पिछले एक साल से ढ़ूंढ रहा था, आज भी उसकी बड़ी बड़ी हिरनी जैसी आंखों में काजल लगा था!! एक साल पहले की बात है, अपना कॉलेज पूरा करने के बाद,मैं अपने चाचा के मेडिकल स्टोर पर लग गया था,मेरे घर से चाचा का स्टोर लगभग आधे घंटे की दूरी पर था, मैं रोज बस से आता जाता था, वैसे तो स्टोर सुबह गयारह बजे खुलता था लेकिन मैं नौ बजे ही घर से निकल जाता था,वजह थी वो लड़की, जिसे देखने के लिए मैं बस स्टोप पर भागा भागा जाता था,वो लड़की मेरे स्टोप से आगे वाले स्टोप से बस मे चढ़तीं थीं,लम्बी बड़ी बड़ी काजल लगी आंखे, सुतवां नाक,गुलाबी होंठ,वो लड़की मुझे बहुत अच्छी लगती थीं, जब तक उसकी मंज़िल नही आ जाती, मैं पूरे रास्ते बस उसे ही देखता रहता,ऐसा दो महीने तक चलता रहा, फिर मैने महसूस किया वो लड़की भी चुपके चुपके मुझे देखती हैं,अब मैं उसे देख कर मुसकुरा देता था तो वो भी जवाब में नज़रे झुका कर मुसकुरा देती थीं, उसके इस तरह से मुस्कुराने से मुझे ये तो पता चल गया था के वो भी मुझे पसंद करती थीं,हम दोनों एक दूसरे से आंखों आंखों में बात करते थे, हमारे दोनों के बीच में हमेशा तीन चार लोगों का गैप रहता था, मैं उसका नाम तक नही जानता था, वो कौन थी, कहाँ रहती थीं और रोज़ कहा जाती थीं मुझे कुछ मालूम नहीं था, दिन ऐसे ही गुज़र रहे थे के एक दिन वो लड़की नही आई,मेरा वो दिन बड़ा बोर गुज़रा,अगले दिन बड़े बेसब्री से मैं उसके स्टोप पर उसका इंतज़ार करने लगा लेकिन वो नहीं आई,फिर कई दिन गुज़र गये वो नही आई,मैं उसका पागलों की तरह इंतज़ार करता था लेकिन वो ना जाने कहाँ गुम हो गई थी, और आज एक साल बाद वो मुझे यहां मिली थी दिल्ली में!!!     अयाज़ मुझसे बातों में मसरूफ़ था कि उसने उस लड़की का तआरुफ मुझसे कराया ये कह कर के ये उसकी बींवी हैं, मेरा दिल बहुत बुरी तरह से टूटा था ये जानकर के मेरी मुहब्बत अब मेरे दोस्त की बींवी बन चुकी हैं, मैंने एक नज़र अयाज़ की बींवी पर डाली,उसने मुझे देख कर नज़रे झुका ली थी, अब मेरी समझ मे आया के उसने मुझे देखकर अपने चेहरे पर नका़ब क्यों डाल लिया था,क्योंकि आज वो मेरे दोस्त की इज़्ज़त थीं और हम दोनों के बीच में परदा ज़रूरी था!!!! 

"र्पिय पाठकों,ये मेरी पहली कहानी हैं जो मैंने लिखी हैं, आपको ये कहानी कैसी लगी, इस बारे मे अपनी राय ज़रूर दे"