Afia Sidiqi ka zihad - 23 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 23

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 23

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(23)

सबको लगता था कि यदि आफिया अपने वकीलों का कहा मान ले तो वह इस केस से बरी हो सकती हे। पर वह तो केस को ठीक ढंग से चलने ही नहीं देती थी। उसके वकील उसको कुछ भी कहते रहते, पर वह उनकी बात पर कान ही नहीं रखती थी। आफिया को उसके अपनों ने भी समझाया कि वह वकीलों का कहा माने, पर उसने किसी की बात न सुनी। बड़ी बात यह भी थी कि उसके ऊपर आतंकवाद के चार्ज नहीं लगे थे। विद्वान वकील समझते थे कि यदि सरकार उस पर आतंकवाद के चार्ज़ लगा देती है तो गवाहों को कोर्ट में पेश करना पड़ेगा। गवाह भी कोई साधारण नहीं थे। इनमें से के.एस.एम. जैसे मुख्य अलकायदा के सदस्य थे। उन लोगों के पास बहुत सारे भेद थे। उन्हें अदालतों में पेश करके सरकार इन सभी रहस्यों के खुलने का खतरा मोल नहीं ले सकती थी। इसके अलावा ये आतंकवादी अभी तक गुप्त जेलों में कहीं क़ैद थे। इन सारी बातों से बचने के लिए सरकार ने आफिया पर आतंकवाद के चार्ज नहीं लगाए थे। उसके वकील समझते थे कि उस पर जो भी चार्ज लगे हैं, उन्हें वे आसानी से उड़ा देंगे। ये वकील भी कोई साधारण वकील नहीं थे। आफिया के भाई ने पाकिस्तान सरकार से मिली दो मिलियन डॉलर की मदद से बहुत ही उच्च कोटि के वकीलों की टीम खड़ी की थी। परंतु आफिया वकीलों का कहा बहुत कम मान रही थी। आखि़र उसके वकीलों ने आफिया के भाई को सलाह-मशवरे के लिए बुलाया।

“मि. सद्दीकी, हमने एक खास ढंग से इस केस को लड़ने की स्कीम बनाई है। उसकी बाबत ही तुम्हारे साथ हमें बात करनी है।” आफिया के भाई से मुख्य वकील ने बात की शुरुआत की।

“सर, वह क्या ?“

“बात तो बड़ी सादी-सी है, पर इसके लिए मिस आफिया को हमें पूरा सहयोग देना पड़ेगा।”

“आप बताओ तो सही कि बात क्या है। उसके साथ मैं बात करुँगा।”

“हम जज से विनती करेंगे कि हमारा क्लाइंट कोर्ट में बिल्कुल चुप रहेगा। चुप रहना उसका अधिकार भी है और जज इस बात को मान लेगा।”

“फिर ?“

“इसके बाद मिस आफिया सारी सुनवाई के दौरान चुप रहेगी। सरकारी वकील भी उससे कोई सवाल नहीं कर सकेगा। हमारी योजना यह है कि सरकार के लगाए इल्ज़ामों में से किसी एक को झूठा साबित कर दें। यह कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि सबूतों में बहुत कमज़ोरियाँ हैं। हमारे इस प्रकार करने से एक आध ज्युरर के मन में यह बात अवश्य आ जाएगी कि सरकार ने झूठा केस तैयार किया है।”

“इससे क्या होगा ?“ आफिया के भाई को अभी भी बात समझ में नहीं आ रही थी।

“इससे ज्युरी का फैसला ’हंग ज्युरी’ हो जाएगा और केस खत्म हो जाएगा। इस तरह मिस आफिया केस से बरी हो जाएगी।”

“हंग ज्युरी मतलब ?“

“मि. सद्दीकी, ज्युरी जो भी फैसला करती है, वह सर्वसम्मति से होना चाहिए। यदि एक भी ज्युरी मेंबर फैसले से असहमति प्रकट कर दे तो उसको हंग ज्युरी कहा जाता है। यदि हंग ज्युरी हो जाए तो केस वहीं खत्म हो जाता है और मुलज़िम बरी हो जाता है।”

“अच्छा अच्छा, यह बात है। मैं पूरी बात समझ गया हूँ।” आफिया के भाई को लगा कि वकील वाकई बहुत अच्छा रास्ता चुन रहे हैं।

“बस, इसके लिए ज़रूरी है कि मिस आफिया केस की सारी सुनवाई के दौरान बिल्कुल ख़ामोश रहे। हमारी हर बात माने।”

आफिया के भाई ने वकीलों को भरोसा दिलाया कि वह आफिया को मिलकर सारी बात समझा देगा। इसके अलगे ही दिन वह आफिया से मुलाकात करने जेल में पहुँचा। आफिया को लाकर उसके पास बिठा दिया गया। आफिया की ओर देखते हुए मुहम्मद का दिल भर आया, पर उसने अपने आप पर नियंत्रण रखा और वकीलों के साथ हुई बातचीत बताई। उसकी बात का जवाब देने के बजाय आफिया उसको जिहाद के बारे में बताने लग पड़ी। बड़ी कोशिशों से मुहम्मद ने आफिया को उसकी बात सुनने के लिए मनाया। उसने उसको वकीलों की योजना समझाई। वह सिर-सा हिलाकर वकीलों के अनुसार चलने के लिए मान गई। पर जब मुहम्मद उठकर चलने लगा तो उसने उसको रोक लिया और बोली, “भाई जान, तुम मेरी बात छोड़ो और अपने मुसलमान भाइयों की फिक्र करो।“

“कौन से मुसलमान भाइयों की ?“

“जितने भी यहाँ रह रहे हैं। सभी से कहो कि वे अमेरिका छोड़कर चले जाएँ।”

“क्यों ?“

“क्योंकि अमेरिकी सरकार किसी भी मुसलमान को बख़्शने वाली नहीं। सबको मेरी तरह जेलों के अंदर बंद कर देगी।”

“आफिया मैं तेरा सगा भाई हूँ। मुझे तो किसी ने जेल में बंद नहीं किया। मैं तो अपने परिवार के साथ पूरी स्वतंत्र ज़िन्दगी जी रहा हूँ।” मुहम्मद ज़रा रूखा बोला।

“जो तुम्हारी मर्ज़ी। बाद में भुगतना पड़ा तो रोते रहोगे।”

“आफिया, तू मेरी वकीलों की कही बात पर ध्यान दे। इस वक्त सबकुछ भूल जा।”

“ठीक है।” आफिया उठकर चल पड़ी। मुहम्मद उसको जाते हुए देखता रहा। उसको ख़याल आया कि यह कितना बदल गई है। वह सोचने लगा कि इतनी ज़हीन लड़की क्यों इस तरह की बेतुकी-सी बातें कर रही है। फिर उसको लगा कि ऐसा सचमुच एफ.बी.आई. के अत्याचार के कारण हो रहा है। फिर वह उठकर जेल से बाहर निकल आया।

तय तारीख़ पर कोर्ट शुरु हुई तो ट्रायल की ज़रूरी कार्रवाई के बाद सरकारी वकील ने आफिया पर लगे चार्ज पढ़कर सुनाए। आफिया पर चार्ज ये लगे थे कि उसने यू.एस. आर्मी के स्पेशल फोर्स के लोगों पर गोली चलाई। एक से अधिक व्यक्तियों के क़त्ल की मंशा का आरोप था। सरकारी वकील ने कोर्ट को कहानी इस प्रकार बताई -

“जिस दिन मिस आफिया गज़नी पुलिस द्वारा पकड़ी गई थी, उसके अगले दिन स्पेशल फोर्स की टीम कैप्टन रार्बट सिंडर की अगुवाई में उसका इंटरव्यू करने पहुँची। उस वक्त उसको किसी बड़े कमरे में रखा हुआ था। सामने कुछ अफ़गान पुलिस के अफ़सर बैठे थे और पर्दे के पीछे मिस आफिया बैठी थी। जब स्पेशल फोर्स वाले भी अफ़गान अफ़सरों के पास बैठ गए तो अगले ही पल मिस आफिया ने पर्दा हटाते हुए वारंट अफ़सर की एम 4 गन उठा ली और उन पर गोलियाँ चलाने लगी। यह देखते ही वारंट अफ़सर ने अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाली और आफिया पर गोली दागी। गोली उसके पेट में लगी। वारंट अफ़सर का कहना है कि यदि वह आफिया को ज़ख़्मी न करता तो वह सभी को मार देती। जब वह ज़ख़्मी हो गई तो वे उसको स्ट्रेचर पर डालकर बैगराम एअरफोर्स बेस ले गए। वहाँ उसका इलाज करवाने के बाद उसको अमेरिका लाया गया।”

सरकारी वकील ने आफिया पर लगे चार्ज पढ़कर सुनाए तो जज साथ के साथ कुछ लिखता रहा। थोड़ी बहुत कुछ और कार्रवाई हुई और अदालत बर्खास्त हो गई। इसी प्रकार एक दो दिन और प्रारंभिक काम होता रहा। फिर जब पूरी तरह से आफिया का केस चल पड़ा तो गवाहों के बयान होने शुरु हुए। ये सभी गवाह स्पेशल फोर्स के वही लोग थे जो कि गोली चलने के समय वहाँ मौका-ए-वारदात पर मौजूद थे। इनमें से उस वक्त घटना के समय पर मौजूद एक दुभाषिया भी था जो कि अफ़गानी था। एक एक करके गवाह जो कुछ बता रहे थे, वह सारी बात आपस में मिलती-जुलती थी। जब वारंट अधिकारी ने गवाही दी तो सफाई वकील ने उससे सवाल किया -

“मि. ऑफीसर, तुम्हारी एम 4 गन तुम्हारा सर्विस वैपन है जो कि हर वक्त तुम्हारे कब्ज़े में रहता है और रहना भी चाहिए। क्या तुम कोर्ट में बता सकोंगे कि तुम्हारी एम 4 गन मिस आफिया के पास कैसे चली गई ?“

“बात यह है कि मैं जब भी अफ़गान लोगों को मिलने के लिए उनके करीब बैठता हूँ तो सम्मान के तौर पर अपनी गन कंधे से उतारकर एक तरफ रख देता हूँ।”

“इसमें सम्मान वाली क्या बात है। तुम ड्यूटी पर होकर ऐसा कैसे कर सकते हो कि हथियार एक तरफ रख दो ?“ सफाई वकील वारंट अधिकारी को घेरने लगा।

“हमें वहाँ यही सिखाया जाता है कि हम अफ़गानी लोगों की भावनाओं की कद्र करें। क्योंकि उनका सभ्याचार कुछ इस तरह का ही है।”

“लगता नहीं कि इस छोटी सी लड़की ने गन उठा ली होगी।” वकील ने सवाल का रुख मोड़ा।

इस बात का उत्तर वारंट अफ़सर कुछ सोच ही रहा था कि सरकारी वकील ने बीच में बोलते हुए कोर्ट के कारिंदे को कहकर पहले से लाकर रखी एम 4 गन मंगवा ली। सरकारी वकील जो कि खुद भी आफिया जितनी ही थी, उसने एक हाथ से गन उठाकर ज्युरी मेंबरों को दिखाई। सभी मेंबरों ने गन उठाकर देखी। उनसे गन वापस लेते हुए सरकारी वकील ने कहा कि यह गन बिल्कुल बच्चों के खिलौने जैसी है और आफिया के लिए उसको उठाना कोई कठिन बात नहीं।

“फिर आगे क्या हुआ ?“ सफाई वकील फिर वारंट अधिकारी से संबोधित हुआ।

“फिर आफिया ने मेरी गन उठाकर सभी पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। मैंने शीघ्रता से अपना सर्विस रिवाल्वर निकाला और आत्मरक्षा के लिए गोली चलाई जो कि मिस आफिया के पेट में लगी।”

“रिवाल्वर तुम्हारे पास कहाँ से आ गया ?“

“आना कहाँ से था। मेरा सर्विस रिवाल्वर मेरी कमर में बंधा हुआ था।”

“पर अभी तो तुम कह रहे थे कि अफ़गानी लोगों से मिलते समय तुम हथियार उतारकर एक तरफ रख देते हो जैसे कि एम 4 गन रख दी थी। फिर तुमने यह रिवाल्वर क्यों नहीं उतारा ?“

“वह मैं...।“ वारंट अधिकारी को कोई उत्तर न सूझा। सफाई वकील के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने देखा कि ज्युरी मेंबरों ने इस बात पर परस्पर आँखें मिलाईं कि जब एक हथियार उतारकर रख दिया था तो दूसरा क्यों कमर में खोंसे रखा। उनके मन में कुछ कुछ शक उपजा। सफाई वकील यही चाहता था।

“फिर तेरी उस गन का क्या हुआ जो मिस आफिया ने उठा ली थी और बाद में उसी से तुम लोगों पर गोलियाँ चलाई थीं ?“

“जब मिस आफिया ज़ख़्मी हो गई तो मैंने उस गन को अपने कब्ज़े में ले लिया।”

“वह वारदात में प्रयोग किया गया हथियार था। कानूनन उसको बड़ा संभालकर प्लास्टिक वगैरह में लपेटकर रखना चाहिए था ताकि उस पर लग चुके मिस आफिया के फिंगर प्रिंट्स सुरक्षित रहते और बाद में अच्छी प्रकार से जाँच-पड़ताल हो सकती।”

“जी...।”

“क्या तुमने ऐसा किया ? मतलब गन को इस ढंग से संभालकर सुरक्षित रखा ?“

“जी नहीं। उस मौके पर ऐसा कुछ नहीं कर सका।”

“इसका अर्थ है कि उस गन पर से उंगलियों के निशान वैगरह नहीं लिए गए जो यह साबित करें कि गन वाकई आफिया के हाथों में आई थी। न ही तुमने उस गन की ऐसी कोई जाँच करवाई जो यह साबित कर सके कि उस दिन वह गन चलाई गई थी। और उस घटना स्थल की कोई फॉरसेनिक जाँच वगैरह भी नहीं हुई।”

“नहीं, ऐसा हम नहीं कर सके।”

“युअर ऑनर, यह बात गौरतलब है कि वारदात के समय प्रयोग में लाए गए हथियार पर मिस आफिया के फिंगर प्रिंट्स नहीं मिले। वारदात की घटना वाली जगह पर दूसरे सबूत भी इकट्ठा नहीं किए गए। जैसे उन चली हुई गोलियों के खोल कहाँ हैं जो आफिया ने चलाई थीं। अन्य बहुत कुछ है जज साहिब...।”

“जंगे मैदान में यदि तुम किसी को क़ातिल साबित करने के लिए आवश्यक कार्रवाइयाँ ही नहीं कर सकते तो तुम्हें ऐसे इन्सान पर केस चलाने का भी कोई अधिकार नहीं। क्योंकि सिर्फ़ किसी के कहने से ही क़त्ल साबित नहीं हो जाता। उसके लिए किसी के द्वारा दी गई गवाहियों के साथ कुछ ठोस सबूत भी चाहिएँ जो यह साबित करें कि गवाह सच बोल रहा है। पर इस केस में एक ही रटा रटाया बयान देने वाले तो बहुत हैं, पर बयान पर सच का ठप्पा लगाने वाला सबूत कोई नहीं है।”

“मैं फिर यही कहूँगी कि इन हालातों में यह सब कार्रवाई संभव नहीं थी। क्योंकि हम वहाँ लड़ाई लड़ रहे हैं और वह वार ज़ोन है।” सरकारी वकील ने अपनी बात दोहराई।

“फिर मैं भी यह कहूँगी कि यह एक सिविल कोर्ट है, यह कोई मिलेटरी ट्रिब्यूनल नहीं है।” सफाई वकील ने उसका उत्तर दिया।

“मैंने दोनों पक्षों की बातें नोट कर ली हैं। अब प्लीज़ कार्रवाई को आगे चलने दो।” जज ने दख़लअंदाजी की तो सरकारी वकील फिर से आफिया से सवाल पूछलने लग पड़ी।

तभी एक डिफेंस वकील अपनी टीम के मुखिया के करीब होता हुआ मन में उपजा नया ख़याल उसके संग साझा करने लगा, “वैसे तो अब तक की कार्रवाई अपने हक में जा रही है, पर यदि यह बात सिद्ध कर दी जाए कि आफिया ने हालांकि गन उठाई थी, पर वह उसने आत्मरक्षा के लिए उठाई थी। क्योंकि पहले दिन से ही जब से आफिया पकड़ी गई थी, उस पर घोर अत्याचार किया गया। सिर्फ़ शक के आधार पर उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। इसलिए जब वहाँ सभी लोग आफिया को घेरकर बैठ गए तो आफिया को सन्देह हुआ कि अब उसको मार दिया जाएगा, तो उसने अपनी आत्मरक्षा के लिए गन उठा ली होगी। उसने यद्यपि गन चलाई भी हो तो भी उसने किसी को गोली मारी तो नहीं। मेरा विचार है कि यह बात एकाध ज्युरी मेंबर को ज़रूर जच जाएगी और वह इस बात से सहमत हो जाएगा। यही अपना प्रमुख मकसद है कि बस कोई एक ज्युरी मेंबर शक में पड़ जाए।”

मुखिया सफाई वकील को यह बात बहुत जंची। उसने सोचा कि पहले उठाये गए कदम के साथ साथ इस बिन्दु को भी प्रयोग में लाने के लिए तैयार रहना चाहिए। वह अपने पेपर पर इस नुक्ते की रूपरेखा लिखने लगा। पर तभी उसके कानों में आवाज़ पड़ी तो जिसने उसके सारे जोश पर पानी फेर दिया। उसके समीप ही खड़ी होकर आफिया ने जज को संबोधित होते हुए कहा, “जज साहिब, मैं अपनी स्टेटमेंट देना चाहती हूँ।“

इस बात ने उसके वकीलों की उम्मीदों पर ही पानी नहीं फेरा बल्कि उसका अपना भाई भी सिर पकड़कर बैठ गया। भाई ने इशारे से आफिया को बैठ जाने के लिए भी कहा। परंतु आफिया अब किसी की सुनने वाली नहीं थी। जिस बात का सफाई टीम को डर था, वही हो गई।

(जारी…)