Afia Sidiqi ka zihad - 22 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 22

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 22

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(22)

हालांकि अमेरिका ने आफिया की गिरफ्तारी के विषय में कुछ नहीं बताया था, पर फिर भी यह बात पाकिस्तान में पहुँच गई। इतना ही नहीं, यह भी कि अमेरिकियों ने उसको गोली मारी है जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई है। लोगों का सोचना था कि उसको जान से मारने के लिए ही गोली मारी गई होगी, पर वह संयोग से बच गई। परंतु इस बात के बारे में अमेरिकी फौज के अफ़सरों का कुछ और ही कहना था। उनके अनुसार जब उन्हें पता चला कि कोई आतंकवादी स्त्री पकड़ी गई है तो वे उसके साथ इंटरव्यू करने के लिए उस कमरे में पहुँचे जहाँ उसको रखा गया था। अंदर सामने कुछ अफगानी पुलिस वाले बैठे थे। सभी के पीछे आफिया पर्दे की ओट में बैठी थी। वे बैठकर अफगान पुलिस वालों से बातचीत करने ही लगे थे कि आफिया ने पर्दे के पीछे से आकर एकाएक अमेरिकी अफसर की एम 4 गन उठा ली और वह उन पर गोलियाँ चलाने लगी। अपने बचाव के लिए अमेरिकी अफसर ने गोली चलाई जो आफिया के पेट में लगी। फिर वह उसको घायल अवस्था में स्ट्रैचर पर डालकर अपने बेस में ले गए। इस घटना के बारे में आफिया ने आगे चलकर कोर्ट में कुछ और बताया। खै़र, आफिया के गोली लगने की बात सुनकर पाकिस्तान के लोग भड़क उठे। ह्यूमन राइट्स वाले और अन्य कई ग्रुप आगे आ गए थे। पाकिस्तान में माहौल बहुत गरमा गया। आफिया सद्दीकी का नाम बच्चे बच्चे की जुबान पर चढ़ गया। जलसे-जुलूसों की हर तरफ बाढ़ आ गई। मुज़ाहरे होते तो लोगों के हाथों में बैनर होते। किसी पर लिखा होता - ’डाक्टर सद्दीकी को रिहा करो। किसी पर लिखा होता - ‘इस्लाम की बेटी आफिया सद्दीकी। कुछ ही दिनों में आफिया का नाम कौम के लिए गर्व बन गया। इधर जलसे-जुलूस ज़ोरों पर थे और उधर अमेरिका वाले आफिया को न्यूयॉर्क ले जा चुके थे। अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा प्रैस कॉन्फ्रेंस बुलाकर यह बता दिया गया कि एफ.बी.आई द्वारा घोषित सबसे अधिक खतरनाम आतंकवादी औरत आफिया सद्दीकी पकड़ी जा चुकी है।

आफिया को न्यूयॉर्क के उस मैट्रोपोलिटन डिटैशन सेंटर में बंद किया गया जहाँ कभी 1993 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर की पार्किंग में धमाका करने वाले रम्जी यूसफ या उजे़र पराचा को रखा गया था। उसके अन्य बहुत सारे साथी जो इस वक्त जेलों में अपनी सज़ा भुगत रहे थे, इसी सेंटर में से निकलकर गए थे। पाँच अगस्त 2008 को सुबह दस बजे आफिया को पहली बार कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट कंपलैक्स खचाखच भरा हुआ था। प्रैस सहित बहुत से लोग यह देखने के लिए उतावले थे कि आतंकवाद की दुनिया की सबसे खतरनाक औरत देखने में कैसी लगती है। कुछ देर बाद पुलिस वालों ने करीब पैंतीस वर्षीय छोटी-सी और भोलीभाली औरत को लोकर कोर्ट में खड़ा किया तो सब हैरान रह गए। उसने हल्के रंग के कपड़े पहने हुए थे। सिर पर कत्थई रंग का स्कॉर्फ लपेट रखा था। देखने में वह बहुत ही कमज़ोर लगती थी। शायद वह अभी तक गोली लगे ज़ख़्म के कारण पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी। जज ने उससे पूछा कि तू अपना केस स्वीकार करती है तो उसने ‘ना’ में सिर हिला दिया। प्रैस के लोगों से खचाखच भरी कोर्ट में चुप्पी पसर हुई थी। सबको लग रहा था कि यह केस आतंकवाद के खिलाफ़ चल रही गुप्त लड़ाई का सबसे कठिन केस होगा। आम लोग तो इस बात को भी मानने के लिए तैयार नहीं थे कि आफिया को सचमुच गज़नी शहर में पकड़ा गया होगा। वे सोच रहे थे कि पिछले पाँच वर्षों से गुप्त जे़लों में रखी आफिया को सिर्फ़ नाटक रचने के लिए गज़नी के बाज़ार में लाकर छोड़ दिया गया होगा और साथ ही साथ पकड़ लिया गया होगा। कइयों को तो यह भी लगा कि यह लड़की आतंकवादी हो ही नहीं सकती। ख़ैर, यू.एस.ए. की सिविल राइट्स यूनियन को लगा कि ऐसा केस आ चुका है जिसकी वे बहुत अरसे से प्रतीक्षा कर रहे थे। क्योंकि वे कई सालों से सरकार पर दोष लगाते आ रहे थे कि वह आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई का बहाना बनाकर बहुत सारे लोगों को लम्बे समय से गुप्त जे़लों में बंद किए बैठी है और उन पर अमानवीय अत्याचार किया जा रहा है। अब उनका सोचना था कि इस केस के माध्यम से वे इस सच्चाई को सामने ले आएँगे। आफिया को सिविल राइट्स यूनियन की ओर से फिंक नाम की एक उच्चकोटि की वकील दी गई। उस दिन थोड़ी-बहुत कार्रवाई करते हुए जज ने कोर्ट बरखास्त कर दी। मार्शल आफिया को वापस जे़ल में ले गए। अगले दिन आफिया के परिवार की वकील शार्प भी वहाँ पहुँच गई। फिंक और शार्प ने लगभग तीन घंटे जे़ल में आफिया से लम्बी इंटरव्यू की। बाहर आकर शार्प ने ऐलान किया कि आफिया के अनुसार उसको पिछले कई वर्षों से अफगानिस्तान की बैगराम एअरफोर्स बेस के किसी गुप्त सेल में कै़द करके रखा गया था। इसके उलट अमेरिकी सरकार यह मानने से इन्कार कर रही थी कि वह पहले से एफ.बी.आई. अथवा सी.आई.ए. की हिरासत में थी। पर वह यह कह रही थी कि यह बहुत ही खतरनाक आतंकवादी है। सरकार के अनुसार सबसे बड़ा सुबूत उसके पास से बरामद हुए वे काग़ज़-पत्र थे जो उसकी गिरफ्तारी के समय थानेदार गनी खां ने पकड़े थे। आफिया की वकील का कहना था कि ये सारे पेपर झूठे और सरकार की ओर से प्लांट किए गए हैं। पर इनमें से बहुत सारे पेपर आफिया की अपनी हस्तलिपि में थे जो उसको शक के घेरे में ला रहे थे। बाद में पाकिस्तान में यही बात उसके मामा फारूकी ने सुनी तो उसको कोई शक न रहा। उसको याद आया कि छह महीने पहले जब आफिया उसके घर आई थी तो यही काला बैग उसके पास था जिसको वह हाथ नहीं लगाने दे रही थी और बहुत संभाल संभालकर रख रही थी। अमजद और उसके घरवालों ने उसकी गिरफ्तारी होने की बात सुनी तो उन्हें सबसे पहले यह जानने की उतावली हुई कि उसके पास बच्चे थे कि नहीं। ख़ैर, बच्चे उसके पास नहीं थे। पर जब अमजद ने वो वीडियो देखी जो आफिया की गिरफ्तारी से अगले दिन पुलिस की ओर से बनाई गई थी तो उसने आफिया के साथ पकड़े गए लड़के को पहचान लिया। यह उसका अपना पुत्र अहमद था। परंतु आफिया अपने पुत्र की शनाख़्त छिपाकर रखना चाहती थी। उसने अपनी इंटैरोगेशन करने वालों को यही कहा कि यह लड़का कोई यतीम था, इसलिए उसने उसको अपने पास रखा हुआ था क्योंकि उसका अपना कोई नहीं था। दूसरा, साथ रखने का एक कारण उसने यह भी बताया कि औरत होने के कारण वह अकेली सफ़र नहीं कर सकती, इसलिए उस लड़के को साथ रखती थी। पर जब एफ.बी.आई ने उस लड़के का डी.एन.ए. टैस्ट करवाया तो यह बात स्पष्ट हो गई कि वह आफिया का अपना पुत्र था। इस बात का खुलासा होने के बाद आफिया बहुत उदास हो गई और उसने बोलना बंद कर दिया। उसको अपने बेटे की ज़िन्दगी को लेकर चिंता हुई। वह सोचने लगी कि एफ.बी.आई. उसके बेटे को मार सकती है या लम्बे समय तक अपनी हिरासत में रख सकती है, सिर्फ़ उसको उसके खिलाफ़ इस्तेमाल करने के लिए। क्योंकि अमेरिकी कानून के अनुसार बारह साल का बच्चा अपने माँ-बाप के हक में अथवा उलट गवाही देने के योग्य समझा जाता है। आफिया बिल्कुल ही चुप हो गई। उसने अपने वकीलों के साथ भी बोलना छोड़ दिया। ई मेल वगैरह भेजनी बंद कर दीं। पुत्र के दुख में वह सारा दिन अकेली बैठी रोती रहती थी। सही ढंग से खाना तक छोड़ दिया था। उधर पाकिस्तान में जनता बड़ी सहानुभूति के साथ आफिया की कहानी सुनती जा रही थी। सभी को इसके साथ हद से ज्यादा हमदर्दी थी। पाकिस्तान के टी.वी. चैनल जिओ टी.वी. ने ख़ास प्रोग्राम शुरु किया हुआ था जिसका नाम था - ‘ए ह्यूमन राइट्स ट्रैजेडी - आफिया सद्दीकी। पाकिस्तान की सरकार में उस समय हालात ठीक नहीं थे। मुशर्रफ़ ने इस्तीफ़ा दे दिया था और नए चुनाव होने जा रहे थे। लोगों की नब्ज़ पहचानते हुए वहाँ की नेशनल एसेम्बली ने आफिया सद्दीकी के हक में प्रस्ताव पास करते हुए आफिया की मदद के लिए एक डेलीगेशन अमेरिका भेजने का फै़सला कर लिया। उधर अमेरिका ने इस समय ड्रोन हमले बढ़ा दिए थे और इनमें चोटी के अलकायदा मेंबर मारे जा रहे थे। समझने वाले समझते थे कि यह सब इस कारण हो रहा है क्योंकि आफिया के पास से पकड़ी गई थंब ड्राइव में से बहुत सारे अलकायदा मेंबरों के ठिकानों का पता लगा होगा। और कुछ तो पाकिस्तानी सरकार न कर सकी, पर आफिया का बेटा उसकी बहन के हवाले करवाने का काम अवश्य करवा दिया।

उधर आफिया का बर्ताव अभी भी ख़ामोश और जिद्दी था। उसने अपनी तारीख़ पर कोर्ट में जाने से इन्कार कर दिया। उसने किसी को भी मुलाकात करने से मना कर दिया। जब उसने वकीलों से मिलने से इन्कार कर दिया तो फिंक जैसी प्रसिद्ध वकील ने भी स्वयं को बेबस-सा महसूस किया। इस प्रकार आफिया अपनी कई कोर्ट सुनवाइयों पर भी नहीं गई। यह देखते हुए उसकी वकील ने कोर्ट से विनती की कि आफिया दिमागी तौर पर सही प्रतीत नहीं होती, इसलिए उसका मुआयना करवा कर इलाज़ करवाया जाए। जज ने इस विनती को मानते हुए आफिया को फैडरल मेडिकल सेंटर कार्सवैल, टैक्सास भेजने का आदेश कर दिया। यहाँ पहुँचकर आफिया ने मानसिक तौर पर काफ़ी राहत अनुभव की। दिसंबर महीने में जब पाकिस्तान की सरकार का ख़ास डेलीगेशन उससे मिलने आया तो आफिया उस समय मेडिकल सेंटर में थी। उसने बड़े अच्छे ढंग से डेलीगेशन के साथ मुलाकात की। डेलीगेशन ने पाकिस्तान सरकार की ओर से उसको कानूनी मदद का भरोसा दिलाया। इसके शीघ्र बाद पाकिस्तान सरकार ने आफिया के कानूनी खर्चों के लिए लगभग दो मिलियन डॉलर की मदद का प्रबंध कर दिया। तभी अमेरिकी सरकार ने फै़सला किया कि वह आफिया पर आतंकवाद का मुकदमा नहीं चलाएगी, बल्कि उस पर उस जु़र्म के खिलाफ़ मुकदमा चलाया जाएगा जो उसने अमेरिकी फौजियों पर गोली चलाने का किया। इसी समय आफिया के डॉक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया कि वह मानसिक तौर पर बीमार है। उसकी वकील फिंक ने इसका लाभ उठाते हुए सरकार पर इल्ज़ाम लगाया कि एफ.बी.आई. की यातनाओं के कारण ही आफिया की यह हालत हुई है। पर आफिया ने उसके साथ बोलना बंद कर दिया। सिर्फ़ उसके साथ ही नहीं अपितु आफिया हर उस शख़्स से दूर रहने लगी जिसके बारे में उसका लगता था कि यह यहूदी है या यहूदियों के संपर्क में है। उसकी ऐसी हरकतें उसके वकीलों और उसके अपनों को भी परेशान कर रही थीं। वैसे इस समय आफिया बड़ी अच्छी रौ में थी। एक तो पाकिस्तानी सरकार उसकी मदद कर रही थी, पर इससे भी बड़ी बात वह थी जो डॉक्टर ने लिख दी थी कि आफिया सद्दीकी मानसिक बीमारी के कारण मुकदमें का सामना नहीं कर सकती। उसको लगता था कि शायद मानसिक बीमारी की वजह से उसको यूँ ही रिहा कर दिया जाएगा। परंतु आफिया की यह खुशी उस वक्त उड़ गई जब उसको पता चला कि डॉक्टरों की एक अन्य टीम उसका मुआयना करने आ रही है। इसी बीच उसने अमेरिकी सरकार के नाम एक लम्बा पत्र लिखा। इस पत्र में उसने अपने ढंग से यह नुक्ता रखने की कोशिश की कि उसके पास बहुत सारे गुप्त भेद हैं जो कि अमेरिकी सरकार के काम आ सकते हैं। वह सोच रही थी कि शायद ये भेद जानने के बदले ही सरकार उसको रिहा करने के लिए मान जाए। जेल वार्डन को यह पत्र देते हुए उसने आगाह किया कि इस पत्र को प्रेज़ीडेंट ओबामा तक पहुँचा दिया जाए। पर आफिया को फिर निराशा हाथ लगी। उसके इस पत्र की ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। बल्कि उसको बड़ा धक्का तब लगा जब डॉक्टरों की नई टीम ने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया कि वह बिल्कुल ठीक है और अपने केस का सामना सही ढंग से कर सकती है। मेडिकल की इस नई रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार उसको वापस न्यूयॉर्क में ले आई और केस फिर से प्रारंभ कर दिया। जज ने उसका वकील बदलते हुए केस की तारीख तय कर दी। उसकी नई वकील डॉन कार्डी थी और केस की तारीख़ थी- 7 जून 2009 ।

उस दिन जज बर्मन ने कार्रवाई शुरु करते हुए आफिया को पेश करने का आदेश दिया। मार्शलों ने आफिया को लाकर कोर्ट में खड़ा कर दिया। आवश्यक कार्रवाई निपटाते हुए जज ने उसको वकील के पास बैठने की अनुमति दे दी। वकील अपना काम करने लगी, पर लगता था कि आफिया को अपनी वकील से कोई सरोकार नहीं था। वह चलती कार्रवाई में उठ खड़ी हुई और ऊँचे स्वर में बोली -

“मैं कुछ कहना चाहती हूँ...।“

“मिस आफिया, तुम्हें बोलने का वक्त मिलेगा, पर अभी तुम बैठ जाओ।“ जज ने हुक्म सुनाया। पर आफिया उसकी बात मानने की बजाय फिर से बोली, “मैंने जो कुछ किया है, वो दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए किया...।“

उसके बोलने के साथ कोर्ट के काम में रुकावट पड़ गई। जज ने गुस्से होकर आफिया की ओर देखा, पर आफिया ने अपनी बात जारी रखी -

“मैं तो तालिबानों और अमेरिका के बीच समझौता करवाना चाहती हूँ। आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते ?“

“मिस आफिया, तुम प्लीज़ बैठ जाओ।“ जज ने सख़्त लहजे में यह शब्द कहे तो आफिया बैठ गई। उसने मेज़ पर सिर रख लिया और आँखें मूंद लीं। उसकी यह हालत देखकर उसकी वकील जज से अनुमति लेती हुई बोली, “आप मिस आफिया की हालत देखकर खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इसके ऊपर कितना टार्चर हुआ है। इसकी हालत सही नहीं है। एफ.बी.आई. के टार्चर ने इसको इस हालत में पहुँचा दिया है।“

“युअर ऑनर, मैं कुछ कहना चाहती हूँ।” सरकारी वकील उठ खड़ी हुई। जज ने उसको बोलने की इजाज़त दी तो वह अपनी बात रखने लगी -

“मिस आफिया अभी तक यह नहीं बता सकी कि उस पर यह टार्चर कब और कहाँ हुआ है। इसने अब तक जो भी बयान दिए हैं, वे आपस में मेल नहीं खाते। यह बार बार अपने बयान बदल रही है। इस वजह से हम यह समझने में असमर्थ हैं कि इसका कौन सा बयान सही माना जाए। मैं यह भी कहना चाहूँगी कि मिस आफिया दिमागी बीमारी का सिर्फ़ बहाना बना रही है। वैसे यह बिल्कुल ठीक है। यह अपने केस का सामना कर सकती है।”

“वही तो मैं कह रही हूँ कि मिस आफिया किसी भी बात का उत्तर ठीक नहीं दे रही। वह भूल जाती है कि पहले उसने क्या कहा था और अब क्या कह रही है। वह पुरानी कई बातें भी भूल चुकी है। और यह सबकुछ एफ.बी.आई. के अत्याचारों की वजह से हुआ है। मिस आफिया मासूम है, निर्दोष है।“ इजाज़त लेते हुए आफिया की वकील बोली।

जज ने दोनों पक्षों की बातचीत सुनने के बाद फैसला कर दिया कि आफिया बिल्कुल सही है और वह अपने केस का सामना कर सकती है। इसलिए उसने अगली तारीख़ नवंबर की रख दी।

(जारी…)