Parikshaa ko na banaye Houaa in Hindi Magazine by Archana Singh books and stories PDF | परीक्षा को न बनाए हौव्वा

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परीक्षा को न बनाए हौव्वा

परीक्षा को न बनाएॅं हौव्वा

परीक्षा आते देख बच्चे व माता-पिता भी तनावग्रस्त हाने लगते हैं पर आवश्यकता है धैर्य की ताकि विवेक से आने वाले कल के लिए तैयार हो सकें। अभिभावक बच्चों के मनोबल को कमजोर न पड़ने दें, उनके आस पास रहें पर उन्हें स्वयं से तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित करें। प्रत्येक माता-पिता को यह बात समझने की आवश्यकता है कि हर एक बच्चा कक्षा में प्रथम नहीं आ सकता, सभी बच्चों की क्षमता एक सी नहीं होती। कोई छात्र कम समय में भी कंठस्थ कर लेता है तो किसी को ज्यादा समय की आवश्यकता पड़ती है। किसी में समझने की योग्यता होती है तो किसी में कंठस्थ करने की। प्रत्येक छात्र की रुचि भी विषयों को लेकर अलग-अलग होती है। रुचि वाले विषयों की तैयारी के लिए उन्हें कम समय लगता है और अरुचि वाले विषयों के लिए अत्यधिक समय देने की आवश्यकता होती है। समय≤ पर शिक्षा व शिक्षित होने के महत्त्व को उन्हें समझाने की भी आवश्यकता होती है। स्वयं को शिक्षित कर आत्मनिर्भर बनने का उद्देश्य जीवन में होना चाहिए।
पहले से करें तैयारी
परीक्षा का बुखार माता-पिता व बच्चों पर भी समान रुप में नज़र आता है। दरअसल में परीक्षा विद्यार्थी के लिए एक मार्ग है जिससे गुज़र कर अपने मंजिल को पाना है। राह में आने वाले कंकड़ पत्थर के समान छोटी-बड़ी बाधाएॅं हंै जिसका सामना सहजता से कर हमें अग्रसर होते रहना है। बच्चों को सालोंभर समान रुप से पढ़ाई करते रहने को प्रेरित करते रहना चाहिए, अगर वे ऐसा करते हैं तो परीक्षा से दो दिन पहले से ही रात-रातभर जगने की आवश्यकता नहीें होगी। परीक्षा से पहली रात विद्यार्थियों का समय पर सोना बेहद जरुरी है। पूर्व तैयारी के फ़ायदे हैं कि बच्चों को पुनर्लेखन व संशोधन के लिए वक्त मिल जाता है। विद्यार्थियो के खानपान पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। घर छोटा हो या बड़ा बच्चों के पढ़ने का स्थान सुनिश्चित होना चाहिए, साथ ही उचित समयसारणी व पढ़ाई की अवधि भी सुनिश्चित होनी चाहिए। बच्चों को समय के महत्त्व को समझाना चाहिए,वरना पाछे पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत। गाॅंधी जी की जीवनी हमें प्रेरित करती है,वे किस प्रकार समय के पाबंद थे और जिनके लिए आराम हराम हुआ करता था।
समय का सदुपयोग
अगर पढ़ते समय आपको बोरियत हो रही हो तो थोडा टहल सकते हंै, नहीं तो थोड़ी देर आंखे बंद करके लेट जाएँ ,उस स्थान से उठ जाएॅं और उसके बाद दोबारा से शुरू करें लेकिन हाँ, बेमन से कुछ भी नहीं पढ़े क्योंकि आप अपना समय ऐसे ही बर्बाद नहीं कर सकते हैं जिसमे प्रोडक्टिविटी नहीं हो। थोडा टेक्निकल बने और ‘केमिस्ट्री’ और ‘बायोलॉजी’ में सबसे मुश्किल पार्ट किसी रसायन या किसी जीव का वैज्ञानिक नाम याद रखने के लिए उसके नाम का पहला अक्षर और लास्ट अक्षर को दिमाग में बैठते हुए एक ‘शाॅर्ट फॉर्म’ दिमाग में बना लें जिस से याद करने में आसानी हो। मुख्य बिन्दुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि आप उसे किताबों में लिखी भाषा की तरह न लिखे और न ही उनका विस्तारपूर्ण तरीका इस्तेमाल करें बल्कि खुद का एक तरीका अपनाएं जिस से आपको याद रखने में आसानी हो जैसे आप किसी भी हिंदी ,इतिहास या ऐसे विषय जिनमें विस्तार पूर्ण लिखा गया हो ,उनके लिए किसी एक मुख्य बिंदु को मध्य में रखकर उस से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी को आस पास लिख चार्ट बना लें। किताब को दोहराते हुए शुरु से अंत तक पढ़ें, खास पंक्तियों को रंगीन पेंसिल से रेखांकित भी करते रहें, इस तरह विद्यार्थी हर तरह के प्रश्नों को लिख पाने में सक्षम हो पाता है। उसके मानस पटल पर कहीं न कहीं रेखांकित वाक्य अंकित होते रहते हैं। हम अभिभावकों को यह समझने की जरुरत है कि अंकों से किसी बच्चे का भविष्य निर्धारित नहीं होता बल्कि उसकी योग्यता व परिश्रम उसे सफल मुकाम तक ले जाती है।
परिश्रम को बनाएॅं हथियार
विद्यार्थियों को ‘सेल्फ स्टडी’ के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है,यह आदत भी शुरुआत से ही होनी चाहिए। बच्चे को स्वयं से भोजन करने, नहाने, जूता पालिश करने व बस्ता लगाने जैसे कई कार्यों को समयानुसार खुद से करने को प्रोत्साहित करें। ‘सेल्फ स्टडी’ के कई फ़ायदे हैं विद्यार्थी किताब का कोना-कोना पढ़ डालता है, साथ ही समय की बचत व सदुपयोग कर पाता है। अगर कहीं-कहीं पर उसे किसी प्रकार की मदद की आवश्यकता हो तो अपने माता-पिता व अध्यापकों से भी सहायता ले सकता है। इस प्रकार उसमें आत्मविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है। ‘सेल्फ स्टडी’ के कई उदाहरण समाज में मौजूद हैं जिन्होंने सिविल सर्विस, आई आई टी, आई ए एस जैसी कई परीक्षाओं को अपने दम पर हासिल किया है। इन परीक्षाओं के अपने महत्त्व होंगे पर कैरियर में इनके अलावा भी कई क्षेत्र हैं जहाॅं साधारण व मंद बुद्धि वाले लोगों के लिए पद सुरक्षित हैं। कई महान वैज्ञानिक भी हुए जिन्होंने कक्षा में कभी अंक के पीछे नहीं भागे ,हाॅं ये सत्य है कि वे परिश्रम से कभी नहीं थके, समय से लड़ते रहे हार नहीं माने। अपने बुद्धि विवेक को मेहनत के दम पर सही दिशा दिए, लोगों के सवालों का अवसर पर सही जवाब दिए। परिश्रम को हथियार बनाकर कठिन समय से लड़ना सीखें। सर्वप्रथम तो यह समझना होगा कि एक-दो दिन में पौधा पेड़ नहीं बन जाता, कोई भी इमारत दो दिन में खड़ी नहीं होती यानि नियमित रुप से परिश्रम करने वालों के पीछे सफलता झक मारकर आएगी। पर व्यक्ति आधे अधूरे परिश्रम को बीच में ही छोड़ देता है और फिर, वैसे में पूरी सफलता की उम्मीद लगा बैठता है। इस कथन में कितनी सत्यता है -
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।
भय के आगे जीत
निरंतर प्रयास व कठिन परिश्रम से सफलता आपके कदम चूमेगी तथा एक साधारण व्यक्ति भी जीवन में कामयाबी हासिल कर सकता है। गणित व विज्ञान जैसे विषय के लिए रोजाना नियमित रुप से पाॅंच से दस सवाल को हल करने की आवश्यकता है, फिर क्या गणित जैसा विषय भी आपके लिए सरल बन जायेगा। डर के आगे जीत है पहले हमें अपने डर को हराना होगा। एन सी आर टी की किताब के हर सवाल को हमें हल व अभ्यास कर सरल बनाना होगा ,जब हम इस कार्य में पूर्ण रुप से सक्षम हो जाएॅं, तभी अन्य लेखकों के किताबों के सवालों को हल करने की कोशिश करनी चाहिए। बाकि अन्य विषयों को समझकर याद करना चाहिए। याद किए हुए विषय को लिख कर अभ्यास करें इस तरह लेखन क्षमता में वृद्धि होती है। अपने दिनचर्या की उचित समय सारणी बनाने की आवश्यकता है, वरना पढ़ाई से अधिक खेलने व टी वी देखने में समय गवाॅं बैठते हैं। जिस प्रकार खेलते समय व टी वी के समय हम ध्यान केन्द्रित करते हैं ठीक वैसे ही पढ़ाई के समय भी पूरी एकाग्रता की आवश्यकता होनी चाहिए। पढ़ाई करते वक्त गणित के कठिन फार्मूले को अलग से लिखकर नज़र के सामने चिपका लेना चाहिए। परिभाषा व वैज्ञानिकों के विचारों को भी नज़र के सामने की दीवार पर स्वयं से लिखकर चिपकाएॅं, इस प्रकार आपकी दृष्टि उसपर पड़ती रहेगी। इतिहास के तिथियों व नामों को भी क्रमानुसार लिख लें। साथ ही कुछ ऐसे भी विद्यार्थी होंगे जो विज्ञान के बजाय अन्य विषय में अच्छे होंगे, वे अपने उन विषयों पर ध्यान केंद्रित कर उसमें अच्छे अंक लाकर अपने प्रतिशत को बनाए रखें।
दूर करें तनाव
आमतौर पर दिसंबर से मार्च के बीच विभिन्न परीक्षाओं का मुख्य दौर होता है। यह सच है कि परीक्षा का समय बच्चों और उनके माता पिता, दोनों के लिए तनाव भरा होता है जिसमें कुछ तनाव सकारात्मक परिणाम देते हैं तो वहीं अच्छे प्रदर्शन के लिए जरुरत से अधिक तनाव का विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है। लेकिन समझदार माता पिता होने के नाते आप अपने बच्चों को ऐसे तनाव से निपटने में सक्षम बना सकते हैं। हकीकत यह है कि परीक्षा और तनाव दोनों ही एक दूसरे के पहलू हैं। बच्चों को किसी न किसी तरीके से आंकना आवश्यक होता है और बोर्ड की परीक्षा इन्हीं मूल्यांकन की विधियों में से एक है। इसलिए परीक्षा की तैयारी करते समय परीक्षा के डर को कम करने वाले तरीकों को जानना अति आवश्यक है।
कैसे करें उपाय
यदि समझदारी से काम लिया जाए तो परीक्षा का तनाव दूर करना काई जटिल काम नहीं है। इसके लिए तीन चरण शामिल हैं, परीक्षा की तैयारी करना, आत्मविश्वास को बढ़ाना और तीसरा नतीजे के प्रति सकारात्मक अपेक्षा रखना। आमतौर पर देखा जाता है कि कई बच्चों और परिजनों को परीक्षा में प्रदर्शन और उसके नतीजों का डर होता है। इसका कारण या तो आत्मविश्वास की कमी या परीक्षा में बेहतरीन नतीजे लाने का दबाव होता है। ऐसी स्थिति में माता पिता परीक्षा और उसकी तैयारियों में सहयोग देकर बच्चों की सहायता कर सकते हंै। माता पिता बच्चों के प्रेरणा स्त्रोत होते हैं और बच्चों की भावनात्मक स्थिति काफी हद तक माता पिता के सहयोग पर निर्भर करती है। एक रोल माॅडल होने के नाते माता पिता को अपने तनाव से निपटना भी आना चाहिए और बच्चों को भी परीक्षा के तनाव से प्रभावी तरीके से निपटने में सक्षम बनाना चाहिए। याद रखें,महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है लेकिन सबसे अच्छा उपाय है बिना दबाव डाले सकारात्मक तरीके से मजबूत बनाना। परीक्षा का तनाव होना एक बात है लेकिन यदि आप परीक्षा में तनाव के लक्षणों से परिचित हों तो आप इनसे बेहतर तरीके से निपट सकते हैं।
प्रेरित करने की जरुरत
हमें एक छोटी चींटी तथा मधुमक्खी से प्रेरित होना चाहिए कैसे चींटी ऊॅंचे पहाड़ों पर चढ़ सकती है व कैसे मधुमक्खी छत्ते में शहद एकत्रित करती है जब वो कठिन परिश्रम कर सकती हंै तो क्या हम नहीं कर सकते ? गीता,बबीता जैसी बेटियाॅं भी जब माता-पिता व राष्ट् का नाम रौशन कर सकती हैं तो हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे बच्चे भी इंजीनियर व डाॅक्टर न बन सके तो कोई परेशानी नहीं वो किसी अन्य क्षेत्र में महारत हासिल करने की योग्यता रखते हैं बस जरुरत है उनको प्रेरित करने व उचित मार्गदर्शन की। पढ़ाई की अवधि कक्षा के साथ-साथ धीरे-धीरे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि बच्चों को भी एक स्थान पर ज्यादा समय तक बैठकर पढ़ने की आदत हो सके। साथ ही प्रत्येक विषय को समान महत्त्व देना भी अनिवार्य है, जिससे हमारे प्रतिशत में अंतर न आए। देखा जाए तो प्रत्येक वर्ग में परीक्षाएॅं हर माह व हर साल होती ही हैं, फिर दसवीं व बारहवीं की परीक्षा का शोर क्यों होता है ? अभिभावकों व बच्चों को प्रत्येक कक्षा की परीक्षाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है यही छोटी-छोटी तैयारियाॅं बच्चों को भविष्य के लिए सजग बनाती हैं। पूर्व ही सजग व तैयार रहने की आदत रहेगी तो जीवन की हर परिस्थितियों को सरलता से जूझ सकेंगे। किताबों की पढ़ाई व परीक्षा की ही बात नहीं है जिंदगी में भी कई परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है।
घर हो या कक्षा हमें यह देखने को मिल ही जाता है कि समाज में हर प्रकार के बच्चे होते हैं। सभी का मानसिक स्तर सामान्य नहीें होता है कुछ कुशाग्र बुद्धि के तो कुछ मंद बुद्धि के और कुछ साधारण होते हैं। अभिभावकों को घरों में भी अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से नहीं करनी चाहिए बल्कि उनके साथ समय व्यतीत कर सकारात्मक सोच को विकसित करना चाहिए। हम माता-पिता को अपने बच्चों को समय≤ पर प्रोत्साहित कर छोटे छोटे उपहार देते हुए, उनकी योग्यता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। साथ ही उन्हें यह समझने व समझाने की आवश्यकता है कि अंक ही सब कुछ नहीे होता, जीवन में कई उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने कक्षा में कभी प्रथम स्थान प्राप्त नहीं किया पर उसके बावजूद उनकी पहचान दुनिया में कायम है, अर्थात् हमें मिलजुल कर बच्चों के मनोबल को कायम रखना र्है ‘आज करे सो अब’ के फार्मूला को अपनाना है।

................ अर्चना सिंह जया