"विश्व शांति मेरी दृष्टि मैं,
शांती शब्द का सीधा तालुक परमात्मा की और हम को ले जाता है, जब हम परमतत्व से सीधे कनेक्ट होते है तो हम को शांति का अनुभव होता है,
आधुनिक टेकनोलोजी के युग मैं हम टेकनोलोजी की मदद से अपनी सुविधा बढा तो शक ते है,पर पैसे सें हमको शांती नहीं मिलती.ए हकीकत है.
शांति क्या है वो तो कीसीको भी न पता उसकी व्याख्या भी कोई चोक्कस न है, जब इन्सांन को सुबह पत्ते पर जो हम बुंद देखते है तब हमको देखते ही अपने आपको हम दैवी शक्ति से हम जुड जाते है हम कब शब्द मैं कहे की जीसे हमारे बेचेन मन को और दिल को शुकुन मिलता है वो शांती है, इसकी कोई अलग व्याख्या न है....
सब कहेते है की भजन करने से सत्संग में जाने से शांति मिलती है ए बात जरसल जुठ है, शांति भीतर से आती है, कोई सिबिर हमको शांति का रास्ता दिखा ने की बात करे ए जुठ है हमको खुद को अपने बेचेन मन को शांत करना चाहिए।ध्यान,प्राणायाम,योग से, वहीं हमको परमात्मा से हमको कनेक्ट करता है.
हम भाग दोड में एसे खो गये की हम ने अपने अंदर इन्सांन के इन्सांन को दफना दिया,और हमारा मन बेचेन ही होता गया.जब हम कोइ जन्मे हुए सोते बच्चे को देखे तो जो हमारे मन को आनंदमय बना देता है, वो एक शांति ही है, उसकी कोइ अलग व्याख्या न है़
मेरी अशांति मेरे जीवन मैं अपने देखने के तरीके से हुई है, मेरा मन ही मेरी दुःख का कारण
है,पर हमको बचपन सें शिखाया जाता है,की दोषारोपन करना,जीसे हम तो दुःखी होते है साथ मैं हमारे आसपास के लोग,हमको हमारी देखने की दृष्टि बदल देनी चाहिए। क्यों कि हम ज्यादा पाने के चक्कर मैं हम अपने मन को अशांति, हताशा,और डिप्रेशन की तरफ ले जाते है,और मानसिक बिमारी औका भोग भी बनते है.में अपने चंचल मन की वजह सें अशांत हुं तो ठीक है
हमको अपनी अशांति की वजह दुसरो को मानने की जगह भीतर देखेगे तो जवाब मिल जायेगा .
हमारे कर्म का कोई साथी या जवाबदार है, नहीं न हमको कहीं कोइ आके हमारे वोलेट की चोरी करे तो हम जवाबदार न है,तो हमारे अशांत मन का जवाबदार भी हम ही है, हम जब पथारी मैं लेटे तो हमको नींद आ जाए फटाक सें तो वो शांती का परमअनुभव है,जब हम कोइ अलार्म के बीना ऊठजाते है, वो शान्ति का परम अनुभव है जब हम अपनी इन्द्रीयों पर काबु करनां शीख जाते है तो हम शांती की चरम सीमा तक का रास्ता मिल जाता है,हम किसी को दोष देते है, हमारे अशांति के लीए वो गलती के परदे मैं हम जी रहे है..जब हम प्रक्रिति के तत्वों को देखते है और जो हमारे दिल को सुकुन मिलता है वो शांती है,पर हम इस घटनाएँ को पोझीटीव या नेगेटीवली लेते है,उस पर निर्भर होता है, शांति का तालुक हम जहा जाएंगे तो सब अच्छे लोग सारी जगह न होगे,ए हम पे ही तालुक होता है की हम कैसे रहते है,हमको बदलाव खुद मैं ही लाना होगा लोग कैसे है वो हम पे ही निर्भर होता है कहावत है की "जैसी दृष्टि एसी सृष्टि" हमको देखने का नजरीया बदले तो हम शांति के प्रथम पडाव मैं आ जाएंगे,
महावीर ,जीसस, बुद्ध भगवान ने अपने मन और इन्द्रीयो पर काबु रखा तो वो आनंदित जीवन व्यथित करते थे,लोग भी यही थे,पृथ्वी भी यही थी पर हमको परिस्थितियां आती है उसके जीमेदार हम है और जो होता है वो अच्छे के लीए होता है हम ए समजना शुरु करेंगे तो हमारा मन शांति की अनुभूति प्राप्त करेगा,पर हमको तो बचपन सें हमको जीतना ही है, कैसे जीते ,हम कीसी को कीस तरह बाधारुप बने इससे हम एक एक करके मनुष्य जाती इस चक्कर मैं ख्त्म हो जाएगी डाइनोसर की तरह,और हम बदलाव लाए देखने और सोचने मैं तो हम धीरे धीरे वो शांति के नजदीक जाते है और हम परमतत्व मे लीन हो जाते है.
कीसी को कैसे बदले उसे ज्यादा हम अपने अंदर क्या बदलाव लाए हमको वो शिखना है,दोष हममे ही है, वो जानकर हमको खुद में ही बदलाव लाना होगा, वो कैसे करे हम वही की कम को देखने,की सोचने की दृष्टि पे निर्भर होता है.
सज्जन लोग स्वर्ग मैं न जाते वो जहाँ होते है वहां स्वर्ग का निर्माण करते हैं.स्वर्ग और नर्क कोई प्लेश न है कल्पनिक ख्याल होता है. कोई मरने वाले तो बताने आए न की स्वर्ग मैं गया या नर्क मैं गया एसा.हम दुसरे को जवाबदार ठहराते रहे तो हमको परम शांति न मिलेगी कयाेंकी हम अंधे होगे तो पुरा जग अंधा लगेगा हमको.हम कोई सर्जन कर्ता न है की कीसी को बनाने बैठे.हम करेंगे भी तो न होगा ए हम सब को कैसे सुधारे ,पहले खुद को देखें की खुद मेें क्यां बदलाव लाए की हम शांती की चरमसीमा मैं पहोंचे,हमको अगर शांति चाहिए तो हमको देनी पड़ेगी किसी पर हम दोषारोपण करेगें तो जो थोडी रही सही शांति भी भंग हो जायेगी.
हम जब नजरियां बदलते है जीने का जीवन मे परम शांति ही परम शांती है पर हम को जीवन को दोष नहीं देना है,हम जब हम अपनी दृष्टि बदल दे सोचना का जरीया तो जिंदगी हमको परम शांति की और ले जाती है और जीवन मैं बदलाव आपोआप आ जाते है.और हम परम तत्व मैं विलिन हो जाते है. और शांति का अनुभव होता है.
हमारी अशांती का कारण यह भी है,की सब हमारे मुताबिक चले हम जैसा चाहे सबका रिमोट कंट्रोल हम अपने हाथ मैं लेले ते हैं मां बाप होतो अपने बच्चो का,पत्नी हो तो अपने पति का सास होतो बहु का दुसरे को हम कैसे काबु मैं करे उसी चक्कर मैं हम एसे लगे रहते है की हम खुद की दिशा भी भटक जाते है.हमको पता ही नहीं चलता सबको स्वतंत्रता प्यारी होती है छोटा बच्चा हो तब भी वो समजता है की मा बाप उसकी आझादी छीन रहे है हम ही भटकते हुए मुसाफ़िर दुसरे को क्यां दिशा दिखाएगे हम बाद मैं बेचेन हो जाते है, हम को पता नहीं चलता और हम कोइ मानसिक बिमारी या भोग बनते जाते है हम को शांती या अनुभव करना है तो हमको सुबह ध्यान मुद्रा मैं बैठ कर मंडी सांसें भरनी है जी से हमको शांती की अनुभूति होती है,सत्संग ,भजनमंडली या हमको शांती न देती वोतो हमारी शांती भंग करती है
शैमी ओझा