Afia Sidiqi ka zihad - 20 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 20

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 20

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(20)

इस्मत और फौज़िया अपने घर तक सीमित होकर रह गई थीं। वे भयभीत-सी किसी के साथ आफिया को लेकर बात भी नहीं करती थीं। इसके अलावा उनके घर की आई.एस.आई. निगरानी करती रहती थी। कभी उन्हें गुप्त फोन आते थे कि आफिया के बारे में बात नहीं करती, नहीं तो उनका हश्र भी आफिया जैसा ही होगा। ऐसे समय उन्हें लगता कि आफिया इस दुनिया में नहीं है। फिर अगले ही दिन कोई फोन आ जाता कि आफिया जहाँ कहीं भी है, वो ठीक है, तुम उसकी चिंता न करो। ऐसा फोन सुनकर उन्हें लगता कि आफिया जिन्दा है। इसी दुविधा में ही दिन, महीने, सालों में बदल गए, पर उन्हें कभी आफिया का कोई सुराग नहीं मिला। एक दिन इस्मत ने अपने पुत्र मुहम्मद को ह्यूस्टन में फोन करते हुए कहा, “बेटा, बता हम क्या करें। हमारे पास तो कोई घर का सदस्य भी नहीं है। तुझे बता नहीं सकती कि हम डर के साये में कैसे दिन बिता रहे हैं।“

“अम्मी, मैं यह बात समझ सकता हूँ। पर क्या किया जाए।“

“बेटा, मैं चाहती हूँ कि तू भी यहीं पाकिस्तान ही आ जा। कहीं यह न हो कि तुझे भी अमेरिकी सरकार किसी केस में फंसा लें।“

“नहीं अम्मी, ऐसा नहीं होगा। मैं कभी भी किसी गलत लोगों के साथ नहीं जुड़ा। हमेशा अपने काम से काम रखा है। इस कारण मुझे यहाँ कोई खतरा नहीं है।“

“फौज़िया के साथ भी तो यही कुछ हो चुका है। वह जहाँ कहीं भी नौकरी करने लगती थी, एफ.बी.आई. वाले वहीं पहुँच जाते थे। आखि़र, उसको अमेरिका छोड़ना पड़ा।“

“अम्मी, मेरे और फौज़िया में फर्क़ है।“

“वह कैसे ?“

“तुझे पता ही है कि आफिया फौज़िया के पास रहती रही है। आफिया की कई चैरिटियों के पते फौज़िया के घर के थे। फौज़िया हालांकि किसी बात से संबंधित नहीं थी, पर यह आफिया से जुड़ी रही है। यही कारण है कि एफ.बी.आई को हमेशा शक रहता था कि कभी न कभी आफिया उसके साथ अवश्य संबंध कायम करेगी। इसीलिए इसका हर वक्त पीछा किया जाता था, पर मुझे उसके बाद कभी कोई तकलीफ़ पेश नहीं आई।“

“फिर बेटा, तू ही बता कि हम माँ-बेटी किधर जाएँ। अमेरिका में हमको एफ.बी.आई. नहीं टिकने देती थी। यहाँ पाकिस्तानी सरकार चैन से नहीं रहने देती। आई.एस.आई. सारा दिन अपने घर के इर्द-गिर्द घूमती फिरती है। रोज़ गुप्त फोन आते रहते हैं। पता नहीं हमारा क्या बनेगा ?“ इतना कहते हुए इस्मत रोने लगी। उसके बेटे का मन भर आया।

“अम्मी, तू रो न। इस तरह तो मसला हल नहीं हागा।“

“बेटा, तू कौन से मसले की बात करता है। हमारी ज़िन्दगी नरक बनकर रह गई है। तू भी हमको भूल चुका है।“

“अम्मी, ऐसी बात नहीं है। मैं बताओं कर ही क्या सकता हूँ।“

“बेटा, आफिया तेरी भी माँ-जाई बहन है। तू ही उसको कहीं तलाशने की कोशिश कर।“

“अम्मी, पहले कौन सा हमने कम खोज की है। पर वह कहीं मिले भी।“

“मुहम्मद बेटा, तू एकबार फिर से हिम्मत कर। मेरा दिल कहता है कि वह कहीं आसपास ही है।“

“अम्मी, मेरी अपनी नौकरी है। और फिर मेरे भी बाल-बच्चे हैं। मैं ऐसे कैसे कहीं जा सकता हूँ। तुझे पता ही है कि पहले भी मेरे घर में क्या हुआ था।“

असल में, मुहम्मद की बीवी आफिया का जिक्र छिड़ते ही झगड़ा करने बैठ जाती थी। उसका कहना था कि उसकी वजह से ही पूरा परिवार परेशान हो रहा है।

“बेटा, कैसे भी कर। कोई बात नहीं, तू अपनी बीवी का गुस्सा एकबार और झेल ले। अगर मेरी बेटी का कोई पता ठिकाना न लगा तो मैं तो पागल हो जाऊँगी।“

“ठीक है अम्मी, मैं देखता हूँ कि मैं क्या कर सकता हूँ। पर एक बात है कि यहाँ एक उजे़र पराचा नाम के लड़के पर आतंकवाद संबंधी केस शुरू होने वाला है। मुझे लगता है कि उसके केस में ज़रूर आफिया का जिक्र आएगा। शायद इस तरह ही कोई पता चल जाए।“

“ठीक है, तू मुझे इस बारे में जल्दी बताना।“ इस्मत ने फोन काट दिया।

उज़ेर पराचा के केस का उन दिनों अख़बारों में खूब हो-हल्ला हो रहा था। के.एस.एम. से लेकर अब तक पकड़े गए बंदियों में सबसे पहले मुकदमा उज़ेर पराचा पर चला। न्यूयाॅर्क की कोर्ट में उसने वही बयान दिया जो उसने पहले एफ.बी.आई. के सामने दिया था। उसने कहा कि न ही उसको अलकायदा के बारे में कोई पता था और न ही उनके किसी प्लाट के बारे में। उसने कोर्ट को बताया कि उसने सिर्फ़ मजीद खां की एप्लीकेशन इमीग्रेशन को भेजी थी और दूसरा उसने मजीद खां बनकर इमीग्रेशन को फोन किया था। वह सोचता था कि उसका इतना ही जुर्म है कि उसने इमीग्रेशन को झूठ बोला। पर उसका वकील सब समझता था। वकील ने गवाहों आदि को अदालत में पेश करने की मांग की। लेकिन सरकारी वकील यह सब नहीं होने देना चाहता था। क्योंकि गवाह तो अफगानिस्तान के उजाड़ इलाकों की किन्हीं जेलों के अंदर बंद थे। गवाहों से उसका मतलब था - के.एस.एम., उसका भान्जा अली या मजीद खां। सरकार डरती थी कि यदि इन गवाहों को अदालत में पेश करना पड़ा तो बहुत सारे गुप्त भेद बाहर आ जाएँगे। उजे़र का वकील सरकार के डर को समझ गया। उसने सरकार से कहा कि या तो गवाहों को अदालत में पेश किया जाए, या फिर प्ली बारगेनिंग की इजाज़त दी जाए। सरकार ने भी प्ली बारगेनिंग के बारे में सोच लिया। वकील ने उज़ेर को गिल्टी प्ली कर देने के लिए समझाया और बताया कि इस तरह सरकार के साथ डील हो जाएगी और वह सज़ा कम कर देगी। परन्तु उज़ेर उसकी बात नहीं माना। उसका सोचना था कि सिर्फ़ किसी अन्य के नाम पर इमीग्रेशन को फोन कर देने की कितनी सज़ा हो सकती है। दूसरी बात यह भी थी कि उसको जो वकील मिला था, वह सरकार द्वारा दिया गया था। इस कारण उज़ेर उस पर पूरा भरोसा नहीं कर रहा था। वह छोटी आयु का भोला-सा लड़का था और न ही वह इस किस्म के कानूनी पचड़ों में कभी पड़ा था। यही कारण था कि वह उस वक्त मौके की नज़ाकत नहीं समझ सका और यह न जान सका कि वह कितने बड़े चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। उसने गिल्टी प्ली करने से इन्कार कर दिया। केस चला तो ज्यूरी ने उसको दोषी साबित करते हुए उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी।

यह केस बंद डिब्बे की तरह बंद ही रह गया तो मुहम्मत मायूस हो गया। उसकी आफिया के बारे में कुछ पता लगाने की उम्मीद अधूरी रह गई। उसको भी आफिया की बहुत चिंता थी। साथ ही, माँ और फौज़िया की भी। पर उसके घर के हालात इजाज़त नहीं देते थे कि वह नौकरी छोड़कर इधर-उधर भटकता फिरे। वह कई दिन उदास रहा। फिर उसने अपनी पत्नी के साथ बात की। आहिस्ता आहिस्ता उसने पत्नी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह बस एकबार आफिया की तलाश के लिए जाएगा। लौटकर कभी वह इस मामले में नहीं पड़ेगा। नौकरी पर से छुट्टी लेकर वह पाकिस्तान जा पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने माँ और फौज़िया के साथ आगे की योजना बनाई। फै़सला हुआ कि वह अपने मामा फारूकी की मदद ले। अगले दिन वह इस्लामाबाद चला गया। फारूकी भी इस मामले में पड़कर अब तक बहुत मुसीबतें झेल चुका था। पर वह सोचता था कि आफिया उसकी सगी भान्जी है। अगर वह मदद नहीं करेगा तो और कौन करेगा। आखि़र विचार-विमर्श के बाद उसने मुहम्मद से कहा, “यहाँ एक जहीर खां नाम का आदमी है, वह शायद अपनी कोई मदद कर सके। पर...।“ फारूकी बात करता करता चुप हो गया।

“पर क्या अंकल ?“ मुहम्मद ने उसकी चुप तोड़ी।

“बात यह है कि यहाँ एक संगठन बना है जिसका मुख्य मकसद गुम हो चुके व्यक्तियों को तलाश करना है। जहीर खां उस संगठन का मुखिया है। पर साथ ही यह भी सुना है कि यह व्यक्ति पहले आई.एस.आई का अधिकारी रह चुका है।“

“फिर क्या है अंकल। हमें तो पता ही लगवाना है कि शायद इन्हें आफिया के बारे में कुछ मालूमात हो।“

“बेटा, बात यह है कि आई.एस.आई. के लफड़ों से हर कोई डरता है। क्या पता कि यह जहीर खां नाम का आदमी दिखावे के तौर पर ही गुमशुदा लोगों की तलाश में लगा हो और असल खेल इसका कुछ और ही हो।“

“अंकल, दूसरी कोई राह भी तो नहीं है। पता नहीं, अपने मुल्क को क्या हो गया है कि किसी पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता। कौन किसके लिए काम कर रहा है, कुछ पता नहीं। सरकार के आदमी सरकार के बीच रहते हुए आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं। उधर आतंकवादी गवर्नमेंट की मदद करने में लगे हुए हैं। मैं तो ऐसी बातें सुन सुनकर ऊब चुका हूँ। अगर मेरी अपनी बहन का मसला न हो तो मैं इस मुल्क में एक पल भी न रुकूँ।“

“ठीक है, फिर तू जहीर खां से मिलकर देख ले। शायद बात किसी राह लग जाए। वैसे उससे सावधान रहना। मेरा अर्थ है कि अपने बारे में अधिक बात न करना। बस, बात आफिया तक ही सीमित रखना।“

“ठीक है अंकल, आप मुझे उसका पता ठिकाना ला दो। फिर मैं देखता हूँ कि आगे क्या करना है।“

अगले दिन फारूकी ने मुहम्मद को जहीर खां का अता-पता ला दिया। उसने फोन करके उससे यह कहते हुए मुलाकात के लिए वक्त मांगा कि वह अपने किसी सरकार द्वारा गुम कर दिए गए रिश्तेदार के बारे में मालूम करना चाहता है। उसको शाम का वक्त मिल गया। शाम के समय वह जहीर खां के दो मंज़िला घर में दाखि़ल हुआ। यह रोज़ों के दिन थे। उसके घर में बहुत सारे लोग रोज़ा खोलने के लिए इकट्ठे हुए बैठे थे। रोज़ा खोलने के बाद जहीर खां ने मुहम्मद को अपने कमरे में बुला लिया। उसने मुहम्मद की ओर ग़ौर से देखा और फिर धीमे से बोला, “बरखुरदार, तुम किस बात के सिलसिले में मुझसे मिलने आए हो ?“

“जी, मैंने फोन पर भी बताया था कि मेरी बहन गुम है। उसको गुम हुए काफी समय बीत गया है। उसके बारे में जगह-जगह पता करता घूम रहा हूँ।“

“क्या नाम है तेरी बहन का ?“

“जी उसका नाम आफिया सद्दीकी है।“

“हैं ! आफिया सद्दीकी ?“ जहीर खां ऐसे बोला जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो। फिर वह धीरे धीरे संभल गया। मुहम्मद भी हैरान हुआ कि आफिया का नाम सुनकर यह ऐसे क्यों चैंक उठा। दीवार की ओर देखता जहीर खां बोला, “मैंने तो यह नाम ही पहली बार सुना है। मुझे इस लड़की के बारे में कोई पता नहीं है। किसी दूसरे के बारे में बात करनी है तो बता ?“

“मुझे मेरी बहन के अलावा दूसरे किसी से कोई सरोकार नहीं है।“

“ये सारी औरतों को देख रहा है ?“ जहीर खां ने सामने इशारा करते हुए बात दूसरी ओर मोड़ ली।

“जी।“ मुहम्मद उतावला-सा होता बोला।

“इन सभी ने कोई न कोई खोया है। किसी का घरवाला जिहाद में शहीद हो गया। किसी का पुत्र अफगानिस्तान की जंग की बलि चढ़ गया। पता नहीं, कितनें घरों के सदस्य आई.एस.आई. खा गई। यहाँ हर कोई अपने खोये हुओं को तलाशता फिरता है।“

“जी, वह सब तो ठीक है, पर इस बात से मेरा क्या ताल्लुक है। मुझे तो पता चला था कि आपका संगठन आई.एस.आई. या अमेरिकी एफ.बी.आई. द्वारा उठाकर गुम कर दिए गए लोगों की तलाश करने में मदद करता है। बस, इसी कारण मैं आपके पास आया हूँ।“

“तू ऐसा कर, अपना पता-ठिकाना दे और कल को यहीं पर मुझसे मिलना। मैं तुझे अपने आगे के किसी लीडर से मिलवाऊँगा। वह शायद तेरी बहन को खोजने में कोई मदद कर सके।“

“जी, ठीक है। पर एक सवाल है जो इजाज़त हो तो...?“

“हाँ बोलो।“

“ये गुमशुदा लोगों की तलाश आप कानूनी ढंग से करते हैं ? मेरा मतलब अदालत में पेटीशन वगै़रह डालकर करते हैं कि वैसे ही अपने तौर पर ?“

“हमारा कोई भी ढंग हो। तुम्हें अपने काम तक मतलब रखना चाहिए। तू कल आ जाना।“ इतना कहते हुए जहीर खां उठकर चला गया और मुहम्मद घर लौट आया। फारूकी भी उसके साथ कराची ही आ गया था, इसलिए जब मुहम्मद घर लौटा तो वह भी घर में ही था। उसने घर आकर जहीर खां से हुई बातचीत बताई तो फारूकी बोला, “मैं तो तुझे पहले ही वहाँ भेजकर राज़ी नहीं था। मुझे आज ही एक और बात का पता चला है।“

“वह क्या ?“

“अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल गुम हो जाने से पहले इसी जहीर खां के घर गया था। उसके बाद उसकी लाश ही मिली थी।“

“ओह माय गॉड ! यह सब क्या हो रहा है। ये लोगों को खोजने में मदद कर रहे हैं कि लोगों को गुम करने में लगे हुए हैं। आप बता रहे थे कि ये आदमी आई.एस.आई. में पहले कोई अफ़सर रहा है, पर मुझे शक होता है कि यह अलकायदा के साथ भी जुड़ा हुआ है।“

“बस, चुप ही भली।“

“अंकल, आफिया को पाकिस्तान का बच्चा बच्चा जानता है और वह कहता है कि उसने तो यह नाम कभी सुना ही नहीं।“

“पता नहीं सरकार क्या खेल खेल रही है। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा। पिछले दिनों गुम हुए लोगों के कई परिवारों ने इकट्ठा होकर सुप्रीम कोर्ट में पेटीशन डाली थी। चीफ़ जस्टिस इफ्तिखार चैधरी ने यह पेटीशन मंजूर करते हुए कार्रवाई शुरु भी कर दी थी। उसके कई अच्छे नतीजे भी आए थे। क्योंकि जस्टिस चैधरी ने सफाई देने के लिए हुक्मरानों को अदालत में बुलाना शुरु कर दिया था। अधिक दबाव पड़ने पर आई.एस.आई. ने बहुत सारे लोग छोड़ भी दिए थे। पर सबको डरा-धमकाकर छोड़ा गया था कि यदि बाहर जाकर किसी से कोई बात की तो दुबारा पकड़ लिए जाओगे। आखि़र लोगों की यह उम्मीद भी खत्म हो गई।“

“वह क्यों ?“

“क्योंकि पहले तो प्रैज़ीडेंट मुशर्रफ़ ने चीफ़ जस्टिस चैधरी पर दबाव डाला कि वह यह पेटीशन वाला काम बंद कर दे, पर जब वह नहीं माना तो मुशर्रफ़ ने उसको मुअŸाल कर दिया।“

“भाईजान, तब कुछ उम्मीद बंधी थी कि शायद चीफ़ जस्टिस चैधरी के हुक्म से हो रही इंकुआरियाँ के कारण ही कहीं आफिया का भेद खुल जाए। पर तभी दुष्ट मुशर्रफ़ ने यह कर डाला।“ चुप बैठी इस्मत भी बातचीत में हिस्सा लेने लगी।

“आपा बात यह है कि अपने हुक्मरान अमेरिका के इशारों पर नाचते हैं। जैसा वह कहता है, वैसा ही करते हैं। अमेरिका नहीं चाहता कि उसकी गुप्त जेलों में बंद किए लोगों के बारे में बाहर के लोगों का पता चल। इसी कारण उसने मुशर्रफ़ से कहकर चीफ़ जस्टिस चैधरी को ही एक तरफ करवा दिया।“

“अमेरिका तो अपने दूसरे भरोसेमंद चमचों को भी आगे लगाने लगा था, पर उसको अल्लाह ने खुद ही सज़ा दे दी।“

“तुम किसकी बात करते हो ?“

“बेनज़ीर की, और किसकी। भुट्टो की लाडली आई थी, यहाँ शांति स्थाति करने। सारा मुल्क चुनकर खा गई और फिर कहने लगी कि मैं मुशर्रफ़ के साथ मिलकर सरकार बनाऊँगी। पर यह नहीं पता कि इन्साफ तो तेरा इंतज़ार कर रहा है। दो महीने भी नहीं निकले कि उन्होंने जहन्नुम का टिकट काट दिया।“

“पता नहीं इस मुल्क का कया होगा। पहले ही चीफ़ जस्टिस चैधरी के मुअत्तल होने वाले मसले के कारण हर तरफ धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं। फिर फौज लाल मस्जिद में जा घुसी। वहाँ सैकड़ों लोग मारे गए। उसके बाद बेनज़ीर भुट्टो वाला हादसा हो गया।“

“तुम राजनीति की बातें छोड़ो। हम आफिया के बारे में कुछ सोचें।“

“आपा, हम उस दिन के एक पल के लिए भी चैन से नहीं बैठे जब से आफिया गुम है। पर शायद अल्लाह को मंज़ूर ही नहीं कि उसका कोई पता लगे।“ फारूकी ने बहन के दिल को ढाढ़स दिया।

“सुना है कि अमेरिकियों ने अफगानिस्तान में बहुत ही बुरी जेलें बनाई हुई हैं। जहाँ हर रोज़ बेकसूरों को अमानवीय यातनाएँ दी जाती हैं। पता नहीं मेरी बेटी किन कोठरियों में मौत की घड़ियाँ गिन रही होगी।“ इस्मत रोने लगी।

“आपा तू यह रोना-धोना बंद कर। इससे कोई मसला हल नहीं होने वाला।“

“भाईजान, फिर कुछ न कुछ करो। इस तरह बातें करते तो सालों के साल बीत गए हैं।“

“आपा तू ही बता कि क्या करें ? क्या है अपने हाथ में ?“ फारूकी का भी दिल भर आया और उसने जेब में से रूमाल निकालते हुए आँसू पोंछे।

“भाईजान, तुम वॉन रिडली का शो देखा करते हो ?“ इस्मत ने बात बदली।

“यह कौन है ?“

“यह कोई इंग्लैंड की औरत है। क्रिश्चियन से मुसलमान बनी है। यह एक टी.वी. शो चलाती है। इसका मुख्य मुद्दा मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार होता है। खास तौर पर टैरेरिज़्म की आड़ में आम मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार।“

“अच्छा !“

“हाँ। पिछले हफ़्ते के प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य था - अफगानिस्तान की भयंकर गुप्त जेलों में छिपा कर रखे गए निर्दोष लोग। जिनके खिलाफ़ कोई केस नहीं बनता। उन गरीबों की कहीं सुनवाई नहीं हाती और वे इसी तरह जुल्म न सह पाने की वजह से मौत की गोद में जा पड़ते हैं। क्योंकि उनकी कहीं गिरफ्तारी भी नहीं दिखाई गई होती, इसलिए वे दुनिया के लिए रहस्य बने रह जाते हैं।“

“तुम्हारा मतलब...।“ फारूकी ने ग़ौर से इस्मत की ओर देखा।

“हाँ-हाँ, मैं वही बात करने जा रही हूँ। पिछले हफ़्ते उसने आफिया का मुद्दा उठाया था। उसके प्रोग्राम में कोई मुअज़म बेग नाम का आदमी आया था। वह बता रहा था कि उसको भी शक के आधार पर पकड़ा गया था। उसको अफगानिस्तान की किसी गुप्त जेल में रखा गया था। उस पर अमानवीय अत्याचार हुआ। पर जो खास बात उसने बताई, वह यह थी कि उसको हर रोज़ किसी औरत की चीखें सुनाई देती थीं। मानो किसी पर जु़ल्म ढाया जा रहा हो और वह उसको सहन न कर पाने के कारण चीखती चिल्लाती हो। यह हर रोज़ का काम था। वह जितने समय वहाँ रहा, ये चीखें सुनता रहा।“

इस्मत बात करते करते चुप हो गई और उसने अपनी आँखें पोंछ लीं। पर किसी ने बोलकर उसकी बात में विघ्न डालना उचित नहीं समझा। वह फिर से बोलने लगी, “बेग ने बताया कि वह कई बार उसको कै़द में रखने वालों से पूछता कि यह औरत कौन है जो विलाप कर रही है। पर वह हमेशा कह यह कहकर टाल देते कि यह तो टेपों में भरी हुई आवाज़ है जो कि उसको सिर्फ़ डराने के लिए इस्तेमाल की जाती है। पर असलियत कुछ और थी...।“ वह ज़रा रुकी और फिर बोलने लगी।

“उसको किसी ने एक दिन लोकल अफगानी पुलिस वाले ने बताया कि यह कोई टेप वगै़रह नहीं है। यह असली औरत है जो कि साथ वाली कोठरी में बंद है। इस औरत के पहनने वाले कपड़ों पर कै़दी नंगर 650 लिखा हुआ है। उसकी हर रोज़ इंटैरोगेशन होती है और तभी वह रोती-चिल्लाती है। फिर मुअज़म बेग ने एक दिन उस औरत का चेहरा भी देख लिया।“

“अच्छा ! क्या वह उसको पहचान सका ?“ फारूकी ने उत्साह से पूछा।

“तब तो उसने क्या पहचानना था। पर उसी प्रोग्राम पर रिडली ने उसके सामने आफिया की फोटो कर दी और पूछा कि क्या वह इस लड़की जैसी लगती थी। इस पर वह झट बोला, हाँ यह फोटो उसी लड़की की है।“

इसके वहाँ कोई न बोला। सभी सुन्न हो गए। इस्मत ने लम्बी आह भरी और अपनी बात आगे शुरु की।

“इतना ही नहीं, फिर रिडली ने उन पाँचों तालिबानों के साथ हुई इंटरव्यू दिखाई जो कि बैगराम शहर की उसी जेल में से भागने में कामयाब हो गए थे। उन्होंने अपनी इंटरव्यू में माना था कि उन्होंने ने भी उस औरत की चीखें सुनी थीं। बाद में उसको देखा भी था। उनके मुताबिक वह 650 नंबर की कै़दी आफिया सद्दीकी ही थी।

इस्मत ने बात ख़त्म की तो काफ़ी देर सभी चुप बैठे रहे। फिर फारूकी बोला, “आपा तू ही बता, फिर आफिया को अब कहाँ खोजें ?“

“बात तो भाईजान मैं भी समझती हूँ, पर किसी पर एतबार ही नहीं आता। क्या पता, कौन सही है। लगता है कि हो सकता है, वॉन रिडली झूठी हो और अपना शो बेचने के लिए यह सब कर रही हो।“

“आपा यह बहुत बड़ी परेशानी है। पता नहीं, आगे क्या होने वाला है।“

वे बातें कर ही रहे थे कि फोन बजने लगा। इस्मत ने आगे बढ़कर फोन उठा लिया। उधर से बग़ैर अपना नाम बताये कोई बोलने लगा, “तुम फिर आफिया को खोजना शुरु कर दिया। क्या तुमको चैन की ज़िन्दगी जीना अच्छा नहीं लगता ?“

“नहीं जी, ऐसी तो कोई बात नहीं है। पर आप कौन हैं ?“

“तेरा बेटा अमेरिका से चलकर यहाँ आफिया को खोजने आया है। अच्छा यही है कि वह वापस चला जाए। नहीं तो इसकी ख़ैर नहीं।“

“कहाँ है मेरी बच्ची ? क्या तुम उसके बारे में कुछ बता सकते हो ?“ इस्मत तड़पकर बोली।

“वो ठीकठाक है। उसको कोई खतरा नहीं है। पर यदि तुम उसको तलाशने वाला सिलसिला बंद नहीं करोगे तो ज़रूर उसकी ज़िन्दगी को खतरे में डाल दोगे। साथ ही, अपनी ज़िन्दगियों को भी बर्बाद करवाओगे।“ इतना कहकर उधर से फोन काट दिया गया।

“कौन था ?“ फारूकी उठकर इस्मत के पास आ गया।

“वहीं धमकियों वाला सिलसिला शुरु हो गया है। कहते हैं कि अगर आफिया की भली चाहते हों तो अपने बेटे को कह दो कि वापस अमेरिका चला जाए।“

इस बात के उŸार में फारूकी ने कहा तो कुछ नहीं, पर उसको जहीर खां याद आ गया। वह कुछ देर चुप रहकर बोला, “आपा मैं एक बात कहना चाहता हूँ।“

“जी भाईजान, बताओ क्या बात है ?“

“मेरा ख़याल है कि मुहम्मद को वापस अमेरिका लौट जाना चाहिए। कहीं एक काम ठीक करते करते किसी नए लफड़े में न फंस जाएँ।“

“भाईजान, तुम्हारी बात मुझे बिल्कुल ठीक लगती है। मैंने यूँ ही भावुक होकर इसको यहाँ बुला लिया। अब मैं सोचती हूँ कि जितनी जल्दी हो सके, इसको वापस लौट जाना चाहिए।“

“अगर यह बात है तो मैं कल ही इसकी टिकट का प्रबंध करवा देता हूँ।“

फिर उनकी इस बात पर सहमति हो गई। अगले दिन फारूकी ने टिकट का पता करवाया। दो दिन बाद की उनको सीट मिल गई। अगले दो दिन वे अन्य कई बड़े व्यक्तियों से मिले और आफिया के बारे में पता किया। पर उसका कोई पता न चला। तीसरे दिन फारूकी, मुहम्मद को कराची के एअरपोर्ट पर अमेरिका की फ्लाइट पर चढ़ा आया। इसके बाद वह वापस इस्लामाबाद चला गया। अगले कई दिन वह बड़ा अपसैट रहा। फिर नित्य की भाँति ज़िन्दगी ने अपनी रफ्तार पकड़ ली।

उधर लोगों में आफिया का मामला ठंडा पड़ता जा रहा था, क्योंकि अब वहाँ चीफ़ जस्टिस चैधरी को बहाल करवाने की मुहिम तेज़ हो गई थी। यह ऐसे ही होता था। जब कभी आफिया की बात मीडिया में आने लगती तो लोगों का रोष जाग उठता और वे सड़कों पर निकल आते, पर तभी कोई अन्य मुद्दा सामने आ जाता तो लोग उधर से हट जाते। वैसे भी बहुत कम पाकिस्तानी लोगों को पता था कि आई.एस.आई. अथवा एफ.बी.आई. आफिया के पीछे इस तरह क्यों हाथ धोकर पड़ी हुई है। या फिर यदि वह उनकी हिरासत में है तो भी यह मामला क्या है। आम लोगों को इस बात का भी पता नहीं था कि वह के.एस.एम. के भान्जे अली की दूसरी बीवी है। इस बलोची परिवार का पूरा किस्सा भी लोगों को मालूम नहीं था। आफिया अमेरिका रहकर क्या करती रही या यहाँ आकर किस किस्म की कार्रवाइयों में हिस्सा लेती रही या उसका जिहाद की ओर झुकना, ऐसी किसी भी बातों का लोगों को पता नहीं था। लोग समझ रहे थे कि एक दुखियारी औरत को दुनिया की सुपर पावर अमेरिका तंग कर रहा है। इसी कारण लोगों को आफिया सद्दीकी से हमदर्दी थी।

(जारी…)