Aadhi najm ka pura geet - 9 in Hindi Fiction Stories by Ranju Bhatia books and stories PDF | आधी नज्म का पूरा गीत - 9

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आधी नज्म का पूरा गीत - 9

आधी नज्म का पूरा गीत

रंजू भाटिया

Episode

उम्र की सिगरेट जल गयी

अमृता की लिखी जंगली बूटी का चरित्र "अंगूरी "भी प्रेम के उस रूप को दिखाता है जिसको अमृता ने कहीं न कहीं जीया है अमृता ने अपने जीवन के संदर्भ में लिखा हैः- इन वर्षो की राह में, दो बडी घटनायें हुईएक- जिन्हें मेरे दुःख सुख से जन्म से ही संबंध था, मेरे माता पिता, उनके हाथों हुईऔर दूसरी मेरे अपने हाथों यह एक-मेरी चार वर्ष की आयु में मेरी सगाई के रूप में, और मेरी सोलह सत्तरह वर्ष की आयु में मेरे विवाह के रूप में थीऔर दूसरी- जो मेरे अपने हाथों हुई- यह मेरी बीस-इक्कीस वर्ष की आयु में मेरी एक मुहब्बत की सूरत में थी---’’अपने विचारों को कागज पर उकेरने की प्रतिभा उनमें जन्मजात थीमन की कोरें में आते विचारों को डायरी में लिखने से जुडे एक मजेदार किस्से को उन्होंने इस प्रकार लिखा हैः-‘‘--पृष्ठभूमि याद है-तब छोटी थी, जब डायरी लिखती थी तो सदा ताले में रखती थींपर अलमारी के अन्दर खाने की उस चाभी को शायद ऐसे संभाल-संभालकर रखती थी कि उसकी संभाल किसी को निगाह में आ गयी (यह विवाह के बाद की बात है)एक दिन मेरी चोरी से उस अलमारी का वह खाना खोला गया और डायरी को पढा गयाऔर फिर मुझसे कई पंक्तियों की विस्तार पूर्ध व्याख्या मांगी गयीउस दिन को भुगतकर मैंने वह डायरी फाड दी, और बाद में कभी डायरी न लिखने का अपने आपसे इकरार कर लिया---’’विख्यात शायर साहिर लुधियानवी से अमृता का प्यार तत्कालीन समालोचकों का पसंदीदा विषय थासाहिर के साथ अपने लगाव को उन्होंने बेबाकी से अपनी आत्मकथा में इस प्रकार व्यक्त किया हैमेरे इस जिस्म मेंतेरा साँस चलता रहाधरती गवाही देगीधुआं निकलता रहाउम्र की सिगरेट जल गयीमेरे इश्के की महककुछ तेरी साँसों मेंकुछ हवा में मिल गयी, पर जिंदगी में तीन समय ऐसे आए हैं-जब मैने अपने अन्दर की सिर्फ औरत को जी भर कर देखा हैउसका रूप इतना भरा पूरा था कि मेरे अन्दर के लेखक का अस्तित्व मेरे ध्यान से विस्मृत हो गया--दूसरी बार ऐसा ही समय मैने तब देखा जब एक दिन साहिर आया था तो उसे हल्का सा बुखार चढा हुआ थाउसके गले में दर्द था-- सांस खिंचा-खिंचा थां उस दिन उसके गले और छाती पर मैने विक्समली थीकितनी ही देर मलती रही थी--और तब लगा था, इसी तरह पैरों पर खडे़ खडे़ पोरों से, उंगिलयों से और हथेली से उसकी छाती को हौले हौले मलते हुये सारी उम्र गुजार सकती हूंमेरे अंदर की सिर्फ औरत को उस समय दुनिया के किसी कागज कलम की आवश्यकता नहीं थी---लाहौर में जब कभी साहिर मिलने के लिये आता था तो जैसे मेरी ही खामोशी से निकला हुआ खामोशी का एक टुकड़ा कुर्सी पर बैठता था और चला जाता था---वह चुपचाप सिगरेट पीता रहता था, कोई आधा सिगरेट पीकर राखदानी में बुझा देता था, फिर नया सिगरेट सुलगा लेता थाऔर उसके जाने के बाद केवल सिगरेट के बड़े छोटे टुकडे़ कमरे में रह जाते थेकभी --एक बार उसके हाथ छूना चाहती थी, पर मेरे सामने मेरे ही संस्कारों की एक वह दूरी थी जो तय नहीं होती थी-- तब कल्पना की करामात का सहारा लिया थाउसके जाने के बाद, मै उसके छोडे हुये सिगरेट को संभाल कर अलमारी में रख लेती थी, और फिर एक-एक टुकडे़ को अकेले जलाती थी, और जब उंगलियों के बीच पकड़ती थी तो बैठकर लगता था जैसे उसका हाथ छू रही हूं---- ’’साहिर के प्रति उनके मन में प्रेम की अभिव्यक्ति उनकी अनेक रचनाओं में हुई हैः-‘‘---देश विभाजन से पहले तक मेरे पास एक चीज थी जिसे मैं संभाल -संभाल कर रखती थीयह साहिर की नज्म ताजमहल थी जो उसने फ्रेम कराकर मुझे दी थीपर देश के विभाजन के बाद जो मेरे पास धीरे धीरे जुडा है आज अपनी अलमारी का अन्दर का खाना टटोलने लगी हूं तो दबे हुए खजाने की भांति प्रतीत हो रहा है------एक पत्ता है जो मैं टॉलस्टाय की कब्र परसे लायी थी और एक कागज का गोल टुकडा है जिसके एक ओर छपा हुआ है’-एशियन राइटर्स कांफ्रेस और दूसरी ओर हाथ से लिखा हुआ है साहिर लुधियानवी यह कांफ्रेंस के समय का बैज है जो कांफ्रेस में सम्मिलित होने वाले प्रत्येक लेखक को मिला थामैने अपने नाम का बैज अपने कोट पर लगाया हुआ था और साहिर ने अपने नाम का बैज अपने कोट पर साहिर ने अपना बैज उतारकर मेरे कोट पर लगा दिया और मेरा बैज उतारकर अपने कोट पर लगा लिया और------’’अमृता ने लिखा था जब औरत किसी से प्यार करती है तो वह फिर गहरे कहीं डूबने से भी नहीं डरती है, उनकी लघुकथा जंगली बूटी (the weed ) बहुत ही दिल को छु लेने वाली कहानी थी, जिसमे औरत की इच्छा, शिक्षा दोनों को पाप समझा जाता है. उसकी शादी उस से बहुत बड़े एक आदमी से कर दी जाती है, अपने पिता की बात मानते हुए वह बिना किसी सवाल के इस रिश्ते को स्वीकार करती है. अंत में, जब वह युवा और सुंदर राम तारा की ओर आकर्षित होती है, तो वह उसे अपने अकेलेपन या प्रेमहीन विवाह पर दोष नहीं देती है; वह दृढ़ता से मानती है कि उसने अनजाने में खरपतवार के आकर्षण का या किसी जंगली बूटी का नशे में यह सब कर गयी है. इस कहानी में कई बातें है जो हमारे समाज के खोखलेपन को दर्शाती है, अंत में वह पढने की इच्छा जाहिर करती है, यानी वह समाज के बनाये नियम से खुद को आज़ाद करने की बात करती है जो शादी की पुराने रीतिरिवाज़ से और समाज द्वारा स्वीकार न करने वाली औरतों पर भी सवाल जवाब है. खरपतवार (the वीड )को अमृता की सर्वश्रेष्ठ लघु कहानियों में से एक के रूप में माना जाता है और उनके अन्य लेखन की तरह, लिंग भेदभाव और महिला कामुकता के बारे में सवाल उठाती है.अमृता का लेखन अपने वक़्त से आगे का लेखन था, जो हमेशा विवादों में रहा.लेखन के साथ उनका जीवन भी, लिव इन में वह इमरोज़ के साथ तब रहती थी, जब हमारा भारतीय समाज इस तरह के रिश्ते से परिचित भी नहीं था. अमृता के लेखन को आज लोग सराहते भी है और उनके लेखन के मुरीद भी हैं.

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