हेलो दोस्तो ! एक बार फिरसे आपके सामने हाजिर हूँ एक नई कहानी के साथ । हा दोस्तो आपने सही पढ़ा आज मैं आपके साथ एक कहानी शेयर करने वाला हु पर उससे पहले एक और सवाल आपसे करने वाला हु । आप में से कितने लोगोने बचपन में अपने दादा,दादी या नाना नानी या मम्मी पापा से कहानिया सुनी है ? तो मेरे ख्याल से आप सभी का जवाब हा ही होगा क्योकि ऐसा कोई हो ही नही सकता कि जिसने अपने परिजनों से कोई कहानी सुनी न हो । यह कहानिया कहानिया नही बल्कि एक माध्यम था अपने परिजनों के साथ वक्त बिताने का या उनके साथ कुछ यादें बनाने का । यह कहानिया सिर्फ और सिर्फ आपकी और आपके परिजनों की ही होती है और यही इन कहानियों को खास बनाती है।
यह कहानी एक और वजह से भी खास है क्योंकि यह कहानी किसी एक लेखक द्वारा लिखी नही होती बल्कि इस कहानी के कहानीकार तो अनगनित होते है।यह कहानी पीढ़ियों से चली आ रही होती है जैसे आपके दादा ने जो कहानी सुनाई वे उन्हें अपने दादा ने या अपने नाना नानी ने सुनाई जो उन्हें भी उनके दादा ने और उन्हें उनके दादा ने । पर हर बार इस कहानी में कुछ नया जुड़ता गया और हर बार यह कहानी एक नए स्वरूप में आती रही , और जब हमने उस कहानी को सुना तो वे एक और नये स्वरुप मैं थी और जब हम अपनी आने वाली पीढी को यह कहानी सुनायेंगे तब कुछ बदलाव के साथ एक और नए स्वरूप मैं हमारे पीढ़ी को मिलेगी।
आज जो कहानी में आप के साथ शेयर करने जा रहा हु । वे मेरे लिए भी बेहद ही स्पेशल है क्योंकि यह कहानी मुजे बचपन में मेरी नानी की मम्मी सुनाया करती थी वैसे तो वे मेरी पर नानी थी पर घर में सब माँ बुलाते थे तो मैं भी उन्हें माँ कहकर ही बुलाता था और हफ्ते में एक बार उनसे कहानिया सुनता था पर उन कहानियों में से एक कहानी मुझे बेहद ही पसंद थी और वे कहानी माँ के मुखसे इतनी बार सुन चुके है कि वो कहानी कितनी बार सुनी यह गिनती बताना संभव नही है । और आज वो ही कहानी आप के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हु।
दो राजकुमार
आज से कई वर्षों पहले नामक नगर हुआ करता था । वह नगर बेहद ही सुंदर और वहां के लोग सुख समृद्धि से अपना जीवन व्यतित करते थे । और इस सबका श्रेय उस नगर के राजा धीरसेन को जाता था । धीरसेन अपने नगर का बेहद ही लोकप्रिय शाशक था । उनके दो बेटे थे बडे बेटे का नाम सिद्धार्थ और छोटे बेटे का नाम रुद्रसेन था । वे सब बेहद ही खुश थे पर एक दिन रानी स्वर्ग सिधार गई दोनो बेटे पर से मातृत्व की छाया छीन गई। दोनो राजकुमार छोटे होने के कारण उनकी परवरिश के लिए राजा धीरसेन ने दूसरा विवाह किया और दोनों राजकुमारों के लिए एक नई माँ ले आये । शुरुआत में सब ठीक चला पर जब दूसरी रानी गर्भवती हुई तब उसे अपने होने वाले बच्चें की भविष्य की चिन्ता होने लगी और उसके मन मे यह लालच घर कर गई कि उसकी होने वाली संतान ही राजगद्दी का वारिस बने । पर उसकी इस लालच में रोड़ा बन रहे थे वे मासूम राजकुमार उनके होते हुए उसके आनी वाली संतान कभी राजा नही बन पाएगी इस लिए रानी ने राजकुमार विरुद्ध षड्यंत्र रचा और उसका शिकार बने वे दोनों मासूम राजकुमार । रानी ने राजा के सामने यह सिद्ध कर दिया कि दोनों राजकुमार ने रानी एवं उसके आने वाले बच्चे को मारने की कोशिश की यह सब जानकर राजा ने दोनों राजकुमारों को देशनिकाल की सजा सुनाई ।
अगले दिन दोनो राजकुमारों को एक एक अश्व दे दिया गया और उसे राज्य की सीमा से बाहर कर दिया गया । दोनो राजकुमार बहोत ही दुखी हुए उन्होंने अपने पिता को बहोत ही समजाने की कोशिश की की उन्होंने ऐसा कुछ नही किया पर वे इसमें नाकाम रहे । वे पूरे दिन घोड़े पर सवारी करते रहे । शामको उन्होंने एक घने पेड़ के नीचे आशय लिया । भूख लगी थी पर खाने को कुछ न था इस वजह से वे उसी पेड़ के नीचे सो गए । आधी रात को अचानक राजकुमार सिद्धार्थ की आँख खुली तो वे चकित हो गए क्योकि उस पेड़ के डाल पर दो पक्षी इन्सानी भाषा मे एक दूसरे से बात कर रहे थे । पहले तो उसे यह सपना लगा पर फ़िर उसे यकीन हुआ कि यह हकीकत है और वे चुपचाप उन पक्षियों की बाते सुनने लगा ।
पहला पक्षी : तुजे पता है जो भी मनुष्य मेरा सेवन करेगा वे दूसरे ही दिन बड़े से साम्राज्य का राजा बनेगा ।
दूसरा पक्षी : अच्छा मेरा भी जो मनुष्य सेवन करेगा वे जब भी छीकेगा तब उसकी नाक से एक सोने की गेंद निकलेगी ।
यह सारी बाते राजकुमार सिद्धार्थ सुन रहा था और मौका पाकर उसने दोनो पक्षियों का शिकार कर लिया और वे फिरसे सो गया । तभी उसी पेड़ में से एक विषधारी नाग निकला और उसने उन मरे हुए पक्षियों पर अपना ज़हर फुक दिया ।अगली सुबह दोनो राजकुमार उठे और राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने भाई को पिछली रात की घटना के बारे में बताया राजकुमार रुद्र भी विस्मय हो गया । उन दोनो भाइयो ने मिलकर पक्षियो का भोजन बनाकर सेवन किया विषयुक्त पक्षी राजकुमार रुद्र के हिस्से में आया इसी लिए वे तड़पकर वही गिर पड़े और उनके मुखसे सफेद जाग निकलने लगा । यह सब अचानक देख सिद्धार्थ एकदम भौचक्के रह गए । वे अपने भाई को बचाने का प्रयास करते उससे पहले ही रुद्र का शरीर बेजान हो गया । सिद्धार्थ विलाप करने लगा पर जब वह संभला तब उसने अपने भाई की अंतिम क्रिया करने के लिए लकड़ी इकट्ठा करने गया । तभी पीछे से एक सौदागर उस रास्ते से गुजरा उसने बच्चें के शव को देखकर उसके पास दौड़ा चला आया उसने उसकी जांच की और आसपास से जड़ीबूटी तोड़कर उसके शरीर पर लगाई तो राजकुमार रुद्र का शरीर फिरसे ठीक होने लगा पर पूरी तरह से इलाज कराने के लिए उसे अपने नगर ले जाना जरूरी था । उसने आसपास देखा तो कोई नही था उसने उस बालक को उठाया और अपने साथ ले चला । जब राजकुमार सिद्धार्थ लकड़िया इक्कट्ठा करके वापिस लौटा तो अपने भाई का शव न देखकर वो परेशान हो गया । उसने ढूंढने का प्रयास किया पर असफलता ही हाथ लगी । फिर उसने सोचा कि कोई जंगली जानवर उसके भाई का शव ले गए । वो बहुत रोया और किस्मत का खेल समजकर आगे बढ़ गया और चलते चलते वे एक नगर के द्वार पर पहोचा और जैसे ही उसने प्रवेश किया उस नगर के वासियों ने उसे उठा लिया और शंख नगाड़े ढोल सब बजाने लगे और उत्सव बनाने लगे । जब राजकुमार सिद्धार्थ ने इसका कारण पूछा तो पता चला कि अगली रात को पूर्व राजा का निधन हो गया है और वे निःसंतान होने के कारण दूसरा राजा कोई बन नही सकता था इस लिए नगर वासियो ने यह निश्चित किया कि आज सबसे पहले जो भी इस नगर में प्रवेश करेगा वे ही नगर वासियो का नया राजा होगा ।यह सुनकर राजकुमार को पहले पक्षी की बात सही साबित हुई है यह लगा ।
दूसरी तरफ सौदागर राजकुमार रुद्र को लेकर अपने नगर पहोचा और तुरन्त ही उसका इलाज करवाया । जब राजकुमार रुद्र कुछ दिन बाद एकदम स्वस्थ हो गया तो सौदागर ने उसे अपने घर लौट जाने को कहा पर राजकुमार ने उसका कोई घर नही है यह बताया । और तभी राजकुमार को छिक आ गई और छीकते ही उसकी नाक से सोने की गेंद निकली यह देख सौदागर चकित हुआ और इसके पीछे का कारण पूछा तो रुद्र ने बताया कि वह जब भी छीकेगा तब इसी तरह उसकी नाक से सोने की गेंद निकलेगी ।यह सुनकर सौदागर को लालच जगी और उसे अपने साथ रख लिया उसके बदले उसे रोज 10 सोने की गेंद देनी पड़ती ।
धीरे धीरे समय बीतता गया और दोनों भाई प्रगति के शिखर पर चढ़ते गए एक तरफ राजकुमार सिद्धार्थ सम्राट विक्रमादित्य बन गया और उसने अपने अपमान एवं भाई की मौत का बदला लेने के लिए अपने सौतेले भाई के नगर को भी हराकर फिरसे उस नगर का राजा बन गया । तो दूसरी तरफ राजकुमार रुद्र सौदागर वीरसेन बन गया ।राजकुमार रुद्र ने उसी सौदागर की बेटी सुनैना से विवाह किया और पहली रात उसने अपनी सारी सच्चाई अपनी बीवी के सामने रख दी । तो राजकुमार सिद्धार्थ का भी विवाह सकुल नगर की राजकुमारी सन्ध्या से हुआ । संध्या अब महारानी बनने के बाद भी उसमे राजकुमारी की चंचलता मौजूद थी और इसी कारण हर रोज महारानी संध्या को सोने से पहले कहानी सुनने की आदत थी पर राजा उसकी खूबसूरती पर वारी था इस लिए वे उसकी नादानियों को नजरअंदाज करके यह आदेश दिया कि राजमहल के सारे विद्वानों एवं राज दरबारियों को महारानी को कहानी सुनानी होगी। राजा के आदेश के आधीन होकर सबने कहानिया सुनाना शुरू किया पर समय के जाते राजमहल की कहानियों का संग्रह खाली हुआ पर सम्राट सिद्धार्थ ने अपनी रानी को खुश रखने के लिए नगर में यह ढंढेरा पिटवाया की जो भी महारानी को कहानिया सुनाएगा उसे 100 स्वर्ण मुद्राएं भेट में दी जाएगी ।
दूसरी तरफ सौदागार वीरसेन ने अपनी बीवी के लिए एक कीमती हार खरीदकर भेट दी पर सौदगरनी ने वह हार गुमा दिया और जब यह बात सौदगर वीरसेन को पता चली तब उसने अपनी बीवी को खरी खोटी सुनाई पर सौदगरनी भी सामने झपट पड़ी । दोनों में बहोत कहासुनी हुई तब सौदागर वीरसेन ने यह कहकर उसे चुप करा दिया कि पैसे कमाना इतना आसान नही है कमाके दिखाओ फिर सामने बहस करना । सौदगरनी चुप तो हुई पर यह बात उसके दिल पर लग गई और उसने भी सोचा की अपने पति को पैसे कमाकर दिखायेगी । तभी उसे महारानी को कहानी सुनाने वाली एवं 100 स्वर्ण मुद्राएं वाली बात मालूम हुई । और उसने रानी को कहानी सुनाकर पैसे कमाने का तय किया । अगले दिन वे राजमहल पहोंची और रानी के सामने बैठ गई । सौदगरनी ने कहानी सुनाना शुरू किया पर वे सारी कहानी महारानी ने पहले से सुन रखी थी और रानी ने उसे नई कहानी सुनाने को कहा । जब भी सौदगरनी कहानी सुनाना शुरू करती महारानी उसे नई कहानी सुनाने को कहती ।अब सौदगरनी को यह लगने लगा कि उसके 100 स्वर्ण मुद्राएं कमाने का सपना बस सपना ही रहेगा ।पर तभी उसे अपने पति द्वारा पहली रात सुनाई गई अपनी जीविन की कहानी को उसने रानी के सामने कहानी के रूप में सुना दी और रानी यह कहानी सुनकर इतनी खुश हुई कि उसने 100 मुद्राओं के बदले 1000 मुद्राएं भेट की और सौदगरनी अपनी भेट लेकर खुशी खुशी अपने घर चली गई।
उसी रात महारानी भी बहोत ही खुश थी । उसने वही कहानी को महाराज को सुनाने का फैसला किया और जब सम्राट अपने होजरे में पहोचे तो रानी ने उन्हें कहानी सुनाने की बात की और सम्राट ने अपनी बीवी का दिल रखने के लिए वे कहानी सुनी और कहानी सुनते ही वे एकदम चकित हो उठे । उन्होंने तुरन्त ही पूछा यह कहानी आपने कहा सुनी तब महारानी ने सौदगरनी का नाम लिया । अगले दिन सौदगरनी को दरबार में उपस्थित होने का आदेश सौदागार के घर आया ।सौदगरनी घबरा गई पर राजा के हुक्म को नजरअंदाज भी नही किया जा सकता था । तब सौदागार वीरसेन घर पर नही था । सौदगरनी राज दरबार में उपस्थित हुई । सम्राट सिद्धार्थ ने सौदगरनी से पूछा यह कहानी किसने उन्हें सुनाई तो उसने अपने पति का नाम लिया और यह कहानी नही बल्कि उसके पति की हकीकत है यह बताया । पर सम्राट को यकीन नही हुआ क्योकि उसके आँखो के सामने उसका भाई मरा था इस लिए उसने आदेश दिया कि सौदागार वीरसेन जहा भी हो उसे तुरंत ही राज दरबार में पेश किया जाए । राजा के सैनिकों ने वीरसेन को दूसरे गाँव से पकड़कर राज दरबार में पेश किया । वीरसेन अपनी गिरफ्तारी से काफी हैरान था उसे कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि उसे किस गुना के लिए यहां लाया गया है । राजा उसे घूर घूर के देख रहे थे तभी वीरसेन को जोरसे छिक आ गई और उसकी नाक से सोने की गेंद निकली यह देखकर राजा तुरंत ही अपने सिंघासन से उठ खड़ा होकर अपने भाई से गले लग गया । अभी भी वीरसेन कुछ समझा नही था ।उसके चेहरे के हाव भाव देख के सम्राट समझ गया । उसने सारी बात वीरसेन को बताई । जब सम्राट ने अपनी बात पूरी की तब वीरसेन ने अपने भाई को गले लगा लिया।
कैसी लगी आप को यह कहानी कमेंट करके जरूर बताये और लाइक और इसे शेयर करे और आपने अपने दादा दादी या नाना नानी से कौनसी कहानी सुनी थी मुझे कंमेंट द्वारा बताए फिरसे से मुलाकात होगी एक नए आर्टिकल के साथ तब तक के लिए अलविदा
Aryan suvada