Bitto ki mummi in Hindi Moral Stories by Anjulika Chawla books and stories PDF | बिट्टो की मम्मी

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बिट्टो की मम्मी

बिट्टो की मम्मी
©अंजुलिका चावला

कई वर्षों तक वो  पड़ोस में रहे, उन्हें चाचा जी कहते थे हम।उनके तीन बच्चे हैं। दो बेटे, एक बेटी। बेटी को ईश्वर ने नसीब में उम्र भर का बचपन लिख दिया।बचपन खुशियाँ देता है बशर्ते समय रहते खत्म हो जाए।

बड़ी बहू सास ससुर से अलग रहती है और सिर्फ हक़ की बात करती है।कभी ज़िम्मेदारियाँ नहीं उठाती। 

सारा संसार छोटी बहू ने संभाला।
ननद की देखरेख, सास-ससुर का बुढापा,अपने बच्चे और बड़ा सा नाते रिश्तेदारों और मित्रों का साम्राज्य।सास ससुर से विरासत में मिले इन रिश्तों को पूरे सम्मान से निभाने में उसे भारी मशक्कत करनी पड़ी। 

एक बार चाचा जी को छाती में दर्द के चलते अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।वहाँ बड़े बेटे ने मकान के कागज़ात पर पिता से दस्तखत करा कर मकान अपने नाम करा लिया।

वकील है...उसका कहना था अठारह साल पहले छोटे बेटे की दुकान पर आप ने तीन लाख लगाए थे।उस की कीमत के एवज में उसे मकान चाहिए।

परिवार बेघर हो जाएगा , छोटा भाई, माँ और मतिमन्द बहन को लेकर कहाँ जाएगा इन सब दलीलों का उसपर कोई असर नहीं हुआ।

चाचा जी ने अस्पताल में ही घर के पुरोहित को बुला कर समझा दिया कि ध्यान रखना बड़ा बेटा मुखाग्नि न दे और श्राद्ध न करे। इस के दो दिन बाद वो चल बसे।

महीने भर में मकान छोड़कर छोटी बहू सास ननद को लेकर दूर किराए के घर में चली गई।

एक रात हमें खाने का निमंत्रण मिला। 

छोटी को बहुत समझाया पर नहीं मानी।

चाची की इच्छा थी।

चाची के पास बैठी... दो पीढ़ियों का दिल का रिश्ता था... सुख दुख में पल पल का साथ रहा था। दोनों परिवारों के कई पुराने किस्से सुनाती रहीं।

एक अजब बात बोल गईं.... बोलीं बड़ा बेटा बचपन से ही लालची और दबंग था। दूध इतना पीता था कि मैं परेशान हो जाती थी।ससुर जी से कहा तो बोले चार लीटर तो ले रहा हूँ और नहीं बढ़ाता।पर इसको दूध न मिले तो हंगामा करता । काम करूँ कि इसे चुप कराऊँ.... तो मैंने दूध के पतीले में गिलास भर पानी डालना शुरू कर दिया।यह चोरी छुपे जितना दूध पीता उस दिन उतना पानी डालती। सास को दिखाने के लिए दूध का कप अपने लिए भरती पर पिलाना इसे ही पड़ता।उसके बाद भी इसकी आदत ही रही हर चीज़ में ज़्यादा हिस्सा मांगने लगा।दूसरों की चीज़ खींचने लगा। न मिले तो सीढियो से धकेल देता।इन दोनों बच्चों को भी खूब सम्भालना पड़ता था।

मेरे दिमाग में कुछ और ही चलने लगा...उनका छोटा बेटा किशोरावस्था तक हकलाता था इसलिए कॉलेज न जाकर  उसने अपनी दुकान खोल ली।कहीं बड़े भाई से डरकर..

कहीं बेटी को कभी सीढ़ियों से ...

इस भेंट के तीन महीने बाद खबर आई 'चाची चल बसीं'।

जब हम पहुँचे तब परिचितों के बीच बड़ा बेटा घर के बाहर  ही बैठा था।

मैं अंदर गई। छोटी बहू से गले मिली और चाची की बेटी के कंधे पकड़ कर बैठ गई।तभी उसे कुछ याद आ गया...

"तुम ने उस दिन हमारे घर में पनीर की सब्ज़ी खाई थी न...."

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई

अब तो वह बाल-बुद्धि बहन उठी घर से बाहर निकली और उसने बड़े भाई की बाँह पर दाँत गड़ा दिए। 

बहन चीख रही थी.…. मम्मी के पास  पैसे नहीं थे..... मम्मी मर गई......तू मेरे हिस्से का आम खा जाता था.. ..तू दूध पी जाता था....तू पैसे चुराता था.. चोर..मेरे को मारता था...

इससे पहले भी वो कभी बहुत उद्विग्न होती थी तब काटती थी।बाहर तमाशा हो रहा था ।औरतें आंगन में रखी चाची की देह के पास से उठ कर देहरी पर जा खड़ी हुईं। 

छोटी बहू फफक कर रो पड़ी.....चाची का सहारा था। हिम्मत मिलती थी ...।फिर यह भी तो चाची की एक आवाज़ 'बिट्टो......' लगाते ही थम जाती थी।पर आज.... 

छोटी बहू तो बिट्टो को हरदम जीजी ही कहती आई थी। कभी नाम न लिया ननद का...

कुछ पल बाद...छोटी उठी... देहरी पर खड़ी औरतों को दोनों हाथों से हटाया... और चीखी "बिट्टो!!!......."

बिट्टो का तमाशा रुक गया... छोटी उसे अंदर ले आई।

बिट्टो ने पूछा "तुमने मुझे बिट्टो क्यों बुलाया?"

छोटी ने उसे गले लगा कर कहा
" क्योंकि अब मैं तुम्हारी मम्मी हूँ।"

"ये वाली मम्मी मर गई अब तुम मेरी मम्मी हो....."

छोटी उसे गले लगा रही थी...चूम रही थी...रो रोकर चेहरे पर हाथ फेर रही थी, जैसे कहना चाहती हो कि अब से मेरा कहना मान लेना...

वो वाली मम्मी तो बेखबर सामने पड़ी थी.....लोग उसे अभी चार कांधों पर ले जाकर फूंक आएँगे।

छोटी मेरे से दस साल कम उम्र की होकर भी इतनी हिम्मती और समझदार...

मुझे छोटी की चिंता हो रही थी...

बिट्टो की जिम्मेवारी का पूरा बोझ उस के कंधों पर आने वाला था।
बिट्टो की मम्मी बनना कोई हंसी खेल तो नहीं न....