Afia Sidiqi ka zihad - 18 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 18

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 18

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(18)

मगर इसी बीच 1 मार्च 2003 के अख़बार ने तहलका मचा दिया। मुख्य ख़बर थी कि के.एस.एम. को पाकिस्तानी पुलिस ने पकड़ लिया है। साथ ही, यह भी ख़बर थी कि के.एस.एम. जिसका पूरा नाम खालिद शेख मुहम्मद है, अलकायदा का आपरेशन चीफ़ है। वह ओसामा बिन लादेन के मुकाबले का अलकायदा का लीडर और नाइन एलेवन का मास्टर माइंडिड है। पुलिस के अनुसर के.एस.एम. रावलपिंडी फौज़ी छावनी के करीब किसी के बड़े घर में से गिरफ्तार किया गया था। किसी मुख़बिर ने अमेरिका द्वारा घोषित पच्चीस मिलियन डॉलर के इनाम को लेने की खातिर उसको पकड़वाया था। के.एस.एम. को जिसके घर में से पकड़ा गया था, वह खुद एक साइंसटिस्ट था। उसके घर से जो अन्य सामान मिला, उससे पता चला कि अल कायदा, बॉयलॉजिकल हथियार के करीब पहुँच चका था। वहीं से दूसरे अल कायदा सदस्यों के पते मिले। मजीद खां को भी अगले दिन ही पकड़ लिया गया। इसी प्रकार इस रिंग के कई अन्य सदस्य भी पुलिस की गिरफ्त में आ गए। उधर अमेरिका में एफ.बी.आई आफिया की बहन फौज़िया के घर पहुँची। फौज़िया से सवाल-जवाब करके वह वापस चले गए तो उसने अपने भाई को हूस्टन टैक्सास में फोन किया। वह हैरान रह गई जब उसने बताया कि उसके घर से भी एफ.बी.आई. वाले अभी अभी गए हैं। वह आफिया को बुरी तरह खोज रहे थे। इस बारे में फौज़िया ने आफिया को पाकिस्तान में फोन करते हुए कहा, “आफिया, तुझे एफ.बी.आई. खोजने आई थी।“

“क्या ? पर क्यों ?“ फौजिया की बात सुनते ही आफिया के होश उड़ गए।

“यह तो पता नहीं, पर मुझे पता चला है कि मार्च के शरु से ही जो के.एस.एम. जैसे लोगों की गिरफ्तारियाँ हुई हैं, यह सब उसी कड़ी का एक हिस्सा है।“

“हूँ...।“ आफिया किसी सोच में गुम हो गई।

“आफिया, क्या तू इस के.एस.एम. के बारे में कुछ जानती है ?“ फौज़िया ने सवाल किया।

“नहीं तो। पर तू क्यों पूछ रही है ?“

“आफिया, यह कोई लम्बा चक्कर लगता है, जो धड़ाधड़ गिरफ्तारियाँ हो रही है। इसके घेरे में पता नहीं कौन कौन आएगा। सुना है कि कोई मजीद खां नाम का लड़का भी पकड़ा गया जो अमेरिका आकर अगले हमले करने चाहता था। आफिया सच बताऊँ तो मुझे बड़ा डर लग रहा है। तू संभलकर रहना।“

फौज़िया के फोन ने आफिया के होश उड़ा दिए। उसको लगने लगा कि उसको पकड़ने के लिए कोई आया कि आया। उसने तुरंत अपने तीनों बच्चों को तैयार किया और टैक्सी बुला ली। उसकी माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “आफिया, यह क्या पागलपन है। तेरा इन लोगों से क्या संबंध है। तुझे कोई क्यों पकड़ेगा। जब तूने कुछ गलत किया ही नहीं तो डरने की कौन-सी बात है।“

“अम्मी, तू नहीं समझ सकती यह बात। इस वक्त मेरा यहाँ से चले जाना ही बेहतर है।“

“आफिया, सच बता, कहीं तेरा किसी उलटे-सीधे काम से वास्ता तो नहीं है ?“ इस्मत ने आफिया की बांह पकड़कर सख़्ती से कहा।

“अम्मी, मैंने कहा है न कि यह वक्त बहसबाजी का नहीं है।“ इतना कहते हुए आफिया ने बांह छुड़वा ली और अपनी तैयार में लग गई।

“मेरा मन कहता है कि तू ज़रूर अल कायदा के किसी आदमी के साथ जुड़ी हुई है। तू मुझे सच सच बता दे, मैं तेरा सारा प्रबंध कर लूँगी। तुझे आँच नहीं आने दूँगी।“

लेकिन आफिया ने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया तो इस्मत रोने लगी। तभी, टैक्सी आ गई और आफिया बच्चों को उठाती बाहर निकलने लगी। इस्मत रोती हुई आगे आ गई और बोली, “पर इतना तो बता दे कि जा किधर रही है ?“

“फिलहाल तो फारूकी अंकल के पास जा रही हूँ। वहाँ पहुँचकर तुम्हें फोन करुँगी।“ इतना कहते हुए आफिया बच्चों सहित टैक्सी में जा बैठी। इस्मत के देखते-देखते टैक्सी आँखों से ओझल हो गई। आफिया स्टेशन पहुँची और वहाँ से टैक्सी बदल ली। अगली टैक्सी लेकर वह सीधे अल बलोची के परिवार के पास पहुँची। परिवारवालों ने उसका खुशी खुशी स्वागत किया। पर साथ ही यह भी कहा कि इस परिवार में एक अनब्याहा मर्द यानी अली रहता है, इसलिए मज़हबी अकीदे के अनुसार आफिया का वहाँ रहना उचित नहीं हागा। परंतु घर के बुजु़र्गों ने इसका हल सोचते हुए आफिया से पूछा, “बेटी क्या तू अली के साथ शादी करने के लिए राज़ी है ?“

“जी, जैसा आप सबको ठीक लगता हो।“ आफिया ने एक किस्म की सहमति दे दी। अगले दिन ही सादे ढंग से उनका निकाह करवा दिया गया और आफिया अपने बच्चों सहित अली के साथ रहने लगी।

उधर इस्मत सारा दिन प्रतीक्षा करती रही, मगर आफिया का फोन न आया। फिर उसने खुद ही फारूकी को फोन किया तो उसने बताया कि आफिया तो उसके पास आई ही नहीं। वह भी चिंतित हो उठा। अगले दिन शाम के समय फिर इस्मत का फोन आया तो सद्दीकी उदास आवाज़ में बोला, “आपा, मुझे लगता है कि आफिया को पुलिस ने कहीं रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया है। नहीं तो वह कहीं से फोन ज़रूर करती।“ इस तनाव में ही सप्ताह गुज़र गया। इस्मत थोड़ी थोड़ी देर के बाद फारूकी के घर फोन करती रही। उधर फौज़िया भी सुबह-शाम अपनी माँ से बात करती, पर आफिया का कहीं कोई ठौर-ठिकाना न मिला तो एक दिन इस्मत रोती हुई फारूकी से बोली, “भाईजान, तुम्हारी बात सही है। वह पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली गई लगती है। पर मैं अकेली औरत क्या करुँ। कहाँ खोजूँ उसको। फिर यह भी पता नहीं कि उसने किया क्या है। उसने बताया भी कुछ नहीं। जिस तरह डरकर वह भागी है, उससे तो लगता है कि बात कोई ज़रूर है।“

“आपा तू अकेली नहीं है। मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम मिलकर उसको ढूँढ़ेंगे।“

पर उनके लाख टक्करें मारने के बावजूद आफिया का कोई अतापता नहीं मिला। दिन गुज़रते गए। इस्मत, बेटी के दुख से बिस्तर से लग गई। फारूकी भी सारा दिन इसी चिंता में खोया रहता था कि क्या किया जाए। उधर फौज़िया का बुरा हाल था। उसको आफिया की तो चिंता थी ही, साथ ही उसको यह भी लगता था कि जैसे उसकी भी निगरानी की जा रही हो। इस सबसे अनभिज्ञ उधर आफिया अपने नए पति अली के साथ उसके बड़े अल बलोची परिवार में रह रही थी।

फिर एक दिन एफ.बी.आई उज़ेर पराचा के न्यूयॉर्क वाले दफ़्तर में पहुँची। वह कई दिनों से उसकी निगरानी कर रहे थे। उसका दफ़्तर अंदर से बंद था। दरवाज़ा खटखटाया गया तो उज़ेर ने दरवाज़ा खोला। सामने वर्दीधारी एफ.बी.आई. की टीम देखकर उसके होश उड़ गए। उजे़र के सामान की तलाशी ली तो उसमें से मजीद खां के पेपर निकले। उसको भी गिरफ्तार कर लिया गया। उसको न्यूयॉर्क मैट्रोपॉलेटिन डिटैनशन सेंटर ले जाया गया। उसकी इंटैरोगेशन शुरू हुई तो उसने सबकुछ बता दिया कि कैसे उसका पिता ही उसको इस चक्कर में डालने का कारण बना। एफ.बी.आई. के लिए अब यह बहुत आवश्यक हो गया कि उज़ेर के पिता को पकड़ा जाए। मगर अब तक महीने से ऊपर हो गया था इन गिरफ्तारियों को चलते, इस कारण बहुत कुछ बदल गया था। शुरू में पाकिस्तान सरकार ने एफ.बी.आई. की मदद की थी। परंतु फिर वहाँ की एजेंसी आई.एस.आई. अलकायदा के मशहूर आदमियों को बचाने में लग पड़ी थी। जब भी एफ.बी.आई. धावा बोलती तब तक उनका टारगेट भाग चुका होता। वे समझ गए कि आई.एस.आई. अब उनकी पेश नहीं चलने दे रही। इसी कारण उन्होंने सैफउल्ला पराचा वाली बात बाहर न निकाली। पता था कि जैसे ही उसका नाम बाहर आएगा, आई.एस.आई. उसको पहले ही कहीं भगा देगी। लेकिन उसके लिए एफ.बी.आई. ने एक अलग ही तरीका चुना।

एक दिन न्यूयॉर्क में रहते सैफउल्ला पराचा के पुराने मित्र और बिजनेस पार्टनर चार्ल्स का उसको फोन आया। वह बोला, “सैफउल्ला तुझे एक ज़रूरी बात तो यह कहनी है कि तू इधर अमेरिका की ओर मुँह न करना। यहाँ आना तेरे लिए खतरे से खाली नहीं होगा।“

“चार्ल्स यह बात तो मैं भी समझता हूँ। इन्होंने मेरे निर्दोष बेटे को यूँ ही पकड़ लिया। पर बिजनेस भी बंद नहीं किया जा सकता।“

“यह बात भी ठीक है। बिजनेस के लिए अपना मिलना ज़रूरी है। पर मैं भी यार पाकिस्तान आने से डरता हूँ।“

“चार्ल्स तू भी यहाँ अभी बिल्कुल मत आना। अभी तो मैं भी यहाँ छिपा फिरता हूँ। इन एफ.बी.आई वाले कमबख्तों का क्या पता है कि कब किससे चिपट जाएँ।“

“तू फिर ऐसा क्यों नहीं करता कि हम कहीं दूसरी जगह छिपकर मिल लें।“

“तू ही बता कि कहाँ मिल सकते हैं ?“

“तू ऐसा कर, थाईलैंड आ जा। वहाँ किसी को पता भी नहीं चलेगा और हम मिल भी लेंगे। पर ज़रा होशियारी से जहाज में चढ़ना।“

“हाँ, यह तो ठीक है। साथ ही वहीं कुछ देर गुज़ार आऊँगा। जब तक बात ठंडी नहीं पड़ती।“

“ठीक है फिर हम वहीं मिलते हैं।“

इसके पश्चात उन्होंने तारीख़ तय कर ली। निश्चित दिन सैफउल्ला चुपचाप-सा कराची से थाईलैंड के लिए फ्लाइट लेकर जहाज में जा बैठा। जहाज बैंकाक पहुँचा तो दूसरे यात्रियों सहित सीढ़ियों से नीचे उतरा। नीचे एक सिक्युरिटी वाले ने बात करने के लिए एक तरफ बुला लिया। अगले ही पल पास खड़ी वैन में से कुछ लोग उतरे और उन्होंने सैफउल्ला को दबोचकर अपने साथ बिठा लिया। किसी को भनक भी न लगी कि वहाँ क्या हुआ। वे असल में एफ.बी.आई. वाले थे। उन्होंने ही चार्ल्स को डरा-धमकाकर अपनी मदद के लिए मनाया था। यह सारा ड्रामा चार्ल्स द्वारा सैफउल्ला को बैंकाक में लाने के लिए करवाया गया। अगले ही दिन सैफउल्ला पराचा को दूसरों की भाँति अफगानिस्तान की गुप्त जेलों में पहुँचा दिया गया। उधर उसके परिवार और जान-पहचानवाले हैरान रह गए कि सैफउल्ला गया तो किधर गया।

इसी दौरान एफ.बी.आई. के हाथ एक ऐसा व्यक्ति आ गया गया जिसने सारा रिंग ही तोड़ दिया। यह था फारसी नाम का ट्रक ड्राइवर जो कि चिकागो में रहता था। यह मजीद खां का दोस्त था, जिसका भेद मजीद खां की इंटैरोगेशन के समय ही मिला। जितना बड़ा यह अलकायदा का सोर्स था, उतना ही बड़ा यह पहेली निकला। उसने इंटैरोगेशन का एक दौर भी नहीं झेला कि वह एफ.बी.आई की हर किस्म की मदद करने को मान गया। एफ.बी.आई. शायद उसकी बातों को न मानती, पर जब उसने कहा कि वह के.एस.एम. के भान्जे अली को पकड़वा सकता है तो एफ.बी.आई. वालों की बांछें खिल उठीं। उसको किसी गुप्त घर में ले जाकर अली के साथ राब्ता कायम रखने को कहा गया। कुछ ही देर बाद उसने बताया कि अली पाकिस्तान में बैठा वहाँ की अमेरिकन एम्बेसी पर हमला करने की तैयारी कर रहा है तो एफ.बी.आई. एकदम हरकत में आ गई।

जब एफ.बी.आई. की टीम ने पाकिस्तानी पुलिस फोर्स के साथ उस घर को घेरा डाला जहाँ अली अमेरिकन एम्बेसी पर फेंके जाने वाले बम को बनाने में व्यस्त था, तो तभी अली और उसके साथी ने पुलिस पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। इधर पुलिस ने भी गोलाबारी शुरू कर दी। कुछ मिनट ही बीते थे कि तभी वहाँ आई.एस.आई. का हथियारबंद दस्ता आ पहुँचा। वह शायद देर हो जाने के कारण सिर मार रहे थे। इतने में अंदर से अली की आवाज़ आई कि वे कुछ देर के लिए सीज़ फायर कर दें ताकि अंदर घिर बच्चे को बाहर निकाला जा सके। आई.एस.आई. वालों ने गोलाबारी रुकवा दी। कुछेक मिनट प्रतीक्षा करने के बाद आई.एस.आई. वालों ने अपना ट्रक दरवाजे़ के साथ लगा दिया और किसी को चुपचाप-से ट्रक में बिठाकर चलते बने। बाद में पुलिस वाले भौंचक्के खड़े देखते रह गए। वे आई.एस.आई. की इस हरकत के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी अंदर से फिर आवाज़ आई कि यदि उन्हें आई.एस.आई. गिरफ्तार कर रही है तो वे हथियार फेंकने के लिए तैयार हैं। पुलिस वालों ने कहा कि ठीक है, जैसा तुम कहते हो, वैसा ही होगा। अंदर से अली और उसका साथी हाथ खड़े किए बाहर आ गए। जब पुलिस ने उन्हें बांधकर गाड़ियों में बिठा लिया तो उन्हें अहसास हुआ कि आई.एस.आई. वाले तो जा चुके थे। पर अब कुछ नहीं हो सकता था। पाकिस्तानी पुलिस और अमेरिकन एफ.बी.आई. वाले इस गिरफ्तारी से इतना खुश हुए कि वे आई.एस.आई. द्वारा दख़लअंदाज़ी करके किसी को वहाँ से निकालने वाली बात भूल गए। एफ.बी.आई. वालों की खुशी तब और भी बढ़ गई जब उन्हें पता चला कि अली के साथ पकड़ा गया व्यक्ति खालिद अल अशाद है। खालिद अल अशाद वर्ष 2000 में अमेरिकी समुद्री बेड़े यू.एस.एस, कॉल्ज पर हमला करके सत्रह अमेरिकी फौजियों को मार देने वाली आतंकवादी घटना में शामिल था। आखि़र, 1 मार्च को शुरु हुआ गिरफ्तारियों का सिलसिला बंद हो गया। अमेरिका पर दूसरा बड़ा हमला करने वाली साज़िश के प्रमुख दोषी के.एस.एम. से लेकर निचले स्तर के सभी आतंकवादी एफ.बी.आई. के कब्ज़े में आ चुके थे। सिर्फ़ एकमात्र इन्सान बच गया था जो एफ.बी.आई. की पहुँच से दूर था। वह थी आफिया सद्दीकी। एफ.बी.आई. ने दुनिया का कोना कोना छान मारा, पर आफिया का कोई अता पता नहीं मिला। एफ.बी.आई. उसको बहुत अहम मान रही थी। इसके अलावा जिस घर में से के.एस.एम. पकड़ा गया था, वहाँ से एफ.बी.आई. को जो दस्तावेज़ मिले थे, उनसे साबित होता था कि अल कायदा बॉयलॉजिकल और केमिकल हथियार बनाने के करीब पहुँच चुका है। एफ.बी.आई. सोच रही थी कि कहीं यह न हो कि कोई न काई खतरनाक हथियार बन चुका हो और आतंकवादी उसको अमेरिका के खिलाफ़ इस्तेमाल के लिए तैयार हों। अब तक पकड़े गए कई अलकायदा सदस्यों ने अपनी इंटैरोगेशन के दौरान माना था कि आफिया बहुत ज्यादा खतरनाक है। वह अमेरिका पर केमिकल हथियारों से करने वाले अगले हमले के लिए देहतोड़ काम कर रही है। एफ.बी.आई. इस बात से भी चिंतित थी कि कहीं वह किसी परिवर्तित नाम से पासपोर्ट लेकर अमेरिका में न आ घुसे और किसी को पता ही न चले। आखि़र, एफ.बी.आई. ने उसकी फोटो और अन्य जानकारी अपने इश्तहारी मुज़रिमों वाली सूची में डाल दी। इस सूची पर अकेला उसका नाम नहीं था, बल्कि साथ ही उसके पहले पति का नाम भी डाला गया था।

जैसे ही यह ख़बर आई कि एफ.बी.आई ने आफिया को अपने इश्तहारी मुज़रिमों वाली सूची में डाल दिया है तो हर तरफ तहलका मच गया। अख़बारों ने इस ख़बर को उठा लिया। अमेरिकी मीडिया ने ख़बर दी कि आफिया को गिरफ्तार कर लिया गया है और उसको अमेरिकी सरकार के हवाले भी किया जा चुका है। और अमेरिकी उसको अफगानिस्तान की किसी गुप्त जेल में ले गए हैं। इसी दौरान पाकिस्तानी मीडिया ने ख़बर दी कि आफिया पकड़ी अवश्य गई थी, पर उसको थाने में ले जाकर रिहा कर दिया गया। इसके अगले दिन पाकिस्तान के मशहूर अख़बार डॉन ने ख़बर दी कि आफिया को उस वक्त कराची एअरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया जब वह फ्लाइट लेकर कहीं जाने की ताक में थी। एक अन्य अख़बार ने अपने पुलिस सोर्स का नाम गुप्त रखते हुए यह लिखा कि आफिया को तब गिरफ्तार किया गया जब वह बच्चों सहित कराची से इस्लामाबाद जा रही थी और उसको आई.एस.आई. के हवाले कर दिया गया है। अगले ही दिन फिर ख़बर आ गई कि आफिया को पाकिस्तान सरकार ने पकड़ा है और इस वक्त वह उनकी कै़द में है। परंतु अगले दिन पाकिस्तान ने मीडिया कान्फ्रेंस करके इस ख़बर का खंडन कर दिया। जब फिर से डॉन अख़बार ने ज़ोर-शोर से लिखा कि आफिया इस वक्त अमेरिकी सरकार के पास है और उसको अफगानिस्तान में कहीं गुप्त जेल में रखा हुआ है तो अमेरिका सरकार ने इस ख़बर का खंडन करते हुए कहा कि आफिया उनकी जेल में नहीं है। इस बीच यह भी ख़बर आई कि आफिया क्योंकि अल कायदा के बारे में सब कुछ जानती थी और हो सकता है कि उसका हश्र भी आफिस भूजा वाला ही हुआ हो। (आसिल भूजा का नाम पत्रकार डेनियल पर्ल के क़त्ल में आ गया था। अगले दिन जब पुलिस उसके घर उससे बातचीत के लिए पहुँची तो वह वहाँ मरा हुआ मिला। सबको शक था कि उसको अलकायदा ने स्वयं ही मार दिया है ताकि कहीं कोई भेद बाहर न निकल सक।) खै़र, ख़बरों का बाज़ार हर तरफ गरम था। परंतु लोग असमंजस जैसी स्थिति में थे। क्योंकि कोई भी ख़बर ऐसी नहीं थी जिस पर भरोसा किया जा सके। आखि़र बनते बनते आफिया की ख़बर वास्तव में एक रहस्य बनकर रह गई। आफिया एक रहस्य बनकर रह गई। किसी को पक्के तौर पर कुछ भी पता नहीं था, बस सबके अपने अपने कयास थे। फिर धीरे धीरे आफिया के नाम की चर्चा कम होने लगी। 2003 की गर्मियाँ खत्म होने तक आफिया का नाम ख़बरों में से गायब हो चुका था।

(जारी…)