Understanding in differece in Hindi Classic Stories by Mukteshwar Prasad Singh books and stories PDF | समझ अपना अपना

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समझ अपना अपना

‘‘समझ अपना अपना‘‘
रजनी एवं कमलेश पति-पत्नी थे। इनकी विवाहित जिन्दगी के लगभग पन्द्रह वर्ष बीत गये थे। कमलेश एक साफ्टवेयर फैक्ट्री का मालिक था। कार्य व्यस्तता के कारण देर से घर लौटता था।
आज भी कमलेश रात में करीब एक बजे घर लौटा था। बिजनेस की एक जरुरी मीटिंग देर तक चली थी। कुछ विदेशी ग्राहक आये थे। कमलेश के काॅलबेल दबाने पर रजनी ने दरवाजा खोल दिया। रजनी की आंखें बोझिल थी। चेहरे से उदासी साफ झलक रही थी।
​कमलेश ने पूछा - क्या बात है डार्लिंग, तबीयत तो ठीक है न। काफी बुझी-बुझी दिख रही हो। रजनी के जवाब नहीं देने पर वह पुचकारते हुए कमर में बाहें डाल ड्रांइग हाल में घुसा और कहा आज मैं बहुत ख़ुश हूँ कि दस करोड़ का आर्डर मिला। बावजूद इसके रजनी चुप थी। कमलेश ने एक्जक्यूटिव बैग एक तरफ रख अचानक गाल पर एक जोरदार ’’किश’’ किया तो रजनी तिलमिला उठी।
​रुठते हुए रजनी ने कहा - ’’छोड़ो मुझे, तुमसे बात नहीं करती।’’
​’’अच्छा, तो पहले यूं माफी मांगता हूँ।’’ कमलेश ने अपना कान छूते हुए कहा - ’’अब तो कुछ प्यारी-प्यारी बातें करो।’’
​रजनी ने रुखाई से कहा - ’’तुम तो दिन भर आॅफिस में समय गुजारते हो। टूर और मीटिंग में तुम्हारे दिन बीत जाते हैं, परन्तु मेरे बारे में सोचा है कि मैं कैसे दिन बीताती हूँ। रात में तुम्हारे आने तक इंतजार में बैठी रहती हूँ। बड़े मकान में अकेली भूत के समान चक्कर काटती रहती हूँ। दो बच्चे भी हैं जो देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते हैं। मैं अपनी सूनी जिन्दगी से ऊब गई हूँ। मुझे भी बाहर कदम निकालने का मौका दो। बाहर जाकर दुनियां की गतिविधियों में कदम से कदम मिलाकर चलने का मौका मिलेगा। मानसिक शांति मिलेगी, तब दिन खुशी -खुशी गुजरेंगे। इस तरह घर में बैठे-बैठे पहाड़ सा दिन बिताना मुश्कि हो रहा है।
​बस इतनी छोटी सी बात के लिए इतना गंभीर माहौल बनाया तुमने। मैंने कब मना किया। तुमने कभी इच्छा जाहिर ही नहीं की थी। यह दोष तुम्हारा है, मेरा नहीं। तुम जहां चाहो घूम सकती हो, पार्क, सिनेमा, होटल। शापिंग करो, किट्टी-पार्टी में जाओ। सभा, सोसायटी में भाग लो, दोस्ती करो, दिल की बात शेयर करो। मुझे कोई ऐतराज नहीं। बाहर जाने की इन्ट्री फीस मात्र एक पप्पी है। कमलेश ने झुककर गालों को फिर चूम लिया।
​रजनी खिलखिला कर हंस पड़ी। दूसरे दिन रजनी कमलेश के संग अपने ’’साफ्टवेयर’’ यूनिट पहुँच गयी।
​टेक्नीशियनों एवं वर्करों ने मालकिन को अपने बीच देख हाथ जोड़-जोड़ कर प्रणाम किया। कमलेश सभी वर्कयार्डों के कार्यों को दिखाते हुए रजनी को अपने केबिन में लाया। कमलेश के केबिन में एक सुन्दर लड़की कम्प्यूटर पर कुछ टाइप कर रही थी।
​कमलेश ने रजनी से कहा - ’’यह कामिनी है, मेरी सेकेट्री। काफी ब्रीलिएन्ट और स्मार्ट है। हर कार्य दक्षता से निपटाती है।’’
​उसी वक्त लम्बा सा एक नौजवान केबिन में दाखिल हुआ। उसे देख कमलेश ने कहा - ’’आओ शेखर, पहले इनसे मिलो, तुम्हारी यूनिट की मालकिन यानी मेरी पत्नी रजनी। और फिर शेखर का परिचय दिया- ये है शेखर, आई॰टी॰ इंजीनियर। हमारे साॅफ्टवेयर कम्पनी का बैकबोन है।’’ आई॰आई॰टी॰ खड़गपुर से पास आउट है।
​इंजीनियर शेखर और प्राइवेट सेक्रेटरी कामिनी ने रजनी का परिचय पाकर हाथ जोड़ नमस्कार किये। इस प्रकार पहले ही दिन सभी एक दूसरे से परिचित हो गये थे।
​अब जब भी इच्छा होती रजनी अपनी फैक्ट्री आ जाती। वर्कयार्ड में घूम-घूम कर काम देखती। परन्तु, शेखर के निकट जाकर जरुर बैठती। कभी पार्टस के बारे में, कभी कम्प्यूटर के बारे में पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत करती।
​एक दिन कमलेश अपनी सेकेट्री कामिनी के साथ-साथ लंच ले रहे थे। लंच टिफिन कामिनी ने ही लाया था। जब भी कामिनी कोई अच्छा लजीज व्यंजन लाती कमलेश को अवश्य चखाती। कामिनी और कमलेश न सिर्फ बाॅस एवं प्राइवेट सेकेट्री थे, बल्कि एक-दूसरे के दोस्त भी थे। दोनों के व्यवहार में काफी खुलापन था। कामिनी अभी कुंवारी ही थी। उच्च शिक्षित होने के कारण शर्मिली या दक़ियानूसी नहीं थी। कभी-कभी तो कमलेश चिढ़ाता - ’’तुम्हारा कोई ब्वाॅयफ्रेंड नहीं है ? किस लड़के से लव करती हो ?
​’’कामिनी कहती एक से लव करती हूँ। पर वो दब्बू है। शादी के नाम से नर्वस हो जाता है। शायद अब पापा की पसंद ही मेरी पसंद बन जायगी।’’
​’’थैंक्स, हां जब अपनी पसंद का कोई नहीं हो तो मां-बाप की सलाह माननी चाहिए। कहो तो मैं भी तेरे मैच का लड़का खोजूँ।’’
​’’आप बाॅस हैं, आपको हक है। पर फ्रेंड धोखा मत खा जाना।’’ कामिनी ने हंस कर कहा।
​’’मैं अपने दोस्त का पार्टनर खोजने में काफी सावधानी रखूँगा।’’ कमलेश ने कहकर सैन्डवीच का एक टुकडा कामिनी के मुँह में डाल दिया। संयोग से उसी वक्त रजनी कमलेश के चैम्बर में घुसी। कमलेश ने तपाक से कहा - ’’आओ, आओ रजनी, बैठो। लो तुम भी खाओ। कामिनी कुकिंग भी अच्छा कर लेती है।’’ कामिनी ने सैंडवीच का एक टुकड़ा रजनी के मुँह में भी डाल दिया। मैडम, चूंकि आप यार्ड में नहीं थी, इसलिए कह न सकी। कामिनी ने सफाई दी।
​’’रियली, तुम टेस्टी खाना बना लेती हो। रजनी ने प्रशंसा की। लेकिन मैं तुम्हारे हाथ का बना अन्य आयटम भी खाना चाहूँगी। सिर्फ चखने भर से काम नहीं चलेगा।’’
​तीनों खूब हंसे।
​रजनी ने थरमस का पानी पिया।फिर एक ग्लास पानी कमलेश के लिए भी टेबुल पर रख दिया और बाहर निकल गयी।
रजनी के बाहर चले जाने के बाद कमलेश ने कामिनी से कहा-’’तुम्हारी मेमसाब बिल्कुल साफ सोच की है। कोई शक नहीं रहता उसके मन में। दूसरी औरत रहती तो आसमान सिर पर उठा लेती। वह जानती है कि मेरा पति सिर्फ मेरा है, चाहे दोस्ती किसी के साथ हो। उसके मन में कोई कम्पलेक्स नहीं है। मेरी भी सोच उसी तरह की है। समय गुजारने, कुछ सीखने, कुछ बतियाने के लिए जरुरी नहीं कि हर समय पति रुपी पुरुष ही साथ रहे। वह तो कोई भी पुरुष हो सकता है जिससे सोच मिले विचारों का आदान प्रदान हो, मनोरंजन की बाते हों।वास्तव में मैं तुम्हें दोस्त पाकर बहुत ख़ुश हूँ कामिनी।
​लंच टाइम के बाद कमलेश वर्कयार्ड इन्सपेक़्शन राउंड में निकला। शेखर के यार्ड की ओर भी गया। वहां तकनीशियन कार्य में जुटे थे, परन्तु शेखर नहीं था। शेखर के बारे में पूछने पर पता चला कि वह रजनी के साथ यूनिट से बाहर गया है।
​थोड़ी देर बार रजनी और शेखर लौट आये।
वे दोनों एक कैफे में चाय पीने चल गये थे। कार से शेखर के उतरने के बाद रजनी ने कार पार्क की।
कमलेश ने दोनों को हंसते हुए अन्दर आते देख लिया। इन दिनों रजनी काफी ख़ुश रहती थी। उसके चेहरे की उदासी गायब हो गयी थी। यह महसूस कर कमलेश प्रसन्न था। रजनी के तनाव मुक्त रहने से उसे काफी राहत मिली। अब कमलेश अपने कार्य के सिलसिले में ज्यादा देर बाहर भी रहता तो रजनी को कोई शिकायत नहीं रहती। यह सिलसिला नियमित चलने लगा। सभी ख़ुश थे और काम में व्यस्त और मस्त थे।
​हाल में ही शेखर की शादी सुषमा नामक एक सुन्दर लड़की से हुई तथा कामिनी की शादी भी कुन्दन नामक एक युवक से हो गयी।शादी के बाद कुछ दिनों सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। परन्तु इधर कुछ दिनों से शेखर , कामिनी तथा कमलेश और रजनी की शांत जिन्दगी में तूफान आ गया था। उनके ख़ुशनुमा ज़िन्दगी में काफी तनाव उत्पन्न हो गया था।फलस्वरूप सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया।रजनी अन्य दिनों के उलट रात में देर से घर लौटी थी। उसने शराब पी रखी थी, कदम डगमगा रहे थे। कमलेश पहले आ गया था और अपनी पत्नी के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था।
​रजनी के मेन हाॅल में प्रवेश करने पर कमलेश उसकी चाल देख चौंक पड़ा। भारी-भारी लड़खड़ाते पग, लाल-लाल आंखें, बेतरतीब साड़ी के पल्लू और बिखरे बालों को देख कमलेश सशंकित था।
​ ’’रज्जो, आज काफी देर हो गयी लौटने में। रात के दो बज गये हैं। जल्दी लौट आया करो"-कमलेश ने अपनी पत्नी को टोका।
​रजनी लड़खड़ाती हुई बेड रुम के दरवाजे की ओर बढ़ रही थी। पर कमलेश की आवाज सुन रुक गयी।
​’’साॅरी कमल, सचमुच काफी देर हो गयी है। पर डार्लिंग तुम क्यों जगे हो। रजनी बोलती हुई कमलेश के समीप पहुँच गयी।
​रजनी के निकट आ जाने पर कमलेश ने उठकर सहारा दिया और अपनी बगल में सोफा पर बिठाया। बहुत देर से कमलेश वहीं बैठकर एक मैगजीन पढ़ रहा था। कमलेश ने रजनी की पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा - ’’आज तूने काफी पी रखी है। इस तरह की आदत ठीक नहीं। मेरी मानो रज्जो, अब हमें बाहरी दुनियां से उनमुक्त मेल जोल कम कर लेना चाहिए। अपनी सीमाओं में रहकर ही सामाजिक मान्यताओं को निभाया जा सकता है।’’
​’’तुम ठीक कहते हो। सीमाओं को लांघ कर चलना जग हँसाई भी कराता है।हमारी उन्मुक्तता एक नया संकेत दे रहा है कमल। मैं इसलिए जरुरत से ज्यादा शराब पी गयी, क्योंकि मुझे जबरदस्त आघात पहुँचा है। उसी आघात को भूलने और कुछ कठोर निर्णय लेने के लिए मैं शराब पीने को विवश थी’’ -रजनी ने कारण बतलाया।
’’क्यों, क्या हुआ ? किसी ने कुछ कहा क्या ? -कमलेश ने चौंककर पूछा।
रजनी ने रुँधे गले से अटकती आवाज में बताया -’’आज शेखर की नयी नवेली पत्नी सुषमा अचानक पटना आयी और सीधा आॅफिस पहुँच गयी। पांच बजे का आॅफ टाईम था। शेखर मेरे केबिन में बैठा था। हम दोनों टीवी पर क्रिकेट मैच देख रहे थे। सुषमा मुझे और शेखर को एक साथ बैठे और ठठाकर हँसते देख जलभुन गयी। क्रोधाग्नि में उसने उलजलूल बक दिया।’’
उसने मुझे बुरा-भला कहा । पर सबसे वेधक तो ये बात थी कि उसने शेखर को सपाट शब्दों में कहा -’’बुढ़िया को रखैल बनाकर रखना था तो मुझ जैसी जवान लड़की के साथ शादी क्यों रचायी" ? उसने मेरी और शेखर की नजदीकी को अवैध यौन संबंध समझ लिया।
’’तो क्या शेखर चुप था ?’’ कमलेश ने आश्चर्य से पूछा।
’’नहीं, उसे जो कहना और करना था उसने किया। पहले उसने अपनी पत्नी को जोर से चांटा मारा। फिर कड़े शब्दों में कहा, ’’निश्छल एवं पवित्र दोस्ती को लांछित करती है। क्या सिर्फ पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री की दोस्ती ही सच्ची होती है, क्या स्त्री-पुरुष की दोस्ती वासनात्मक होती है ? यौन सुख से बड़ा सुख भी है जिससे भावनात्मक तुष्टि मिलती है। हमारे बीच यौन संबंध नहीं। हम दोस्त बने हैं खुशी पाने के लिए, थकान मिटाने के लिए, मन का बोझ हल्का करने के लिए। ना कि देह गंध से आकर्षित हुए हैं। रजनी मैडम, मेरे बाॅस की पत्नी हैं। उन्हें मेरी दोस्ती से कोई फायदा नहीं। सिर्फ मानसिक शान्ति हेतु वे मेरे साथ दो पल बैठती हैं, गप्पें करती हैं ,हंसती हैं। मैडम जी पन्द्रह वर्षों की अपनी विवाहित जिन्दगी में इतना कुछ शारीरिक सुख भोग लिया हैं कि अब देह का महत्व हाड़-माँस के लोथड़े के अतिरिक्त कुछ नहीं है। परपुरुष से वासना तृप्ति सोचना भी पाप है। और मैं भी मैडम के इसी चरित्र को निभा रहा हूँ। धोखा करना मेरे लिए भी असंभव है। इस तरह हम दोनों के बीच शरीर की कोई अहमियत नहीं है। मैं तो मैडम जी के समक्ष एक अदना कर्मचारी हूँ। उनके साथ ’मिस विहेव’ पलक झपकते मुझे सड़क पर धकेल देगा। तुम माफी मांगो मैडम से। इतना कहते-कहते शेखर गुस्सा से तिलमिलाने लगा।और सुषमा को बाहर निकाल दिया।"सिसकती रजनी ने कमलेश के सीने पर सिर रख दिया। फिर बोली - "मुझ पर बदनामी के ऐसे छींटे पड़ गये कि मेरा अस्तित्व ही मिट गया। मेरे हृदय पर इतनी जोर की चोट पड़ी कि मैं असंतुलित हो गयी। परिणामस्वरुप, मैं ’वाइन बार’ में जाकर खूब शराब पी ली।’’ रजनी ने दर्द भरी आवाज में घटना की पूरी जानकारी दी।
कमलेश को रजनी की बातें सुन थोड़ी हिम्मत आ गयी तो उसने भी अपने साथ घटित घटना बयां कर दी-"मेरी सेकेट्री कामिनी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। और मुझे भी आज बेइज्जती का सामना करना पड़ा है। कामिनी का पति कुन्दन उसे मेरे कार की पिछली सीट से उतरते, मेरे द्वारा गाल थपथपाते देख लिया था।​"
’’कुन्दन के कानों में मेरी और कामिनी की निकटता की चर्चा भी पहुँच गयी थी। इसलिए कार से उतरते समय अपनी पत्नी को मेरे साथ देख आगबबूला हो गया। उसे यह निष्कर्ष निकालने में जरा भी देर नहीं लगी कि मेरे और कामिनी के बीच अवैध रिश्ते हैं।मेरे ही सामने केबिन में कुंदन ने कामिनी को कुल्टा, रंडी तक कह डाला।’’
कमलेश ने आगे बताया - मैंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया, पर कामिनी को कहा गया हर शब्द मेरे लिए भी गाली थी। सच कहूँ तो यह घटना कुछ हद तक स्वाभाविक भी थी। कोई पति अपनी पत्नी को परपुरुष के साथ खुलेपन के स्तर पर देखेगा तो बर्दास्त नहीं कर सकेगा। कुन्दन ने कामिनी को यह भी कहा - ’’जब रंगरेलियां मनाने के लिए तुझे पार्टनर था ही तो फिर मुझे क्यों बलि का बकरा बनाया। पूंजीपति मर्द के साथ तुम्हारे दिन तो खुशी-खुशी गुजर ही जाते। शादी का ड्रामा तुमने क्यों किया कामिनी ?"
इस पर कामिनी चिंघार उठी थी-"यही तो सोचा होता कि जब मैं पुरुष सुख पा ही रही थी तो शादी क्यों की ? पहले पुरुष के रुप में मेरी जिन्दगी में आये कमलेश बाबू ने शादी की इजाजत कैसे दे दी ? सच्चाई यह है कि उनका साथ तो कार्य बोझ की थकान दूर करने व हँसने बोलने तक ही है, देह भोगने के लिए नहीं। जहाँ तक संयम की बात है तो वे ऋषि-मुनियों की तरह साथ रहकर भी दूर रहे हैं। हाँ, यह मैं अवश्य कह सकती हूँ कि जिस तरह का उन्मुक्त प्रेम बाॅस और मेरे बीच है ,उनकी कामेच्छा को मैं क्षण भर में पूरी कर देती। पर ऐसी न तो नौबत आयी न तो भूख जगी। बस अब निर्णय तुझे करना है। शादी को तोड़ना है या मजबूत बनाना है।’’
कामिनी के ऐसे सख्त निर्णय पर मैंने दोनों को समझाया और कुन्दन से कहा-" औरत का रिश्ता पुरुष से सिर्फ पत्नी या रखैल का नहीं होता। वह माँ, बहन, बेटी भी होती है।’’
थोड़ी देर दोनों गुमसुम रहे तब कमलेश ने चुप्पी तोड़ी । रजनी, मेरे मन में जो विचार मंथन चल रहा है, उसका आशय यह है कि हम दोनों को अपना मार्ग बदलना ही श्रेयस्कर होगा।
इस बीच बातचीत के दौरान ही रजनी को नींद आने लगी थी। इसलिए ’’एक्सक्यूज मी’’ कहकर सोने चली गयी। कमलेश भी पीछे-पीछे बेडरुम में सोने आ गया।पर कमलेश की आंखों में नींद नहीं थी। वह सोच रहा था, रजनी और मेरी व्यथा लगभग एक समान है। दोनों अपने-अपने दोस्तों के ’’जीवन साथियों’’ से अपमानित हुए हैं।
अगली सुबह पति-पत्नी लाॅन में बैठे बातें कर रहे थे। रजनी ने शुरुआत की - ’’कमलेश, पति-पत्नी का रिश्ता सात फेरों से नहीं विश्वास और समर्पण पर टिका रहता है। इस बात से सहमत हो कि नहीं ?’’
​’’बिल्कुल। हंड्रेड परसेंट।’’ शादी सामाजिक समझौता है जिसमें स्त्री-पुरुष को साथ-साथ जीने की स्वीकृति मिलती है। यौन सुख की तृप्ति के साथ सन्तानोत्पत्ति का मार्ग खुलता है। सिंदूर और सात फेरे इसकी निशानी हैं। इससे इतर जीवन जीने की स्वीकृति समाज नहीं देती। खासकर खुले यौन संबंध को इसी कारण अनैतिक माना जाता है। अगर शादी का प्रचलन नहीं होता तो यौन उत्पीड़न अपने विकृत रुप में होता। रिश्तों का सम्मान नहीं होता। इसलिए शादी ही यौन विकृतियों से बचाव का समाधान है। हाँ, अब एक नया अध्याय भी खुलने लगा है। आपसी समझौते से दो गैर स्त्री-पुरुष एक छत के नीचे लिवींग इन रिलेशन बनाकर रहने लगे हैं। हालांकि जबतक दोनों संयमित रहते हैं, दोस्ती चलती है। जरा सी डगमगायी कि सबकुछ ध्वस्त हो जाता है। अब तो उच्चतम न्यायालय ने आपसी सहमति से विवाहेत्तर संबंधों को जायज ठहरा दिया है। पर सामाजिक और नैतिक नहीं माना है।
​हाँ, बस यही बात तो मैं कहना चाह रही थी। हमदोनों की शादी के लगभग पन्द्रह वर्ष से अधिक बीत गये हैं। हमारे बीच दामपत्य रिश्तों की नींव इतनी पक्की है कि मामूली थपेड़े उसे हिला भी नहीं सकते। हमने शरीर को जी भरकर आधुनिक अंदाज में भोगा है। रात-रात भर लिपटे रहें हैं एक-दूसरे की बाहों में। अब यौन संबंधी आर्कषण, हमें किसी की ओर खींच नहीं सकता। हमारे यौन आकर्षण में स्वाभाविक तुष्टि आ गयी है, फलस्वरुप यौन स्थिरता उत्पन्न हो गयी है। इसे ’’सैक्सुअल अनडिजायरनेस’’ कह सकते हैं। इसलिए घृणित शारीरिक इच्छाएं व विकृतियां अपने मोहजाल में हमें बांध नहीं सकती। याद है तुम्हारी आहट की प्रतीक्षा में मैं घंटों तरपती रहती थी। पर अब तो वैसा महसूस नहीं होता। शादी के पंद्रह-बीस वर्षों के अन्तराल में शारीरिक संबंधों में शिथिलता आ ही जाती है। अब हम दोनों भी उसी दौर से गुजर रहें है। हाँ, इसी दौर में कइयों का मन भटकता है। उसके आर्कषण का केन्द्र अपना बिन्दू बदल लेता है जिसकी तलाश विवाहेत्तर संबंध के लिए शुरु हो जाती है। परन्तु, समाज ऐसी तलाश को भटकाव मानता है। अनैतिक कर्म मानता है। स्त्री-पुरुष विवाहेत्तर संबंधों को समाज पतित कहता है। बावजूद इसके यह लाइफ स्टाइल खूब गति पकड़ लिया है।
​कमलेश ने सहमति दी - ’’तुम्हारा जीवन दर्शन मैं समझ रहा हूँ। हर स्त्री-पुरुष का मन इस कालखण्ड में आकर भटकने लगता है। कुछ दिन पहले किसी पत्रिका के एक अंक में मैंने संवाददाताओं की एक सच्ची रिपोर्ट पढ़कर दंग रह गया था। अब विवाहित जोड़े गुपचुप तौर पर न्यूज पेपर और अनेक पेज थ्री - टेबलाइड पत्रिकाओं में कूट विज्ञापन द्वारा अन्य विवाहित जोड़ों को आमंत्रित करते हैं, एक साथ एक ही कमरे में सेक्सुअल इन्ज्वायमेंट के लिए। उस पत्रिका की एक युवती और एक युवक संवाददाता नकली विवाहित जोड़ा बनकर विज्ञापन के आधार पर निर्धारित स्थान पर पहुंचे तो उन्हें ’’सेक्सुअल एक्सचेंज’’ के लिए प्रेरित करते दूसरे विवाहित जोड़े का बेझिझक आमंत्रण मिला। वे दोनों अपनी रिपोर्ट की सामग्री संग्रह तक वार्तालाप करते रहे। पर जब उन्हें यौन संबंध बनाने के लिए बाध्य किया जाने लगा तो कन्नी काट गये। कमलेश ने संक्षेप में रजनी को बताया। यह जीवन शैली भी इसी दौर का मानसिक दिवालियापन है। स्त्री-पुरुष यौन तुष्टि के लिए गैर स्त्री-पुरुष को साधन बनाते हैं।’’
​कमलेश अब अपनी बातों पर आया -’’मैं तो पहले से सतर्क था। हमारे नजरिये में दोस्ती के बीच यौन विकृति का कोई स्थान नहीं। हमने जिंदगी को नया आयाम देने, एक नई दिशा देने, उत्साह का संचार करने के लिए एक प्रगतिशील फैसला लिया था। हमारी सोच में तीसरे स्त्री-पुरुष का अस्तित्व तो था, पर वह सेक्स पार्टनर का नहीं फ्रेंड का था। मित्र और पति-पत्नी के बीच कोई परदा नहीं था। इससे जीवन में एक नयापन आया। हमारे मित्र हमदोनों की जानकारी में थे। इस निर्णय को अपने जीवन में उतार कर हमने सकारात्मक परिणाम भी पाये। जबसे तूने शेखर की दोस्ती कबूल की काफी खुश थी। आखिर पति का कर्तव्य पत्नी को खुश रखना भी होता है। प्रसन्न रखने वाले तौर-तरीके उपलब्ध कराना भी होता है। तुम्हारे आनन्द का साथी शेखर बना।
​वास्तव में शेखर और कामिनी मित्रता और दामपत्य के रिश्तों को सच्चाई से निभाते आगे बढ़ रहे थे।
​परन्तु शेखर की शादी सुषमा से और कामिनी की शादी कुन्दन से हो जाने के बाद मित्रता की राह कठिन हो गयी।
​हालांकि सुषमा ने पति शेखर का एवं कुंदन ने पत्नी कामिनी का उनके आरोप पर खुलकर विरोध कर दिया। पर इस परिस्थिति में हम अपनी मित्रता पर अडिग रहे तो शादी जैसा पवित्र रिश्ता टूट जाएगा। इसलिए उन दोनों का विवाह बंधन अटूट रहे इस पर सोचना जरुरी है।
​इसी दोराहे पर खड़े कमलेश और रजनी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हमने तो दामपत्य सुख और मित्रता सुख दोनों को पा लिया है, परन्तु नये-नये दो जोड़े जिनके बीच अभी वैसी समझ (अंडरस्टेडिंग) नहीं बनी है कि वे गैर स्त्री-पुरुष मित्रता को सही ठहरा सकें तो फिर दोनों जोड़ों को खुशी रखने का सद्कार्य करना चाहिये। हमें दोनों के बीच उत्पन्न हुई शक की खाई को पाटने में मदद करनी चाहिये। कमलेश ने आगे कहा - ’’विवाह का महत्व इसलिए अधिक है क्यूँकि इसी के साथ वंश परम्परा को भी बढ़ाया जा सकता है। अभी नवविवाहितों की सोच हमारी सोच की परिधि से काफी छोटी है। हालांकि शेखर और कामिनी हमलोगों की संगति में अपनी अपनी सोच का दायरा विस्तृत कर लिया है परन्तु , शेखर की पत्नी सुषमा एवं कामिनी के पति कुंदन की सोच अभी उस स्तर का नहीं है। इसलिए आज हमदोनों पुनः एक निर्णय लेते हैं कि उन्हें समझा देंगे कि अब मित्रता नहीं पति-पत्नी का रिश्ता निभाना जरुरी है। समाज के लिए, राष्ट्र के लिए और वंश वृद्धि के लिए।तुम दोनों का दामपत्य जीवन निष्कलंक रहे इसके लिए अब मेरी मित्रता का आज से अंत हुआ।
•मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह