Alita:Battle Angel in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | अलिटा: बेटल एंजेल

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अलिटा: बेटल एंजेल


‘अलिटा: बेटल एंजेल’ में ज्यादा दिलचस्पी जागने का सबसे बडा कारण है ईस फिल्म के निर्माता जेम्स केमेरुन, जिन्होंने ईससे पहले ‘टाइटेनिक’ और ‘अवतार’ जैसी माइलस्टोन फिल्में बनाई थीं. न सिर्फ जेम्सने ‘अलिटा: बेटल एंजेल’ का निर्माण किया है बल्की ईस फिल्म की पटकथा भी उन्होंने (ए. कालोग्रिडिस के साथ मिलकर) लिखी है. जाहिर सी बात है की ‘अलिटा: बेटल एंजेल’ से अपेक्षाएं बहोत ज्यादा होगी. तो चलिए जानते है की कैसी है ये फिल्म…
फिल्म की कहानी शुरु होती है सन 2563 में. महायुद्ध के बाद पृथ्वी पर मानव-सभ्यता तबाह हो चुकी है. केवल कुछ हजार मनुष्य बचे है जो आयरन सिटी नाम के सडे-गले शहेर में रहेते है. ये एक ऐसा शहेर है जिसमें कानून व्यवस्था नामकी कोई चीज नहीं है. मानव-अंगो का व्यापार होता है, और जिंदगी का कोई भरोसा नहीं. कटे-बचे मानव अंगो से मशीनें जोडकर सायबोर्ग बना दिए जाते है. तकरीबन सारा शहेर कबाडखाना जैसा है. वहीं हवा में उपर, आसमान में लटकता एक टेक्नोलिकल करिश्मा है ‘ज़लेम’, एक ऐसा शहेर जिसमें सभी प्रकार की सुख-सुविधा मौजुद है, जहां पर जीवन का स्तर बहुत ऊंचा है. आयरन सिटी में रहनेवाला हर इन्सान ‘ज़लेम’ जाना चाहता है, पर ये ईतना आसान नहीं है, क्यूंकी…
‘ज़लेम’ से धरती पर फेंके जानेवाले कचरे के ढेर में एक तीनसो साल पुराना सायबोर्ग मिलता है वैज्ञानी डायसन इडो को. इस फीमेल सायबर्ग के अंदर होता है मनुष्य का दिमाग और असीम उर्जा देनेवाला एक दिल. इडो उसका इलाज कर ठीक कर देता है और उसे नाम देता है ‘अलिटा’. 
अलिटा को अपना अतीत याद नहीं है. उसकी मुलाकात एक टीनएज लड़के ह्यूगो से होती है जिसका सपना स्काय सिटी ज़लेम में जाना है. आधी रोबोट और आधी मनुष्य अलिटा को धीरेधीरे अपना अतीत याद आने लगता है. उसे समझ में आता है कि उसकी जिंदगी का असली मकसद क्या है.
‘अलिटा: बेटल एंजेल’ का निर्देशन किया है रॉबर्ट रॉड्रिग्ज ने, और ये साई-फाई फिल्म आधारित है जापान के मशहूर सर्जक युकितो किशिरो द्वारा बनाए गए मैग्ना सीरिज के किरदार ‘अलिटा’ पर. मशीनों में जागती मानवीय संवेदनाओं को निर्देशक ने अच्छे से दिखाया है, लेकिन अलिटा और ह्यूगो के बीच की प्रेमकहानी को कुछ ज्यादा ही खींचा गया है. ईसी बजह से कहीं कहीं पर फिल्म में टिपिकल फिल्मी फॉर्मूले जबरन ठूंसे गये हो ऐसा लगता है. उसी तरह अलिटा और उसके संरक्षक बने वैज्ञानी डायसन इडो के बीच की केमेस्ट्री भी कुछ खास असर नहीं ला पाई. हालांकी क्रिस्टोफ वाल्ट्ज ने इडो के पात्र में उमदा काम किया है. उसी प्रकार कीन जॉनसन, जेनिफर कॉनेली, मेहरशला अली और बाकी सभी कलाकारोंने भी अपने अपने किरदारों को अच्छे से निभाया है.
लेकिन फिल्म का सबसे यादगार पात्र है अफकोर्स ‘अलिटा’ का. मोशन कैप्चर तकनीक से गढे गए ईस किरदार में रोजा सालाजार ने जान डाल दी है. न सिर्फ उसका लूक बेहतरीन है, बलकी उसने एक्टिंग भी दमदार की है. 16-17 साल की पतली सी टिनेज लडकी… उसका जूनून… उसकी मासूमियत… उसकी ताकत… उसका भोलापन… उसकी संवेदनाएं… और खास कर उसकी बडी बडी आंखे… ‘अलिटा’ का पात्र इतना प्रभावशाली है की दर्शक उसके प्यार में पड जाते है. छुईमुई सी दिखनेवाली अलिटा जब एक्शन करने पे आती है तो माशाल्लाह… क्या खूब एक्शन करती है. फिल्म की हाइलाइट इसके एक्शन सीन ही है. स्पेशियल इफेक्ट्स, थ्री-डी इफेक्ट्स, सिनेमेटोग्राफी, बेकग्राउन्ड स्कॉर… सभी लाजवाब है. मोटरबोल रेस के खतरनाक दृश्य बहोत ही बहेतरिन ढंग से फिल्माए गए है. आयरन सिटी के सेट्स भी काफी प्रभावक है. रोबोट और इंसान के मिले-जुले रूप वाले अजीबोगरीब कैरेक्टर्स भी बढिया है. 
फिर भी कहेना पडेगा की फिल्म में एसा कुछ भी नहीं है जो हमने ईससे पहेले सिनेपर्दे पर न देखा हो. अपने रहस्यमय अस्तित्व से झूझता नायक/नायिका… अच्छे-बुरे के बीच की जंग… अमीर-गरीब असमानताएं… टीनएज रोमांस… महायुद्द… बरबादी… बहेतर भविष्य की तलाश… मोटरबोल का एक्शन… सभी कुछ जाना-पहेचाना, देखा-सुना सा लगता है. लेकिन इसके बावजूद भी ‘अलिटा: बेटल एंजेल’ देखनेलायक बनी है और कारण है ‘एलिटा’ का किरदार. 
फिल्म का अंत अधूरा है और ‘ज़लेम पर जंग’ जैसा कुछ सिक्वल में दिखाया जाएगा. साथ ही साथ अलिटा के अतीत के बारे में भी ज्यादा जानने को मिलेगा और तीनसो साल पूर्व हुए महायुद्ध के कारण भी उजागर होंगे. 
हालांकी ये फिल्म कहीं भी बोजिल नहीं होती, लेकिन स्क्रिप्ट अगर थोडी और अच्छी होतीं तो ये फिल्म एक अलग ही उंचाई पर पहुंच सकती थी. कुछ खामियों के बाद भी इस मनोरंजक एक्शन-एड्वेन्चर थ्रिलर को में दूंगा 5 में से 3.5 स्टार्स.