bechare purusho ka dard koun smjhe ? in Hindi Magazine by Mangi books and stories PDF | बेचारे पुरुषों का दर्द कौन समझे ?

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बेचारे पुरुषों का दर्द कौन समझे ?

मैं जैसे ही ऑफिस में लंच के लिए बैठा तो फोन रनकने लगा ! देखा तो, " बॉस का कॉल "। अरे, उसे कॉल क्यो कहु ? आफ़त की पुड़िया कहु तो ही बेहतर होगा । सुबह में कॉलेज और घर की भागमदौड़ी के बिच आज फिर ऑफिस में लेट हो गया । चलो लेट हो गया, कोई बात नही पर ऊपरवाला भी न, " मेरे साथ ही खेल खेलता है "। रोज मैं कॉलेज का एक लेक्चर बंक करके ऑफिस जल्दी आता हु तो बॉस लेट आता है और आज जब मैं लेट आया तो, " देखो बॉस जल्दी आ गया "। और मैं जल्दी-जल्दी यह सोचकर सीधा अपनी केबिन में धुस गया की बॉस अपने काम के साथ-साथ घर की भी भड़ास कही मुझ पर नही निकाल दे । मै जैसे ही ऑफिस में अपनी केबिन में घुसा तभी ऑफिस के चपरासी के साथ मेरा बुलावा आया, " सर, आपको बड़े बॉस अपनी पर्सनल केबिन में बुला रहे है " । देखा, हुआ भी यही जिसका डर था । अब क्या करु ? क्या बहाना बनाऊ ? चलो जो होना होगा देख लेगे, सोचते-सोचते मैं सीधा बॉस की पर्सनल केबिन में जा पहुँचा । जाते ही बॉस ने सीधा प्रश्न करते ब्लेम थोप दिया ? रोज लेट ही आते होंगे इसलिए ही तुम्हारे सभी काम पेंडिग चलते है । तुम युवा लोग अपनी ज़िम्मेदारी सही ढंग से निभातें ही नही हो । मैं अपना पक्ष रखता उससे पहले ही बॉस ने अपना फ़रमान मुझे सुना दिया ? जाओ कल से ऑफिस मत आना । आज का दिन भरकर अपना हिसाब लेकर जाना ? उदास मन से सभी काम कर रहा था और साथ में तरह-तरहा के विचार भी आ रहे थे । घर पर क्या कहूंगा ? अब क्या होगा ? ऑफिस में सभी क्या सोच रहे होंगे ? मानो मुझ पर क़हर टूटकर गिर गया हो । इतने में ऑफिस का लंच टाइम भी हो गया । लंच कहाँ अच्छा लगता फिर भी लंच लेने के लिए बैठा और फोन रनक उठा । अरे बॉस का कॉल ? मैंने जैसे ही कॉल रिसिव किया, सांमने से आवाज आई ? हैल्लो माँगी ..मैंने उनके स्वर में "हा" की माला पिलो दी । जी, बोलिये.. सॉरी..आज सुबह तुम्हे बहुत कुछ कह दिया । तुम तो जानते ही हो न..इन बीबीयों के मचले ? तुम कही नही जाओगे ? 

मैंने फिर "हा" बोल दिया और फ़ोन शांति नाम की चैन के साथ रख दिया और अपना लंच करने लगा ।

फिर से कॉल रनकने लगा, " देखा तो गर्लफ्रेंड का कॉल । देखकर समझ गया की जरूर मुह फुलाकर बैठी होगी ? आज कॉलेज में उससे मिलकर जो नही निकला ऊपर से उसका बर्थड़े । अब फिर से क्या करु ? क्या बहाना बनाऊ ? सोचते-सोचते मैंने कॉल कट कर दिया और न. को ब्लॉक लिस्ट में ऐड कर दिया । 

जब शाम को थका-हारा ऑफिस से घर गया तो पापा और मम्मी के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी हो रही थी । जैसे-तैसे बात को रफा-दफा कराते हुए खाना खाया और फिर रोज की तरह दिन का हिसाब लगाने किसी एक विषय पर डायरी लिखने बैठ गया । क्या लिखू ? किस विषय पर लिखू ? इतने में पापाजी की सूरत देखी ? अकेले, उदास गुमसुम बैठे थे । पापाजी की सूरत देखकर सोचने लगा, " क्या शादी के बाद मेरा भी यही हाल होगा । सुबह ऑफिस में बॉस भी अपनी बीबी से परेशान होकर धर की भड़ास भी मुझपर निकाल दी थी ।

" बेचारे पुरुष " कौन कहता है ? मर्द को दर्द नही होता है ? बच्चन साहब, आप गलत हो ।

मर्द को भी दर्द होता है पर वो किसी को कह नही सकता - बता नही सकता, सिर्फ अंदर ही अंदर सहता रहता है ।

चलो आज का विषय भी मिल गया " पुरुषों का दर्द कौन समझे " । मैंने अपने विषय की शुरुवात बहुत ही चर्चित वाक्यों से करनी चाही ।

भगवान की ऐसी रचना जो बचपन से ही त्याग और समझौता करना सीखता है। वह अपने चॉकलेटस का त्याग करता है बहन के लिये । वह अपने सपनो का त्याग कर माता- पिता की खुशी के लिये उनके अनुसार कैरियर चुनता है । वह अपनी पूरी पॉकेट मनी गर्लफ़्रेंड के लिये गिफ़्ट खरीदने में लगाता है। वह अपनी पूरी जवानी बीवी-बच्चों के लिये कमाने में लगाता है। वह अपना भविष्य बनाने के लिये लोन लेता है और बाकी की ज़िंदगी उस लोन को चुकाने में लगाता है। इन सबके बावजुद वह पूरी ज़िंदगी पत्नी, माँ और बॉस से डांट सुनने में लगाता है। पूरी ज़िंदगी पत्नी, माँ, बॉस और सास उस पर कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं। उसकी पूरी ज़िंदगी दुसरो के लिये ही बीतती है और बेचारा पुरुष बीवी पर हाथ उठाये तो " बेशर्म "। बीवी से मार खाये तो " बुजदिल "। बीवी को किसी और के साथ देखकर कुछ कहे तो " शक्की "। चुप रहे तो " डरपोक "। घर से बाहर रहे तो " आवारा "।  घर में रहे तो " नाकारा "  बच्चों को डांटे तो " ज़ालिम "।  ना डांटे तो " लापरवाह "।  बीवी को नौकरी करने से रोके तो " शक्की "।  बीवी को नौकरी करने दे तो बिवी की " कमाई खाने वाला "। माँ की माने तो " चम्मचा "।  बीवी की माने तो " जोरु का गुलाम "। पूरी ज़िंदगी समझौता, त्याग और संघर्ष में बिताने के बावजुद वह अपने लिये कुछ नहीं चाहता। इसलिये पुरुष की हमेशा इज़्ज़त करें । पुरुष ,बेटा, भाई, बॉय फ़्रैंड, पति, दामाद, पिता हो सकता है, जिसका जीवन हमेशा मुश्किलों से भरा हुआ है ।

एक लड़के की शादी हो गई, " कल का लड़का आज पति बन गया । कल तक मौज करता, हर एक पर कमेंट कसने वाला लड़का, अब किसी का रखवाला बन गया । कल तक अंडरवियर पर पूरे घर में घूमने वाला लड़का, आज नाईट सूट पहन कर बेडरूम में जाना सीख गया । रोज मजे से पैसे खर्च करने वाला लड़का आज साग-सब्जी का भाव करना सीख गया । कल तक फुल स्पीड में बाइक चलाने वाला लड़का, आज बाइक के पीछे बैठाकर हौले हौले चलाना सीख गया । कल तक तो तीन टाईम फुल खाना खाने वाला लड़का, आज अपने ही घर में खाना बनाने में मदद करना सीख गया । हमेशा जिद करने वाला लड़का, आज किसी की जिदों को पूरा करना सीख गया । कल तक तो मम्मी से काम करवाता लड़का, आज बीबी का काम करना सीख गया । कल तक तो भाई-बहन के साथ झगड़ा करता लड़का, आज साली-सालों से प्यार से बोलना और रहना सीख गया । पिता की आँख का पानी, बीबी के ग्लास का पानी बन गया, फिर भी लोग कहते हैं कि बेटी परायी हो गयी पर वास्तव में बेटा पराया होता है। यह बलिदान केवल लड़का ही कर सकता है ।

 जो अपने ही घर में रहकर पराया हो जाता है इसलिए हमेशा बेचारे लड़को की झोली दया और प्यार से भरी रखना ।

 नारी के चरित्र को समझना बहुत मुश्किल है । वो कभी ममता से भरी है तो कभी विकराल, वो कभी सावन का महीना है, तो कभी शरीर को जला देने वाली धूप की तरह । नारी चरित्र को समझना बिल्कुल ऐसा है, जैसा किसी खजूर के पेड़ से छाया की उम्मीद करना।

नारी जो काम सबसे अच्छा कर सकती है, वो है – अपनी बात मनवाना । चाहे वो तरीका कैकेयी का हो या सावित्री का हो या आज की देवियो का । जब तक उनकी बात पूर्ण ना हो जाए वो किसी यमदूत की तरह सर पर सवार रहती है ।

पुरुष हमेशा गुलाम रहता है, कभी माँ का, कभी बीवी का, तो कभी प्रेमिका का । माँ अपने बेटे को दूध वास्ता देकर बेटे को रोकती है, तो पत्नी 7 फेरो का और प्रेमिका सच्चे प्यार का । ज़िन्दगी भर पुरुष इन्ही वास्तो से झुझता रहता है  ।

पुरुष हमेशा अपनी सारी कमाई एक औरत के हाथ में ही रखता है ।

अगर नारी  (पत्नी) अनपढ़ भी हो तो कोई फर्क नहीं पढता, मगर पुरुष (पति) हमेशा पढ़ा लिखा होना चहिये, वरना वो धरती पे बोझ, अन्न का दुश्मन आदि आदि न जाने क्या-क्या बेचारे पुरुष को सुनना पडता है ।

बाल्यावस्था बहुत अच्छी होती है, युवावस्था मौज मस्ती की परन्तु पतिअवस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे पति की वो हालत होती है जो बहुत दयनीय और सोचनीय होती है ।

देवो ने भी नारी रूप के आगे घुटने टेके है । नारी हमेशा पुरुषो को सताती, रुलाती ही आयी है ।

अभी तो मैं इस खुशी ( गम कहकर देवीयो से पंगा नही ले सकता ) से वंचित हु, मगर कुछ सालो बाद मेरा भी यही हाल होने वाला है ! वैसे ऐसा कहु तो चले की मेरा भी हलाल होने का कच्चा लाइसेंस ( सगाई ) आ गया है ।

अब आप खुद ही सोचो इस समाज में बेचारा कौन ? नारी या पुरुष.."बेचारा पुरुष" ।


मेरा विषय " बेचारा पुरुष " सिर्फ पत्नी, साँस, बॉस से ही पीड़ित नही है । गवर्मेंट भी " बेचारो " के ऊपर जुल्म ठाहने से पीछे नही है । बेचारा पुरुष एक तो अपनी पूरी कमाई महीने के अंत में अपनी पत्नी के हाथो में थमा देता है चाहे उसके जेब में पैसे हो या न हो । ऊपर से यह सरकार किसी भी चीज या क्षेत्र में हम बेचारो को राहत नही देती है, हम बेचारे इसलिए क्योकि कुछ उम्र बाद में भी उन बेचारो में शामिल होने वाला हु । 

मैं जब बाल्यावस्था में था, तब मुझे एक बात सबसे ज्यादा खलती थी । लड़के और लड़कियों की फीस का अंतर । वो अंतर के कारण स्कूल में भी मेरा लड़कियों और प्रिंसिपल से झगड़ा हो जाता था । पर बुझे वक्त के साथ-साथ सब समझ में आ गया की हम " मर्द " जात है जिनके साथ भेद-भाव भी होगा , अन्याय के सांमने लड़ना भी होगा, कही टूटकर बिखरना भी होगा फिर भी हर हाल में खुश रहना होगा ।

वो बस " दो मिनट " कहकर अंदर कमरे में तैयार होने चला गया, फिर वो ही पुराने कपड़े पहनकर अपने बच्चों को नये कपड़ो में खुश देख वो भी खुश होकर बाहर आ गया और उधर दूसरे कमरे में उसकी पत्नी बस " पाँच मिनट " का कहकर पूरा " आधा क्लाक " तैयार होने में लगा दिया और जब बाहर आई तो अपने पति की ओर देखकर बोली, " तुम कितने अच्छे लग रहे हो और तुम्हारे कपड़े भी एक दम मस्त और मैं बेचारी। तब उसके पति ने जो जवाब दिया वो वाकई में पूरी पृथ्वी पर पुरुष जातियों के लिए गर्व की बात थी, " हम पुरुषों का श्रृंगार तो स्वयम प्रकृति ने किया है..

स्त्रीया कांच का टुकड़ा है, जो मेकअप की रौशनी पड़ने पर ही चमकती है किन्तु पुरुष हीरा है जो अँधेरे में भी चमकता है और उसे मेकअप की कोई आवश्यकता नहीं होती।

खूबसूरत मोर होता है मोरनी नहीं, मोर रंग बिरंगा और हरे नीले रंग से सुशोभित जबकि मोरनी काली सफ़ेद, मोर के पंख होते है इसीलिए उन्हें मोरपंख कहते है । मोरनी के पंख नहीं होते है ।

दांत हाथी के होते है, हथिनी के नहीं। हांथी के दांत बेशकीमती होते है। नर हाथी मादा हाथी के मुकाबले बहुत खूबसूरत होता है।

कस्तूरी नर हिरन में पायी जाती है। मादा हिरन में नहीं। नर हिरन मादा हिरन के मुकाबले बहुत सुन्दर होता है ।

मणि नाग के पास होती है, नागिन के पास नहीं । नागिन ऐसे नागो की दीवानी होती है जिनके पास मणि होती है ।

रत्न महासागर में पाये जाते है, नदियो में नहीं और अंत में नदियो को उसी महासागर में गिरना पड़ता है।

वैसे ही मनुष्यो में बुद्धि विवेक और बल मर्दों के पास होता है औरतो के पास नहीं ।

संसार की बेशकीमती तत्व इस प्रकृति ने पुरुषो को सौंपे, प्रकृति ने पुरुष के साथ अन्याय नहीं किया ।

 9 महीने स्त्री के गर्भ में रहने के बावजूद भी औलाद का चेहरा स्वाभाव पिता की तरह होना, ये संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है, क्योंकि पुरुष का श्रृंगार प्रकृति ने करके भेजा है,उसे श्रृंगार की आवश्यकता नही ।

 

गवर्मेंट बसों में भी यही हाल है । औरतो का किराया कम और पुरषो का ज्यादा ! भला, यह कोई बात हुही ।

टैक्स में भी यही हाल ! पर उन भेद-भावो के पीछे कही न कही पुरुष लोग ही तो जिम्मेदार है क्योकि गवर्मेंट में नियम भी तो बेचारे पुरुषो के कारण ही पास हुए है ।


अच्छा सब बाते छोड़ो, कभी एक बात गौर की है ।पुरुष हमेशा पत्नियों से ही इतना क्यो परेशान रहता है ? खैर, इतना मत सोचो !


चलो  मैं आपको बताता हु, " महिलाओ का अर्थ शब्द " कन्या " होता है और " कन्या " प राशि वाले लोगो की होती है । " प " मतलब पुत्र, पुरुष, पति, मतलब " कन्या " राशि । और पूरा विश्व जानता है की " कन्या " की दुश्मन " कन्या " ही होती है मतलब " नारी " की दुश्मन खुद " नारी " जाति ही होती है ।

खैर, अब क्या रोना ! जब कर्मो में " बेचारा पुरुष " होकर ही अन्याय सहना लिखा हो । 


पुरुष करता दिनभर कितना पुरषार्थ !

सहता हर दर्द को बनकर अटल पर्वत,

खुशी हो या गम हर क्षण रहता तैयार !!

फिर भी सब अंगुली उठाते, " हाय रे पुरुष " !!


#M@n6i