बचपन में एक बार दबा था By IMRudra
Author – Rudra
Presented by – IMRudra – The Life Coach
Content Writer – Rudra
About The Author –
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बचपन में एक बार दबा था,
दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती, आँखे अब भी ॥ - २
पहली सावन कि पहली बारिश,
रोये थे हम इतना,
अब भी बारिश कि रातों में,
रह जाती हैं आँख खुली,
बचपन में एक बार दबा था,
दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती है आँखे अब भी ॥
और फिर ..
उसने पूछा, कैसे हो तुम,
हमने कहा अकेले हैं,
बचपन में एक बार छोड़ा था,
उसने मेरा हाथ कहीं ॥ - २
बचपन में एक बार दबा था,
दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती हैं आँखें अब भी - २
डर लगता है अब भी मुझको,
इन काली अँधेरी रातों से,
बचपन में ओझल हो जाते थे,
जब रातों को अपने लोग सभी ॥
बचपन में एक बार दबा था,
दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती हैं आँखें अब भी - २
डर लगता है उन लोगों से,
जो दिखते थे अपने जैसे,
मेरे सुन्दर मन और तन को,
अपने गंदे मन से छूते थे कभी कभी,
बचपन में एक बार दबा था,
दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती है आंखें अब भी ॥
जब देखेगी दर्द में मुझको,
क्या गुजरेगी माँ पर मेरे,
सोच - सोचकर सुख गए हैं,
इन आँखों के आंसू भी - २
बचपन में एक बार था दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती है आँखें अब भी - २
अब तो मुझको जी लेने दो,
मेने भी तुझको मान लिया है,
सूना है तुम खुदगर्ज बहुत हो,
छीन लेते हो खुशियां सबकी - २
बचपन में एक बार दबा था,
दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती हैं आँखें अब भी ॥ - २
बचपन कि कुछ ऐसी यादें,
छुपा के जो हमने रखी थी,
सुना था तुम दिलवाले हो,
फिर छीन लिए तुमने वो भी,
बचपन में एक बार दबा था दरवाजे में हाथ कभी,
आहट सुनकर दरवाजे कि,
नम हो जाती हैं आँखें अब भी ॥ - २
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