लेखक कौन हो सकता है या लेखक कौन बन सकता है? ऐसे सवाल अक्सर हर लेखक और पाठक के मन मे जरूर उभरता है।
लेकिन इससे पहले यह जानना शायद ज्यादा जरूरी है कि लेखक कौन है? और इसका जबाब है
- “लेखक एक शार्पित इन्सान है”
इस एक पंक्ति में शायद आपके सभी सवालों के जबाब मिल गए होंगे। लेखक एक ऐसा इंसान है जो शार्पित है क्योंकि वह हमेशा कुछ नया लिखने के लिए बेचैन रहता है और उसकी यह बेचैनी ही उसे लेखन से जोड़ती है।
अक्सर मुझसे मेरे पाठक पूछते है कि क्या लेखन के लिए साहित्यिक जीवन होना जरूरी है? और मेरा हमेशा इसपर एक ही जबाब होता है कि – “नही क्योंकि कई ऐसे महान लेखक हुए है जिनके पहले से कोई साहित्यिक जीवन से जुड़ाव नही था। ना ही उनके पिता और ना ही उनके दादा साहित्य से जुड़े हुए थे लेकिन फिर ही वह एक सफल लेखक है और यह मेरे साथ भी हुआ ना ही मेरे परिवार किसी साहित्य जीवन से जुड़ा हुआ था और ना ही मै।
लेखक हर दौर से गुजरता है चांहे फिर वो गरीबी हो, या समाज दुवारा बहिष्कार हो उसका या उसकी आलोचना। लेकिन इसी बीच एक बड़ा तबका एक लेखक को प्रेम भी देता है और सहयोग भी।
समाज और लेखक का रिश्ता ज्यादा अच्छा नही होता है जैसा कि सहादत हसन मंटो कहते है कि
“समाज अगर मेरा लिखा हुआ बर्दाश्त नही कर सकता तो इसका मतलब यह है कि यह समाज ही बर्दाश्त करने लायक नही है। मै तो एक आईना हु जिसमे समाज अपने आप को देख सके”
मेरे लिए तो लेखक ही वही है जो पहले दौर से यानी कि बहरहाल से ही समाज द्वरा बहिष्कृत कर दिया जाता है।
मै एक विवादित और रहस्यमयी लेखक रहा हूँ लेकिन मातृभारती पर कोई कहानी मेरी विवादित नही है क्योकि इसके दो कारण है पहला मातृभारती ने मेरी कोई भी विवादित उपन्यास को स्वीकार ही नही किया जिसके चलते मुझे मजबूरन वही कहानियां डालने पड़ती है मातृभारती पर जो एक अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चे को पसंद आये। दूसरा मै खुद भी नही चाहता कि मेरी विवादित लेखनी मातृभारती पर पहुंचे।
मै एक ऐसा लेखक हु जिसे की मौत लिखने में इतना मजा आता है जितना कि एक व्यक्ति के यंहा जब उसका वारिस पैदा होता है। मैने आधे से ज्यादा उपन्यास में सिर्फ ऐसी मौत या रहस्य के बारे में ही लिखा है जिसे आजतक में खुद नही समझ पाया हूँ। चांहे फिर डिटेक्टिव करुण नायर के सीजन हो या ब्लादिमिर एक शैतान है या कल्कि एक अर्धख़ूनी राजकुमार हो।
इसलिए लेखक एक पागल और सनकी जीव है जैसा कि शेरलॉक होम्स के लेखक कॉनन डोयल अपने आखिरी जीवन मे परियो और रहस्यमयी जीवो को देखने लगे थे। लोग भले ही ये सब कॉनन डोयल की बीमारी बताते है लेकिन मै इसे सच मानता हूं।
जब मैने पहली बार बुक्स क्लिनिक को अपना इंटरव्यू दिया था तब मैंने यह बात स्वीकारी थी कि मुझे भी मेरा किरदार डिटेक्टिव करुण नायर दिखता है। और आज भी मै इस पागलपन से जूझ रहा हूँ।
क्योकि –
“एक लेखक के अंदर अतृप्त आत्मा का वास होता है” जो की एक लेखक को अक्सर लिखने के लिए प्रेरित करती है और जब वह ऐसा नही कर पाता तो यही अतृप्त आत्मा उसे पागल बना देती है।
लेखक की अगर आप जीवनी पढे तो वह अक्सर सामाजिक न्याय के लिए लड़ता दिखयेगा जो कि सिर्फ समाज मे एक न्यायिक बदलाव के लिए जूझ रहा होता है।
जैसा कि जावेद अख्तर लिखते है
“ऊँची ऊंची इमारतो में मकान मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए”
कुछ लेखक की जीवनी अपनी आत्मा दुख से लड़ती नजर आती है तो कुछ की काफी खुश भी नजर आती है।
एक लेखक वैसे ही दुनिया को देखता है जैसा वह दुनिया की कल्पना करता है। मुझसे काफी लोग पूछते है कि हम लिखते तो अच्छा है लेकिन हमें नए नए विचार नही आते जिसपर हम लिख सके और इसपर मेरा जबाब सिर्फ इतना होता है कि जो ज्यादा सोता है वह इन्सान ज्यादा काल्पनिक होता है इसलिए अपनी नींद को बड़ा ले।
लेखक होने के लिए शब्दकोश का ज्ञान होना उतना ही जरूरी है जितना कि एक युद्ध मे लड़ने के लिए तलवार आज के समय लेखक हर कोई बन जाता है लेकिन वह फिर भी सफल नही हो पाता क्योकि उसके पास शब्दकोश का ज्ञान नही है।
मुझे लगता है इस लेख को पढ़ने के बाद ना सिर्फ आप मे बदलाव आएगा जबकि आप लिखने के लिए प्रेरित होंगे
मै अगले बार एक नए सवाल के साथ फिर से एक लेख लिखूंगा जो कि होगा सफलता क्या है?
“कृपया लिखने के लिए ना लिखे – लेखक पवन सिंह सिकरवार