Ammaji in Hindi Motivational Stories by Surya Rawat books and stories PDF | अम्माजी

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अम्माजी

✍By :- Surya Rawat 

             *"  अम्माजी  "*
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆

दोस्तों .... एक गाँव में धन संपदा से  गरीब एक स्त्री रहती थी । 
उससे कोई भी ठीक से बात नही करता था , लोग उसे  अनायस ही मनहूस मानने लगे थे , 
 पहले उसका पति मजदूर था कभी गाँव में लोगों के खेत जोतता तो कभी किसी मजदूरी पर से कुछ आमदनी हो जाती थी । 
किंतु एक रोज उसके पति की अचानक मृत्यु हो गई,   । 
अब अकेला  पेट पालना भी आसान न था , उसे पानी लेने भी दूर नहर पर जाना पड़ता क्योंकि वहाँ के लोग उसे गाँव के जलाशय से  पानी नही भरने देते । 
जबतक  उसका पति जीवित था तबतक ये था कि,  वह लोगों के खेत जोत कर कुछ कमा लाता लेकिन  उसके जाने के बाद सब कुछ ठीक न था । दूसरों के घर परिवार  देखकर  उसका मन हवा से बातें करने लगता । 

गाँव में किसी की शादी होती तो चहल-पहल रहती पर उसे कोई नही पूछता । सरपंच मुखिया और भी कई लोग उसके सामने ही पले बढे हैं , जब तक उम्र  ठीक थी तब वह दाई थी गाँव की बहुत औरतों को कष्ट से बाहर किया ।
किंतु खुद की कोई संतान न थी ।
पुरानी बातें याद कर के कई बार रो भी पड़ती पर उसके आँसू पोंछने वाला था ही कौन उस भरे गाँव में । धीरे-धीरे उम्र ढली ,  पति भी न रहा तो उसे कोई पूछने वाला भी न रहा । वह चाहती थी कि कोई उसके साथ बात करे , गाँव की पुरानी बातों को बताये ।
........ कुछ  औरतों वह अचानक  राह चलते मिल जाती तो , खाने वाली चीजें वृद्धा को दिखा-दिखा कर चटपट करके खाते , सब उसे चिढ़ाते ।


एक रोज उसने फैसला किया कि वह दूर शहर में जाकर कुछ बैठकर , कर सकने वाला काम ढूंढेगी और फिर शहर में भीड़ भाड़ इतनी रहती है कि , मन भी लगा रहेगा । यहाँ  गाँव का अकेलापन काटने को दौड़ता है । उसने अपनी पोटली उठाई और चली गई ।
बहुत जगह भटकने के बाद उसे एक जगह एक युवक ने उसकी दयनीय दशा देखकर तरस खाकर   बिठाया  ,चाय  पिलाई ,  रोटी दी । और बोला अम्मा हम भगवान् की मूर्तियां बनाते हैं , करोगी काम ?? .......दो वक्त की रोटी भी मिल जाएगी और कुछ  आमदनी भी हो जाएगी । और शाम को दुकान से जब करीगर घर जाएंगे तो यहाँ बिस्तर लगाकर सो भी सकती हो ।
अम्मा ने सिर से इशारा कर हामी भरी । 
उम्र बहुत बढ चली थी हालांकि बुढापा खत्म नही होता  पर दो वक्त का  खाना मिलने पर सेहत में सुधार  होने लगा था, समय बीतने के साथ-साथ अम्मा  अच्छी-अच्छी मूर्ति बनाने लगी ।
अम्मा  को उस दुकान पर कई साल बीत चुके थे, सब उसे "अम्माजी" कहकर बुलाते रहते ।
पहले-पहले अम्मा सिर्फ मूर्ति पर पालिश करती थी , पर समय के साथ-साथ वह साँचा ढालना भी सीख गई थी ।

 उनके हाथों से बनाई एक मूर्ति  युवक के पिता को इतनी पसंद  आई कि वह मूर्ति  बहुत प्रसिद्ध हो गई, मूर्ति प्रदर्शनी में वह मूर्ति रखी गई  आखिरकार  एक सरपंच ने  बोली लगाकर  उस मूर्ति को खरीद लिया  और अपने गांव के  मंदिर  में स्थापित करवा दिया ।

एक दिन अम्मा ने दुकान पर  इच्छा  जताई कि, बेटा अब
मेरी  आयु पूरी  होने को है.... मुझे अब अपना गाँव याद  आता है, 
तो मैं अपने गाँव में ही अपना  आखिरी समय बिताऊंगी । 
सभी ने बहुत रोका पर वह नही मानी । 
इतने साल तक साथ काम किया घर जैसा नाता हो गया था तो युवक  और उसके पिता का ह्रदय भी भर गया  । रोकने की लाख कोशिश की पर,  अम्मा को गाँव जाने की जिद न रोक सकी ।
मूर्तिकार ने अम्मा को राशन दिया ,  अम्मा  की कमाई दी ,
कुछ  अपनी ओर से भी दया भाव से  दिया । मूर्तिकार  और
 दुकान के सभी कारीगरों ने सजल नेत्रों से अम्मा को गले लगाकर   । तांगे मे राशन  रखवाकर  अम्मा को कुछ मूर्ति उपहार स्वरूप भेंट की और सम्मानपूर्वक  गाँव के लिए विदा किया ।

अम्मा शाम के समय  गांव पहुंची,
अब उसके पास खूब अनाज  था वह खाना पकाती ,
 खुद थोड़ा सा खाती और  पशु पक्षियों को भी खिलाती ,  चिड़िया , कुत्ते , बिल्ली  सब अम्मा के चहेते बन गए  थे सभी  उसकी झोपड़ी के इर्द गिर्द घूमते उन्हे भी भूख से तृप्ति मिलती थी । अम्मा  की दैनिक दिनचर्या यही थी ।


  एक दिन   गांव में मुखिया की औरत  का  बच्चा होने से  रह गया और  बच्चे की मृत्यु हो गई । 
गाँव  में शोक की लहर दौड़ गई । 

 इन सब बातों से अनजान बूढी अम्मा रोज के कार्यों में मगन थी , चूंकि गाँव का कोई भी उससे बात नही करता था तो , वह सबसे दूर ही रहती थी । महिलाएँ उसे अपशकुनी विधवा  कहते और   यहाँ तक बच्चे भी बड़ों को देखकर  उसे पागल बुढिया कहकर चिढ़ाते थे ।
 
अब अम्मा को रोज की आदत सी हो गई थी बुरे लोगों के ताने सुनने की  ।
वह नहर जाती  धीरे-धीरे पानी लाती और अपनी मिट्टी की झोपड़ी को लेपती । और पशु पक्षियों को अनाज डालती ।

इधर गाँव वालों के कानों में झूठी और बनावटी खबर गई,  जिस कारण गांव की कुछ महिलाओं ने संदेह की दृष्टि से बूढी और असहाय अम्मा  को और ज्यादा  ताने देने शुरू कर दिए । उसका जीना दूभर कर दिया ।
कहते कि ....... "बुढिया ने काला जादू कर दिया,  इसलिए मुखिया का बच्चा होते-होते मर गया । 
धीरे-धीरे और भी लोग इस बात को आग देने लगे । अब लोग तरह-तरह की मनगढ़ंत  बातें बनाने लगे , बच्चे भी पीछे नही हटते थे और बच्चों की मजाक भी बड़ों को सच लगने लगी थी ।
 घर पर कहते कि " आज हमने नहर में बुढिया को कपड़े की पोटली से  चावल निकालकर  छिड़कते देखा " । 
कोई कहता जब से ये बुढिया वापस  आई है -- मुझे व्यापार मे घाटा हो रहा है,  कोई औरत कहती मेरा बच्चा  तब से बीमार है ,  पहले से कम खाता है नजर लग गई । यहाँ तक कि कुछ लोग घर कोई भी  क्लेश  अम्मा  के ही माथे मढते ।
कोई कुछ कहता तो कोई कुछ ।

 लंबा समय बीतने के बाद ।
 एक दिन कुछ पुरूष  और महिलाएँ लाठी-डंडे लेकर झोपड़ी की ओर  गए,   ...... तब असहाय वृद्धा  रात के वक्त  खाना खा ही रही थी  एक निवाला मुँह मे रख चबा रही थी ,  दूसरा रखना  ही था कि,  किसी ने लाठी मार थी । अम्मा बेदम होकर जमीन पर लुढ़क  पड़ी , फिर जिसके हाथ जो लगा उसने वैसे ही प्रहार किया , वह उसी एक लाठी से मर चुकी थी , लेकिन अंधेरे में लोग उसे पीटते रहे  जब तक  उसकी अंतिम चीख नही निकली ।
सबने रात के अंधेरे में अम्मा का राशन उठाया कुछ  पीतल और तांबे की मूर्तियाँ  चुराई 
 और निष्प्राण अम्मा  को छोड़कर  अपने-अपने घर निकल गए । 

 हल्की-हलकी सी बरसात हो रही थी, उसी  रात गाँव   सरपंच के घर एक बिटिया का जन्म हुआ, गाँव में मिठाई बांटी गई,  ढोल नगाड़े बजने लगे । सरपंच जी ने बिटिया के होने का  सारा श्रेय बनाये गये मंदिर में रखी मूर्ति को दिया । शुद्ध होने के कुछ घंटे  बाद  मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू हुई , मूर्ति का जलाभिषेक करवाया गया  , आरती भजन गाए गए  । पंडाल लगा कर गाँव वासियों ने एक साथ  भोजन किया , बच्चे बूढे सब झूमे नाचे ।
और  सरपंच जी खुशी-खुशी सुबह  शहर  गए  और उसी दुकान पर जाकर  मूर्तिकार के पिता से कहा
याद है..... मैं कुछ साल पहले यहाँ से एक मूर्ति लेकर गया था 
 जिसने वह  मूर्ति बनाई है,  
मैं उसे ईनाम देकर  सम्मानित करना चाहता हूँ  मेरे लिए  वह मूर्ति  बहुत शुभ साबित हुई है । मेरे घर लक्ष्मी का जन्मी  है ।
मूर्तिकार बोला "अरे सरपंच जी वो मूर्ति जिस बुढिया अम्मा ने बनाई थी वह तो छः महीने पहले ही अपने  गाँव चली गई थी " ।
सरपंच ने पता पूछा तो सन्न रह गया बोला " यह तो हमारे गाँव का पता है " ।
 हैरान-परेशान होकर गाँव गया देखा ।
और जाकर  देखता है कि  .... अम्मा का मृत शरीर पड़ा हुआ है , पीठ भूमि की ओर लगी है बूढी आँखे आकाश की ओर कुछ निहार रही थी ....
 वो रूखे सफेद बाल बिखरे थे जिन्हे अम्माजी सहेजकर रखती थी  ,  भोजन का आखिरी निवाला भी उसके दाहिने हाथ में अभी भी   दबा हुआ था जिस पर चींटीयाँ कतार बनाकर चल रही हैं ..... कक्ष का वातावरण वीभत्स  गंध से भरा हुआ है ..... 

आसपास के पशु पक्षियों की वाणी में ह्रदय चीरकर  दुःखी कर देने वाला सा परिवर्तन था । 
पेड़ों से पंछियों के  चहचहाहट  जो आवाजें आती थी
वह बिल्कुल भी  अच्छी नही लग रही थी । पंछी घर होते हुए भी खुद को बेघर महसूस कर रहे थे ।
 । पक्षी पेड़ पर शोक प्रकट करने के संकेत में कोलाहल कर रहे हैं , कुत्ते रो रहे हैं । गायें रंभा रही हैं , और कौवे झोपड़ी के द्वार के चक्कर काट रहे हैं ।

वह रो कर घुटने के बल जमीन पर हताहत होकर बैठ जाता है और जब अपने मन की पंचायत में बुढिया अम्मा को निर्दोष पाता है तो उसे उस बुढिया में अपनी बूढी माँ दिखाई देने लगती है, 
यह दशा देख कर सरपंच  खुद से  ही कहता है कि , मुझ पापी  ने  ही  मारने के लिए गाँव के लोगों को भेजा था । 
मैं कितना नीच और कुकर्मी हूँ ।
जो किसी के झूठे बहकावे में आकर यह सब अनर्थ कर डाला ।
वह बहुत देर तक  पश्चाताप करता है,  लेकिन  अब तो कुछ भी नही किया जा सकता था ।
पकड़े जाने के डर से गाँव से बात बाहर नही गई और न अम्मा  की खोज ख़बर करने वाला कोई था , 
जो पूछताछ करता ।

लेकिन ......... कुछ साल  बाद सरपंच के मुँह  बाएँ पैर और दाहिने हाथ को लकवा मार गया था । और गाँव  भयानक  अकाल से गुज़रा ।

☆७८६५४
✍By :-Surya Rawat