poshahaar prabhari in Hindi Comedy stories by Lecturer Jagdish Siyag books and stories PDF | पोषाहार प्रभारी

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पोषाहार प्रभारी

 
उतरा मुंह लेकर आये पोषाहार प्रभारी।
बोले लकड़ी खत्म हो गई सारी।।
अब बनाये कैसे रोटी और दाल।
ऊपर से सब कहते मास्टर खा जाते सारा माल।।

मैंने कहा, चिंता ना करो सर।
गैस की टंकी कल ही तो लाये थे भर।।
आप तो यू हीं चला लेना अपने घर।
यहाँ ना चलेगा मगर।।

जैसे तैसे लकड़ी लाए।
ताकि किसी तरह चूल्हा जलाए।
इतने में एक बच्चा दौड़ा आया।
बोला , सर! दूध।
सर दौड़े दूध देखने आया कि नहीं आया ।
जाकर देखा दूध नहीं आया।।

दूध वाले को फ़ोन किया
दूध वाले ने टाइम लगेगा जवाब दिया।।
यह सुन गुरूजी का मुंह लटका।
क्योंकि दूध वाले का पेमेंट था जो अटका।।

वापस आकर गुरूजी बोले दूध नहीं लाया।
मैंने कहा, ऐसे कैसे नहीं आया।
गुरूजी ने धीरे से कहा , भैंस कूद गई।
बात 10 बजे से 12 बजे पर पहुँच गई।।

इतने में एक बच्चा फिर आया बोला। 
सर! मिर्च हल्दी धनिया।
सर जी बन गए एक बार फिर बनिया ।
देने लगे हल्दी मिर्च और धनिया।


जैसे तैसे खाना पका ।
इतने में एक ग्रामीण आ टपका।
बोला: गुरूजी थे कियां जीमो हो ।
गुरूजी का ग्रास मुंह में अटक गया। 
लोगो की ओछी मानसिकता से मुंह लटक गया।।

मेरा तो कहना है 
सर! उनको नादान समझ माफ़ कर देना ।
झूठे बर्तन भी गुरूजी साफ़ कर देना ।
ताकि अगले दिन भी प्यारे बच्चों को पोषाहार मिले ।
और उनके चेहरे चाँद से खिले।।
जगदीश सियाग व्याख्याता हिंदी लूंणखा बीकानेर।   
 
इस हास्य व्यंग्य में सरकारी विद्यालय में कार्यरत पोषाहार प्रभारी की स्थति को उकेरने का प्रयास है ।  आप सब के सहयोग से आगे भी में इस प्रकार का प्रयास करता रहूँगा।   

स्वरचित प्रयास: 
उतरा मुंह लेकर आये पोषाहार प्रभारी।
बोले लकड़ी खत्म हो गई सारी।।
अब बनाये कैसे रोटी और दाल।
ऊपर से सब कहते मास्टर खा जाते सारा माल।।

मैंने कहा, चिंता ना करो सर।
गैस की टंकी कल ही तो लाये थे भर।।
आप तो यू हीं चला लेना अपने घर।
यहाँ ना चलेगा मगर।।

जैसे तैसे लकड़ी लाए।
ताकि किसी तरह चूल्हा जलाए।
इतने में एक बच्चा दौड़ा आया।
बोला , सर! दूध।
सर दौड़े दूध देखने आया कि नहीं आया ।
जाकर देखा दूध नहीं आया।।

दूध वाले को फ़ोन किया
दूध वाले ने टाइम लगेगा जवाब दिया।।
यह सुन गुरूजी का मुंह लटका।
क्योंकि दूध वाले का पेमेंट था जो अटका।।

वापस आकर गुरूजी बोले दूध नहीं लाया।
मैंने कहा, ऐसे कैसे नहीं आया।
गुरूजी ने धीरे से कहा , भैंस कूद गई।
बात 10 बजे से 12 बजे पर पहुँच गई।।

इतने में एक बच्चा फिर आया बोला। 
सर! मिर्च हल्दी धनिया।
सर जी बन गए एक बार फिर बनिया ।
देने लगे हल्दी मिर्च और धनिया।


जैसे तैसे खाना पका ।
इतने में एक ग्रामीण आ टपका।
बोला: गुरूजी थे कियां जीमो हो ।
गुरूजी का ग्रास मुंह में अटक गया। 
लोगो की ओछी मानसिकता से मुंह लटक गया।।

मेरा तो कहना है 
सर! उनको नादान समझ माफ़ कर देना ।
झूठे बर्तन भी गुरूजी साफ़ कर देना ।
ताकि अगले दिन भी प्यारे बच्चों को पोषाहार मिले ।
और उनके चेहरे चाँद से खिले।।
जगदीश सियाग व्याख्याता हिंदी लूंणखा बीकानेर।
स्वरचित प्रयास: 
उतरा मुंह लेकर आये पोषाहार प्रभारी।
बोले लकड़ी खत्म हो गई सारी।।
अब बनाये कैसे रोटी और दाल।
ऊपर से सब कहते मास्टर खा जाते सारा माल।।

मैंने कहा, चिंता ना करो सर।
गैस की टंकी कल ही तो लाये थे भर।।
आप तो यू हीं चला लेना अपने घर।
यहाँ ना चलेगा मगर।।

जैसे तैसे लकड़ी लाए।
ताकि किसी तरह चूल्हा जलाए।
इतने में एक बच्चा दौड़ा आया।
बोला , सर! दूध।
सर दौड़े दूध देखने आया कि नहीं आया ।
जाकर देखा दूध नहीं आया।।

दूध वाले को फ़ोन किया
दूध वाले ने टाइम लगेगा जवाब दिया।।
यह सुन गुरूजी का मुंह लटका।
क्योंकि दूध वाले का पेमेंट था जो अटका।।

वापस आकर गुरूजी बोले दूध नहीं लाया।
मैंने कहा, ऐसे कैसे नहीं आया।
गुरूजी ने धीरे से कहा , भैंस कूद गई।
बात 10 बजे से 12 बजे पर पहुँच गई।।

इतने में एक बच्चा फिर आया बोला। 
सर! मिर्च हल्दी धनिया।
सर जी बन गए एक बार फिर बनिया ।
देने लगे हल्दी मिर्च और धनिया।


जैसे तैसे खाना पका ।
इतने में एक ग्रामीण आ टपका।
बोला: गुरूजी थे कियां जीमो हो ।
गुरूजी का ग्रास मुंह में अटक गया। 
लोगो की ओछी मानसिकता से मुंह लटक गया।।

मेरा तो कहना है 
सर! उनको नादान समझ माफ़ कर देना ।
झूठे बर्तन भी गुरूजी साफ़ कर देना ।
ताकि अगले दिन भी प्यारे बच्चों को पोषाहार मिले ।
और उनके चेहरे चाँद से खिले।।
जगदीश सियाग व्याख्याता हिंदी लूंणखा बीकानेर।