Dastane Ashq - 3 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क -3

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दास्तान-ए-अश्क -3

: कहानी की नायका का जन्म कुछ एसे हालात मे हुवा!
24 दिसंबर की वो रात !
काला स्याह अंधेरा लेकर आई थी!
सर्दी अपने पूरे यौवन पर थी!

क्रिश्चियन मिशन हॉस्पिटल की सारी नर्से अपना पसंदीदा त्यौहार मनाने को उत्सुक थी!
अगले दिन 25 दिसंबर क्रिसमस का दिन था!
पूरा हॉस्पिटल रंग बिरंगी लाइट्स लडियां और क्रिसमस ट्री से सजाया गया था
भगवान ईसु के आगमन की तैयारियां पूरे जोर से चल रही थी!
और उस दिन हॉस्पिटल में इतनी भीड़ भी नहीं थी!
तकरीबन सारे केसिस समय से पहले निपटा दिए गए थे!
मगर एक केस ऐसा था जो बहुत ही उलझा हुआ था मनोरमा देवी का!
मनोरमा देवी प्रसव वेदना से बुरी तरह परेशान थी!
एक नर्स और एक लेडीज डॉक्टर की ड्युटी उन पर थी!
बच्चा हेल्दी होने के कारण जल्दी डिलीवरी नहीं हो रही थी डॉक्टर के साथ नर्स भी यही चाह रही थी !
डिलीवरी जल्दी हो जाए!
पर वक्त और हालात उस पर किसी का बस नहीं है काफी दर्द सहा था मनोरमा देवी ने एक पल के लिए उन्हें लगा था कि जैसे अपनी जान निकल जाएगी!
डॉक्टर की काफी मशक्कत और जद्दोजहद के बाद उसका जन्म हुआ.!
तब उनकी आंखों से पानी बहने लगा था वह बहते हुए आंसू उन्होंने सहे पारावार दर्द के नहीं थे वो उस खुशी के आंसू थे
दो उस नन्ही सी जान को नर्स के हाथों में रोते हुए उन्होंने देखा था!
उस वक्त रात के बारा बजकर पांच मिनट हो रहे थे!
जैसे ही बच्चे का जन्म हुआ सभी नर्स और डॉक्टरस् सब के साथ मिलकर मेरी किसमस गा रहे थे!
और वो रुई के लबादे जैसा बच्चा इस दुनिया में खा चुका था!
जैसे ही डॉक्टर ने उसे अपने हाथ में लिया उनको लगा जैसे मासूम मुलायम छोटा सा खरगोश का बच्चा हो!
हॉस्पिटल का सारा स्टाफ वहां मौजूद था
वह सभी इस वक्त इस बच्चे के जन्म से काफी खुशहाल नजर आ रहे थे!
बहुत लाड प्यार किया सब ने उस बच्ची के साथ!
जब उस को नहला कर मनोरमा जी की गोद में लाया गया!
तभी वहां एक बूढ्ढी नर्स ने उस बच्ची को अपनी गोद में उठाकर कहा इसे तो मैं काजल लगाऊंगी!
क्योंकि मां की नजर भी बच्चे को सबसे ज्यादा लगती है!
जैसे ही उसने बच्चे को काजल लगाया तो एक छोटा सा टीका उसकी आंख में लग गया !
जब उसको पूछने की कोशिश की थी तो डॉक्टर ने कहा! मत पोछो उसे इसकी स्किन बहुत है नरम है!
कल साफ कर देना उसे!
जब बच्चे को उसकी मां के हाथों में लिया गया तो वह अपने सारे दुख सारे वेदना तकलिफ भूल चुकी थी !
उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ऊभर आई थी!
वो बार-बार अपनी बच्ची को चुम रही थी !
उसके माथे को चुम रही थी!
बच्चे को सीने से लगा कर उसे कितनी शांति मिली होगी उसको बयां नहीं कर सकते हैं!

मनोरमा के पति वेद प्रकाश जी लाला जी और उमा देवी जी खुशी से फूले नहीं समा रहे!
हां वारिश नहीं आया था! पर लाला जी को यह उम्मीद बंध गई की जब बेटी आई है तो बेटा भी आएगा!
भगवान ने रास्ता खोला दिखाइए तो उस राह पर चलने की शक्ति भी वही देगा!
सब ने इस बच्ची को स्वीकारा नहीं मगर उसके आने की खुशी में जश्न मनाया गया!
अगले दिन बेटी के जन्म की खुशी में लाला वेद प्रकाश जी ने पूरी क्रिसमस की पार्टी अपनी तरफ से दी!
बच्चे के जन्म से पूरी हवेली में रौनक सी आ गई जैसे जो कुछ भी कमी थी वह अब भर गई! अब यह हवेली किसी खाली मकान की तरह नहीं थी! वह एक घर बन चुकी थी!बच्चे की किलकारीया रुदन और हंसी से गूंजने वाले लम्हों को अपनी अविस्मरणीय स्मरणो में समेटने वाला घर..
सभी बहुत खुश थे!
वो बेटी उनके प्यार का सिंबल बन गई थी जान छीडकते थे सभी उस पर!
खुद भी उसके दादाजी दादीजी भी उसकी भुआए सभी!
वह ही ही इतनी ईतनी प्यारी... सबसे प्यार करने वाली..!
सबसे बड़ी बात उसने यह थी कि वह बहुत ही सेंसिटिव थी!
छोटी सी उम्र में ही हो सबकी भावनाओं को समझने लग गई थी!
सबसे बेइंतहा प्यार सब का आदर करना जैसे उसके खून में उतरा था!
इसलिए उसके दादाजी भी गर्व से कहते की ये मेरा खून है!
यह कभी कोई ऐसा काम नहीं करेगी जिससे हमें शर्मिंदा होना पड़े!
समय बड़ी तेजी से भागता रहा!
उसके बाद उस लड़की के तीन भाई बहन और दुनिया में आए!
दो भाई और एक बहन !
लाला करोड़ीमलजी का जीवन अब जैसे सफल हो गया उन्होंने जीते जी पौधों की नई फस्ल को देख लिया!
वेद प्रकाश जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि अब तो उनकी बीवी भी उसके पास थी!और बच्चे भी!
सपनों को जैसे पंख लग गए थे !समय अब तेजी से गुजर रहा था!
वैसे भी खुशियां लहरों की तरह आती है! और लहरों की तरह जाती है!
4 बच्चे हुए! फिर भी लाला वेद प्रकाश जी को अपने बड़ी बेटी के लिए ना उसकी कदर कम हुई!
ना उससे कभी प्यार कम हुआ!
उनके लिए सबसे ज्यादा लाडली भी वही बेटी थी!
पर मनोरमा जी कभी-कभी फिर जाती थी! इस बात से कहती थी !
"आप बच्चों में फर्क करते हो !सब कुछ पहले उसे देते हैं ! और दूसरों को बाद में! अपने बेटों का तो आप ख्याल ही नहीं करते !
तब लाला वेद प्रकाशजी कहते !
इस बच्ची में मेरी जान बसी हुई है! वह आई और दूसरे भाई बहनों को भी ले आई!
तो उसकी कदर किया कर! भूल गई तू ही बहुत रोई है इसके लिए!
मनोरमा जी बहुत प्यार करते थे !अपने सभी बच्चों से मगर जब बड़ी बेटी को ज्यादा लाड़ प्यार मिलता तो वह चिढ़ जाती थी!
मन की बुरी नहीं थी वो! मां थी! पर पता नहीं क्यों वह ऐसा कर रही!

कभी कभी बेटी को भी यह बात महसूस हो जाती तो वो अपने पापा को भीगे हुए लफ्जो में पूछती!
"पापा जी मम्मी ऐसा क्यों करती है मेरे साथ?"
तब उसके पापा प्यारे लहजे में कहते हैं! तेरी मां जलती है तुझसे बेटा !
क्योंकि सब से बहुत प्यार करते हैं ना इसलिए!
पर वह मासूम दिल उनकी बातों को समझ नहीं पाता था! जलन क्या होती है उसका पता नहीं था!
उसके दिल में तो सभी के लिए प्यार था प्यार था प्यार था!
समय रेत की तरह सरकता रहा !
बच्चियों को बढ़ने में देर नहीं लगती!
अब वो आठवीं कक्षामे आ गई थी!
आठवीं कक्षा तक उसे लड़कों की तरह पाला गया था!
उसने कभी अपने भाइयों और खुद में कोई भेदभाव नहीं समझा था!
लेकिन जब वो पहली बार लडकी बनी
उसको ऱुतुस्त्राव शुरू हुवा उसको बड़ी अजीब सी फीलिंग हुई!
ऐसी फिंलिंग्स जैसे दुनिया है उसके लिए बदल गई थी!
पहले घूमने फिरने अंदर बाहर सब जगह जाने की आजादी थी!
पर जैसे जैसे उसपर पाबंदीया लगती गई उसको घुटन सी होने लगी!
आखिर उसके साथ एसा क्यु हो रहा था वो किसी को बताभी नही सकती थी!
कयो कि मम्मीने जबसे बच्ची के बारे जाना था उसे सख्ताई से मना किया था कि किसी भी पुरुष से ईस बारेमे बात नई करनी है !
ना अपने पापासे ना भाईयां से और ना दादाजी से.. !
उसका मन अंदर ही अंदर उसे कचोटने लगा था!
अब उसकी मा छोटी छोटी बातो पर उसे डाटने लगी. !
उसके बाहर आनेजाने पर रोक लगा दी गई
पहाले उसे बहुत लाड प्यार से! खिलायापिलाया जाता था उससे वह काफी प्लस साईज की हो गई थी!
जिस पर पहले किसीने ध्यान नही दिया था मगर अब!
उसका प्लस साईज उसकी मा कि आंखो मे चुभने लगा !
वो बार बार उसे ताना देने लगी थी !
ये किया कर..!वो किया कर..! ये खा वो ना खा.. उसे ये सब बाते बहुत चुभती कयो कि उसे बहुत भुख लगती थी! उसकी प्लस साईज की वजह से !
और भुख को मारना उसके लिए बहुत कठिन साबित होता था!
वो सोचती थी घर मे इतना कुछ है ईतना कुछ आता हैं ! सब भाईओ को मिलता है ! बहन को मिलता है उसे भी मिलता मगर डांट के साथ थोडा कम खा..!
अपना हाल देख अपनी साईज देख...!
क्या वो अपनी साईज के लिए खुद जिम्मेदार थी.. !
बिलकुल नही.. !
वह तो छोटी सी बच्ची थी जब उसकी मा उसके सामने भाईओ को खिलाती और उसको छोटी सी चीझ देकर उसके सामने आंखे तरेरती!
तब उसे बहुत बुरा लगता था
उसको लगा था मासिक धर्म आना उसके लिये जैसे सजा बन गया था!
पर वह कुछ नही कर सकती थी मन को मार कर रह जाती थी!
उस वक्त उसका कोई सहारा था तो उसकी दादी उमा देवीजी का!
बहुत खयाल रखती थी वो उसका..!
चोरी चोरी कभी वो अपने हिस्से की चीजे भी उसको खिला दिया करती थी..!
और उसकी वजह से बहुत सी बार वो उसकी मां से भी डांट खाती!
उसे समज नही आ रहा था मां को क्या हो गया है !
एक वक्त था जब मां उसे भी उतना लाड प्यार किया करती थी! इतना प्यार लुटाती थी वो मां आज उसके हाथ से खाने की चीजे भी छीन रही थी..!
उसे ईस बात का बहुत ही धक्का लगा..!
वैसे भी बचपन मे होने वाले बुरे वर्ताव को इन्सान बडा होने पर कभी भुलता नही..!
उसकी यादो की परत मे वो नुकिले कील की तरह हमेंशां चुभता है!
उसे
दादी बडे प्यार से उसको समजाती..!
मेरी बच्ची लडकियाँ पतली हो तो उन्हें अच्छा वर मिलता है!
तब वो तडप कर दादी से कहती मुझे कही नही जाना आपको छोडकर..!
मुझे आपके पास पापा के पास ही रहेना है!
तब वो कहेती "अरे पगली राजा रानी भी अपनी बेटीयां को क्या घरमे रख पाये है?
बेटियाँ तो होती ही पराई है!
तु एसा मत सोच..! तुझे बहुत ही अच्छा घर और राजकुमार सा वर मिलेगा..!
तु बहुत सुखी रहेगी..!
लेकिन उसको दादी की ये बाते कभी अच्छी नही लगती थी!
उसने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि उसे ये घर पापाजी दादाजी और दादाजी को छोडकर जाना होगा..!
फिर वो धीरे धीरे खुद को संम्हाल ने लगी थी..!
उसके मन मे बहुत से अरमान थे..! आकाश की उंचाईयो को छूने के..
बुंलद सपने थे!
पर क्या वो अपने सपनो को जी पाई ?
या उसे भी समाज की बेदी पर चढ जाना पडा! अपने अरमानो की राख को समेटकर.. !
पढना ना भुले एसा दिल दहलाने वाला सच ... क्या हुवा पप छोटी सी उम्र मे उभरने वाली जिंदगी के साथ.. पढीये आगे के दिल दहला देने वाले पार्ट दास्तान-ए-अश्क में!