The Author bhai sahab chouhan Follow Current Read चोर और चोरी By bhai sahab chouhan Hindi Classic Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books THE WAVES OF RAVI - PART 5 THE WAVES OF RAVI Reshma was sitting on the bank of t... Predicament of a Girl - 14 Predicament of a Girl A romantic and sentimental thriller Ko... Robo Uncle - 2. Unexpected Event 2. Unexpected Event Nancy was waiting just for he... Love at First Slight - 29 Rahul's Hotel Room, SingaporeRahul walked into his lavis... The Village Girl and Marriage - 3 The child of Diya was not normal. When her elder brother and... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share चोर और चोरी (10) 1.2k 5.9k बहुत पुरानी बात है एक शहर में एक बिज़नेस का परिवार निवास करता था . बिज़नेस मेन का नाम दशरथ सिंह था उसकी धर्मपत्नी का नाम सुशीला बाई तथा उसके दो बच्चे एक लड़का - एक लड़की , लड़के का नाम राम तथा लड़की का नाम राधा था लड़के की उम्र करीव बारह वर्ष तथा लड़की की उम्र आठ वर्ष थी ..दशरथ और उसकी पत्नी सुशीला बहुत सरल स्वाभाव , बहुत दयालु थे . उन लोगो के पास पैसो की कमी नहीं थी बहुत धनवान थे उनके बच्चे बहुत बड़े स्कूल में पढ़ाई करते थे .अचानक उनके घर पर आठ -दस भिक्षुक लोग आ गये .दशरथ ने पूछा आप लोग कोन है उन्होंने कहा हम भिक्षुक हैआप से दक्षिणा लेने आये है हम यहाँ सभी से हर वर्ष दक्षिणा लेने आते है आपका ही घर बाकि था .दशरथ और उसकी पत्नी ने कहा गुरुदेव आप लोग बैठिये हम आपकी दक्षिणा का प्रबंध करते है .दशरथ ने कहा आप सभी लोग भोजन ग्रहण कर ही जावें , में आपकी कुछ क्षणों में भोजन बनबाता हु . दोनों पति -पत्नी बहुत सारे पकवान बना दिये बहुत खाना बना लिया और प्रेम से खाना खिलाया . खाना खाने के बाद भिक्षुक बोले अब हम चलते है , हमें हमारी दक्षिणा से कही ज्यादा मिल गया दशरथ बोला नहीं गुरुदेव आप को खाली हाथ विदा करने का साहस नहीं मुझमे आप कुछ क्षण विश्राम करे में अभी आता हु भिक्षुक लोग बच्चो से बात कर रहे थे बच्चो का व्यव्हार भी उनके माता - पिता जैसा ही था बहुत प्रेम से बात कर रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था की साक्षात भगवान राम और देवी लक्ष्मी हो ..अंदर से दोनों पतिपत्नि बहार आये और सभी भिक्षुको का आशीर्वाद लिया उन्हें भेंट दी भेंट के रूप में सोने के सिक्के और पैसे दान में दिये . यह सब देखकर भिक्षुको ने सभी को बहुत आशीर्वाद दिया और बहुत खुश हुए . और बोले आपके दोनों बच्चे बहुत निर्मल , सरल और बहुत सुन्दर है . और वो लोग यहाँ से चले जाते है .इनका परिवार बहुत खुश था अपने छोटे से परिवार के साथ ये बहुत खुस थे . कुछ दिनों बाद दशरथ को बिज़नेस में हानि हुई उसने छोटी हानि समझ कर भूल गया एक दिन उसे बहुत बड़ी हानि हुई जिससे उसका घर वार सब बिक गया घर बार बिकने के कारण परेशान दशरथ उसकी पत्नी से पूछता है मैंने कोनसा पाप किया था जो मुझे ये दिन देखना पड़ा , मैंने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया ये सब बोलते - बोलते यहाँ से चले जाते है और पास में ही एक रूम किराये पर लिया कामधंधा कुछ था नहीं काफी दिन बीत गये घर का अनाज भी ख़त्म हो गया ..बच्चो ने बोला पापा भूख लगी है कुछ खाने को दो वह बोला बेटा में लेकर आता हु और वहाँ से निकल गया सोचते - सोचते बहुत दूर चला जाता है वहाँ पर एक कार्यक्रम चल रहा था उससे उसके बच्चो की हालत देखि नहीं गयी और वह उस कार्यक्रम में चला गया वहां उसे किसी ने खाना नहीं दिया उसने प्रार्थना कि ,विनती की उसकी किसी ने न सुनी अंततः वह वहाँ से खाना उठाकर चला जाता है लोगो ने बहुत रोका बोले चोर - चोर रुक लेकिन उस अभागे को केवल उसके भूखे बच्चे दिख रहे थे .वह घर गया उसके बच्चों को खाना खिलाया और वही बैठ गए टेंशन से परेशान दशरथ की तबियत ख़राब हो जाती उसे बहुत तेज बुखार आता है उसकी पत्नी डॉक्टर को बुलाने गयी लेकिन कोई उनके यहाँ आने को तैयार नहीं था उनकी आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी की इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे उसकी पत्नी मेडिकल पर जाती है वहाँ बुखार दर्द की दवा लेती है और दुकानदार द्वारा पैसे मांगने पर वह बोलती है भैया पैसे नहीं है दूकानदार बोलता है पैसे दो तभी दवा मिलेगी सुशीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था दुकानदार का ध्यान भटका कर वह दवा लेकर चली जाती है लोग चिल्लाते है चोर -चोर रुक वह नहीं सुनती और चली जाती है ..घर पहुंच कर उसके पति को दवा खिलाती है और दो -तीन दिन बाद उसके पति की तबियत ठीक हो जाती है . वह दोनों विचार कर रहे थे की घर में खाने को नहीं बच्चे कब तक भूखे रहेंगे सुशीला में काम देखकर आता हु तुम बच्चो का और अपना ध्यान रखना सुशीला भी दशरथ के साथ जाने की जिद करती है वह दोनों यहाँ से निकल जाते है काम की तलाश मेंउधर भूख में परेशान बच्चे घर से बाहर आते है और एक समोसे की दुकान पर जाकर खड़े हो जाते है . दुकान पर गरम - गरम समोसा कचोरी बन रहे थे बच्चो का खाना खाने को मन हुआ वह समोसा ले लेते है वह बड़े प्रेम से समोसा खाते है और पैसा मांगने पर वह कहते है अंकल पैसे नहीं है वह दुकानदार उन बच्चो पर हाथ उठाता है और बोलता है चोर के बच्चे चोर पैसा नहीं थे तो खाते नहीं अब पैसा कौन देगा मेरा .. नहीं है इस संसार में कोई वास्तविक चोर मजबूरी , हालात , मोह बना देते है उसे चोर !!दोस्तों आप को क्या लगता है ?? Download Our App