Afia Sidiqi ka zihad - 12 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 12

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 12

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(12)

अमजद अमेरिका आ तो गया, पर उसका आफिया और बच्चों के बग़ैर ज़रा भी दिल नहीं लगता था। दिन के समय तो काम पर होने के कारण जैसे तैसे समय बीत जाता था, परंतु रात के समय उसको घर काटने को दौड़ता था। कभी उसको बच्चों की किलकारियाँ सुनाई देने लगतीं और कभी आफिया इधर-उधर चलती-फिरती दिखाई देती। एक दिन रात के समय फोन आया। फोन उसकी अम्मी का था। अमजद के फोन उठाते ही जाहिरा खां बोली, “बेटे, मैं जानती हूँ कि तू इस वक़्त किन हालातों में से गुज़र रहा होगा। पर इस सब की मैं ही जिम्मेदारी हूँ।“

“अम्मी, ऐसी बात नहीं है। और फिर तुम क्यों अपने आप को दोष दे रही हो ?“

“क्योंकि आफिया मेरी ही पसंद है। मैंने ही इसे तेरे लिए चुना था। पता नहीं क्या बात हो गई। यह तो बहुत ही जहीन लड़की थी। मेरी तो समझ में नहीं आता कि इसको हो क्या गया है।“

“अम्मी, तू यूँ ही फिक्र न कर।“

इतना कहकर अमजद सोचने लगा कि उसकी माँ ने तो आफिया को कुछ देर या कुछ दिन के लिए देखा होगा, मगर वह तो कितने ही सालों से उसके साथ रहता आ रहा है। और क्या वह खुद उसको अच्छी तरह जानता है। उधर अमजद को फोन पर चुप-सा हुआ देखकर जाहिरा खां बोली, “अमजद बेटे, तू मेरी बात सुन रहा है न ?“

“हाँ-हाँ, अम्मी तू बात कर। मेरा ध्यान तेरी बातों में ही है।“

जाहिरा खां दुबारा बोलने लगी, पर अमजद का ध्यान फिर आफिया की ओर चला गया। उसके मन में ख़याल आया, ‘आफिया नाइन एलेवन के बाद एकदम इतना डर क्यों गई थी। वह क्यों खड़े पांव भाग जाने के लिए उतावली पड़ गई थी। फिर वहाँ जाकर वह कुछ दूसरी ही तरह की स्कीमें बनाने लगी। सीधे ही जिहादियों के संग जा मिलने की बातें करने लग पड़ी। और वह बता रही थी कि हमारे विवाह से पहले भी एफ.बी.आई. वाले उसको तलाश रहे थे। यह तो खै़र हो सकता है कि उसके चैरिटी के काम के संबंध में वे उसके साथ कोई बातचीत करने आए होंगे।’ उसकी मन में चलती बात बीच में ही रह गई जब उधर से माँ की ऊँची आवाज़ उसके कानों में पड़ी, “बेटे तू ऐसा कर कि एक बार आफिया को फोन करके कह दे कि वह तेरे पास आ जाए। औरत को कई बार मानसिक कारणों से बहुत सारे हालातों से गुज़रना पड़ता है। अब वह ठीक हो चुकी होगी। तू मेरे बेटे, उसको अपने पास बुला ले। अल्लाह सब ठीक कर देगा।“ माँ ने नसीहतें देकर फोन काट दिया। पर अमजद का मन फिर से पहले चल रही सोचों की ओर चला गया। उसको एक नया ही ख़याल आया और वह सोचने लगा, ‘कहीं आफिया यह सब ड्रामा तो नहीं कर रही। हो सकता है कि वह मुझसे अलग होना चाहती हो और सिर्फ़ बहाने घड़ रही हो ताकि मैं उसकी बात से इन्कार कर दूँ और उसको अलग हो जाने का बहाना मिल जाए। हाँ, यही बात है। लगता है कि वह मेरे साथ खुश नहीं है। वैसे उसके बर्ताव से तो लगता है कि वह मुझे बहुत प्यार करती है, मगर हो सकता है कि यह सब दिखावा ही हो।’

खै़र, कुछ भी था उसने अपनी माँ की बात मानते हुए आफिया को फोन करने का मन बना लिया। उधर आफिया का पिता देख रहा था कि अमजद के जाने के बाद से आफिया का चेहरा मुरझाये फूल जैसा हो गया था। उसने ढंग से खाना-पीना छोड़ दिया था। सारा दिन उदास-सी बैड पर पड़ी रहती थी। सुलेह सद्दीकी सब समझता था। उसने आफिया को पास बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ बोला, “बेटी, मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा, बस इतना ही कि औरत का पहला फ़र्ज़ अपना परिवार बचाना होता है। तुम्हारे बीच सिर्फ़ तनाव है, और कुछ नहीं। मैं तुझे सलाह दूँगा कि तू अमजद के पास चली जा।“

“पर अब्बू, उसने तो जाकर एक बार भी फोन नहीं किया ?“

“बेटी, कई बार इन्सान काम में उलझ जाता है और...।“ वह बात कर ही रहा था कि फोन की घंटी बजी। उसने फोन उठाते हुए हैलो कही तो उसके चेहरे पर रौनक आ गई। वह फोन को आफिया की ओर बढ़ाते हुए बोला, “ले बात कर, अमजद का फोन है।“

आफिया चहक उठी और दूसरे कमरे में जाकर बात करने लगी। आधे घंटे बाद फोन बंद करके वह बाहर निकली तो उसका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिला हुआ था। उसने उसी समय टिकटें बुक करने के लिए कह दिया और तीसरे दिन बच्चों को लेकर अमेरिका के बॉस्टन लोगन इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर जा उतरी। अमजद उसको लेने आया खड़ा था। वह घर पहुँच गए। घर आकर आफिया का चेहरा एकदम बदल गया और वह गुस्से में काँपने लगी।

“तूने मुझे इतने दिन फोन भी नहीं किया। तू अपने आपे को समझता क्या है ?“ वह ऊँचे स्वर में बोलती हुए अमजद के गिरेबान को चिपट गई। इधर-उधर खींचती वह उसकी छाती में मुक्के मारने लगी। अमजद ने बिल्कुल विरोध न किया। आखि़र, आफिया थक गई और वह मुक्के मारना छोड़ अमजद की छाती से लिपट गई। अमजद ने उसको अपनी बांहों में जकड़ लिया। आफिया इतना रोई कि अमजद की कमीज़ भीग गई। उसकी आँखों में भी आँसू आ गए। इसके साथ ही उसके मन के अंदर का वह ख़याल कि शायद आफिया बहाने से उससे तलाक लेना चाहती है, कपूर की भाँति उड़ गया।

उधर, अफगानिस्तान में अमेरिका का आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा जा रहा युद्ध लम्बा खिंचता जा रहा था। तालिबान सरकार तो पाँच-छह हफ़्तों में ही ढह-ढेरी हो गई थी। पर ओसामा बिन लादेन और उसका समस्त अलकायदा संगठन तोरा बोरा पहाड़ियों के पीछे से होकर पाकिस्तान की ओर निकल चुका था। वहाँ जाकर उन्होंने कराची में अड्डे जमाने प्रारंभ कर दिए। अमेरिका समझ गया था कि अफगानिस्तान में कच्चे घरों अथवा सूखे पहाड़ों पर बम फेंकने बेकार हैं। जिन्हें पकड़ने के लिए यह सबकुछ किया गया था, वे तो सब बचकर निकल गए। इस कारण अमेरिका युद्ध का मुहाज़ अफगानिस्तान से इराक की ओर मोड़ने के लिए तैयार होने लग पड़ा। तोरा बोरा पहाड़ियों में से भागे अलकायदा के सदस्यों को संभालने वाले पाकिस्तान में बहुत बैठे थे। इनमें से सबसे अधिक सक्रिय बलोची परिवार था। रम्जी यूसफ जो कि 1993 के नॉर्थ टॉवर वाले बम धमाके का आरोपी था, इसी परिवार से था। इस परिवार के अग्रज का नाम था - खालिद शेख मुहम्मद। जिसे सभी उसको निक नेम अर्थात के.एस.एम. से बुलाते थे। जो लोग अलकायदा सदस्यों को संभालने में लगे हुए थे, उनमें स्त्रियों का एक ग्रुप भी था। आफिया की माँ इस्मत भी इसी ग्रुप में काम कर रही थी। इतना ही नहीं, अल बलोची परिवार के कई मेंबर उसके घर मेहमान बनकर ठहर भी चुके थे। जब अफगानिस्तान में से भाग निकले अलकायदा सदस्यों को भलीभाँति संभाल लिया गया तो के.एस.एम. अपनी अगली योजना पर काम करने लगा। वह चाहता था कि जब तक अमेरिका नाइन एलेवन वाली चोट से उभरे, तब तक इससे भी बड़ा झटका अमेरिका को एक और दिया जाए। इस दूसरे हमले के लिए के.एस.एम. ने ऐसे लोगों की खोज शुरू कर दी जो कि पहले ही अमेरिका में रह रहे थे। इसके लिए उसने अमेरिका में अपने सम्पर्कों के माध्यम से ऐसे व्यक्तियों की भर्ती प्रारंभ कर दी। इनमें नए रंगरूटों में होज़े पदीला नाम का एक व्यक्ति पहले अमेरिकन था। वह फ्लोरिडा का रहने वाला था और किसी बड़े गैंग का सदस्य रहा था। उसको समझा-बुझाकर मुसलमान बनाया गया और फिर अलकायदा में लाया गया। प्रशिक्षण के लिए उसको पाकिस्तान ले जाया गया। इस प्रकार आगे से आगे के.एस.एम. को और लोग मिलते चले गए जो कि उसके काम में सहायक हो सकते थे। होज़े पदीला को इस तरफ लाने वाला एडम हुसैन था जो कि बोनेवोलैंस इंटरनेशनल में काम करता था। एडम हुसैन आगे सुलेमान अहमर को जानता था। सुलेमान की आफिया से जान-पहचान थी। यही कारण था कि आफिया बोनेवोलैंस के एक अन्य सक्रिय सदस्य अदनान शुक्रीजुमा के सम्पर्क में आई थी। आफिया के अमेरिका से लौट आने से सभी में फिर से तालमेल होने लगा। जाली ई मेल के ज़रिये अथवा कोई अन्य गुप्त तरीके से ये लोग आपस में सम्पर्क बनाये रखते थे।

जब आफिया वापस आई तो वह कई दिन बहुत बढ़िया मिज़ाज में रही। वह अमजद के साथ बड़ी मुहब्बत से पेश आती थी। अमजद को लगा कि उसके अंदर परिवर्तन हो रहा है। वह खुश था। इसी खुशी के कारण वह अगले इतवार बच्चों को लेकर एक मंहगे होटल में रात ठहरने के लिए चला गया। वहाँ पहुँचते ही आफिया भड़क उठी, “अमजद, तुम्हें शर्म आनी चाहिए। अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में हमारे मुसलमान भाई गरीबी से मर रहे हैं और तुम्हें अय्याशी की पड़ी है।“

“आफिया, अय्याशी वाली इसमें क्या बात है। मेरी कमाई के पैसे हैं। मैं किसी गलत जगह पर नहीं खर्च कर रहा। मैं अपने परिवार की खुशी के लिए खर्च कर रहा हूँ। यह मेरा हक भी है कि हलाल की कमाई से अपने बच्चों को ज़रा बाहर घुमा फिरा दूँ।“

“तुझे कभी समझ नहीं आ सकती। मैं यहाँ नहीं रहूँगी। चल, घर वापस चलें।“

आफिया वहाँ न रुकी और अमजद को साथ लेकर घर लौटकर ही उसने साँस लिया। अमजद परेशान हो गया। उसने सोचा था कि पुरानी कड़वाहटें भूलकर नई ज़िन्दगी शुरू करेगा, पर आफिया तो वहीं अटकी हुई थी। फिर कुछ दिनों बाद अमजद ने उससे कहा कि बच्चों को अब स्कूल भेजने का समय है। अब तो इन्हें प्री-स्कूल जैसी क्लासों में डाल दें तभी कहीं ये दूसरे स्कूलों में जाने योग्य हो सकेंगे। परन्तु आफिया ने जवाब दिया कि अभी वह उन्हें स्कूल नहीं भेजेगी। वह घर में ही उन्हें मज़हबी शिक्षा देगी। अमजद मनमसोस कर रह गया। कुछ दिनों के बाद अमजद एक दिन जल्दी घर आया तो वह बड़ा हैरान हुआ। आफिया टी.वी. पर वो कुछ देख रही थी जो कि जंग के मैदान में हो रहा था। आसपास मारा मारी हो रही थी। समीप ही लाशों के ढेर लगे हुए थे। अमजद से यह सब देखा न गया। पर जब उसने देखा कि आफिया ने बच्चों को भी अपने करीब बैठा रखा है तो उसके सब्र का प्याला छलक गया। वह गुस्से में आकर बोला, “आफिया, यह क्या है ?“

“क्यों, क्या हुआ ? जो सच है, वह सच है। फिर उसको देखने में क्या हर्ज़ है।“

“बात यह नहीं है। बात यह है कि तू इन बच्चों को इतनी ख़तरनाक घटनाएँ दिखा रही है। इनके मन पर क्या असर पड़ेगा।“

“मैं तो चाहती हूँ कि इनके मन पर असर पड़े। ताकि ये बड़े होकर तेरी तरह अमेरिकी भक्त न बनें।“

“यह सही नहीं है। और फिर मैंने अमेरिकी भक्त बनने वाली क्या बात कर दी ?“

“तुझे अपनी नौकरी करने और पैसा बनाने तक ही मतलब है। तुझे इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आसपास मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है।“

“अब मुसलमानों के साथ क्या अलग होने लग पड़ा जो तू आज इतनी संजीदा हुई बैठी है?“

“अमेरिका, इराक पर हमला करने की तैयारी कर रहा है।“

“यह तो एक दिन होना ही था।“

“क्यों ? क्यों होना था यह एक दिन ? सिर्फ़ इसलिए कि अमेरिका दुनिया में सबसे अधिक शक्तिशाली है ?“ आफिया के माथे पर बल पड़ गए।

“नहीं, यह बात नहीं है। तू याद कर, जब 1991 में पहली इराक जंग डज़र्ट स्ट्रोम खत्म हुई थी तो जंगबंदी अहदनामे में यह मद शामिल थी कि इराक अपने बायलोजिकल और केमिकल हथियार खत्म करेगा। पर वो उसने खत्म ही नहीं किए और न ही करना चाहता है।“

“जब इराक ने कह दिया है कि उसके पास इस किस्म के हथियार है ही नहीं तो बात खत्म हो जानी चाहिए।“

“वो झूठ बोल रहा है। उसके पास ये सारे हथियार हैं।“

“तेरे पास क्या सबूत है ?“

“यह तो तुझे भी पता ही है कि इरान-इराक युद्ध आठ दस साल चलता रहा। पर जब खत्म होने पर आया तो एक दिन में ही खत्म हो गया। ऐसा पता है, क्यों हुआ था ?“

“क्यों ?“

“क्योंकि इराक ने युद्ध के मैदान में केमिकल हथियारों का प्रयोग किया था। हज़ारों इरानी फौजी मोर्चों में बैठे बैठे ही सदा की नींद सो गए। इस कारण विवश होकर इराक को लड़ाई बंद करनी पड़ी थी। सबको पता है कि इराक के पास अभी भी वो हथियार हैं। उनका इस्तेमाल करके वह लाखों लोगों को मौत के घाट उतार सकता है। साथ ही, यह फै़सला यू.एन.ओ. का है न कि अमेरिका का कि इराक को उन घातक हथियारों से मुक्त किया जाए।“

“यह तो सब बहाने हैं। असली मसला तो कुछ और है।“ आफिया उसकी किसी बात से सहमत नहीं हो रही थी।

“असली बात क्या है तू बता फिर ?“

“अमेरिका, इज़राइल को महा इज़राइल बनाने के लिए उसके करीबी मुल्कों को खत्म करके सबको इज़राइल में शामिल कर देगा। सारे अरब मुल्क खत्म हो जाएँगे। अकेला इज़राइल रह जाएगा और अरब के सारे तेल भंडारों पर अमेरिका का कब्ज़ा हो जाएगा।“

“यह मुमकिन नहीं है। यह सब कोरी अटकलें हैं।“

“क्यों मुमकिन नहीं है। पहले भी यही कुछ तो हुआ था।“

“पहले कब ?“

“जब यह सो-कॉल्ड इज़राइल बना था। तब भी ऐसी ही जबरदस्ती की गई थी।“

“मैं जानता हूँ कि तू क्या कहना चाहती है, पर मैं उस बात को भी अलग नज़रिये से देखता हूँ। तब इज़राइल नाम का कोई देश नहीं था। सिर्फ़ फलस्तीन नाम का देश था जो कि उस वक़्त अंग्रेजों का गुलाम था। फलस्तीन के यहूदी अधिक अधिकारों वाला सूबा मांगते थे। क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि अपने घर के बग़ैर उनका अस्तित्व कायम नहीं रह सकता। दूसरी बड़ी जंग के समय ही हिटलर ने आधे से ज्यादा यहूदी आबादी खत्म कर दी थी। उन्होंने जद्दोजहद करके अधिक अधिकारों वाला सूबा इज़राइल, फलस्तीन के अंदर ही ले लिया। जब अंग्रेज चले गए तो सारे अरब देशों ने मिलकर उस पृथक सूबे इज़राइल में से यहूदियों को भगाने की मुहिम शुरू कर दी। पर यहूदियों को इस बात का पहले ही अहसास था कि ऐसा होगा। उन्होंने भी अपनी तैयारी की हुई थी। जब हालात अधिक खराब हो गए तो अरब मुल्कों ने एकत्र होकर यहूदियों के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया। तू तो जानती ही है कि यह 1948 की इज़राइल-अरब देशों की पहली लड़ाई की बात है। उस लड़ाई में अरब मुल्क हार गए। फिर इज़राइल ने अपने आप को तगड़ा करना शुरू कर दिया। क्योंकि उसको पता था कि जो कुछ अब हुआ है, यह आगे भी होगा। और इस तरह हुआ भी। आगे चलकर 1973 में फिर इज़राइल और अरब देशों के बीच युद्ध हुआ। इस बार भी इज़राइल विजयी रहा। असली बात यह है कि यदि इज़राइल कमज़ोर हो तो अरब देश उसको एक दिन में ही खत्म कर दें। सो, अपने आप को बचाने का तो हरेक का पहला हक है।“

“अमजद, यह तू नहीं बोल रहा, तेरे अंदर का अमेरिकी व्यक्ति अमजद बोल रहा है।“ आफिया ने व्यंग्य कसा।

“जब तुझे कोई उत्तर नहीं सूझता तो तू मुझे यह ताना मार देती है।“

बातें करती आफिया ने इस तरह महसूस किया मानो उसके पेट में दर्द उठा हो और वह नीचे फर्श पर बैठ गई। अमजद ने शीघ्र ही एंबूलेंस को कॉल किया और उसको अस्पताल ले गया। परन्तु अस्पताल वालों ने किसी बीमारी की बजाय उनको खुशी की ख़बर दी। आफिया तीसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी। वे खुश-खुश घर लौट आए। घर आकर आफिया सोफे पर टेढ़ी होकर लेट गई। अमजद कुर्सी खींचकर उसके पास बैठ गया। आफिया उसके मुँह की ओर एकटक देखती रही। फिर आँखें भरकर बोली, “अमजद, मेरा यहाँ दिल नहीं लगता।“

“क्यों ऐसी क्या बात है ?“

“बस, पता नहीं क्या बात है। मैं चाहती हूँ कि हम पाकिस्तान वापस लौट चलें।“

अमजद कुछ न बोला। वह चुपचाप उसके मुँह की ओर देखता रहा तो आफिया फिर बोली, “तू कोई जवाब क्यों नहीं देता ?“

“आफिया, वहाँ जाकर तू पहले की तरह फिर मेरे पर ज़ोर डालेगी कि जिहाद में शामिल हो।“

“अमजद, मैं तो बीच में फंस गई हूँ।“ काफ़ी देर चुप रहने के बाद दीवार की ओर देखते हुए आफिया बोली।

“वो कैसे ?“

“एक तरफ तू है और दूसरी तरफ पाक पवित्र जिहाद।“

“आफिया, एक बात पूछूँ ? सच सच बताना।“

“हाँ पूछ।“ आफिया ने मुँह उसकी तरफ कर लिया।

“अगर कभी तुझे चुनाव करना पड़े तो तू किसका चुनेगी ? मुझे या जिहाद को ?“

“अमजद, अगर ऐसे चुनाव का वक़्त कभी आता है तो यह मेरे लिए बड़ा दुखदायी होगा। पर सच्ची बात पहले ही बता देती हूँ कि आखि़र मैं चुनूँगी तो जिहाद को ही।“ इतना कहते हुए आफिया ने आँखें मूंद लीं और सीधी होकर सोफे पर लेट गई। अमजद उदास-सा उठकर बाहर चला गया।

अगले दिन सवेरे किसी फोन की घंटी ने आफिया को नींद से जगाया। फोन सुहेल का था। वह बताने लगा कि एफ.बी.आई. द्वारा केयर ब्रदर्ज़ और बोनेवोलैंस इंटरनेशनल के कई अन्य सदस्यों को पूछताछ के लिए पकड़ा था। पर लम्बी इंटरव्यू के बाद सब को छोड़ दिया गया। सुहेल ने आफिया को सावधान किया कि वह अपनी असली ई मेल पर कुछ भी संदेहास्पद न लिखे। साथ ही फोन का प्रयोग करते समय एतिहात बरते। कोशिश करे कि अधिक बात वह उसको दिए गए गुप्त फोन पर करे। सुहेल को लगा कि आफिया नींद में होने के कारण शायद बात नहीं करना चाहती। उसको सोने के लिए कहकर उसने फोन काट दिया। आफिया को दुबारा नींद आने ही लगी थी कि फोन फिर बजा। उसने स्क्रीन पर देखा। सुहेल ही दुबारा फोन कर रहा था। उसने फोन ऑन किया तो सुहेले बड़े उत्साह में बोला, “मैं जो कुछ बताने जा रहा था, वो तेरी नींद और तेरी सुस्ती सब मिटा देगा।“

“अच्छा !“

“मुझे अभी अभी अदनान शुक्रीजुमा का मैसज मिला है।“

“मेरे साथ भी उसकी रात ही बात हुई थी। पर अब वह क्या कह रहा है ?“

“आफिया, तुझे याद है न कि पिछले दिनों एक यहूदी पत्रकार ने पाकिस्तान जाकर जैशे मुहम्मद के लीडर की इंटरव्यू की थी और बाद में उसने जैशे मुहम्मद के बारे में काफ़ी कुछ ऐसा भी लिखा था जो कि हमारे उस लीडर को पसंद नहीं आया था।“

“मुझे पता है। तू डेनियल पर्ल की बात कर रहा है।“

“हाँ, उसी की। उसको उसकी आखि़री मंज़िल पर पहुँचा दिया गया है।“

“क्या मतलब ?“ आफिया उछलकर खड़ी हो गई।

“तू यह एड्रेस इंटरनेट पर डालकर इस वेबसाइट को खुद देख।“ एड्रेस लिखवा कर सुहेल ने फोन कोट दिया। आफिया ने कंप्यूटर ऑन करके सुहेल द्वारा बताई गई वेबसाइट खोली और वीडियो चला दी। वीडियो शुरू हुई तो वह बड़े ध्यान से देखने लगी। दो ढके चेहरों वाले व्यक्ति डेनियल पर्ल को एक खुले आँगन में लेकर आते हैं। फिर उसकी बाहें पीछे से बाँध दी जाती हैं। ढके चेहरे वाला एक व्यक्ति आगे बढ़ता है और डेनियल पर्ल की जीभ काट देता है। फिर बायें हाथ से उसके बाल पकड़कर सिर को पीछे की ओर खींचता है और दायें हाथ से धीरे धीरे उसकी गर्दन इस तरह काटता है जैसे बकरे को हलाल किया जाता है। सब कुछ करीब दो मिनट की वीडियो में ही घटित हो जाता है। आफिया इन दो मिनटों में आँखें नहीं झपकती। पहले उसका चित्त खराब होने लगता है। फिर उसको अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा मारे जा रहे जिहादी याद आते हैं तो उसका मन बदलने लगता है। आखि़र में वह उन जिहादियों पर गर्व महसूस करती है जो डेनियल पर्ल की हत्या करते हैं।

अगले दिन यह घटना अख़बारों की मुख्य सुर्खी बन गई। असल में डेनियल पर्ल कई दिनों से पकड़ा हुआ था। उसकी गर्भवर्ती पत्नी ने टी.वी. पर जाकर जिहादियों से विनती भी की थी कि उसके पति की जान बख़्श दी जाए। उसने कहा था कि और किसी के लिए नहीं तो इस नन्हीं जान के लिए ही सही, जो कुछ ही महीनों बाद जन्म लेने वाली है। कम से कम इसको पिता से वंचित न किया जाए। पर उसकी मिन्नतों का कोई असर न हुआ। आतंकवादियों ने पर्ल की सिर्फ़ हत्या ही नहीं की, बल्कि उसको मारते समय की वीडियो इसलिए बनाई ताकि अन्य पत्रकारों डराया जा सके।

अमेरिका युद्ध का मुँह हालांकि इराक की तरफ मोड़ रहा था, पर उसने अलकायदा सदस्यों का पीछा करना और तेज़ कर दिया था। आखि़र, मार्च 2002 में अमेरिका को उस वक़्त सफलता मिली जब उन्होंने बहुत ही उच्च कोटि का अलकायदा सदस्य अबू जु़बेद पकड़ लिया। पहली बार अबू जु़बेद ने ऐसी जानकारी दी कि अमेरिकी सरकार के होश उड़ गए। उसके अनुसार नाइन एलेवन की सारी कार्रवाई को अंजाम देने की जिम्मेदारी खालिद शेख मुहम्मद की थी जिसको कि आमतौर पर के.एस.एम. कहा जाता था। और 1993 में नॉर्थ टॉवर के पॉर्किंग लॉट में बम धमाका करके छह जनों की मौत और सैकड़ों को ज़ख़्मी करने वाला रम्जी यूसफ इसी के.एस.एम. का भतीजा है। अमेरिकी एंजेसियाँ जो अब तक नाइन एलेवन को लेकर अँधेरे में ही तीर मार रही थीं, अब सारी कहानी समझ गईं। वे जान गईं कि कैसे के.एस.एम. ने ओसामा बिन लोदन के साथ मिलकर नाइन एलेवन वाली घटना का खाका बनाया। फिर इसको अंजाम देने की सारी जिम्मेदारी भी के.एस.एम. ने ही पूरी की। उसने सारे आतंकवादियों को अमेरिका में पहुँचाने में मदद की और उन्हें ट्रेनिंग दी। अबू जु़बेद बहुत थोड़े टार्चर के बाद ही बहुत कुछ उगल गया। उसने के.एस.एम. की भविष्य की स्कीमों के बारे में भी बता दिया। अबू ने बताया, “के.एस.एम. अपनी इस नाइन एलेवन की प्राप्ति से बहुत उत्साहित है। वह इस लड़ाई को ज़ोर-शोर से आगे बढ़ाते हुए दूसरे बड़े हमले की तैयारी कर रहा है। उसकी आगे की योजना यह है कि अमेरिका में रेडियो एक्टिव बमों के साथ हमला किया जाए। अमेरिका की प्राकृतिक गैस लाइनों को आग लगा दी जाए जिससे एक ही बार में लाखों लोग मर जाएँगे। या फिर वह चाहता है कि अमेरिका के पानी के सिस्टम में ज़हर मिला दिया जाए। इससे भी बहुत लोग मरेंगे। अमेरिकी एटमी ऊर्जा प्लांट भी उसके निशाने पर हैं।“

अबू जु़बेद ने यह भी बताया कि इस दूसरे हमले के लिए के.एस.एम. ने भिन्न तरीका अपनाया है। इसके लिए वह पहले से ही अमेरिका में रह रहे लोगों में से जिहादियों की भर्ती कर रहा है। इस काम के लिए उसने होज़े पदीला जैसे कई लोग चुन भी लिए हैं। इसके अलावा अबू जु़बेद ने आगे बताया कि अगली सारी योजनायों को अंजाम देने के लिए के.एस.एम. ने अदनान शुक्रीजुमा को जिम्मेदारी सौंपी है। वही अमेरिका में रहते हुए आगे के आपरेशनों को अंजाम देगा। अबू जु़बेद से जिनके बारे में जानकारी मिली, एफ.बी.आई. उन सबके पीछे लग गई।

(जारी…)