JagMohan in Hindi Short Stories by zeba Praveen books and stories PDF | Papa aap kaha chale gye

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Papa aap kaha chale gye

त्यौहारों की ख़ुशी सबसे ज़्यादा बच्चो में होती हैं,या यूँ कह्ने बच्चो की वजह से ही त्यौहार अच्छे लगते हैं,दोनों शब्द अलग हैं और थोड़े बहुत मायने भी लेकिन सच तो यह हैं कि बच्चे ही त्यौहारों के रौनक होते हैं,जग्गू जो एक,तीन साल का लड़का हैं जिसका पूरा नाम जगदीश हैं | उसके बाबा ई-रिक्शा चलाता हैं और साथ में सब्जी मंडी में अपना रेड़ी लगाता हैं,नाम हैं मोहन,मोहन के लिए जग्गू पूरी ज़िन्दगी है वो उसे अपने से बेहतर ज़िन्दगी देना चाहता हैं,उसी के लिए तो मोहन अपना दो-दो बिज़नेस चला रहा था,मोहन ने उसके पढ़ने के लिए उसका दाखिला प्राइवेट स्कूल में करवाया था ,यूँ तो जग्गू स्कूल जाने के टाइम हमेशा तंग करता था कि"स्कूल नहीं जाऊंगा" लेकिन जब उसके बाबा उसे अपने ई-रिक्शा में छोड़ने जाते तो वो ख़ुशी-ख़ुशी चला जाता लेकिन स्कूल में जाकर खूब रोता था,जग्गू कि माँ गीता जो अपने पति के बिज़नेस की आधी मालकिन थी ,वो जग्गू के साथ कुछ दिन स्कूल में जाकर बैठा करती थी तब उसने स्कूल में बैठना सीखा,धीरे-धीरे उसके एकात दोस्त बन गए तब जाके उसने स्कूल में रोना बंद किया ,कल दिवाली हैं,मोहन के लिए बहुत बड़ी ख़ुशी हैं क्यूंकि उसे पूरा दिन मिलेगा अपने जिगर के टुकड़े के साथ बिताने के लिए,उसने अभी से ठान लिया था के त्यौहार वाले दिन वो घर से कही नहीं जायेगा,उस दिन तो जग्गू की भी छुट्टी होती हैं वो उसी के साथ पूरा दिन बिताएगा,वैसे तो जग्गू की संडे को भी छुट्टी रहती थी लेकिन उस दिन भी उसके बाबा सब्जी बेचने मंडी जाता था और जब वो थक कर दस-ग्यारह बजे घर आता तो तब तक तो जग्गू सो चुका होता,मोहन सही से अपने बेटे को लाड भी नहीं कर पाता के पूरा दिन निकल जाता था, फिर भी सोते हुए भी वो उसके गालो पर हाथ फेरता और चुम्बन लेकर ही सोता था,सुबह आठ बजे मोहन अपने ई-रिक्शा से जग्गू को स्कूल छोड़ कर ही अपने काम पर जाता था और जब चार बजे वापस आता तब उसके बाद मंडी में सब्जी बेचने जाता था,गीता भी कुछ घंटे उसका हाथ बटा आती थी लेकिन जब से जग्गू पैदा हुआ तो मोहन ने उसे उसकी ड्यूटी करने के लिए छोड़ दिया था,मोहन जग्गू को अपने काम से दूर रखता था ताकि उसे उसके कामो का साया भी न पड़ सके,वो अपने बेटे को अफसर बनना देखना चाहता था,दो दिन पहले ही एक दूकान वाले ने उसकी रेड़ी पलट दी थी,उसने थोड़ी देर के लिए उस दूकान के पास खड़ा कर रखा था बस इसी लिए,"बहुत धांधली करते हैं यह अमीर ज़ादे,थोड़े से पैसे क्या हो गए,गरीबो की रोज़ी-रोटी पर लात मारने चलें हैं,अरे हाय लगेगी इनको हम जैसे लोगो की" 'छोड़ न गीता तू क्यूँ अपना खून जला रही हैं वो ऊपर वाला सब देखता हैं और इन जानवरो का हिसाब वही करेगा'यह कह कर मोहन ने अपनी बीवी को चुप कराया था,घर में तो मोहन अपने बेटे के लिए प्रिन्स था लेकिन बाहर की दुनिया उसको कौड़ी भर भी इज़्ज़त नहीं देती थी और कभी-कभी तो उसे ज़लील भी कर देती थी,अब तो आदत हो गयी थी ऐसे जलील होने की,खैर जब वो अपने बेटे के साथ होता तब सब कुछ भूल कर एक प्रिन्स की तरह अपने छोटे प्रिन्स पर हुकूमत चलाता था |


कल ही दिवाली हैं अभी तक जग्गू और उसकी माई के लिए नए कपड़े नहीं लिए ,जाऊंगा ना तो फिर जग्गू मुझे याद दिलाएगा,ऐसा करता हूँ आज थोड़ा लेट मंडी चला जाऊंगा पहले बाजार से कपड़े और त्यौहारों की चीज़े ले लेता हूँ,यह सोचते हुए उसने अपने रिक्शे को बाजार की तरफ मोड़ा,उसके मन में ख्याल आया पहले गीता को बता दूँ फिर सोचा सामान ले जाकर उसे सरप्राइज दे दूंगा ,एक ही बार जब वो देखेंगी तो खुश हो जाएगी,हल्की मुस्कराहट के साथ रिक्शा एक तरफ लगा कर वो बाजार से सामान खरीदने लगा |

सामान खरीदते-खरीदते ही आठ बज गए ,गीता तो परेशान हो रही होगी,आज तो डांट खाना पक्का हैं, यह सोच ही रहा था के बाहर दरवाज़े पर खेल रहा जग्गू मिल गया,पापा-पापा कह कर उसके हाथ पकड़ कर लटक गया,जग्गू ने बताया कि उसकी माई पूजा का सामान लेने गयी हैं,मोहन को थोड़ी शांति मिली,नहीं तो उसे आज गीता से बहुत डांट पड़ती .....

मोहन सारा सामान ले जाकर कमरे में रख दिया,

अहा क्या खुशबू हैं...”

जग्गू बोल पड़ा'पापा मम्मी ने आलू मतल बनाया हैं'जग्गू कि यह हकलाहट भरी आवाज़ उसके दिन भर कि सारी थकान दूर कर चुकी थी,वो एक पलेट चावल और सब्जी निकाल कर खुद भी खाने लगा और जग्गू को साथ बिठा कर उसे भी खिलाने लगा,जग्गू अपने नए कपड़े देख कर खिल उठा था,यूँ तो उसका किराये का घर तीसरे मंजिल पर था लेकिन जग्गू को एक मिनट भी नहीं लगा निचे उतरने में,जाकर अपने गली के दोस्तों को बता आया कि उसके भी नए कपड़े आ गए हैं और तो और वो अपने दोस्तों को ऊपर लेकर भी आ गया अपने कपड़े दिखाने के लिए,मोहन अपने बेटे को खुश देख कर अंदर तक खुश हो उठा,थोड़ी देर बाद गीता भी आ गयी उसके आने के बाद मोहन अपनी रेड़ी निकाल कर वापस अपने काम पर चला गया,

आते-आते बारह बज गए थे,त्यौहारों के सीजन में मंडियों में बहुत भीड़ रहती हैं,इसलिए वो कुछ दिनों से घर पर लेट ही आ रहा था, अरे यह क्या जग्गू अभी तक सोया नहीं,यह कहते हुए वो अपने हाथो का थैला जिसमे कल की पूजा के लिए प्रशाद था गीता की तरफ बढ़ता हैं ।

'अले पापा कल तुट्टी हैं एतत्कुल की,दिवाली हैं न इत् लिए"

मोहन उसे गोद में उठा कर प्यार से पुचकारने लगा,गीता ने पहले ही उसे बता दिया की कल बहुत सारे मेहमान आने वाले हैं,और कल तो घर में एक रत्ती भी जगह नहीं रहेगी,दोनों बाप बेटे को ज़्यादा दिक्कत हो तो छत्त पर चले जाना,मोहन अपने बेटे के साथ खेलने में मशरूफ था,वो गीता की बातों पर ध्यान नहीं दे रहा था,जग्गू पूछता हैं'पापा आप मेले लिए पटाके नहीं लाये,कल मैं बहुत छाले पटाके फ़ोलूगा"

मोहन उससे कहता हैं कि कल वो उसे बहुत सारे पठाखे दिलाएगा,खाना खाने के बाद मोहनअपने बेटे को अपने बगल में लिटा कर दिन-भर की पूरी खबर सुनने लगा,उसकी हकलाती हुई आवाज़ को सुनते-सुनते कब नींद आ गयी पता भी नहीं चला,कल सुबह जाके उसकी आँखे खुली,देखा तो गीता कमरे की सफाई कर रही थी,उस समय बगल के किरायेदारों के घरो में से कभी बर्तन तो कभी झाड़ू लगाने कि आवाजे आ रही थी,मोहन उठा तो साथ में जग्गू भी उठा,दोनों उठ कर एक साथ मुँह धोने गए,आये तो गीता ने दोनों को नाश्ता दिया,नाश्ता करने के बाद मोहन जग्गू को पठाखे दिलाने ले गया तब तक गीता बेड का चादर बदल कर घर को अच्छे से सजाने लगी थी,दोपहर से ही मेहमान आने शुरू हो गए थे,गीता अकेले ही सब की खातिर दारी कर रही थी,मोहन उनके बीच बैठ कर उनसे बातें करने में व्यस्त था,जग्गू तो पड़ोस के बच्चो के साथ खेलने में बिजी था,कभी घर में तो कभी बाहर ऐसे ही उसने आवा-जाही लगा रखी थी ,गीता की बहन सुनीता भी आयी थी जो एक दिन उसके यहाँ ठहरे भी वाली थी,वो ही थोड़ी बहुत उसकी मदद कर रही थी,शाम चार बजे के करीब उस घर का मकान मालिक सभी किरायेदार के लिए एक-एक मिठाई का डब्बा भिजवाता हैं,वो उस डब्बे को जग्गू को दे देता हैं,जग्गू निचे से ऊपर लेकर आता हैं,उस समय गीता पूजा की तैयारी कर रही थी,साढ़े सात बजे का ही टाइम था,मेहमानों से बातें करते-करते समय कैसे बीत रहा था कुछ पता भी नहीं चल रहा था,पूजा के समय मोहन के भी एकात दोस्त आ गए थे और पूजा ख़त्म होने बाद सब पटाखे फोड़ने के लिए बाहर गली में चले गए,गीता अपने पड़ोस के घरो में मिठाई बाटने चली गयी,जग्गू के ज़िद करने पर मोहन उसे लेकर छत्त पर चला गया,गली में से पहले से ही पठाखे फूटने के शोर रहे थे,पूरा शहर रौशनी में जगमगा रहा था,हर तरफ चहल पहल थी,ऊपर का छत्त काफी बड़ा था,पड़ोस के और भी बच्चे अपने पठाखे छत पर फोड़ रहे थे,एक तरफ मोहन भी अपने बेटे के साथ पटाखे फोड़ने में व्यस्त था,लेकिन एका-एक पूरी गली में मातम का माहौल बन गया,गली के लोगो में जैसे हाहाकार मचा हुआ था,त्यौहार के दिन यह कैसा अनर्थ हो गया,देखा तो मोहन चौथे मंजिल से निचे गिर कर तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहा था,जो बच्चे छत्त पर पटाखे फोड़ रहे थे वो सब निचे आ गए,किसी को यकीन नहीं हो रहा था के अचानक से यह क्या हो गया,अच्छा-खासा दोनों छत्त पर पटाखे फोड़ रहे थे लेकिन मोहन चौथे मंजिल से निचे कैसे गिर गया,और जग्गू कहाँ हैं,उन बच्चो ने जब जग्गू को ढूंढा तो पता चला अभी-अभी जग्गू को सामने वाले घर से एक लड़का खून से लतपत् हॉस्पिटल ले गया,गली में लग रहा था जैसे मानो एक पतली सी खून की नदिया बह रही हो ,मोहन वही पर तड़प-तड़प कर अपना दम तोड़ चुका था,बाहर शोर देख कर गीता की बहन भी बाहर आ गयी,देखा तो जैसे उसके होश ही उड़ गए,जाकर मोहन को उठाने लगी,मोहन का सिर फट चूका था, गली के आस-पास के लोग भी आ गए और उसे घेर कर खड़े हो गए,किसी ने उसके पास जाने की कोशिश नहीं की,गीता अपने घर के बाहर लोगो का भीड़ देख क़र उस भीड़ के अंदर गयी,जब उसने देखा तो जैसे उसके पैरो तले ज़मीन ही खिसक गयी,जाकर रोते हुए अपने पति को झिंझोर कर जगाने लगी, उस समय मोहन को देख कर गीता पर जो बीत रहा था वो तो सिर्फ वही समझ सकती थी,वो गली में बह रहे खून को जाकर समेटने लगी,उसकी हालत ऐसी लग रही थी जैसे वो सारा खून इकक्ठा कर दुबारा अपने पति को ज़िंदा कर लेगी,उतने में गीता का बहनोई और उसके दोस्त मोहन को उठा कर रिक्शे में लाद कर ले जाने लगे,मोहन गिरने के कुछ देर बाद ही मर चुका था,लेकिन वो लोग समझ नहीं पा रहे थे की क्या करे,गीता का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था,वो उस खून को अपने हाथो से उठा कर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी,सब को लगने लगा शायद गीता इस सदमे से पागल हो गयी हैं,वो फिर रोते हुए अपने बेटे को ढूंढने लगी,ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाने लगी,पास में खड़ी भीड़ में से ही एक ने कहा वो पास के हॉस्पिटल में हैं,गीता का पूरा शरीर खून से लतपत था वो उठ कर हॉस्पिटल की तरफ भागने लगी,सुनीता भी उसके पीछे-पीछे दौड़ कर उसे सँभालने के लिए जा रही थी।

थोड़ी देर बाद पुलिस आयी,पुरे जगह को घेर लिया,सभी के बीच एक दहशत का माहौल बना हुआ था,किसी को यह समझ नहीं आ रहा था के मोहन जैसा आदमी सुसाइड तो नहीं कर सकता फिर वो इतने ऊपर से निचे कैसे गिरा और तो और जग्गू को सामने वाले घर का लड़का हॉस्पिटल लेकर क्यूँ गया,वो तो अपने छत्त पर पटाखे फोड़ रहा था तो फिर उसके घर कैसे पंहुचा आखिर छत्त पर ऐसा क्या हुआ था??

इस भरे पर्व में क्या हो गया,आसपास के लोगो ने भी पटाखे फोड़ने बंद कर दिए थे ,पुलिस ने उन बच्चो को अपने पास बुलाया जो छत्त पर फटाखे फोड़ रहे थे,वो सारे बच्चे इस हादसे से डरे हुए थे,उन्होंने उन बच्चो को समझा-बहलाकर पूछा,उन बच्चो ने बताया कि मोहन अंकल उनके साथ ही छत्त पर पटाखे फोड़ रहे थे ,जिस तरफ छत्त की दीवार छोटी थी वो उसी तरफ जग्गू को गोद में लेकर खड़े थे, जब अनार बम जलाया तो जैसे ही उन्होंने पीछे होने के लिए किया तो उनका पैर फिसल गया और वो जग्गू के साथ ही उस छोटी दीवार पर गिरे और वो सीधा निचे चले गए,उनके गोद में जग्गू था लेकिन उन्होंने उसे सामने वाले छत पर फेंक दिया और खुद निचे गिर गए,जग्गू सामने वाले छत्त के पाएं में जाकर टकरा गया ,तभी वो लोग भी निचे आ गए ।

जग्गू का घर मेरे घर से ज़्यादा दूर नहीं था,मैं उसे अक्सर बाहर खेलते हुए देखती थी,उस समय मैं अपने भाई के साथ स्कूटी से आ रही थी,लोगो ने पूरा रास्ता जाम कर रखा था,यह देखने के लिए कि आखिर हमारे गली में भीड़ क्यूँ लगी है, हम भी स्कूटी से उतर कर भीड़ में गए,देखा तो गली में काफी दूर तक खून फैला हुआ था,जहाँ पूरा देश खुशियों की रौशनी में झूम रहा था वही उस दिन किसी के घर का चिराग बुझ चुका था,गीता का पति तो मर चूका था लेकिन बेटा हॉस्पिटल में ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहा था,मेरे पड़ोस की भाभी गीता को अच्छे से जानती थी वो अक्सर उससे सब्जिया खरीदती थी,जब उसने सुना तो वो उसी वक्त उससे मिलने चली गयी,उस वक़्त संगीता उसे घर लेकर आ चुकी थी,गीता ने रो-रो कर अपना बुरा हाल कर रखा था ,उस समय उस पर क्या बीत रही होगी वो एक माँ और पत्नी ही समझ सकती हैं,बेचारी गीता जहाँ कुछ देर पहले लोगो को घूम-घूम कर प्रशाद बाँट रही थी,अभी वही लोग उसे चुप कराने में लगे थे |

इस सब के लिए कौन ज़िम्मेदार था,'एक ऐसा बाप जो अपने बेटे के साथ दिवाली के पटाखे फोड़ रहा था या फिर वो दिवार जो छोटी बनायीं गयी थी शायद वो दिवार थोड़ी ऊँची होती तो मोहन अभी हमारे बीच होता,यह बात बिलकुल सही है अगर दीवार ऊँची होती तो मोहन को शायद हल्की-फुल्की सी चोटे आती बस,वो मरता नहीं लेकिन यह गलती दीवार की नहीं हैं कि वो छोटी ही रह गयी असल बात तो यह हैं कि यह जो मकान मालिक होते हैं न अपने घर को जब किराये पर लगाना होता हैं न तब जैसे-तैसे बनवा कर यह एक बिल्डिंग खड़ा कर देता हैं उस समय वो यह नहीं देखता कि इससे किरायेदारों को कितनी परेशानी होगी बल्कि वो यह देखता हैं कि हर महीने वो उस बिल्डिंग से कितना वसूलेगा,ज़्यादातर ऐसी बिल्डिंगो की एक सीढ़ी की ऊचाई आम सीढ़ियों के दो सीढ़ी के बराबर होती हैं,इस तरह होता हैं कि बूढ़े लोग चढ़ने से पहले ही डर जाए,लेकिन हम जैसे बिचारे लोग करे भी तो क्या करे,रहने के लिए एक छत्त तो चाहिए चाहे वो किराये का ही क्यूँ न हो फिर भी लोग उस में गुज़ारा करते हैं और उसके लिए एक अच्छी खासी रकम भी चुकाते हैं |

हम सब जानते हैं,यह दुनिया उन्ही कि सुनती हैं जिनके पास पैसे होते हैं,गरीब लोग तो अमीरो का कर्ज़ा चुकाते-चुकाते ही दम तोड़ देते हैं,हम सब चुकाते हैं कर्ज़ा,जी हाँ विजय माल्या,नीरव मोदी जैसे लोग हैं न इसका उदाहरण |

यह जो ज़िन्दगी हमें मिली हैं, यह बहुत ही अनमोल हैं,हम लोगो की गलतिया तो बहुत गिना कर रख देंगे,लेकिन क्या हम खुद भी अपनी ज़िन्दगी का ख्याल करते हैं,अरे क्या ज़रूरत थी मोहन को उसी तरफ खड़े होने की जहाँ दिवार छोटी थी उसने खुद की जान तो खतरे में डाला ही था लेकिन साथ ही साथ उस मासूम का भी जान खतरे में डाल दिया था,ज़रा सी लापरवाही का मुआवज़ा हमें ज़िन्दगी देकर चुकानी पड़ती हैं,इससे एक इंसान नहीं मरता बल्कि एक परिवार ख़त्म हो जाता हैं,सब कुछ बिखर जाता हैं,आयी तो थी पुलिस कुछ देर बाद चली भी गयी क्या कर लिए उसने,जिसको जाना था वो तो चला गया न,अगर पुलिस चाहे तो उस मकान मालिक को अरेस्ट भी कर सकती थी क्यूंकि इस में उसी की गलती थी उन्होंने ही छत्त की दिवार छोटी बनवायी थी इससे आगे भी खतरा हो सकता हैं और भी कई बच्चे रहते हैं उस घर,मोहन जैसे बड़े इंसान से गलती हो सकती हैं तो फिर बच्चे तो बच्चे ही हैं।

असल में वो घर एक पूर्व विधायक का था और पुलिस वाले तो ऐसे लोगो के चमचे होते हैं उन्होंने कोई केस दर्ज़ ही नहीं किया,अपनी ज़िन्दगी का ख्याल खुद रखना सीखिए, कोई कुछ नहीं करेगा आपके लिए,ज़िन्दगी एक लड़ाई हैं जिसे खुद ही लड़ना हैं,जिस चीज़ से ज़िन्दगी को खतरा हो उसके पास भी मत जाइये,इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं ट्रैफिक के नियम को तोड़ना,हर रोज़ सुनने में आता हैं कि लोग किस तरह सड़क पर अपनी जान गवा देते हैं,लाखो लोग हर साल मरते हैं,सिर्फ थोड़ी सी लापरवाही की वजह से,यह जो ज़िन्दगी हैं बहुत कीमती हैं इसकी अहमियत समझिये,एक बार जब चली जाएगी तो दुबारा नहीं मिलेगी,अपने लिए न सही अपनों के लिए जीना सीखिए,आप भले ही अपने लिए कुछ भी सोचते हैं लेकिन आप एक माँ, बाप,बहन, भाई,बीवी और बच्चे के लिए पूरी उम्मीद हैं,आप चाहे कितने बार भी लाइफ में फेल क्यूँ न हो जाए कभी चुनौती से मत भागिए,जब चुनौतियां लाइफ में आती हैं न तब हमें यह पता चलता हैं की हम सच में कुछ कर रहे,अपने ऊपर भरोसा रखिये एक ना एक दिन सफलता आप के कदमे चूमेंगी।