44
“मैं भूल गई थी कि तुम यहाँ हो, मेरे साथ। मैं कहीं विचारों में खो गई थी। मैं भी कितनी मूर्ख हूँ?” वफ़ाई ने स्मित दिया, जीत ने भी।
जीत ने तूलिका वहीं छोड़ दी, झूले पर जा कर बैठ गया। वफ़ाई को देखने लगा जो दूर खड़ी थी।
वफ़ाई ने जीत को केनवास से झूले तक जाते देखा था।
बात करने का समय आ गया है। अभी मैं जीत से बात कर सकती हूँ। लंबे समय तक मौन नहीं रह सकती मैं।
वफ़ाई भी झूले के समीप गई। वह झूले पर बैठना चाहती थी किन्तु वफ़ाई ने स्वयं को रोका। वह झूले के समीप ही खड़ी हो गई।
झूले पर दो व्यक्ति के लिए पर्याप्त स्थान है किन्तु कभी भी उस दूसरे स्थान का उपयोग नहीं हुआ। एक स्थान सदैव रिक्त रहता है। एक बैठता है तो दूसरा खड़ा रहता है। जब से मैं यहाँ आई हूँ, इयसा ही देखा है मैंने। मन तो करता है कि जीत के समीप झूले पर बैठ जाऊं, समीप से जीत के अस्तित्व का अनुभव करूँ। किन्तु मैं नहीं कर पा रही हूँ।
जीत ने कभी भी झूले पर उस के समीप बैठने का आमंत्रण नहीं दिया। मैंने भी तो उसे आमंत्रण नहीं दिया। बस यही कारण है कि दोनों के बीच अंतर है।
अंतर? मुझे अनेक अंतर पार करने बाकी है। एक दिवस मैं इन सभी अंतर पार कर लूँगी। लक्ष्य को पा लूँगी।
वफ़ाई, तुम्हारा लक्ष्य क्या है?
चुप ही रहो तुम तो।
वफ़ाई शांत हो गई। झूले के समीप खड़ी रह गई।
दोनों शांत थे। दोनों प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई बोले। दोनों मौन को भंग करना चाहते थे किन्तु कोई भी पहल करना नहीं चाहते थे।
जीत झूले पर झूलता रहा, वफ़ाई मौन खड़ी रही।
मौन के लिए यह उत्तम समय था। वह अपने अस्तित्व का आनंद लेता रहा। उसे ज्ञात था कि किसी भी क्षण उस का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। अत: मौन यथा संभव अपने होने का आनंद लेना चाहता था।
मौन, क्रूर मौन।
यही तो उचित समय है जीत के साथ नींबू रस पीने का। जीत से बातें करने का।
“हम एक प्रयोग कर सकते हैं?” अंतत: वफ़ाई ने पहल की।
“कैसा प्रयोग? क्या यह प्रयोग केनवास के साथ करना है?” जीत ने रुचि दिखाई।
“नहीं, यह नींबू रस के साथ है।“
“नींबू, पानी, नमक, चीनी, काली मिर्च के उपरांत इसमे और क्या कुछ करने का अवकाश बचा है?”
“श्रीमान चित्रकार, इस जगत में कुछ भी सम्पूर्ण नहीं है। कोई चित्र भी नहीं। प्रत्येक वस्तु में तथा व्यक्ति में परिवर्तन और सुधार के लिए सदैव अवकाश होता है।“
“प्रत्येक व्यक्ति से तुम्हारा संकेत मेरी तरफ है?”
“नहीं। क्या मैंने ऐसा कहा?”
“तो प्रत्येक व्यक्ति से क्या तात्पर्य है तुम्हारा?”
“मेरे शब्दों को अपने साथ मत जोड़ो।“
“कुछ शब्द सदैव किसी व्यक्ति की तरफ संकेत करते हैं।“
“छोड़ो यह सब। नींबू रस पर प्रयोग करते हैं।“
“जैसा तुम चाहो। बात करने के लिए ‘नींबू रस’ अच्छा विषय है, वफ़ाई।“ जीत हंस दिया।
“तो मैं कह रही थी कि ठंडे नींबू रस के बदले गरम नींबू रस बनाते हैं।“
“वह क्या है? वह कैसे बनता है? उसका स्वाद कैसा होता है?”
“मैं नहीं जानती।“ वफ़ाई कक्ष में जाने लगी,”चलो प्रयोग करके देख लेते हैं।” वह कक्ष में चली गई।
जीत विचारने लगा।
मैं भी कक्ष में जाऊँ और वफ़ाई के प्रयोग में उसकी सहायता करूँ।
तुम उसकी सहायता करना चाहते हो अथवा उसे निहारना चाहते हो? बंध दीवारों में वफ़ाई के सानीध्य का अनुभव करना चाहते हो?
मैं नहीं जनता, किन्तु मैं उसके पास दौड़ जाना चाहता हूँ।
तुम्हारा आशय....।
मेरे आशय पर संदेह करते हो? ठीक है, मैं वफ़ाई के पास नहीं जाता हूँ। यहीं बैठा रहूँगा। अब तो तुम प्रसन्न हो ना?
जीत कक्ष में नहीं गया, झूले पर बैठे वफ़ाई की प्रतीक्षा करने लगा।
गरम नींबू रस से भरे दो गिलास ले कर वफ़ाई आ गई। एक गिलास जीत को दिया और झूले के साथ खड़ी हो गई। दोनों ने एक एक घूंट पिया, उसके स्वाद का अनुभव किया।
अधरों पर रुके गिलास तथा आँखों के बीच के खाली स्थान में से दोनों ने एक दूसरे को देखा। क्षण भर के लिए समय स्थिर हो गया।
जीत, तुम इस मुद्रा में सुंदर लग रहे हो। मैं तुम्हारा ऐसा चित्र बनाउंगी।
वफ़ाई, इस भंगिमा में तुम कुछ समय स्थिर हो जाओ। मैं तुम्हारा चित्र रचता हूँ।
“बिलकुल बुरा नहीं है।“ दोनों ने एक साथ कहा।
“क्या?” दोनों ने एक साथ पूछा। दोनों हंस पड़े। लंबे समय के पश्चात मरुभूमि में मंद मंद पवन बहने लगी। दोनों को स्पर्श करती पवन चली गई।
“गरम नींबू रस से शीघ्र ही मैं नींबू सूप बनाना सीख लूँगी।“
जीत ने मौन सम्मति व्यक्त की।
“जीत, मौन क्या है? मैं कब से इस पर उलझी हूँ। इस रहस्य को पाने में मेरी सहायता करो।“
“मैं लेखक, तत्ववेता, संत अथवा ज्ञानी नहीं हूँ। मेरे पास इस रहस्य का कोई उकेल नहीं है। मुझे यह ज्ञात है कि मौन सुंदर है और मैं उसे पसंद करता हूँ। मौन से मुझे कोई समस्या नहीं है। उसे रहस्य ही रहने दो।“
“तो इस के उकेल में तुम मेरे साथ नहीं हो।“
“हम सत्यन्वेषी नहीं है। यह कोई वध, लुट जैसी घटना का किस्सा नहीं है।’
“है। जीत यह ऐसी ही घटना है। यह वध, लुट, चोरी का किस्सा है।“
“ठीक है, ठीक है। जो भी कहना हो स्पष्ट कहो।“
वफ़ाई ने गहरी सांस ली और कहा,”जब मौन होता है तब शब्दों का वध होता है, विचारों की लुट होती है, भावनाओं की चोरी होती है। यह सभी अनिच्छनिय घटना तो है। श्रीमान सत्यान्वेषी, क्या अब तुम मेरी सहायता करोगे मौन नामक रहस्य का उकेल लाने में?”
“आपकी सभी बातें अकाट्य है, वकील जी। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप शांत हो जाएँ तथा मौन के ऊपर लगे सभी आरोपों को निरस्त कर दें। उसे क्षमा कर दें। यह किस्सा यहीं समाप्त कर दें।“
“तुम्हारा तात्पर्य है कि मौन निर्दोष है? इतने सारे अपराध के उपरांत भी? जीत।“
“ईश्वर अथवा प्रकृति के हम न्यायाधीश नहीं है। यह किस्सा सर्व शक्तिमान के न्यायालय में प्रस्तुत किया जाय। कुमारी वफ़ाई, तुम अनुचित न्यायालय में हो।”
“कुमारी वफ़ाई? मुझे केवल वफ़ाई कहो। और मैं वकील नहीं हूँ।“
“इन बातों का मैं ध्यान रखूँगा। अब ठीक है?” जीत ने शीश झुका दिया। वफ़ाई ने स्मित दिया।
“मेरा प्रश्न, मेरा रहस्य अभी भी रहस्य ही रहा।“
“वफ़ाई, उसे वहीं छोड़ दो। प्रत्येक रहस्य का अपना सौन्दर्य होता है जो अनुपम होता है।“
“तो तुम्हें सौन्दर्य पसंद है।”
“अवश्य। मैं उसे पसंद करता हूँ। उससे स्नेह करता हूँ। तुम्हारा क्या विचार है?”
“सौन्दर्य एक सापेक्ष भाव है। वह एक रहस्य भी है। तुम रहस्य तथा सौन्दर्य दोनों से स्नेह करते हो। तो हम उसे यहीं छोड़ देते हैं। ठीक है ना?“
“बड़ी चतुर हो तुम। तुम्हारी चतुराई की प्रशंसा करता हूँ।“ जीत के शब्दों का वफ़ाई ने स्मित से उत्तर दिया।
जीत, तुम ऐसे प्रथम पुरुष हो जिसने मेरी चतुराई की प्रशंसा की है। बाकी सभी पुरुष मेरे शारीरिक सौन्दर्य की ही बात करते हैं। जीत, तुम अन्य सभी पुरुषों से भिन्न हो।
वफ़ाई ने मन ही मन जीत को धन्यवाद दिया।
“जीत, इस चर्चा पर तुम्हारा अंतिम मत क्या है?”
“ज्ञान से परे मैं बस इतना ही कहूँगा कि यदि किसी को कुछ देना चाहते हो तो उसे अपना मौन देना, भले ही वह रहस्य से भरा हो।“
“जीत, थोड़े शब्दों में तुमने सब कुछ कह दिया।“