Relation never die in Hindi Classic Stories by Mukteshwar Prasad Singh books and stories PDF | रिश्ते कभी नहीं मरते

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रिश्ते कभी नहीं मरते

"रिश्ते कभी नहीं मरते‘‘
​पच्चीस वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद चन्द्रभानू उस शहर में पुनः पहुँचने वाला था। वह शहर जिसका चप्पा-चप्पा उससे परिचित था।
​’’सहरसा-आनन्द विहार’’, पुरबैया एक्सप्रेस में अपनी पत्नी शर्मिष्ठा और बेटी मंदाकिनी के साथ सहरसा से यात्रा शुरु की चन्द्रभानू ने। ए॰सी॰ थ्री में सीवान तक का आरक्षण मिल गया था। इसलिए यात्रियों की भीड़भार वाली पुरबैया एक्सप्रेस से यात्रा शुरु करने में कोई परेशानी नहीं हुई। ठीक 11.35 बजे दिन में पुरबैया एक्सप्रेस सहरसा से खुल गयी। पत्नी शर्मिष्ठा एवं बेटी मंदाकिनी अपने बर्थ पर चादर बिछाकर एसी के ठंड से बचने के लिए दूसरा चादर ओढ़ लिया। कम्बल को सिरहाने तकिया के नीचे मुड़ी हालत में ही रख दिया। सहरसा जंक्शन से खुलते ही पुरबैया एक्स॰ ने अपनी गति पकड़ ली। हिचकोले खाती ट्रेन स्टेशन दर स्टेशन पार करने लगी। पत्नी और बेटी को नीन्द आ गयी।
​चन्द्रभानू अपने बर्थ पर लेटा था, परन्तु उसे नीन्द नहीं आ रही थी। उसके मन मस्तिष्क में वे चित्र और बीते पल याद आ रहे थे जो सीवान शहर में अपने पांच वर्षों के प्रवास में उसने जीया था। और आज 25 वर्षों बाद भी जस का तस जीवंत था।
...सीवान स्टेशन से निकलते ही आधे किलोमीटर की दूरी पर बाबुनिया मोड़ है, जहाँ उसके अखबार ’खोजी पूर्वांचल टाइम्स’ का ब्यूरो कार्यालय था। बाबुनिया मोड से पश्चिम घूमने के बाद राजेन्द्र पथ होते हुए सीवान कचहरी स्टेशन और नदी पुल पार कर श्रीनगर मुहल्ला पहुँचा जाता है। श्री नगर मुहल्ला में ही अनिल श्रीवास्तव के किराये के मकान में वह रहा करता था। पत्नी शर्मिष्ठा भी रहती थी साथ में, परन्तु बेटी मंदाकिनी का तब जन्म नहीं हुआ था। स्मरण आने लगे पत्रकार मित्र सीताराम पाण्डेय, लाला परमेश्वरी प्रसाद, आशा शुक्ला, जावेद, असगर ,प्रमोद गिरी, धनंजय मिश्र, फोटोग्राफर जितेन्द्र रुपक स्टूडियो का संचालक, मदोही फाइनेन्स के मुक्तिनाथ तिवारी, व सुधीर निराला,प्रो॰ अशोक प्रियंवद, फिल्म निर्माता कृष्णा सोमानी, जादूगर विजय जायसवाल, दरबार सिनेमा हाल, रमेश टी स्टाॅल, राजेन्द्र टाउन हाल , राजेन्द्र खादी ग्रामोद्योग, सीवान मेडिकल हाॅल, ब्रजकिशोर संस्थान। महादेवा मुहल्ला, कागजी मुहल्ला, अस्पताल रोड। पात्रों एवं स्थानों का चन्द्रभानू के जीवन में अमिट छाप पड़ी हुई थी। कई छोटी-बड़ी यादें और घटनाएं चन्द्रभानू के चारों ओर चक्कर लगाने लगी। चन्द्रभानू इन सबसे पच्चीस वर्षों बाद आमने सामने होगा। यह सोच-सोच कर रोमांचित हो उठा। तभी संदेह के बादल भी उमड़ने घुमड़ने लगे। पता नहीं इनमें से कौन मित्र जीवित होंगे ? जो लोग उनसे उम्र में काफी बड़े थे वे तो जरुर बूढ़े हो गये होंगे। ...आदि आदि ख्याल आ रहे थे।
​चन्द्रभानू धनंजय मिश्र से लगातार कन्टेक्ट में था। फेसबुक से दोनों जुड़े थे। और फोन नम्बर फेसबुक ’’मैसेन्जर’’ से प्राप्त कर लिया था। परन्तु पिछले छह माह से उस फोन नम्बर पर भी बात नहीं हो रही थी। सिवान यात्रा शुरु करने के दो दिनों पूर्व से लगातार प्रयास के बावजूद धनंजय मिश्र काॅल रिसीव नहीं कर रहे थे। कुछ दिनों पूर्व उसने बताया था कि मेरी तबीयत बहुत खराब हो गयी है।मैं दो महीना से हाॅस्पीटलाइज हूँ ।धनंजय मिश्र की बीमारी वाली बात याद आते ही चन्द्रभानू सशंकित था क्योंकि फोन काॅल रिसीव नहीं हो रहा था। फिर भी उसी फोन नम्बर पर एसएमएस कर दिया कि मैं सीवान आ रहा हूँ।
​उधेड़बुन और ख्यालों की दुनियां में गोते लगाते रहे। पांच घंटे ऐसे बीता कि कुछ पता ही नहीं चला कि कब छपरा आ गया। छपरा स्टेशन पर पुरबैया एक्सप्रेस रुकी, चन्द्रभानू की विचार श्रृंखला भंग हुई। स्टेशन से गाड़ी के खुलते ही पत्नी शर्मिष्ठा एवं बेटी मंदाकिनी को जगाया। जाड़े का दिन था। सात बजे ही अंधेरा छा गया था। बंद खिड़की से वल्बों की टिमटिमाती रोशनी दिख रही थी। छपरा के बाद अगला स्टेशन सीवान ही था। इसलिए अपने बिखरे सामानों को बैग में समेट कर रख लेने की सलाह पत्नी व बेटी को दी। दोनों निचली सीट पर उतर कर बैठ गये।
​पत्नी शर्मिष्ठा ने पूछा - सीवान स्टेशन उतरने के बाद हमसब किस होटल में रुकेंगे। रात में किसी परिचित के घर भी नहीं जा सकते।पच्चीस वर्षों से कोई जुड़ाव भी नहीं है। कौन कहाँ होंगे, यह भी पता नहीं है।
​चन्द्रभानू ने जवाब दिया - सीवान में मैं अक्सर होटल मनीष में ही खाता था। मनीष होटल में ठहरने के लिए कमरे भी है। मैंने वेबसाइट पर फोन नम्बर प्राप्त कर बात भी कर ली है। स्टेशन से सीधा वहीं चलूंगा।
​पत्नी और बेटी आश्वस्त हुई और दोनों ने राहत महसूस की।
​सीवान स्टेशन पर 20 मिनट विलम्ब से पुरबैया पहुँची। बाॅगी से सामान सहित पिता, पुत्री और पत्नी सावधानी से प्लेटफार्म पर उतरे। उतरने पर सर्वप्रथम अपने जाने पहचाने स्टेशन पर चन्द्रभानू ने विहंगम दृष्टि घुमायी। फिर सीढ़ियों पर चलकर तीनों जनें प्लेटफार्म संख्या एक पर आकर मुख्य गेट से बाहर आये। आॅटो वाले हल्ला मचा रहे थे। आइये, बैठिये। कहाँ जाना है ?
​एक आॅटो पर सामान रख चन्द्रभानू, शर्मिष्ठा और मंदाकिनी बैठ गये। चन्द्रभानू ने ड्राइवर को बताया - बाबूनिया मोड़ के निकट मनीष होटल ले चलो।
​पाँच सात मिनट के बाद ही आॅटो मनीष होटल पहुँच गया। आॅटो को किराया भुगतान किया। फिर सामान लेकर मनीष होटल के रिसेप्सन के निकट पहुँचे।
​मैनेजर ने शर्मिष्ठा, मंदाकिनी को सोफे पर बिठाया।
​चन्द्रभानू ने कमरा बुक कराया। फिर अपना परिचय पत्र दिया, पता सत्यापन के लिए। अब किसी भी होटल में बिना परिचय पत्र कोई नहीं ठहर सकता। मुम्बई में ताज होटल पर आतंकी हमला के बाद से होटल प्रबंधन को सख्त कर दिया गया है।
​होटल ब्याय ने सामान उठाया और सबों को कमरे में पहुँचाया। कमरा के बिछावन आदि को व्यवस्थित किया। फिर चला गया। पाँच मिनट बेड पर चन्द्रभानू चीत लेट गया।और सम्पूर्ण शरीर की थकान मिटाने लगा। बेटी और पत्नी भी अलग-अलग बेड पर लेट गयी और आराम करने लगी। एक घण्टा बाद खाने का आर्डर दिया। खाना, खाने के बाद सोने से पहले अगले दिन का भ्रमण कार्यक्रम चन्द्रभानू ने आपस में तय किया।
​’’सुबह सुबह आठ बजे टैक्सी से गोपालगंज सीवान सड़क मार्ग पर सीवान से लगभग पैंतीस किलामीटर दूर अवस्थित थाबे स्थान में ’’माँ सिंहासिनी देवी’’ का दर्शन पूजन होगा। वहाँ से लौटने के बाद सीवान कचहरी में स्थापित माँ दुर्गादेवी का दर्शन। फिर भूले-बिसरे, ईष्ट मित्रों, अपने बैठने के स्थानों और सबसे ऊपर अपने किराये के मकान मालिक अनिल श्रीवास्तव से मिलेंगे।’’
चन्द्रभानू को नीन्द आये उससे पहले पुनः स्मरण हो आया। उस वक्त अनिल श्रीवास्तव सीवान के राजवंशी उच्च विद्यालय के शिक्षक थे,। चन्द्रभानू उन्हें मांस्साब कहता था। अनिल श्रीवास्तव काफी मिलनसार, अपनापन से भरे स्वभाव के व्यक्ति थे। उनकी पत्नी वीणा श्रीवास्तव उनसे भी अधिक मधुर व हँसमुख थी। चन्द्रभानू को कभी महसूस ही नहीं हुआ था कि वह किरायेदार है। बिल्कुल परिवार के सदस्य की तरह सभी घुले मिले रहते। मांस्साब को सोनू एवं जूली नाम के पुत्र और पुत्री थी। लगभग 12 एवं 10 वर्षों की उम्र थी तब दोनों बच्चों की। अनुमान के मुताबिक अब दोनों पढ़लिखकर नौकरी कर रहे होंगे। साथ ही शादी होने के बाद एक दो बच्चे के माँ बाप भी बन गये होंगे।
​अगले दिन तय कार्यक्रम के अनुसार चन्द्रभानू शर्मिष्ठा और मंदाकिनी 09 बजे सुबह थाबे स्थान पहुँच गये। थाबे में स्थापित माँ सिंहासिनी देवी की दैवीय ख्याति दूर-दूर तक फैली है।
​बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा उत्तरी बिहार में पर्यटन की दृष्टि से एक ’’शक्ति सर्किट’’ बनाया जा रहा है। शक्ति शर्किट के एक छोर पर थाबे की ’’माँ सिंहासिनी पीठ’’ और दूसरे छोर पर महिषी की ’’उग्रतारा शक्तिपीठ’’ होगी।
​पहली बार पत्नी शर्मिष्ठा एवं पुत्री मंदाकिनी को लेकर चन्द्रभानू थाबे आये थे। इसके पूर्व एक बार सीवान प्रवास के दौरान चन्द्रभानू थाबे आया था। थाबे की सम्पूर्ण ऐतिहासिक जानकारी ली थी। माँ से जुड़ी अलौकिक घटनाओं को एकत्रित किया था। फिर थाबे की ’’माँ सिंहासिनी’’ शीर्षक से सम्पूर्ण सचित्र आलेख छापकर सीवान में पत्रकारिता की शुरुआत की थी। बात वर्ष 1992-93 की है। उस समय थाबे की माँ सिंहासिनी देवी मंदिर परिसर विकसित नहीं था। कुछ दुकानें थी, दुकानों में चढ़ावा के इलायची दाना, मूढ़ी नारियल, पेड़ा, रक्षा सूत्र, सिन्दुर, धूप आगरबत्ती, चुनरी आदि मिल जाते थे।
​परन्तु अबकी बार यहाँ पहुँचने पर जबर्दस्त बदलाव दिखा। मुख्य मंदिर के चारों ओर पक्की, सुन्दर चाहर दीवारी और संगमरमरी फर्ष बना दिया गया है। प्रवेष और निकास द्वार विकसित और व्यवस्थित बनाया गया, परन्तु पुजारी व पंडितों का बोलवाला हो गया है अब। कदम-कदम पर पंडित महाराज। एक भी श्रद्धालु उनसे बचकर ’’माँ’’ का दर्शन नहीं कर सकता। मंत्रोच्चारण कराकर मोटी दक्षिणा श्रद्धालुओं की क्षमता आकलन कर वसूल लेते हैं। छोटे-छोटे कैमरा लिए फोटोग्राफरों की संख्या सैकड़ों में है। वे दर्शनार्थियों को घेर लेते हैं।
​चढ़ावा की पूरी सामग्रियां वाली पोटली हाथ में लेकर परिवार सहित फोटो खिंचाकर चन्द्रभानू मंदिर परिसर में प्रवेश किया। पंडित जी का सामना हुआ। मंत्रोच्चारण के बाद हाँ ना कर दक्षिणा वसूला। फिर दर्शन पूजन के लिए मंदिर गर्भ गृह में जाने दिया।
​काफी भीड़ थी। पता चला आज अग्रहण कृष्ण पक्ष एकादशी है। हिन्दू पण्चांग के अनुसार एकादशी बड़ा उत्तम दिन होता है। चन्द्रभानू को यह मालूम नहीं था, सो बेटी, पत्नी के साथ आज के दिन थाबे पहुँचकर अपने को बड़ा भाग्यशाली माना। माँ के भव्य रुप का अचानक भीड़ छटने से निकट दर्शन हुआ। मानो माँ सिंहासिनी ने दर्शन देने के लिए अचानक भारी भीड़ को पलक झपकते खाली कर दी थी। तीनों ने माँ के दर्षन पूजन पश्चात् मंदिर परिक्रमा की। थोड़ी देर फर्श पर बैठकर देवी का मंत्र जाप किया। जब परिसर से बाहर आये तो कैमरामेन को ढूंढा और पोस्टकार्ड साइज फोटो प्राप्त किया। यादगार फोटो। माता दर्शन की स्मृतियां संजो कर रखने के लिए ही श्रद्धालु आनाकानी के बाद भी फोटो अवश्य खिंचा लेते हैं,
​थाबे से करीब एक घण्टा बाद सीवान के लिए प्रस्थान किया। आज सीवान जिला का स्थापना दिवस और राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की जंयती भी थी। मार्ग में पड़ने वाले विद्यालयों में जयंती मनाने का दृश्य भी सड़क मार्ग से कई जगह दिखे। राजेन्द्र बाबू का विषेश संबंध सीवान से रहा था। बगल में ही जीरादेई है। उनके नामपर सीवान के मुख्य बाजार के पथ का नाम राजेन्द्र पथ है, खादी ग्रामोद्योग का नाम राजेन्द्र खादी ग्रामोद्योग राजेन्द्र पार्क है। ऐसे कई संस्थान प्रथम राष्ट्रपति के नाम से सीवान में स्थापित हैं। चन्द्रभानू के लिए आज का दिन राजेन्द्र बाबू की जयंती को लेकर भी विशेष था। राजेन्द्र पार्क में जनप्रतिनिधियों एवं जिला के जिलाधिकारी व आला अफसरों द्वारा परिसदन के सामने मनाया जाने वाला समारोह भी देखने को मिला।
​टैक्सी कार से लौटकर सीवान कचहरी के निकट बने माँ दुर्गा के मंदिर तक आने के बाद टैक्सी कार को छोड़ दिया। माँ दुर्गा के पूजन पश्चात् पैदल ही सीवान के मुख्य बाजार, दरबार सिनेमा - बड़ी मस्जिद रोड होकर घूमते-घामते मनीष होटल अपने ठहराव पर आ गये।
​हाथ मुंह धोया। प्रसाद खाया। फिर मोनू फैमिली रेस्तरां में जाकर सभी खाना खाये। शर्मिष्ठा और मंदाकिनी को वापस कमरा में छोड़ा और निकल पड़ा चन्द्रभानू अपने भूले बिसरे लोगों से मिलने। पर निकलने से पहले एक बार पुनः धनंजय मिश्र को फोन काॅल किया। धनंजय ने तुरन्त फोन रिसीव किया। और अपने मिलने का पता बताया। कई माह से जिनसे बात करने का प्रयास कर रहा था चन्द्रभानू , अचानक उससे बात होने पर अतिषय खुशी हुई। अब तो कइयों से भेंट हो जाएगी धनंजय के साथ-साथ रहने पर। चन्द्रभानू ने अपनी पत्नी को भी कह दिया - आप दोनों माँ-बेटी भी बाजार घूम लें एवं याद के लिए कुछ शाॅपिंग आदि भी कर लेंगे।
​धनंजय मिश्र से श्रीनगर बाजार स्थित राजेन्द्र खादी ग्रामोद्योग के निकट सहारा इण्डिया के रिजनल कार्यालय में भेंट हो गयी। धनंजय मिश्र प्रारम्भ में राष्ट्रीय सहारा दैनिक समाचार पत्र में जिला संवाददाता थे।अभी सहारा इण्डिया के लीगल इन्चार्ज हैं और रिजनल आॅफिस में ही कार्य संभालते हैं।
​दोनों मित्रों में दो दशक बाद आमने-सामने मुलाकात हुई। एक-दूसरे से गर्मजोशी से मिले। ऐसा लग रहा था कल भी तो मिले थे। धनंजय मिश्र ने पहला सम्बोधन किया -’ चन्द्रभानू जी, आपका चेहरा तो जस का तस है पर मैं बीमार होने के बाद अधेड़ लग रहा हूँ। है ना।
​चन्द्रभानू ने जवाब दिया - हाँ, कुछ दुबले पतले हो गये आप। आपके बाल भी कम हुए हैं। इसलिए थोड़ा अन्तर चेहरा वदन में अवश्य आया है। लेकिन बोलचाल, स्वभाव सब वही वर्षों पहले वाला।​दोनों मित्र रिजनल आॅफिस से बाहर निकल एक चाय के ढ़ाबे में पहुँच गये। वहाँ पुरानी यादों को सहेजने का उपयुक्त स्थान मिल गया। बारी-बारी से चन्द्रभानू ने एक-एक पत्रकार मित्र के बारे में पूछना शुरु किया।
​धनंजय ने बताया - आर्यावर्त संवाददाता सीताराम पाण्डेय जी एवं फोटोग्राफर जितेन्द्र अब नहीं रहे। आज के संवाददाता आशा शुक्ला जी चल फिर नहीं सकते, बूढ़े हो गये हैं। परन्तु नवभारत टाइम्स संवाददाता लाला परमेश्वरी प्रसाद अभी भी चुस्त दुरुस्त हैं।
​प्रमोदगिरी, असगर, जावेद सभी अलग-अलग अखबारों दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान को संभाल रहे हैं। पाँच वर्ष पूर्व सुधीर निराला का कार एक्सीडेन्ट में निधन हो गया है।
​सुधीर निराला की उम्र चन्द्रभानू के समकक्ष ही थी।जितेन्द्र कुमार फोटोग्राफर भी उसी उम्र के थे। अभी उनकी उम्र मौत के करीब नहीं थी। काफी अफसोस हुआ जानकार।
बातचीत के बीच नमकीन के साथ चाय आ गयी।
​चाय सीप करते हुए चन्द्रभानू ने पूछा - यहीं श्री नगर में सीवान मेडिकल हाॅल था, पर दिख नहीं रहा। वहाँ संध्या कालीन बैठकी होती थी मेरी।
​धनंजय ने बताया - अब वह दुकान नहीं है। उसके मालिक शैलेन्द्र सिंह, दुबई चले गये दुकान बंद कर।
चाय की आखिरी घूंट लेते हुए चन्द्रभानू ने आशंकित हो इच्छा प्रकट की-मुझे अपने मकान मालिक से मिलना है। आप तो जानते ही हैं कि इसी श्रीनगर में मेरा आवास था।
​धनंजय मिश्र ने तपाक से कहा - हाँ, मास्साब के यहाँ रहते थे ना। उनको दो तीन माह पहले बस स्टैंड पर देखा था, बस से कहीं जा रहे थे।
​ तब तो स्वस्थ हैं, मन की आशंका निर्मूल हुई। अन्दर-अन्दर चन्द्रभानू डरा हुआ था कि कही मास्साब के साथ कुछ अनहोनी ना हो गयी हो।मास्साब रक्तचाप से ग्रस्त थे ।खैर, उद्विग्न मन शान्त हुआ। फिर धनंजय से मास्साब के यहाँ साथ चलने को कहा।
​धनंजय, साथ चल पड़े। रास्ते में मास्साब के बेटे बेटियों के बारे में चन्द्रभानू से चर्चा होने लगी।
​चन्द्रभानू ने बताया - हाँ, जब मैं रहता था तो जूली नाम की एक बेटी और सोनू नाम का एक लड़का था। उस वक्त उम्र दस एवं बारह वर्ष के आसपास थी। संभावना व्यक्त करते हुए बोला - निश्चित रुप से उनलोगों की शादियां हो गयी होंगी। पढ़ने लिखने में भाई -बहन तेज थे, कहीं जाॅब में होंगे। जूली अपने ससुराल चली गयी होगी। पता नहीं, मास्साब से भेंट होगी की नहीं घर में अभी।
​आपस में बातचीत करते हुए धनंजय और चन्द्रभानू श्रीनगर के पचरुखी पथ पर पैदल ही चल रहे थे। कुछ दूर चलने पर मास्साब का मकान दिखा। उसी रुप में ,जैसा चन्द्रभानू के सीवान छोड़ने वक्त था। कोई नव निर्मित बनावट नहीं थी मकान में। मकान दो मंजिली थी। प्रथम मंजिल पर मास्साब सपरिवार रहते थे। दूसरी मंजिल पर चन्द्रभानू अपनी पत्नी एवं दो बच्चों के साथ रहता था।
​मकान के सामने पहुँचकर धनंजय और चन्द्रभानू ठिठक गये। बाहर कोई नहीं दिखा। प्रवेश द्वार पर ही ऊपर जाने की सीढ़ी थी। दो मिनट प्रवेश द्वार पर खड़े रहने के बाद चन्द्रभानू के कदम प्रवेशद्वार की पहचानी सीढ़ी पर बढ़ गये। पीछे-पीछे धनंजय भी सीढ़ियां चढ़ने लगे। प्रथम मंजिल पर एक गेट और था। उसी से अन्दर मास्साब के फ्लैट के कमरों में जाया जाता था।
​संयोग से गेट खुला था। चन्द्रभानू खुले गेट पर खड़ा हो गया। गेट की बालकोनी ही मास्साब का बैठकखाना था। बैठक खाना में मास्साब अनिल श्रीवास्तव गेट की ओर मुंह किये ही कुर्सी पर बैठे थे। जबकि उनकी पत्नी दीवार से सटे सोफा पर विपरीत दिशा में बैठी थी, वह गेट की ओर नहीं देख रही थी। पर एक युवती सलवार सूट में दूसरे सोफे पर मास्साब की ओर से बैठी थी। वह गेट की तरफ देख पा रही थी।
​अचानक दो पुरुष को द्वार पर खड़े देखकर मास्साब और सलवार सूट पहने युवती कुछ पल एकटक देखती रही। मास्साब ने पूछा - ’’किससे मिलना है ?’’
​जब तक चन्द्रभानू कुछ बोलता । सलवार सूट वाली युवती झट से उत्तेजना में बोली - भानू अंकल हैं। आइये, आइये, अन्दर आइये अंकल। बाहर क्यों खड़े हैं।
​चन्द्रभानू और धनंजय अन्दर आये। तब तक मास्साब की पत्नी भी घूम कर चन्द्रभानू को मुखातिब हुई - अरे बाप !चन्द्रभानू जी, बैठिये, बैठिये।
​खाली सोफे पर बैठने से पहले चन्द्रभानू ने मास्साब अनिल श्री वास्तव एवं वीणा श्रीवास्तव को प्रणाम किया।
​सलवार सूट वाली युवती अत्यन्त खुशी से बोली - मैं जूली हूँ अंकल। मुझे नहीं पहचाना आपने।
​चन्द्रभानू ने जोर से कहा - जूली, मेरी बेटी। अरे तुम्हें कैसे भुलूंगा। तुम्हीं तो मेरी सबसे प्यारी भतीजी हो। हरवक्त मेरे ही पास रहती थी। पढ़ती थी। कूदती थी। मेरे बच्चों के संग खेलती थी।
​अब तो जूली ने प्रश्नों की बौछार कर दी - रतन कैसा है, श्वेता कैसी है। ये लोग क्या कर रहे हैं। सबसे छोटा - छोटू घूड़कता था, मेरी गोद से उतरता नहीं था। वह कहाँ है ?
​मास्साब ने भी पूछा - हाँ, बताइये रतन क्या कर रहा है ?
​चन्द्रभानू ने बताया वह इंग्लैण्ड में इंजीनियर है। दो वर्ष पहले शादी हो चूकी है। उसकी पत्नी भी फाइनेन्स मैनेजर है।
​श्वेता की भी शादी हो गयी। वह जाॅब तो नहीं करती पर उसके पति एमबीए है। जाॅब कर रहे हैं। छोटू अपना इभेन्ट कम्पनी खोल लिया है। संक्षेप में सबके बारे में चन्द्रभानू ने बताया।
जानकारी पाकर सभी ख़ुश हुए।
​चन्द्रभानू ने पूछा - बेटी जूली, तुम क्या करती हो ?
​मैं टीचर हूँ। पचरुखी में ही सरकारी स्कूल में हूँ। मैने भी सूत फैक्ट्री मुहल्ला में सीवान इन्डस्ट्रीयल स्टेट के निकट मकान बना लिया है। दो बेटे हैं। आठ एवं दस वर्षों के। मैं जब स्कूल से लौटती हूँ तो पापा मम्मी से हाल-चाल पूछती हूँ तब अपने घर जाती हूँ। अभी भी मैं स्कूल से लौटने पर यहाँ आयी हूँ-जूली ने बताया।
​मेरा अहोभाग्य कि तुम मिल गयी जूली। मेरा सीवान आना सफल हो गया। यह सुखद संयोग है। तुम्हारे पति क्या करते है ? चन्द्रभानू ने आह्लादित स्वर में पूछा।
​चन्द्रभानू की आत्मीयता परवान पर थी।
​जूली ने बताया - मेरे पति मोतीहारी में स्टेट बैंक में कार्यरत है। सोनू भैया दिल्ली में इंजीनियर है। उनको भी एक बेटा, एक बेटी है। वहाँ मकान भी ले लिये है। परिवार सहित वहीं रहते है। पापा बराबर आते-जाते रहते हैं।
​इसी बीच मास्साब ने अपनी पत्नी से कहा - नाश्ता कराइये चन्द्रभानू जी को।
वीणा नाश्ता लाने अन्दर कीचन की ओर बढ़ी।
​चन्द्रभानू ने रोक दिया - भाभी आप बैठिये। बेटी जूली। बस तुम सिर्फ चाय पिला दो ।तुम्हें बचपन में बहुत हँसाया, खेलाया और पढ़ाया था।
​हाँ, हाँ अंकल। ये कहने वाली बात है। मैं आज तक आपको नहीं भूली हूँ। मैं तो आपको देखते ही पहचान गयी। आप कितने दिन बाद मिले हैं। पर मैं जरा भी नही भूली आपके चेहरे को। क्योंकि आप के काफी करीबी और प्यारी भतीजी थी मैं, बोलते हुए चाय बनाने चली गयी।
​चन्द्रभानू निहाल हो उठा।
मास्साब ने पूछा - चन्द्रभानू जी, पर वर्षों बाद सीवान आना कैसे हुआ ?
​चन्द्रभानू ने बताया - थाबे स्थान माँ सिंहासिनी देवी की पूजा करने आया हूँ। पूजा करके लौटा हूँ। मनीष होटल में रुका हूँ। फिर धनंजय भाई से फोन पर उनका पता पूछकर मुलाकात की। फिर आपके पास आया हूँ। ये नहीं मिलते तो आ भी नहीं पाता। श्रीनगर में इतनी बिल्डिंग बन गयी है, बड़ा बाजार बस गया है ,सब कुछ बदला बदला । पहले सिंगल जर्जर सड़क, गुमटियों में सजी दुकानें, ताज मेडिकल भी कटघरे में ही था। इससे अधिक तो कुछ था नहीं। पूरा बदल गया श्री नगर।
​मास्साब ने धनंजय से भी परिचय प्राप्त किया।
चन्द्रभानू के बारे में कुरेद कुरेद कर सबकुछ पूछ लिया जूली ,मास्साब व वीणा ने।
​फिर भी चन्द्रभानू ने एक सच छिपाया था। उसने अपने साथ आयी पत्नी और बेटी के बारे में कुछ नहीं बताया।कारण था कि चन्द्रभानू को भरोसा ही नहीं था कि मास्साब मिल ही जाएंगे। इसलिए साथ नहीं लाया। अब अगर सच बोल देता तो मास्साब सबों को लाने की जिद पकड लेते ।इसलिए अकेले आने के बारे में बता दिया।
​प्लेट में मिठाइंयां एवं नमकीन के साथ जूली चाय लेकर आयी।
​धनंजय और चन्द्रभानू चाय पीते हुए ही आपस में बातें कर रहे थे।
​वीणा श्रीवास्तव ने हँसते हुए पूछा - चन्द्रभानू जी, आपका खोजी पूर्वांचल टाइम्स का क्या हाल है ?
​चन्द्रभानू अचंभित रह गया। वीणा श्रीवास्तव को खोजी पूर्वांचल टाइम्स, अखबार का नाम अब भी याद था।
​चन्द्रभानू ने जवाब दिया - अखबार तो है ही, पर बंद। हाँ उसके नाम से खोजी पूर्वांचल टाइम्स प्रकाशन बना दिया हूँ।
​जूली ने पूछा - आप लिखते है कि नहीं अब ?
चन्द्रभानू ने बताया लगातार लिख रहा हूँ। दस किताबें छपी है। राजभाषा विभाग, बिहार ने भी मेरी दो किताबें प्रकाशित की है।
​जूली ने बताया - अंकल मैं भी लिखती हूँ। आप अपना फोन नम्बर दीजिये। आप लिखने का कुछ ज्ञान दीजिएगा मुझे।
​चन्द्रभानू ने आश्वस्त किया - निश्चित तुम लिखो। मुझे भेजो। प्रकाशित भी कराऊँगा मैं।
​फिर घड़ी देखी। मस्साब मेरी ट्रेन छह बजे शाम में ही है। अब इजाजत दीजिए। अगली बार आऊँगा तो परिवार के साथ आऊँगा।
​ मास्साब और उनकी पत्नी वीणा श्रीवास्तव खड़ी हो गयी। प्रणाम में हाथ जुड़ गया।
​जूली ने पाँव छूकर प्रणाम किया। अचानक वीणा श्रीवास्तव ने हँसते हुए टिप्पणी की ,अब पच्चीस वर्षों बाद मत आइयेगा। तब हमसब शायद नहीं मिल पाएंगे।
​जोर-जोर से हँसने के बाद चन्द्रभानू विदा लिया। पर एक सुखद यादों का पिटारा लिए सहरसा आ गये।सहरसा आने पर बार-बार यही मन से निकल जाता है-"रिश्ते कभी नहीं मरते।’’


•मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह