Dastane Ashq-2 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क-2

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दास्तान-ए-अश्क-2

अपने ख्वाबो को जीने की उम्मिद लगाये बैठे थे

पता नही था हमे एक झूठी आस सचाये बैठे थे


पूरे जोश के साथ नाच गाना चल रहा था वेद प्रकाश जी की खुशी उनके चेहरे से झलक रही थी

उनके साथ पूरा परिवार मस्ती में डूबा हुआ
था
बहुत ही धूम धड़ाके और गाजे-बाजे के साथ उनकी बारात रवाना हुई!
और वो परे सन्मानमय ढंग से अपनी बीवी को ब्याह कर अपने धर ले आये!
जैसे ही बारात घर पर आई तो उनकी मां उमा देवीजीने अपनी बहू के ऊपर से पानी ओवार के पिया और उसकी सारी बलाए ली!
अब लाला वेद प्रकाश जी बहुत बेताब थे अपनी बहू को देखने के लिए!
वह दौर था जिस समय शादियां होतीथी तो लड़की लड़के को एक दूसरे को दिखाया नहीं जाता था
सिर्फ घर की औरतें शादी थी लड़की देख कर शादी पक्की कर देती थी
उस समय शादी दो लड़का लड़की की नहीं मगर दो खानदानो दो परिवारों के बीच होती थी!
आज वेद प्रकाश जी को अपने दिल पर काबू नहीं था
वह हर हाल में अपनी बीवी को देखना चाहते थे जल्द से जल्द
आखिर इंतजार के बाद वह घड़ी आ ही गई!
जब भी प्रकाश जी को मौका मिला अपनी बीवी को देखने का!
उसे महेसुस करने का..!
देर से वह कमरे में आए और जैसे ही घूंघट ओढ़े बैठी बीवी का घुंघट उठाया तो उनका दिल धक से रह गया
ऐसा लगा जैसे कोई नूरानी चेहरा स्वर्ग से उतरकर सीधा धरती पर आ गया हो उनके सामने
उनके पास शब्द नहीं थी अपनी बीवी की सुंदरता बयां करने के लिए!
गोरा रंग भूरी आंखें और वहआंखों से उनके लिए प्यार और सत्कार के भाव झलक रहे थे
ऐसी पाक और पवित्रता की मूरत कभी नहीं देखी थी
वह उनके कायल हो गए और ऐसी हीन भावना में खूप से गए कहां परियों की मल्लिका..! और कहां सावले रंग से ढका हुवा मै..!
पर जब उन्होंने अपनी पत्नी की आंखों में अपने लिए सिर्फ प्यार और सत्कार देखा तो वह सब कुछ भूल गये
बहुत सी बातें हुई दोनो के बीच अपनी जिंदगी के बारे में आने वाली हसिन जिंदगी के बारे में..!
दोनो के मन मिले एक दूसरे नजदीकियां रातरानी का खुमार और सुंदरता का वह शबाब उनकी निगाहों में छा सा आ गया
हसीन रात थी उस रात का अंधेराभी आज बहुत प्यारा लग रहा था
ऐसे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हो वैसे आपस में सिमट कर खो गए
एक नई जिंदगी नई उम्मीद संजोए सबेरे के रूपमे उनका स्वागत करने बेताब थी
जिंदगी अब बहुत ही खूबसूरत लगने लगी है वेद प्रकाश जी को उनकी माता जी सभी बहनें बहुत ही खुश थे
वक्त बहोत ही तेजी से भाग रहा था
लेकिन धीरे-धीरे उस खुशियों में जोल आ रहा था कैसे कुछ बात थी जो उनके मन को चूभने लगी थी
उनके पत्नी के चेहरे पर उदासी साफ झलकने लगी थी!
घरवालां और समाज की नजरें भी उन्हें परेशान करने लगी
क्योंकि वह अब तक मां नहीं बन पाई थी!
जैसे-जैसे समय गुजर रहा था सब की बेचैनी भी बढ़ रही थी!
परिवार के मुखिया खुद लाला करोड़ीमल बी बेचैन रहने लगे थे

बहोनों के अकेले भाई होने की वजह से वेद प्रकाश जी को बच्चा ना होने वाली बात बहुत ही साल रही थी
और ऊपर से लोगों की बातें और लोगों के ताने उन्हें कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहे थे!
ऐसे में एक दिन लाला करोड़ीमल के मुह बोले भाई शमशेर सिंग उनके पास आए और बोले
" तू किसकी वेट कर रहा है तू किसका इंतजार कर रहा है तेरे पास कितना पैसा कितनी जमीन जायदात है और अगर उसको संभालने वाला वारिस की पैदा ना हुआ तो क्या फायदा हुआ है ऐसी बहू लाने का और उसके साथ यह रिश्ता बनाए रखने का?
तू वेद प्रकाश की दूसरी शादी कर दे!जब यह सब बातें हो रही थी तो मनोरमा जी ने अपने कानों से सब सुन लिया!
मनोरमा जी यानी वेद प्रकाश जी की बीवी
के भीतर जैसे कोई कांच टूटा हो ऐसा दर्द उठा!
बहुत ही व्याकुल हो गई वह उदासी ने उनको घेर लिया!
काफी हताश होने की वजह से दोड कर अपने कमरे में चली आई !
अपनी ही बेड पर ढेर हो का फूट फूट कर रोने लगी!
तभी वेद प्रकाश जी वहां आते हैं उसे रोता हुआ देखकर पूछते हैं
मनोरमा तू क्यों रोने लगी है?
भीगी हुई पलके उठा कर मनोरमा पूछती है क्या आप मुझे छोड़ दोगे? दूसरी शादी कर लोगे..?
वेद प्रकाश जी उसका हाथ अपने हाथों में लेकर उसके चेहरे को अपनी उंगली से उठाकर कहते हैं
मनोरमा तु फिक्र न कर मैं तुझे कभी नहीं छोडूंगा!
बहुत ही सच्चे मन से प्यार किया है मैंने तुझे
बच्चे की बात क्या कोई भी बात हम दोनों को अलग नहीं कर सकती.!
तू फिकर ना कर!
हम कोई न कोई हल ढूंढ लेंगे इस बात का
हमारा भी बच्चा होगा अभी देरी कहा हुई है अपनी शादी को !
सिर्फ 5 साल तो हुए हैं शादी
अपने पति की प्यार भरी बातें सुनकर उसके दिल को तसल्ली हुई
उसका मन शांत हो गया और वह उनके सीने से लग गई
लेकिन अभी भी उनके मन में एक डर था अंजाना सा डर..,
कभी उनके सास ससुर या नणदो ने कुछ नहीं कहा था!
लेकिन वह पहले ही रहने लगी और इस बात का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ने लगा
खुदी वेद प्रकाश जी अपनी लता बेल जैसी बीवी को मुरजाते हुए देख रहे थे!
पर वो कुछ नहीं कर पा रही थे
तभी उनके कस्बे में एक संत महात्मा का आना हुआ!
वो संत पूर्ण ब्रह्मचारी थे!
उनके चेहरे पर अजब सा तेज था!
नगर के लोग बहुत बढ़ने लगे थे उस संत को
लाला करौडीमल अपने बेटे और बहू को लेकर उनके पास जाते है
और उनको अपनी परेशानी बताते हैं कहते हैं कि हमें बच्चे की जरूरत है आप हमें कोई वरदान दो
संत काफी जानकारी उन्होंने जैसे ही बहू और बेटे को देखा उनकी नब्ज देखी फिर कहा मैं एक आयुर्वेदिक दवाई देता हूं जिससे बहु को बहुत जल्द ही संतान प्राप्ति होगी
दवाई लाला जी के हाथ में देते हुए कहा भगवान जल्द ही उनकी झोली भर देगा!
एक उम्मीद का सहारा लिए लालाजी घर आते हैं बहू बेटे वह दवाई खिलाते हैं!
पर उसका कोई असर नहीं होता अभी भी इंतजार शायद उनकी किस्मत में था
देखते देखते एक साल और बीत जाता है
लेकिन लाला जी हार नहीं मानते..!
वह फिर से उन संतों के पास जाते हैं बार-बार जाते हैं तो संत कहते हैं तेरी निष्ठा और लगन एक दिन तुझे उसका परिणाम जरूर देगी
वेद प्रकाश के जीवन में वह दिन आ जाता है उनकी तरफ जैसे ईश्वर से भी सही नहीं गई थी
बहू के पांव भारी हो गए थे
तब लाला जी अपने घर में बड़ा यज्ञ करवाते हैं और संतों की खूब सेवा करते हैं
बहुत ही चाव से एक-एक दिन गुजरता है बेसब्री के साथ
बहुत ध्यान रखते हैं सब अपनी बहू का लाला जी की बहू उमा देवी भी बहु की बलाए लेते हुए थकए नहीं!
जब वो समय आता है तो उनको हॉस्पिटल ले जाया जाता है
मगर यहां भी उनकी बुरी किस्मत काले साए की तरह उनका पीछा नहीं छोड़ती
उनके यहां बेटा होता है और चंद सांसे लेने के पश्चात कि वह सांस छोड़ देता है
इस सदमे से बहुत ही बुरी तरह टूट जाते हैं परिवार के सारे लोग
खास करके मनोरमा जी 9 महीने अपने पेट में उस बच्चे को रख के अपने हाड मांस और रक्त से पोषण करने के बाद जब उसकी ऐसी दशा देखने को मिलती है तो वह सहमसे से जाते हैं टूट जाते हैं
एक मौका सदा ही जानता है फिर दर्द कितना था किस तरह वह छलनी हो गए थे और कर भी क्या सकते थे हालात के सामने किस्मत के आगे लाचार थे खाली हाथ खाली झोली लेकर मनोरमा जी हॉस्पिटल से घर आ जाते हैं
मनोरमा जी की आंखों से आंसू सूखते नहीं है उनके ससुर जी भी हार नहीं मानते!
वह अपने बेटे और बहू को लेकर वापस उन्ही संतो के पास जाते हैं
संत दोबारा उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहते हैं बेटी यह तो तुझे पिछले जन्म का कोई कर्जा था जो तूने उतार दिया
अब तेरे सर पर कोई कर्ज नहीं है देखना तू फिर से तेरे घर में चिराग की रोशनी होगी
उजाला होगा और जल्द ही तेरे घर का आंगन खुशियों से महक उठेगा
तेरी झोली भरेगी और यही साल में भरेगी
बस तू टूटने मत और भरोसा रखना
मनोरमा जी को संतों की बातों पर विश्वास था क्योंकि एक बार उनके आशीर्वाद है झोली भर गई फिर से आशा की एक नई किरण जन्म लेती है
संत वचन से उन्हें तसल्ली हो जाती है और फिर वह घर आ जाती है वेट करते हैं कि कब अब दोबारा वह अवसर आ जाए
और जल्द ही उनकी आशाएं पूरी होती है वह पेट से हो जाती है
लेकिन इस बार एक एक कदम फूंक-फूंक कर वह रखती है
वह भी और उमा देवी जी भी बहुत केअर करती है वह अपनी बहू की बहुत ध्यान देती है जैसे ही उनके प्रसव का समय नजदीक आता जाता है सब बेचैन हो उठते हैं
उन्हें शहर के एक बड़े हॉस्पिटल में ले जाया जाता है वह दिन होता है क्रिसमस के एक दिन पहले का
मनोरमा जी प्रसव वेदना से बुरी तरह क्रिश्चियन हॉस्पिटल में तड़प रहे होते हैं
डिलीवरी आसानी से नहीं हो रही थी डॉक्टर कह रहे थे बच्चा काफी हेल्धी है
थोड़ा समय लगेगा लेकिन मनोरमा जी की जान हलक में अटकी हुई थी
बहुत इंतजार बहुत तड़प यात्रा और परेशानियों से बात जन्म होता है उस लड़की का अपने इस कहानी की नायिका का नायिका होने के उपरांत वह कहानी का दुखान्त भी है