Him Sparsh - 43 in Hindi Fiction Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | हिम स्पर्श 43

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हिम स्पर्श 43

43

“श्रीमान चित्रकार, नई भाषा के लिए धन्यवाद। इस के द्वारा सर्जित मौन के लिए भी धन्यवाद। मुझे भी मौन पसंद है। किन्तु, कुछ बात मैं इस भाषा से व्यक्त नहीं कर पा रही हूँ। मुझे पुन: शब्दों के शरण में आना पड़ा है। तुम....।“ वफ़ाई बोलती रही।

जीत शांत, स्थिर एवं शब्द विहीन था। उसने वफ़ाई के शब्दों पर ध्यान नहीं दिया। वफ़ाई जान गई कि जीत बात करना नहीं चाहता।

“मौन का किल्ला जो हमने बनाया था, मैंने उसे अंशत: तोड़ दिया। मैं मेरी बात कह तो दूँ किन्तु कोई सुनना ही नहीं चाहता। मैं भी मौन हो जाती हूँ। हे मौन, आओ हम पर राज करो।“

वफ़ाई झूले पर जा बैठी, विचार करने लगी।

मौन! सुंदर शब्द है यह मौन। क्या यह एक शब्द मात्र है? अथवा एक अनुभव? क्या यह लक्ष्य है अथवा यात्रा? धरती के जन्म के साथ मौन का भी जन्म हुआ था, किन्तु अभी तक वह रहस्य ही रहा है। मौन का रहस्य क्या है?

पहाड़ों के बीच बसी मेरी नगरी में भी मौन रहता था। वहाँ मैं भी लंबे समय तक मौन रहती थी। अनेक प्रसंग पर मौन रहती थी। मौन का मेरा कडा अभ्यास रहा है।

वह सब ठीक है। किन्तु, मौन है क्या? तुम क्या जानती हो इस मौन के विषय में? कदाचित कुछ भी नहीं।

मौन ही एक ऐसा शब्द है, ऐसा सर्जन है, ऐसी वस्तु है जो अपने ही नाम से धृणा करता है। जब भी हम उसका नाम पुकारते हैं, वह भाग जाता है, चिड जाता है। मौन हमारे साथ लंबे समय तक रहता है किन्तु उसका नाम लेते ही वह अदृश्य हो जाता है। जब भी हम मौन से अथवा किसी अन्य से बात करते हैं, मौन क्रोधित हो जाता है। मौन स्वयं से भी कभी बात करता होगा?

यह मौन है क्या अंतत:? वह रहता कहाँ है? क्या वह भीड़ में रहता है? अथवा एकांत में? क्या वह समाज में रहता है अथवा जंगलों में? अथवा पहाड़ों में? अथवा मरुभूमि में? गगन में? अथवा...?

मौन की कोई भाषा होती है? अथवा सभी भाषा होती है? मौन के शब्द होते हैं? कोई भाव होते हैं? कोई गीत होता है? कोई संगीत होता है? कोई कथा, कोई व्यक्ति, कोई घटना होती है?

मनुष्य जाती युगों से बाह्य शांति के लिए मौन का प्रयोग करती रही है। संत महात्मा भी मौन का महत्व बताते आ रहे हैं। वह कहते हैं कि भावों को व्यक्त करने का यह सशक्त साधन है। क्या मौन सशक्त है? बिना शब्द के वह कैसे काम करता है? शब्दों के अर्थ होते हैं, भाव होते हैं। इन शब्दों से हम वही भाव और अर्थ व्यक्त करते हैं। बिना अर्थ, बीना भाव के मौन का अर्थ ही क्या है? मौन का औचित्य क्या है?

यह मौन रुक्ष है, भावना हिन है, हृदय हिन है। जहां कुछ भी नहीं होता, कोई भी नहीं होता वहीं वह रहता क्यों है?

युगों से हम मौन की उपासना करते हैं। उसका अनुसरण करते हैं। किसी के प्रति श्रध्द्धांजली प्रकट करने के लिए मौन का पालन करते हैं। क्या यह अच्छा है अथवा बुरा है? जब हम ध्यान करना चाहते हैं, तब मौन हो जाते है।

क्या यह मौन शाश्वत है? अलौकिक है? स्थायी है अथवा नाशवंत है?

मौन का उद्देश्य क्या है? क्या यह शांति का परिणाम है अथवा मौन स्वयं ही शांति है?

किन्तु मैं तो शांत नहीं हूँ, मैं विचलित हूँ। मौन फिर भी है। अर्थात मौन ना तो शांति है ना ही शांति का परिणाम है। मेरे भीतर एक यूध्ध चल रहा है और मौन भी। मौन ध्वनि में रहता है, कोलाहल में भी रहता है, यूध्ध में भी। यह शांति से भिन्न है।

क्या मौन व्यक्तिगत है? भीड़ में रहते हुए भी कोई मौन रह सकता है? भीड़ से भरी बस अथवा रेल यात्रा में भी मौन हमारे साथ रहता है? क्या वह भी हमारे साथ स्वयं को अथवा अन्य किसी को विचलित किए बिना यात्रा करता रहता है?

क्या मौन साथी है? क्या वह सहयात्री है? क्या वह व्यक्ति पर भार रूप है? मौन का आकार, मौन का कद कैसा होता है? मौन का रंग कैसा होता है? मौन की सुगंध कैसी होती है? मौन हमारे साथ रहता है? कितना समीप, कितना दूर रहता है? क्या वह हमारे भीतर ही रहता है? मौन हमें कहाँ ले जाता है?

कभी कभी वह हमारे साथ रहता है, इतना समीप कि हाथ बढाते ही मुट्ठी में आ जाए। तो कभी इतना दूर की उसे पकड़ ही ना पाएँ।

जब हमें उसकी तीव्र आवश्यकता हो, हम उसे पुकार नहीं सकते। जब हम किसी से भरपूर बातें करना चाहते हैं तब ना जाने कहाँ से हमारे साथ आ जाता है?

क्या यह वास्तविक है अथवा कोई छलना? यह सापेक्ष है अथवा सत्य? क्या यह है भी? अथवा यह भी ईश्वर की भांति कोई रहस्य ही है?

मौन का रहस्य कब खुलेगा?

मौन स्वयं ईश्वर है। उसके रहस्य को प्रकट करने का प्रयास ना करना। मौन का आनंद लो अथवा उस की पीड़ा का अनुभव करो। मौन के रहस्यों को ज्ञानीयों के लिए छोड़ दो। तुम ज्ञानी नहीं हो। मौन नाम के रहस्य को जानना तुम्हारा काम नहीं है।

वफ़ाई का मन जो यहीं कहीं भटक रहा था, वफ़ाई ने उस मन को आज्ञा दी।

किन्तु मेरा काम क्या था? जब मैं मौन भंग करती हूँ तो मैं क्या चाहती हूँ?

वफ़ाई दुविधा में रही, मौन रही। आसपास देखने लगी। जीत को देखते ही बोल पड़ी,” ओह, जीत भी है मेरे साथ! यह तो मैं भूल गई।“ वफ़ाई ने जीत को कहा। जीत ने सुना और प्रश्न भरी द्रष्टि वफ़ाई पर डाली।