kaha hai insaniyat ? in Hindi Adventure Stories by bhai sahab chouhan books and stories PDF | कहाँ है इंसानियत ?

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कहाँ है इंसानियत ?

आज सर्दी बहुत थी मैंने सोचा थोड़ा धूप लेकर आता हु. मै बगीचे के पास जाकर बैठ गया बगीचे मे बहुत लोग थे वो भी सर्दी का आंनद ले रहे थे सूरज कि किरणे धीरे -धीरे आ रही थी ये किरणे बड़ी आकर्षित लग रही थी ठंडी -ठंडी हवा मे धूप तो मानो ऐसी लग रही थी जैसे प्यासे को पानी और भूखे को खाना मिल गया हो सभी बच्चे बुजुर्ग और तरह -तरह के लोग वहां पर इस ऊर्जामय धूप का लुफ्त उठा रहे थे . तभी अचानक एक बूढी औरत धीरे -धीरे बगीचे कि तरफ आ रही थी और बगीचे के किनारे लेट गयी मैंने उधर देखा पहले तो डर गया कि कुछ हो तो नहीं गया लेकिन सोचा हो सकता है वो भी यहाँ धूप लेने आये हो मैंने उन पर से ध्यान हटा दिया इस बगीचा मे छोटे -छोटे बच्चे क्रिकेट, फुटबॉल, इत्यादि  खेल रहे थे.मैंने उन्हें देखते -देखते अपने बचपन के दिनों को याद कर रहा था मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मे स्वयं उन बचचो के साथ खेल रहा हू. थोड़ी देर बाद मे आओ अपने आप को रोक नहीं पाया और मे भी उनके साथ खेलने लगा उनके साथ खेलते समय का पता ही नहीं चला  बहुत समय बीत जाने के बाद बहा उपस्थित सभी लोग जाने लगे मैने सोचा मे भी जाता हू  थोड़ी देर मे पूरा बगीचा खाली हो गया लेकिन किसी कि नजर उस औरत कि ओर नहीं गयी मे उस औरत के पास जा ही रहा था कि अचानक बहा पर एक करीब 10-12 साल का बच्चा आया और बूढी औरत से पूछने लगा दादी- दादी आप यहाँ क्यों लेटी है ? आप कि तबियत तो ठीक है? औरत मंद स्वर मे बोली बेटा मे बिल्कुल ठीक हु प्यास और थकावट के कारण थोड़ा सा चक्कर आ गया था तू मेरी फ़िक्र मत कर तू जा खेल  ये सुनते ही मुझे अपने आप पर शर्म महसूस हुई कि मे उस औरत से आगे पूछ सकता था लेकिन कुछ सोच कर पूछ नहीं पाया मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी मेरी बजह से एक बूढी औरत तीन घंटे तड़पती रही बूढी औरत बोली बेटा यहाँ बहुत लोग थे मैंने सोचा किसी से मदद मिल जाएगी दादी मे भी इसी गलतफहमी मे लेट हो गया मैंने आपको गिरते बक्त देख लिया था   सोचा था कि लोग आपकी मदद करेंगे और मै पढ़ने के लिए टूशन निकल
गया. पैसो कि चकाचौंद ने लोगो को अंधा बना दिया है अब उनमे इंसानियत देखने को नहीं मिलती दादी मुझे माफ़ कर दो वह लड़का उन्हें घर तक छोड़ने गया ये सब सुनकर मेरे होश उड़ गए .
इन लोगो के पास पैसा होते हुए भी बहुत गरीब है क्या काम का पैसा जो किसी कि मदद ना कर सके .
कहा गयी हमारे देश कि इंसानियत लगता है पैसो के नीचे दव गयी है मेरे भाइयो और बहनो इंसानियत को जगाओ और असहाय बृद्ध लोगो कि मदद करने मे शर्म महसूस मत करो मत भूलो कि एक दिन हमें भी बूढ़े ही होना है.
धन्यवाद !