Afia Sidiqi ka zihad - 10 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 10

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 10

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(10)

आज की घटना ने आफिया को इतना डरा दिया कि वह चीख चीखकर रोने लगी। अमजद उसकी हालत देखकर काम पर नहीं गया। आफिया निरंतर मित्रों को फोन कर रही थी और नई उपज रही स्थिति के विषय में जानकारी ले रही थी। मगर उसका भय वैसे ही कायम था। दोपहर ढलने से पहले ही समाचार आने लग पड़े कि आधे से अधिक आतंकवादी जिन्होंने आज के इन क्रूर कारनामों को अंजाम दिया है, उनकी पहचान हो चुकी है। पहचाने जाने वालों में सबसे पहला मुहम्मद अट्टा था जो कि बॉस्टन का रहने वाला था। पुलिस ने छापामारी तेज़ कर दी। जिस किसी के बारे में यह पता चलता कि इसके संग आतंकवादी का परिचय रहा है, उसे गिरफ्तार कर लिया जाता। यहाँ तक कि जिन होटलों में वे लोग रातों को रुके थे, उन सभी को छानबीन के लिए बंद कर दिया गया और कर्मचारियों को पकड़ लिया गया। यह सब सुनकर आफिया ज़ोर-ज़ोर से रोती हुई बोलने लगी, “अमजद जितना जल्दी हो सके हमें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। यहाँ अपनी जान को खतरा है।“

“खतरेवाली इसमें क्या बात है। अपनी तरह यहाँ और बहुत से मुसलमान रहते हैं। वे क्या सभी अतिवादी हो गए। जिन्होंने ये अमानवीय कारनामा किया है, खतरा उनको या उनके हमदर्दों को है। तू यूँ ही न घबरा।“

“तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो, बाद में पछताओगे। अभी भी मौका है कि यहाँ से शीघ्र चले जाएँ।“

“पर हम क्यों भाग जाएँ ? हमने कौन-सा कोई गलत काम किया है ?“

“मुझे पता चला है कि अमेरिकी, मुसलमानों के बच्चों को किडनेप करेंगे।“

“तुझसे यह बात किसने कही है ?“

“बस, किसी से पता चला है, तभी तो कह रही हूँ कि मुसीबत आने से पहले निकल चलें।“

“आफिया, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि तू इतनी घबरा क्यों रही है। इस तरह हम बना-बनाया घर और अपनी पढ़ाई वगैरह बीच में ही छोड़कर कैसे जा सकते हैं।“

“इसका मतलब तुम मेरी बात नहीं मानोगे ?“ आफिया गुस्से में कांपने लगी।

“तू मुझे अपनी बात अच्छी तरह से समझा। तू तो बग़ैर सिर-पैर की बातें किए जा रही है।“

“अच्छा, करो अपनी मर्जी। जब भुगतोगे तो खुद पता लग जाएगा।“ आफिया पैर पटकती सीढ़ियाँ चढ़ गई। ऊपर जाकर उसने सुहेल, सुलेमान, मार्लेन और अन्य कई मित्रों को फोन किए। पर किसी का भी फोन न लगा। सबके फोन बंद थे। आफिया का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। फिर उसने किसी ऐसी सहेली को फोन किया जिसका जिहाद से कोई वास्ता नहीं था, पर वैसे वह इस तरह की बातों की काफ़ी जानकारी रखती थी। वह सउदी अरब की रहने वाली थी।

“आफिया, तू इतनी अपसेट क्या हो रही है। फिर क्या हो गया अगर हम मुसलमान हैं तो। लेकिन हम सबके साथ हैं।“ उसने आफिया को ढाढ़स बंधाया।

“तू मेरी असली बात नहीं समझ रही। अगर नुकसान कराकर यहाँ से निकले तो फिर क्या फायदा हुआ।“

उसकी बात सुनकर सहेली सोच में पड़ गई। उसको लगा कि आफिया हद से अधिक डरी हुई है। वह कुछ सोचते हुए बोली, “आफिया, तू यही चाहती है न कि यहाँ से जल्दी निकल जाए।“

“हाँ, बिलकुल।“

“पर, यह भी नहीं हो सकता, क्योंकि अभी तो अमेरिका का सारा एअरस्पेश बंद पड़ा है। न कोई फ्लाइट अंदर आ रही है, न ही कोई यहाँ से बाहर जा रही है।“

“पर मुझे पता चला है कि एक ख़ास फ्लाइट जा रही है।“

“आफिया, वो फ्लाइट तो बहुत गुप्त तौर पर यहाँ से जा रही है। काग़ज़ों में उसका कहीं जिक्र नहीं है। तुझे पता नहीं कैसे उसके बारे में पता चला गया, वरना तो...।“

“तू क्या कोशिश करके मुझे उस फ्लाइट पर सीट नहीं दिलवा सकती ?“ सहेली की बात बीच में ही काटती हुई आफिया बोली।

“नहीं, यह मुमकिन नहीं है। उस फ्लाइट पर सिर्फ़ सउदी अरब के वही बाशिंदे जा रहे हैं जिनके सउदी अरब की अंबेसी से गहरे संबंध हैं। सउदी अंबैसडर नहीं चाहता कि कल को उसका कोई बाशिंदा इस प्लाट में फंस जाए। तुझे पता ही है कि हाईजैकरों में आधे से अधिक तो सउदी अरब के हैं। उस फ्लाइट के बारे में तू भूल ही जा।“

आफिया की अन्तिम उम्मीद भी खत्म हो गई। इसके बाद उसने अमजद से कोई बहस न की। उदास बैठी वह टी.वी. पर चल रही ख़बरें देखती रही। हर पंद्रह-बीस मिनट के बाद किसी न किसी के पकड़े जाने का समाचार आ रहा था। उसकी सहेली मार्लेन का पति अनवर अल मीराबी भी गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी गिरफ्तारी की ख़बर सुनते ही वह कांपने लगी। क्योंकि उसको याद था कि दो सप्ताह पहले ही वह वापस हूस्टन जाते समय उसके घर आए थे। अमजद, आफिया के अंदर चल रही बातों से अनभिज्ञ सिर्फ़ यही समझता हुआ कि वह बेचारी कुछ अधिक ही डर गई है, उसको शांत करने का प्रयत्न कर रहा था। आफिया अमजद के साथ कोई बात नहीं कर रही थी। वैसे वह अपने तौर पर वापस जाने की कोशिश कर रही थी। फिर, यह उसकी कोशिशों का नतीजा ही था कि 17 सितंबर को जिस दिन अमेरिकी एअरस्पेश पहली बार खुला तो आफिया अपने दोनों बच्चों सहित पाकिस्तान को जाने वाली फ्लाइट में बैठी हुई थी। उसको बड़ा अफसोस था कि अमजद उसके साथ जाने के लिए राज़ी नहीं हुआ था। साथ ही, उसका दिल भी तेज़ी से धड़क रहा था। मगर जब जहाज़ उड़ा तो उसका सारा डर जाता रहा और उसका मन दूसरी तरफ चला गया। उसकी सोच के मुताबिक आखि़री लड़ाई शुरू हो चुकी थी। जिहादियों के अनुसार यह वो लड़ाई थी जिसमें सब काफ़िर मारे जाएंगे और पीछे सिर्फ़ इस्लाम का झंडा सारी दुनिया पर फहरेगा। उसको सारे रास्ते इसी खुशी में पलभर भी नींद नहीं आई। वह सोचती जा रही थी कि इस्लामी देशों में ख़ास तौर पर पाकिस्तान में तो इस वक़्त जिहाद बड़े स्तर पर लड़ा जा रहा होगा। लोग सब कुछ भूलकर जिहाद में शामिल हो चुके होंगे। पर जब वह कराची एअरपोर्ट पर उतरी तो वह बड़ी हैरान हुई। वहाँ तो लोग अपने अपने कामकाजों में व्यस्त थे। लगता था कि किसी को परवाह ही नहीं थी कि अमेरिका में क्या हुआ है। उसका दिल टूट गया। उसको अमजद परिवारवाले एअरपोर्ट पर लेने आए थे। घर जाते समय वह और अधिक हैरान हुई जब अमजद के घरवालों ने ट्विन टॉवरों के ढह जाने वाली बात एकआध बार ही छेड़ी और फिर अन्य बातें करने लगे। अमजद के घरवाले उसके आने पर अधिक खुश भी नहीं थे। अमजद ने उन्हें फोन पर बता दिया था कि कैसे आफिया उसकी बात न मानते हुए सिर्फ़ हालातों से डरकर अमेरिका छोड़ रही है। इससे पहले घरवाले काफी देर से कहते आ रहे थे कि अमजद और आफिया एक बार आकर मिल जाएँ और बच्चों को मिलवा जाएँ। परंतु उन्होंने कभी परिवार वालों की बात नहीं सुनी थी। आज आफिया एकदम ही आ पहुँची। मगर फिर भी खुश थे कि चलो, इस बहाने वे अपने पोता-पोती के साथ कुछ दिन बता सकेंगे।

खान परिवार एक शांत और अपने मज़हब को मानने वाला प्रतिष्ठित परिवार था। उन्होंने ज़िन्दगी में मेहनत करके यह मुकाम हासिल किया था कि उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते थे और अच्छे ओहदों पर थे। अमजद का पिता आगा नईम खां इस वक़्त रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा था। उसकी पत्नी जाहिरा खां की घर में अच्छी चलती थी। पूरा परिवार संयुक्त परिवार के तौर पर रता था। नईम खां यद्यपि राजनीतिक नहीं था, पर उसकी सूझ-बूझ गहरी थी। घर में अमेरिका में आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों की चर्चा हुई थी, पर एक हद तक। परिवार ने कट्टरवादियों के इस कदम की निंदा की थी कि निर्दोषों को मारने से क्या प्राप्त होगा। मगर जब आफिया घर पहुँची तो उसने नाइन एलेवन की घटना को बहुत ही अचम्भे से बयान करना शुरू कर दिया। वह उसकी निंदा नहीं कर रही थी, बल्कि वह इस काम को करने वालों के हक़ में बोल रही थी। वह लगातार इसी घटना के बारे में बोले जा रही थी। परिवार वालों को उसको इस प्रकार उत्साहित होना अच्छा न लगा। पर फिर जाहिरा खां ने सभी को समझाया कि यह शायद उस घटना के कारण सदमे में है इसलिए इस तरह की बातें कर रही है। जब उसने बोलना बंद किया तो नईम खां थोड़ा ताव खाकर बोला, “आफिया बेटी, तुझे पता है कि अब क्या होगा ?“

“होना क्या है। बस, जिस दिन का एक मुद्दत से इंतज़ार था, वह आ चुका है। इन काफ़िरों का सफाया हो जाएगा और अल्लाह के बंदों की जीत होगी।“

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा। जो कुछ होगा, वह मुझे दिखाई दे रहा है।“

“वो क्या ?“ आफिया ने माथे पर बल डालकर पूछा।

“अब अमेरिका, अफगानिस्तान पर चढ़ाई करेगा। क्योंकि यह नाइन एलेवन का कारा करवाने वाला वहाँ पनाह लिए बैठा है। वहाँ अमेरिका अकेला नहीं होगा। सारी दुनिया उसके साथ होगी। ख़ास तौर पर पाकिस्तान ने तो ऐलान भी कर दिया है कि वह अमेरिका का साथ देगा।“

“यही तो हम चाहते हैं। इसी तरह यह आखि़री लड़ाई में तब्दील होगी। यही अल्लाह की मर्ज़ी है।“

“तुमने कभी यह भी सोचा है कि इस लड़ाई में नुकसान किसका होगा ?“

“किसका ?“

“अफगानिस्तान की गरीब जनता का, जो पिछले तीस सालों से लड़ाई में घुन की तरह पिस रही है। बड़े लोग अपना खेल खेल रहे हैं, पर गरीबों को कौन पूछता है।“

“जिहाद में आहुति तो देनी ही पड़ती है।“

आफिया जब नईम खां की बातों का जवाब देने से न हटी तो जाहिरा खां ने पति को चुप रहने का संकेत किया। कुछ देर के लिए वह चुप भी हो गया। परंतु जब आफिया फिर भी अपनी ही हांकती रही तो वह दुबारा बोला, “आफिया बेटी, मुझे यह बता कि तुम इस वक़्त अपने आपको अमेरिका की अपेक्षा यहाँ कैसे सुरक्षित समझते हो ? अमेरिका तुम्हारा देश है। तुम्हारा सब कुछ वहाँ है। और यहाँ तो अब अपने पड़ोस में लड़ाई शुरू होने वाली है।“

“आप इस बात को छोड़िए। जल्द ही अमजद को संदेशा भेजो कि वह जितनी जल्दी हो सकता है, यहाँ आ जाए। वहाँ उसकी ज़िन्दगी को ख़तरा है।“

“किससे ख़तरा है उसकी ज़िन्दगी को ?“

“अमेरिकी सरकार से।“

“वहाँ तो लाखों मुसलमान रह रहे हैं। क्या वे सारे इस नाइन एलेवन के कारनामे के लिए जिम्मेदारी हैं ? नहीं, वे तो आम शहरी हैं। और मैं बता दूँ कि इन आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।“

“आप किसी को आतंकवादी नहीं कह सकते।“ आफिया भड़क उठी। सभी हैरान रह गए। आखि़र, सभी ने नतीजा यह निकाला कि इस वक़्त शायद सदमे के कारण इसकी दिमागी हालत सही नहीं है। इसलिए इसको आराम करने दिया जाए।

उधर अमेरिका ने अफगानिस्तान के तालिबान लीडर, एक आँख वाले मुल्ला उमर को वार्निंग दे दी कि वह कोई एक रास्ता चुन ले। या तो वह ओसामा बिन लादेन को अमेरिका के हवाले कर दे, या फिर अमेरिकी हमले के लिए तैयार हो जाए। मुल्ला उमर ने किसी की कोई बात नहीं मानी। लड़ाई शुरू होने की शंकाएँ बढ़ गईं। आखि़र 7 अक्तूबर 2001 को अमेरिका ने पहला बम अफगानिस्तान पर फेंकते हुए युद्ध की घोषणा का बिगुल बजा दिया। इस बीच आफिया बहुत अधिक उत्साहित थी। कभी वह किसी कमरे में जाती थी और कभी किसी में। कभी वह कुछ बोलती थी और कभी कुछ। घरवाले उसकी हरकतों से बड़े अवाज़ार हो गए थे। दोपहर के समय सभी खाने की मेज़ पर बैठे तो अमजद के बड़े भाई ने बात प्रारंभ की, “आफिया ऐसी कौन-सी बात है जो तू यूँ अपसेट है। और किस बात पर तुझे यूँ खड़े पैर अमेरिका छोड़ने की बात सूझी ?“

“क्योंकि वहाँ के अमेरिकन लोग मुसलमानों के बच्चे अगवा करने लग पड़े थे।“

“पर मैं तो यह बात तुझसे ही पहली बार सुन रहा हूँ। मेरे और भी कई दोस्त वहाँ हैं, उनमें से तो किसी ने भी बच्चे अगवा करने वाली बात नहीं बताई।“

“तो फिर क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ?“

“पर आफिया तेरे अपने भाई और बहन के बच्चे भी तो वहीं हैं। वे तो अपने बच्चों को लेकर नहीं आए।“

“आप सब मुझे बेवकूफ समझते हो ? आपका मतलब इस सबके लिए मैं ही ज़िम्मेदार हूँ ?“ इतना कहते हुए वह उठी और ऊँची आवाज़ में बोलती हुई सीढ़ियाँ चढ़ गई। घरवाले उसका यह व्यवहार देखकर हैरान रह गए। साथ ही, उन्हें अन्य दूसरी बातें भी परेशान कर रही थीं। बड़ी बात थी कि आफिया घर के अंदर भी सिर से पांव तक बुरके में लिपटी हुई थी। उसकी सिर्फ़ आँखें दिखाई देती थीं। जबकि खान परिवार में बुरके को अधिक अहमियत नहीं दी जाती थी। वैसे भी वे सोचते थे कि इतने वर्ष अमेरिका जैसे मॉडर्न देश में रहकर भी वह वही दकियानूसी अंदाज़ में जी रही है। खै़र, जब वह बड़बड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ गई तो उसकी सास उसके पीछे पीछे गई। काफी देर बाद वह उसको किसी तरह मनाकर वापस खाने की मेज़ पर ले आई। वह आ तो गई, पर उसने बुरका एकतरफ नहीं किया। इसपर जाहिरा खां बोली, “आफिया बेटी, अब तो तू परदा हटा सकती है। यहाँ सब घर के ही लोग हैं।“

“यहाँ बैठे सब लोग शैतान है। किसी को इस्लाम की परवाह नहीं है।“ इतना कहते हुए वह फिर भाषण देने लग पड़ी। इस बीच वह अमजद के घरवालों का अपमान किए जा रही थी कि वे लोग धर्म के बारे मे कुछ नहीं जानते। आखि़र, नईम खां खान की मेज़ पर से उठ खड़ा हुआ। वह अपनी बहू के साथ कोई वार्तालाप नहीं कर सकता था और चुप रहकर उसकी बेहूदगी भरी बातों को भी नहीं सुन सकता था। वह उठकर बाहर चला गया। उसी रात उसने अमजद को फोन करके कहा कि वह शीघ्र वापस आकर अपनी बेगम को संभाले, क्योंकि उसने सारे परिवार का जीना दूभर किया हुआ है। उधर आफिया ने भी अमजद को फोन करके कहा, “अमजद, अब तू आकर फै़सला कर ले कि तू शैतानों के साथ रहना चाहता है या फिर मेरे साथ ?“

“आफिया, मेरे इम्तहान में इस वक़्त सिर्फ़ पाँच महीने शेष हैं। यदि मैं अब आ जाता हूँ तो अब तक का किया-कराया सब कुएँ में पड़ जाएगा। तू मुझे अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दे। तब तक तू किसी न किसी तरह एडजस्ट कर।“

(जारी…)