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तेरे इंतजार मे सब बेठे है ।
तु चल आगेे
हिन्दुुुस्तान चलेगा
तु दौद लगा सब दौड़ेगे
तेरी बंद मुठ्ठी एक हिम्मत है
तु राह बना सब दौदेंंगे
तु हि है वो एक ही उम्मीद
तरे इंतजार मे सब बेठे है
तु एक बार उठ देख जहाको
तेरे इंतजार मे सब बेठे है
तु उम्मीद बनजा
तु हिम्मत बनजा
तु चल आगेे हिन्दुुुस्तान चलेगा
तु दौद लगा सब दौड़ेगे
तु क्युं बेठा है
तुझे किसका इंतजार
तेरे इंतजार मे सब बेठे है
तु एक बार चलेेगा
हिन्दुुुस्तान चलेगा
हिन्दुुुस्तान चलेगा
हिन्दुुुस्तान बनेगा
तेरे चलने से
हिन्दुुुस्तान बनेगा
तेरे चलने से
हिन्दुुुस्तान चलेगा
तु चल आगेे हिन्दुुुस्तान चलेगा
तु दौद लगा सब दौड़ेगे ।
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ऐ कविता मने 04-08-2017 को लिखी थी । वैसे तो मे एक गुजराती स्पीकर हु लेकिन मुझे हिन्दी मे लिखना पसंद है । मै हिंदी मै तो लिखता हु लेकिन उसका सिर्फ उच्चारण हि हिंदी का होता है।
इस कविता के बारेमे अगर मे कुछ कहु तो 15 अगस्त नजदीक आ रही थी । इस महिनेमे अक्सर देश भक्ति जाग जाती है। जो सिर्फ इसी महिने तक हि सिमित रहेती है। बादमे अगले अगस्त तक कही गायब हो जाती है। इस महिने मे लोग अक्सर देश भक्ति की बडी बडी बाते करते के देश मे एसा होना चाहिए देश को वैसा होना चाहिए । देश मे ए बदलाव आना चाहिए । लेकीन शुरूआत कोई नही कर्ता । सब लोग किसीना किसीका इंतजार करते रहते। इसी खयाल को मेने जब लिखने की कोशिश की तो मेरे ए विचार ने कविता कि शक्ल लेली।
जब मे ए कविता लिख रहा था तो मे दुसरे लोगो के बारेमे सोच रहा था कि कोइ शुरुआत क्यु नही कर्ता । ए सोचते सोचते मुझे ध्यान मे आया कि तुम भी तो वही कर रहे हो जो बाकी लोग कर रहे है । तब मेने ए खुद के बारे में सोचा था । ओर खुद को कहा था कि कोई शुरूआत नही कर्ता तो तुम क्यु बेठे हो क्या पता तुम्हारे इंतजार मे सब इंतजार कर रहे हो ।
जेसे महात्मा गांधीजी ने अकेले शुरुआत कि थी और पुरा देश एकसाथ खडा हो गया था और हमे आजादी मिली । जैसे आन्ना हजारे कि एक शुरुआत ने बहुत बड़ा आंदोलन का रूप लिया था । वेसे ही किसीकी एक शुरुआत ने निर्भया और कही सारी महिलाओ को न्याय दिलाया था ।
हम सबको एक शुरुआत कि जरूरत है हम सब किसीके इंतजार मे बेठे है। जब कोई एक शुरुआत करेगा तब ए देश जरूर बनेगा ।
ओर इसी कविता से मेने और एक कविता लिखी है जो हमे मुस्किलो का सामना करना सिखाती है जो निचे लिखी हुई है।
लेखक - यश ठाकोर
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सो बार उंठुगा
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एक बार गिरुगा
सो बार उंंठुगा
दुनिया ना जुका पाये
वो पर्वत बनुगा
कांंटो के रास्ते पे
इंट बनके चलुगा
जो नदी को भी रोक दे
वो बांध बनुगा
फुलो की महेक मे ना आऐ
ऐसा भवरा बनुगा
जब उंंठुगा आसमान मे
फिर भी धरती ना छोदुुंंगा
मै उस पतंग सा बनुगा
भो कटेे फिरभी जमीन पेे आऐ
मै वो हवाा बनुगा
जो कोने कोने मे समा जाए
बस आज वो वक्त का इंतजार है
जब मै एक बार गिरुगा
जब एक बार गिरुगा
सो बार उंंठुगा
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लेखक - यश ठाकोर
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