मैं कैसे भूल सकता हूँ वो कॉलेज का पहला दिन। ठंड का मौसम और धुंध। मैं। जा रहा था अपने कॉलेज बस की ओर। बस रोजाना की तरह अपने तय वक़्त पर अपनी नियत स्थान पर खड़ी मिलती थी। खिड़की वाली सीट हमेशा से मेरी पसंद रही है। मैंने अपनी ज़िंदगी के ज्यादातर सफर खिड़की से बाहर झाँक कर ही काटे हैं।
एक दिन थोड़ी देर क्या हुई मेरी सीट पर एक लड़की आ कर बैठ गयी गयी। बस में चढ़ते ही मेरी नज उस पर पड़ी। समझ नहीं आ रहा था कि धुँध भरी वो सुबह खूबसूरत थी या वो। मेरी घूरती नजरों पर उसका ध्यान गया। मैं आगे बढ़ा और उसके बगल में बैठ गया।
उसे कुछ अटपटा लगा और वो दूसरी ओर बैठी अपनी सहेलियों से बोली- "मैं वहां आ रही हूं।"
उसकी सहेली बोली- "पूजा वहां जगह तो है, क्या हुआ?"
वो बोली- "मुझे नहीं बैठना यहां।"
और वो उठ कर चल दी। मुझे ऐसा लग जैसे मेरी इज्जत चली गयी हो।
एक दिन मैं खिड़की वाली जगह पर बैठा हुआ था और पूरी बस भरी हुई थी। केवल मेरे बगल वाली सीट ही खाली थी। उस दिन जोरो की बारिश हो रही थी इसलिए वो देर से आई। पूजा बस में वहीं खड़ी थी जहां मैं उस दिन खड़ा था। वो भी मेरी तरफ ऐसे ही देख रही थी जैसे मैं देख रहा था। मेरा ध्यान उसकी तरफ गया। इस। आज वो बारिश में भीगी पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
मेरी बगल वाली सीट की तरफ बढ़ने लगी। मैं सोच रहा था कि आज बदला लूंगा उस दिन की बेइज्जती का।
आते ही हल्की सी मुस्कान और धीमी आवाज में बोली- "मैं बैठ जाऊं यहां।"
"हां ज़रूर।" बगल वाली सीट से अपना बैग हटाते हुए कहा।
उसकी उस हल्की मुस्कान के आगे मैंने उसके सारे गुनाह दफन कर दिए। फिर वही खिड़की वही बाहर के नजारे देखने में मशरूफ हो गया।
वक़्त ने पंख लगाए और उड़ चला। अब मुझे अपने डिप्लोमा खत्म किए हुए 5 साल हो चुके थे।
कॉलेज के दिन, कैंटीन की चाय, वो कुमार शानू और उदित नारायण के गीत अब कहाँ। अब रोज उठो, तैयार हो कर ऑफिस चलो, शाम को थक हार कर उसी कमरे में ऑफिस आओ जिसे तुम घर कहते हो। ना तो यह घर हुआ न ये अपनी ज़िंदगी बस सफर है चलते जा रहे हैं।
सर्दी की धूप में मंद मंद बहती ठंडी हवा। इस मौसम का भी अपना एक अलग मिजाज है। शहर का जाना माना गर्ल्स कॉलेज और मेरे ऑफिस एक ही रास्ते ओर पड़ता है। यह भीनी भीनी महक अक्सर किसी की याद दिला देती थी। मुझे याद है वो जब मुझे बस में मिली थी तब भी ऐसी ही खुश्बू से बस खुशनुमा हो जाया करता था। पर वो खुशबू वो महक अलग ही हुआ करती थी जिसे मैं बंद आंखों से भी पहचान सकता था। अक्सर उन्हीं यादों में डूबा अपनी कहानी याद कर लेता हूँ।
इस शहर ने मुझे कॉलेज के नौजवान से कमाऊ आदमी भी बनाया और मैंने यही जाना कि ज़िन्दगी की खूबसूरती इन सबसे कहीं ज्यादा है। इसे पाने का मजा है। इसके इंतज़ार में भी मजा है।
"अबे बन्द करो ये लफंडरो वाले गाने।" मैंने रेस्टूरेंट के वेटर को बोला।
"क्या तुम भी जहां देखो गुस्सा करने लग जाते हो।
तुम मुझसे मिलने आए हो या गाना सुनने।"
"आधा घंटा हो गया मुझे इसके बकवास गाना सुनते हुए और तुम्हारा इंतजार करते करते। मेरे बॉस विनीत चौधरी का फ़ोन आया वो औऱ दिमाग खा रहा है तुम अचनाक छुट्टी पर कैसे चले गए काम कितना पेंडिंग है?
थोड़ा बहुत तो तू भी करले। एक दिन में जान जा रही है तेरी। थोड़ा काम ही कर लेगा तो मर थोड़े ना जाएगा या मुझे बकरा समझ के रख लिया कंपनी में।"
इतना सुनते ही वो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है।
"क्या यार मेरा मूड खराब है और तुम हंस रही हो।"
"ये जो तुम डायलाग मारते हो ना, कसम से फैन हो जाती हूँ तुम्हारी।"
"अरे ये तो बस बाबू राव का स्टाइल है।"
इतना सुनते ही वो खिलखिलाकर हंस पड़ी।
वो पगली नहीं जानती मैं उसकी प्यारी सी हंसी देखने के लिए ऐसा करता हूँ। जन्मदिन था उसका तो इंतज़ार भी तो बनता है। घण्टों पहले खरीदे हुए गुलाब मुरझाने लगे थे, शायद उसकी खूबसूरती देखने के बाद मुरझा जाना ही उचित समझा हो। डेयरी मिल्क सिल्क भी मिल्क की तरह पिघल चुकी थी। लेकिन वो आई है इतना ही काफी था मेरे लिए। वो तो शुक्र है कि कॉलेज के फाइनल ईयर में मैंने पूजा को प्रपोज कर दिया था और वो झट से मान गयी थी। आज वो औऱ मैं लखनऊ में ही वाप्कोस लिमिटेड में एक साथ काम भी करते हैं।
अगले दिन ऑफिस की छुट्टी थी। रात में अचानक पूजा की कॉल आती है।
"तुम मुझे मेरे पी.जी. के बाहर मिलो।"
"हुआ क्या ये तो बताओ।"
"तुम आओ तो सही।"
"ठीक है आता हूँ।"
वहां जाकर उसे फिर से कॉल किया।
"वो खिड़की से बाहर आई।"
"हाँ बोलो अब क्या बात है?"
"कुछ नहीं।"
"तो ऐसे ही बुलाया मुझे?"
"तुम्हें देखना था बस।"
"बस देखना था इसलिए बुलाया।"
"आज मैंने पहली बार करवाचौथ का व्रत रखा था, तुम्हें देखे बिना कैसे खोलती।"
"ये बात दिल तक उतर गई।"
"उस रात वो मुझे और भी खूबसूरत नजर आई।"
"उसने फिर जाने का इशारा किया और मैं वापस लौट आया।"
उस रात का कोई अंत नहीं था और मुझे नींद भी नहीं आयी। मैं पूरी रात उसी के ख्यालों में ही खोया रहा। कुछ इसी तरह यह सिलसिला जारी रहा।
अगले दिन उसे देखते ही मेरे दिल मे उसके प्रति ईज्जत और बढ़ गयी थी। शाम को बड़ा ही सरप्राइज मिला। ऑफिस से 3 लोगो को अच्छे काम की वजह से आगरा का 2 रात और 1 दिन का टूर मिला था। जिसमें कौशल किशोर (मेरा नाम), पूजा रॉय और मेरे साथ के ही एक मित्र जिसका नाम अभिषेक पांडे का नाम था। हमें इसी वीकेंड पर जाना था। हम तीनों बहुत खुश थे। मैं पिछले 2 सालों से पूजा के साथ रिलेशन में था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण कभी बाहर ऐसे रोमांटिक जगह घुमाने नहीं ले गया था। हम दोनों एक दूसरे को काफी वक़्त से इस तरह का समय देना चाहते थे और अब तो मौका भी हाथ लग चुका था इसलिए लगे हाथ इस मौके को भुनाना भी चाहते थे।
जाने की सभी तैयारियां हो चुकी थी। पूजा और रोहित के साथ मैं मैसूर से डायरेक्ट फ्लाइट से आगरा जाने वाली फ्लाइट में बैठ गए थे। शाम 4 बजे तक हम आगरा पहुँच गए थे।
अब हमलोग होटल रॉयल ताज के रिसेप्शन के पास थें। अभिषेक ने तीन कमरे पहले ही ऑनलाइन बुक कर लिए थे। हमलोगों ने अपनी आई डी जमा करने के साथ ही चेक इन किया। रिसेप्शन वाले ने हमे रूम नम्बर 304, 305 और 309 कि चाभी थमाई। ऊपर आने पर पता चला कि रूम नंबर 304 और 305 तो अगल-बगल ही था लेकिन 309 बस उसी पंक्ति में अंतिम में था। यात्रा से हम सभी टूट चुके थे तो सब अपने अपने सामान लेकर अपने अपने कमरे में घूंस गए। थोड़ी देर में मेरे दरवाजे पर दस्तक ने मेरा ध्यान तोड़ा। मैं टॉवेल में था और नहाने जा रहा था।
"हू इज दिस? प्लीज कम इन?"
बिना किसी के आवाज के दरवाजा खुला और मैं यह देखकर अवाक रह गया कि दरवाजे को खोलकर पूजा अंदर मेरे सामने खड़ी थी।
"हा हा तो जनाब यहां रासलीला कर रहे हैं, यदि रासलीला खत्म हो गयी हो तो क्या मुजरा दिखने को मिल सकता है क्या?"
यह कहते ही वो जोर जोर से हँसने लगी और मैं भी उसके उस हंसी में शामिल हो गया। मैंने उसको थोड़ी देर इन्तजार करने को कहा और बस यूं गया और यूं आया कहकर नहाने को चला गया।
वो वहीं बेड के किनारे बैठकर मोबाइल से स्टेटस उपडेट्स करने में लग गयी।
थोड़ी देर में जैसे ही नहा धो कर बाहर आया तो मैं यह देखकर स्तब्ध हो जाता हूँ कि पूजा उस कमरे में अकेले नहीं थी, अभिषेक भी उसके बाजू में ही बैठा हुआ था औऱ उसके एक हाथ मे एक-दो कागज के टुकड़े और दूसरे हाथ मे एक पेन था।
उनदोनो ने मुझे देखते ही राहत की सांस ली और एक साथ बोले- "लो आ गए जनाब, बडी देर कर दी आते आते।"
"अरे यार बहुत दिनों बाद कोई जर्नी की है और इस जर्नी ने तो थकाकर रख दिया था। अब जा कर कुछ हल्का हल्का सा फील हो रहा है।"
मैंने शेखी बघारते हुए कहा।
यह सुनते ही पूजा ने कहा- "तुमने नहाने में इतना वक़्त लगा दिया औऱ यहां मैंने और अभिषेक ने कल की ट्रिप की सारी प्लानिंग कर दी।"
"वाऊ डेट्स ग्रेट! यू गाइज आर रियली अमेजिंग।"
मैंने उनको मोटीवेट करते हुए कहा औऱ उसके हाथ से वो पेज ले कर उनके बीच बैठ गया।
"देख कौशल सबसे पहले कल सुबह 10 बजे ताज महल देखने जाएंगे फिर वहां से लगभग 1 बजे लाल किला देखने जाएंगे जो मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर ही है फिर उसके बाद किसी अच्छे से रेस्टूरेंट....।"
"नहीं नहीं पहले लालकिला देखने चलेंगे उसके बाद किसी अच्छे से रेस्टूरेंट में खाना खाएंगे उसके बाद ताज महल देखने जाएंगे।"
पूजा ने अभिषेक की बात को बीच से ही काटते हुए अपना तर्क रखा।
"पहले ताज महल ही देखेंगे यार! इतनी दूर दूर से लोग ताज देखने के लिए यहां आते हैं और मैडम को पहले लाल किला फिर पेट मे ठूंसने की पड़ी है।"
अभिषेक तिलमिलाते हुए बोला जैसे कि उससे उसकी दबी हुई इच्छा को किसी ने मान मर्दन कर दिया हो।
"यू आर रियली स्टूपिड अभिषेक! मेरे ऐसा करने के पीछे कारण है, वो सुन तो ले पहले। मैं चाहती हूं कि हम ताज महल 5 बजे के बाद जाएं ताकि हमलोग ताज महल को सूर्यास्त से पहले लालिमा में डूबे हुए देख सकें और थोड़ी देर बाद चांदनी रंग में डूबे हुए भी देख सकें। क्या पता ज़िन्दगी में फिर कभी ऐसा मौका मिल सके या नहीं।"
मैं पूजा के इस तर्क को सुनकर सच मे उसके इस गहरी और खूबसूरत विचार का कायल हो चुका हो गया।
"चल बे! कल अमावस्या की रात है, कल चांदनी रात तो दूर की बात ताज महल दिखने वाला ही नहीं है।"
अभिषेक के ऐसा कहते ही मैं भी उसके साथ जोर जोर से हंस पड़ा। पहले तो पूजा ने गुस्से से अभिषेक की तरफ देखा और थोड़ी देर में वो भी अपने पर काबू न रख सकी और इस हंसी में हमारे साथ शामिल हो गयी।
"अरे चलो डिनर कर लें यार बड़ी जोरो की भूख लगी है।"
निशी ने ये प्रस्ताव रखा जिसे हम नकार नहीं सके औऱ तीनो कमरे में ताला बंद करके बाहर की तरफ रुख कर दिया।
जैसे ही बाहर निकले सड़क के किनारे स्ट्रीट फूड्स ने मन को मोह लिया। इससे पहले की मैं कुछ कहता पूजा ने कहा- "हे गाइज आई थिंक वी शुड ट्राय स्ट्रीट फूड्स बिफोर डिनर। व्हाट्स योर ओपिनियन?"
"वाह तुमने तो मेरे मन की बात ही कह डाली।"
अभिषेक ने उसकी बातों को वजन देते हुए कहा।
"नहीं बिल्कुल नहीं मुझे खाने के वक़्त यह सब पसंद नहीं, फिर डिनर पर इसका फर्क पड़ेगा।"
मैंने अपने चहरे के भाव को गिराते हुए कहा।
"अरे इसे नॉनवेज पसंद नही इसलिए यह नॉटंकी कर रहा है। तुझे नहीं खाना है तो मत खाना। हमे तो खाने दे। हमारे साथ खड़ा तो रह सकता है?"
पूजा ने एक सांस में सारी बात बोल दी, जिसके सुनने के बाद मैंने कहा - "ठीक है सालों तुमलोग का पेट है ठूँस लो।"
थोड़ी दूर चलते ही अगली चौक पर ही कार्नर में बहुत भीड़ थी और वहीं दुर से ही अलग अलग जायके की खुश्बू आ रही थी जिसने भूख को बढ़ाने का ही काम किया। हम अगले ही पल वहां खड़े थे।
"यार मुझे तो मोमोज खाने हैं वो भी नॉन वेज वाले। अभिषेक तू बता क्या खाएगा?
पूजा ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।
"ऐसा कर मेरे लिए स्प्रिंग रोल और एक अफगानी मोमोज कर दे। अरे हां कौशल! तूझे कुछ चाहिए तो अभी भी बोल दे मैं बाद में शेयर करने वाला नहीं हूं।
अभिषेक यह कहते ही हंस पड़ा।
"तुमलोगो को जितना ठूंसना है ठूंस लो मुझे यह सब चीजें पसन्द नहीं। बस एक बात का ध्यान रखना जागले आधे घंटे में हमे डिनर करना है।"
भूख तो मुझे भी बहुत जोर से लगी थी लेकिन मैंने यहां प्रतिष्ठा में प्राण दांव पर लगा दिया था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था कि मैं उनलोगों को खाते हुए न देखूं लेकिन व्यंजनों की खुश्बू से पीछा छुड़ाना भी इतना आसान नहीं था। कभी कभी मन होता कि मैं अपने लिए भी कुछ आर्डर कर दूं लेकिन मैं चाह कर भी ना जाने अपने कदम पीछे क्यों कर ले रहा था। करीब 20 मिनट बाद पैसा चुकता करने के बाद हम लोग टहलते टहलते एक अच्छे से ढाबे में बैठे और खाना खाने के बाद वहां से होटल पहुँचे। सभी अब तक चुके थे और खाना खाने के बाद आंखे भी भारी हो चली थी। सभी अपने अपने कमरे में जा कर सो गए।
यह जुलाई महीने की गहराती शाम थी। पूरे दिन अपनी रौशनी और गर्माहट से धरती को नवाज़ता सूरज अब डूबने के मनसूबा बांध चुका था और धीरे धीरे क्षितिज की ओर लालिमा फैलाकर दिन को सिमटने के प्रयास में लग गयी थी। चिड़ियों की चिं चिं की आवाज से साफ ज़ाहिर हो रहा था कि यह अब अपने घौंसले की तरफ़ रवाना हो रही है।
अचनाक पूजा की नजर ताज महल पर पड़ी। वो बिल्कुल ही चाँद की चांदनी से नहाया हुआ प्रतीत हो रहा था। ताज महल को अभी थोड़ी देर पहले भी देखा था तब भी आकर्षक ही लग रहा था परन्तु अब मनमोहक लग रहा था। मानो अपनी और आकर्षित कर रहा हो और मन उसको छूने को लालायित हो रहा था। वाकई अब एहसास हो रहा था कि सच मे ताज महल दुनिया के सात अजूबों में क्यों है, उसका जवाब प्रत्यक्ष देखकर ही मिल सकता था। उसकी नायाब कारीगरी चांद की दूधिया रौशनी में निखर कर उसकी शोभा बढ़ा रहा था।
पूजा बिना कुछ कहे। उठ खड़ी हुई थी। वो एकाएक अपने दोनो हाथों को ऊपर उठाकर मन्द मन्द मुस्काती हुई धीरे धीरे गोल घूमने लगी। उसका चेहरा चांदनी में गिला गिला चमक रहा था। आज तो उस चांद को भी जलन हो रही होगी। वो इस अंदाज में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी मानो आज चाँद अपनी चांदनी से छटा बिखर कर आज ही अपना सब कुछ पूजा पर न्योछावर कर देना चाहता हो। मैं यह सारे मनमोहक दृश्य अपने डी एस एल आर कैमरे में कैद कर रहा था। अचनाक मैंने कैमरा साथ ही खड़े अभिषेक को दिया और मैं अनायास पूजा की तरफ खींचा चला गया। उसके करीब पहुंचकर मैंने उसके हाथों को थामा और कहा - "बस रूको मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं। पूछोगी नहीं मैं कहाँ ले जा रहा हूँ?"
"आज तुम जहां ले चलो मैं तैयार हूं। चाहे तो तुम इस सितारों के पार ले चलो या... बस तुम्हारे संग चलना यह काफी है कौशल!"
यह कहते हुए वो मुस्कुराई और काफी देर तक मुस्कुराती ही रही। पूजा आज पहली बार दिल खोलकर इतनी देर तक मुस्कुराई थी।
शरद की चाँद सी बिल्कुल उजली हंसी। इस वक़्त उसके चेहरे पर पूरा चाँद था। प्यार के पल जादू के होते हैं, उन्हें किसी फ्रेम में कैद नहीं किया जा सकता। बस जिया जाता है जी भर।
"अब तो तुम खुश हो ना पूजा?"
मैंने उत्सुकता वाले भाव में में लिए कहा।
"खुश...बहुत खुश कौशल! यह मेरे ज़िन्दगी का नायाब दिन है। मैं इसे भूलना नहीं चाहती। इसे निरन्तर महसूस करती रहना चाहतीं हूँ।"
वह इतना कहते ही मुझसे ले लिपट पड़ी।
मेरे धमनियों में ठहरा हुआ लहू, पसलियों में पथराया दिल एकाएक चौगनी गति से दौड़ने लगा। हमदोनो की सांसे बहुत तेज तेज चल रहीं थी। मैं उसकी यौवन की मादकता की भीनी भीनी खुश्बू को महसूस कर रहा था। मैं भी इस पल को दिल से महसूस करना चाहता था। हम काफी देर इसी अवस्था मे वहां बूत बनकर एक दूसरे से लिपटे रहे।
"नहीं...नहीं कैशल! यह सही नही है। मैं जज्बातों में बह गई।"
मुझे अचानक से जोर से धक्का देते हुए पूजा ने कहा।
"पूजा! अपने दिल के जज्बातों पर दिमाग को मत हावी होने दो। दिमाग तो हमेशा इंसान को जीवनपर्यन्त उलझाए रखता है। हमेशा दिल की सुनो वो कभी गलत नही होता।"
मैंने पूजा की तरफ बढ़ते हुए उसके नरम हाथों को अपने हथेलियों से पकड़ते हुए कहा।
"लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमे दोस्ती की मर्यादा लांघनी चाहिए। मुझे तुम्हारी दोस्ती की ज़रूरत ताउम्र रहेगी और मैं तुम जैसे दोस्त को कभी खोना नहीं चाहूंगी।"
ऐसा बोलने के बाद उसने मेरे माथे पर हल्का सा किस किया। उसकी अचानक इस हरकत ने मेरे शरीर मे झुरझुरी उत्पन्न कर दी। मैं उसकी बातों को सुनकर बिल्कुल स्तब्ध रह गया। मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मुझे अब क्या प्रतिक्रिया करनी चाहिए। उजली चांदनी में पूजा के चेहरे का रंग अचानक उड़ गया था। वह अब दूसरी ओर देख रही थी। उन आंखों में क्या था? भय थी या माथे पर चिंता की लकीरें, मूझमे यह जानने का साहस नहीं था।
मैं उसकी बातें सुनने के नाद काफी देर तक मौन रहा। उसकी बातों से मुझे उसके भविष्य की चिंता औऱ समाज का खौफ दिखा था।
चाँद पश्चिम की ओर अब कुछ झुक चला था। वह अगले पल मेरी तरफ मुड़ी और न जाने जेहन में एकाएक किस ख्याल के आने से रुक पड़ी।
बिना कुछ बोले वो वहीं खड़ी मुझे नम आंखों से देखती रही।
इस समय उसके सुने माथे पर चाँद चमक रहा था। उसके नीचे बिछी आंखों की गहरी उदासी ठीक किसी पछाड़ खाते समुंद्र की तरह। उसकी आंखें अब शायद बहुत कुछ बयाँ कर रहे थे जिन्हें समझना मेरे लिए मुश्किल नहीं था।
अचानक बड़ी तेज से गर्जना हुई और आसमान में बिजली कौंधी। इस बिजली की तेज गर्जना के साथ ही वो मुझसे लिपट गयी। वो बेखौफ काफी देर मुझसे ही लिपटी रही। उसने कॉलेज में एक बार बताया था कि उसे बिजली से बहुत ज्यादा डर लगता है। इस बिजली की चमक के बाद धीमी धीमी बारिश ने मौसम को और भी रूमानी बना दिया। दूर खड़े अभिषेक इन सभी पलों को कैमरे में कैद कर रहा था। हम लगभग भीग चुके थे, लेकिन उस वक़्त उसे ना तो खुद के भीगने की परवाह थी न ही मुझसे अलग होने की। इस से पहले की सिचूवेशन आउट ऑफ कंट्रोल हो जाए और हम अपने भावनाओ पर काबू ना रख पाए ,मैंने थोड़ी देर बाद मैंने खुद को उससे अलग किया और मेरा ध्यान उसके चेहरे की तरफ गया। उसकीं आंखें सुर्ख लाल थी, जिसे देखने से पता लग रहा था कि इसके मन में किसी बात का डर या कोई पछतावा था जिसे वो बताने में अपने आप को असहज महसूस कर रही थी और उसे दिल के कहीं कोने में दफन कर के अनायास ही काफी देर से आंशू बहा रही थी। उसकी आँखों को देखकर उसके जज्बातों का हाल खुद ब खुद बयाँ हो रहे थे। कहीं न कहीं उज़के दिल मे कहीं टिश थी जिसकी वजह से उसने अपने कदम पीछे खिंचे थे।
अपने आपको संभालते हुए वो एकदम से सामान्य स्थिति में आते हुए बोली-
"कौशल! मुझे लगता है कि हमें यहां से अब चलना चाहिए। हम ऑलमोस्ट बारिश में लगभग भीग चुके हैं। हमें कल सुबह मैसूर के लिए निकलना भी है।"
उसके अचनाक फिर से सामान्य होने की घटना मेरी समझ मे नही आया। उसका इस तरह वापिस स्थिति में आना वाकई काबिलेतारीफ था। इतना आसान नहीं होता किसी भी इंसान के लिए की पल में ही मूड को एकदम से बदल दें।
"अरे मैं तो कबसे चलने को कह रहा था, लेकिन तुमलोग हो कि कबूतर के जोड़े की तरह एक दूसरे में खोए हुए थे।"
अभिषेक ने बिल्कुल सही वक्त पर आकर व्यंग्य मारा। उसके बाद हम तीनों बाहर आ गए।
"अरे सुन अभिषेक! तू पूजा के साथ जा कर लाकर से सामान ले ले मैं बस थोड़ी देर में आता हूँ।"
मैंने यह कहते हुए रोहित के तरफ इशारा किया कि वो उसे कुछ देर उलझाए रखे मैं बस थोड़ी देर में ही मिल जाऊंगा उसको।
"ह्म्म्म ठीक है तू हमे एग्जिट गेट नंबर 2 के बाहर मिल जाना, हमलोग तुझे वहीं मिलेंगे।"
यह कहकर अभिषेक पूजा के साथ लॉकर के तरफ बढ़ गया।
हम तीनों होटल रॉयल ताज पहुँच चुके थे। बारिश अपने पूरे शबाब पर था। मानो ना रुकने की हठ लगा बैठा हो। हम थोड़ी देर में ही अपने अपने कमरे में पहुंच गए थे। कपड़े बदलने के बाद हम तीनों ने निश्चय किया कि आज रात का डिनर यहीं होटल में ही करेंगे। घड़ी रात्रि के 9:30 बजे का इशारा कर रही थी। हमलोग लगभग सवा दस बजे तक खाना खाकर कमरा नंबर 304 में ही थे। अभिषेक काफी थक चुका था इसलिए वो सोने अपने कमरे में चला गया। पूजा मुझे अपने मोबाइल से लालकिला और ताजमहल के फोटो को दिखा रही थी। देखते देखते अचनाक उसे पता नहीं क्या हुआ। उसने मेरी हाथों को पकड़ते हुए कहा- "कौशल! यह ट्रिप मैं ज़िन्दगी में कभी नहीं भूल सकती। वाकई यहां के बिताए हुए वक़्त मेरे जेहन को लगातार ताजा करती रहेगी। कल से वहीं बोरिंग लाइफ फिर से शुरू हो जाएगी इसलिए मैं इस रोमांचक सफर का और भी लुत्फ लेना चाहती हूं। मेरी एक आखिरी ख्वाईश है जो काफी वक्त से दिल मे दफन था लेकिन मैं उसे आज पूरा करना चाहती हूं। लेकिन मैं तुमसे उस बात को कहने में झिझक रहीं हूँ, की पता नहीं तुम मेरे बारे में क्या सोचोगे?"
"अरे झिझक कैसी भला? तुम्हें जो दिल करता है वो करो। ज़िन्दगी जीने का नाम है पूजा। बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है मैं वो भी पूरी करूँगा।"
मैंने उसे एकदम जोश से कहा क्योकि मुझे भी उसके मन दबे सतत बेचैनी को जानना था जिसके कारण उसे उस बात को कहने में झिझकना पड़ रहा था।
"पहले तुम यह प्रॉमिस करो कि यह बात किसी को बताओगे नहीं और इसे बिल्कुल ही टॉप सीक्रेट रखोगे? यदि ऐसा है तभी मैं तुम्हें बोलूंगी और हाँ प्लीज् मुझे तुम इस एक बात की वजह से जज मत करना।"
वो बेधड़क कहती चली जा रही थी और मेरी धड़कन की रफ्तार उसे साथ साथ बढ़ती ही चली जा रही थी। मैंने खुद पर काबू करते हुए कहा- "बीलिव मी पूजा, मैं कभी किसी को कुछ नहीं बताने वाला। अब बस तुम कह डालो जो भी कहना है।"
"हम्म वो तो मुझे तुम पर भरोसा तो है ही वरना यूं ही इतनी दूर तुम्हारे साथ नहीं चली आती। मैं जो बताने वाली हूँ वो मेरी एक गुप्त इच्छा है जो अपने लाइफ में बस एक बार...एक बार पूरा करना चाहती हूं।"
यह कहते कहते पूजा जाने क्या सोचते हुए रुक गयी।
"अरे बोलो भी यार! वरना तुम्हारे बताने बताने में कहीं सुबह ना हो जाए।"
मैं इतना कहते ही जोर से हंस पड़ा। उसने मेरी तरफ गुस्से से अपनी दोनो भौहों को उठाते हुए नाक को चढ़ाते हुए गुस्से से कहा- "ईट्स नॉट अ जोक डियर। मुझे आज बियर पीनी है एंड आय वांट टू टेस्ट इट टुडे।"
"व्...व्हाट। आर यू सीरियस पूजा? तुम्हें अचनाक आज यह क्या सूझी?"
मैंने अपने मुँह को आश्चर्य से फैलाते हुए बोला।
"यस टुडे आय वांट लिटल बिट फन। क्या पता कल हो ना हो और कल हुआ भी अगर तो क्या पता हम हो ना हों।"
यह कहते ही वो अपने दोनों हाथों को ऊपर की तरफ उठा कर जोर जोर से हंस पड़ी और मैं भी उसकी हंसी में अब उसका साथ दे रहा था। उसने बताया कि उसने आज से पहले कभी बियर नहीं पी है और उसके मन मे स्वतः ही ख्याल आया गया कि यह मस्ती एक बार करना तो बनता है। उसने काफी सच्चाई और बेबाकी से आने में कई बात कही थी। मैं उज़की ओर देखता रहा कि शायद वो इस बारे में और कुछ कहेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। बस इतना ही बोल कर खामोश हो गयी।
"तो इसमे कौंन सी बड़ी बात है? ऐसा करना गलत है क्या?" उसने इस बात को इतराकर कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी।
मैंने फिर उसकी बात की पुष्टि करनी चाही, पूजा! आर यू श्योर ना?"
"लेट मी थिंक, यस ऑफकोर्स यार! अब किस तरह से कहूं।"
उसने यह कहने के बाद उत्सुकता से मेरी तरफ प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। मैं थोड़ा हैरान ज़रूर था लेकिन कुछ हद तक उसके पागलपन करने की उसकी ज़बर्दस्त इच्छा का मजा ले रहा था।
"अगर तुम्हें लगता है कि इस तरह फन करना गलत है तो फिर रहने दे क्या?"
उसने यह बात बड़े भोलेपन से पूछा लेकिन उसकी आंखें मुझसे आग्रह कर रही थी कि मैं उसकी बातों से सहमत हो जाऊं औऱ इसकी आज हर एक बात को मानूं। मैं उसकी इस प्रस्ताव को नकार नहीं सका और एक भीनी मुस्कान के साथ उससे 15 मिनट का वक़्त मांगा और उस कमरे से बाहर चला आया। अगले ही कुछ क्षणों में ही मैं कमरा नम्बर 304 में उसके सामने खड़ा था। मैंने पैकेट्स खोलकर उसमे से किंगफ़िशर की 4 बियर की बोत्तल निकाली। बियर की बोत्तल को देखकर पूजा की आंखों में विशेष चमक थी। उसने लपक के एक बोतल को हाथों में थाम लिया और बोतल को घुमाते हुए कुछ ध्यान से पढ़ने लगी।
"देखा मुझे था बियर में अल्कोहल की मात्रा बहुत कम होती है, इसमे केवल 8.56 ही है जबकि शराब पर प्रायः 48 के आसपास होती है। देट मिन्स ईटस नॉट हार्मफुल फ़ॉर हेल्थ।"
"वाह मैडम! काफी रिसर्च कर रखी है आपने। क्या आप यह भूल गयी कि मंदिर पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
मेरे ऐसा कहते ही वो मेरे साथ ही हँसने लगी।
"अरे मैं तो इसके साथ कुछ चकना वक्ना लाना तो भूल ही गया। ओह्ह...याद आया मेरे बैग में काजू का एक पैकेट पड़ा होगा। मैं अभी उसे निकालता हूँ।"
वह बैग मेरे इसी कमरे में मौजूद था। मैंने पूजा को इशारा किया क्योकि वो बैग ठीक उसके पीछे ही दीवार के सहारे नीचे रख हुआ था। बियर उसकी हाथों में, मैं आज पहली बार देख रहा था। इसने बोतल के ढक्कन को खोलते ही आने हाथ को बढ़ाते हुए चियर्स कहा औऱ मेरे बोतल से धीमे से टकरा दिया।
"अरे धीरे यार... मैं भी आज पहली बार ही पी रहा हूँ। ऐसा ना हो कि इसके लबों तक जाने से पहले ही तुम इसे मुझसे हमेशा की लिए जुदा कर दो।"
"ओह्ह..सॉरी! जोश जोश में मैं अपना होश खो बैठी। आज पार्टी चलेगी जब तक चारो बोतल खत्म ना हो जाए।"
पूजा ने मादक मुस्कान लिए कहा।
"इतना भी न पी लेना कि सुबह उठ भी न पाएँ मैडम। पता है न सुबह 6:30 की ही ट्रेन है।"
मैंने उसे चेतावनी भरे स्वर में कहा।
"ह्म्म्म सब पता है महाराज। देखना सुबह मैं तुमसे पहले उठी हुई मिलूंगी।"
पूजा ने ऐसे रोष से कहा जैसे कि वह बिल्कुल वैसा ही करने वाली हो।
"वो तो अब सुबह ही पता लगेगा, की हम लेटे ही रह गए या...."
पूजा ने मेरी तरफ कटाक्ष करते हुए कहा।
"अरे छोड़ो यह सब बात। फिलहाल अपना ध्यान बियर पर कंसन्ट्रेट करो।"
यह कहते हुए मैंने उज़के हाथों से काजू को पैकेट को छीना और उसमे से काजू को निकाल कर खाने लगा। मेरी नजर पूजा की ओर गयी। उसने बियर की बोतल को अपने लबों से लगा रखा था। इस अंदाज में वो और भी नशीली नजर आ रही थी। उसको देखकर एहसास हो रहा था कि आज तो बियर को ही नशा चढ़ने वाला था।
जैसे जैसे एक एक घूंट उसके गले से नीचे उतर रहा था वैसे वैसे मुझे उसे इस तरह देखते हुए बड़ा ही सुकून लग रहा था। रात नशे के खुमार में हमे बहुत मजा आ रहा था। सारी बनावटी दुनिया की बातों से हम अलग जहां में थे। नशे का खुमार ऐसा चढ़ा की मुझे पूजा और भी हसीन नजर आ रही थी। मैंने उसे उसके कोमल होठों पर एक जोरदार किस कर लिया। मेरे इस हरकतों को उसने मना नहीं किया और धीरे धीरे उसकी धीमी धीमी सांसे खुसफुसाहट में बदली और वहीं सांसे तेज और तेज होती चली गयी। हम इस मोहोब्बत की जंग में बहुत दूर तक चले गए। हम दोनो ने पूरी रात एक दूसरे पर माहोब्बत न्योछावर करते हुए एक दूसरे में समाते ही चले गए।
सुबह जब नींद खुली तो मैंने देखा कि पूजा के चहेरे पर अलग किस्म की मादकता का एहसास था। वो बहुत खुश दिख रही थी। उसने मुझे बताया कि हमारी आज सुबह की ट्रैन थी जो देर से उठने के कारण छूट गयी लेकिन चिंता की कोई बात नहीं कल की फ्लाइट्स की टिकट्स बुक कर दी है। मैंने उसे गले लगाते हुए कहा-
"पूजा आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो। तुम्हे आज शाम को मैं बहुत बड़ा सरप्राइज दूंगा।"
यह कहते ही हम दुबारा एक दूसरे में खो गए, लेकिन इस बार पूरे होश में थे। शाम को हमलोग ताजमहल दुबारा गए और मैं उसके सामने उसका हाथ पकड़कर घुटनों के बल बैठ गया और उसके हाथों को थामते हुए रिंग पहना के बोला- "हे पूजा विल यू मेरी मी।"
मेरे ऐसा बोलते ही उसके आंखों में आंसू की धारा फुट पड़ी और वो बोली-
"यस माई स्वीटहार्ट आई विल।"
यह कहते ही उसने मुझे उठाते ही अपने नर्म होठों से एक जोरदार लंबी किस कर दिया। हम लोग अगले ही दिन लखनऊ वापिस आ गए और कुछ दिनों बाद ही शादी भी कर ली। वो आगरा के दौरा और वो ताजमहल की यादें मेरी ज़िंदगी का सबसे यादगार पल बन गए थे। मेरी समझ मे अब आया कि लोग ताजमहल को ही प्रेम का प्रतीक क्यों मानते है। ताजमहल वाकई मोहोब्बत की जीती जागती निशानी है जिसके सामने न जाने कितने अनगिनत प्यार का कारवां अपने मंजिल तक पहुँच पाई है।
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