Namkin Rishta in Hindi Love Stories by jigar bundela books and stories PDF | नमकीन रिश्ता

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नमकीन रिश्ता

कालूपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 4 पर खड़े सिद्धार्थ के हाथ में चिट्ठी थी। उसने वह पढ़ना शुरू किया और उसी के साथ ही जयपुर अहमदाबाद ट्रेन की पूरी जर्नी माइंड में रिवाइंड हो गई।


12 घंटे पहले जब जयपुर स्टेशन पर RAC टिकट कन्फर्म हुई तब पता चला कि 4 टिकट S-10 में है और बाकी के दो लोगों की टिकट S-6 में। यह जानकर सिद्धार्थ के ग्रुप के लोगों का मूड ऑफ हो गया, रिचा बोली " यार हम सब एक ही कंपार्टमेंट में होते तो मजा आ जाता, पता नहीं कौन आएगा अब हमारे साथ। तब सिद्धार्थ ने बताया कि एक काम करेंगे जो भी आएगा उसे S-6 मे भेज देंगे । ट्रेन का वक्त हुआ ट्रेन आई और जब वह लोग S-10 में अपनी सीट पर पहुंचे तो देखा कि एक बुजुर्ग लेडी और अंकल सफर में हमसफर थे। उनको देखकर सिद्धार्थ ने कहा ईनको तो हम S-6 मे नहीं भेज पाएंगे क्योंकि हमारी जो सीट है वह साइड अपर की है और यह लोग वहां नहीं चढ़ पाएंगे। फिर तय किया गया कि हम सब साथ ही बैठते हैं। रात को सोने के लिए महेश और फिरोज़ S6 में चले जाएंगे। अंकल - आंटी ने सोचा कि कहां यह लोग आ गए ? यह लोग पूरी रात मस्ती मारेंगे, बातें करेंगे और ठहाके लगाएंगे। हमें भी नहीं सोने देंगे और खुद भी नहीं सोएंगे । फिरोज़ ने अंकल से दोस्ती करली और कहाँ जाना है ? कहाँ रहते है जैसी बातों से बातो का दौर शुरू हुआ। फिरोज़ थोड़ा मजाकिया लड़का था तो बातो बातो में उसने अपने ग्रुप के बारे में और ग्रुप के परफॉर्मन्स के दौरान होते किस्सो के बारे में बताया। NGO और सरकार की योजनाओ के बारे में जाग्रति लाने हेतु सिद्धार्थ और उसका ग्रुप स्ट्रीट प्ले करता था। फिरोज़ ने आज शो के दौरान आये एक शराबी को कैसे पकड़कर डरा दिया उसका किस्सा सुनाकर सबको बहुत हसाया। अंकल आंटी को लगा की बच्चे अच्छे है।


अंकल आंटी एक दूसरे की बहुत केयर कर रहे थे, लगता था कि दोनों साथ में है तो कभी-कभी लगता था कि दोनों साथ नहीं है। एक चने की दाल वाला आया तो सिद्धार्थ ने सबके लिए चना दाल बनवाई आंटी और अंकल के लिए भी। अंकल ने मना कर दिया और आंटी ने हाँ कहा। चने की दाल खाते खाते आंटी को मिर्ची तेज होने की वजह से हिचकी आई तो अंकल ने पानी दिया और डांटते हुए कहा इतनी बार मना किया है समझती ही नहीं, मत खाया करो, यह तीखा और तेज खाना और खट्टा भी। आंटी बोली गुस्सा मत करो मैं तुम्हारी तरह फीका - बेस्वाद खाकर मरना नहीं चाहती।


थोड़ी ही देर में महेश ने अपनी कविताओं का पिटारा खोल दिया और एक के बाद एक कविताएं पढ़ने लगा, मुशायरे जैसा समाँ बन गया, आंटी भी सुन रही थी और अंकल भी। लग रहा था कि आंटी को इस शेरो शायरी में बहुत ही इंटरेस्ट है। वो बीच बीच में इर्शाद और वाह...वाह ... कहके महेश को दाद देती थी। कविताओं का दौर चला तो सिद्धार्थ ने भी एक कविता सुनाई ।


कोई तो बावफ़ा मिलेगा इस उम्मीद पे जिंदगी रखते है,
सभी बावफ़ा बेवफाई से वफ़ा रखते है।


गम तो हर शख्स के पास होता है कोईना कोई,
बाँट ने को हम चंद खुशिया अपने पास रखते है।


छोड़ जाती है अकेला हर ख़ुशी मुझे इसलिए,
दिल के एक कोने में सदा गम को सज़ाये रखते है।


सीने में दर्द आँखों में जलन रहती है मगर-
ज़माने से छुपाने को उन्हें होंठो पे हँसी रखते है।


खुदा को ढूँढता है इंसान क्यों मस्जिदों-मंदिरो मे,
कई इंसान भी खुदा सी शिरत रखते है।


जिस्म - ए -फ़िराक हो चाहे कितनी भी दोनों के बिच,
शमाँ -परवाने सी हम वस्ल-ए -" जिगर" रखते है।


सिद्धार्थ ने जब आखरी लाईन पढ़ी तो आशना की आंखें भर आई वो बोली, "बेवफा और वफा जैसा कुछ नहीं होता वक्त वक्त की बात होती है, संजोग ही है जो इंसान को बेवफा या बावफ़ा बनाते हैं । प्यार होना एक बात है और साथ रहना दूसरी बात है। तब सिद्धार्थ ने कहा था " इंसान चाहे तो कुछ भी... कुछ भी करके लड़ सकता है संजोग से , पर कुछ लोग डरते हैं और उसने आशना की ओर देखा था। तभी अंकल की और सिद्धार्थ की नजर एक हुई थी और सिद्धार्थ ने बात को बदल दिया था।


अजमेर में जब गाड़ी रुकी और सिद्धार्थ ने सबको पूछा कि कुछ खाना है तब आंटी जी ने अपने पैसे दिए और सिद्धार्थ को पूरी और सब्जी लाने को कहा सिद्धार्थ को थोड़ा अजीब लगा। वह जब पुरी भाजी लेने नीचे उतरा तब उसके पीछे पीछे अंकल भी उतरे और उन्होंने भी अपने लिए पूड़ी भाजी खरीदी। दोनों ने अपने अपने पैसों से अलग-अलग पूरी भाजी खरीदी। दोनों ने मिलकर खाना खाया।


महेश जो की कट्टर हिंदुत्ववादी था, उसे लगता था कि यह अंकल आंटी का किस्सा कोई लव जिहाद वाला किस्सा है क्योंकि अंकल मुस्लिम दिखाई देते थे और आंटी जी ने बिंदी लगाई हुई थी, चूड़ियां पहनी हुई थी और मांग भी भरी हुई थी, सबको ऐसा लगता था कि यह दोनों साथ-साथ है और कभी-कभी लगता था कि दोनों साथ-साथ नहीं भी है । महेश ने फुसफुसाते हुए कहा मुझे तो लगता है कि यह लव जिहाद वाला किस्सा है। मुसलमान को कोई ईमान ही नहीं होता और बोलते हैं मुसल्लम ईमान जिसका होता है उसे मुसलमान कहते हैं । फिरोज उस पर बिगड़ गया और उसने कहा हर मुसलमान एक सा नहीं होता कुछ लोग हैं जो पूरी कौम को बदनाम करने वाले काम करते हैं । अंकल और आंटी ने यह बात सुनी और अनसुनी कर दी। सिद्धार्थ ने दोनों को शांत करते हुए कहा देखो राजनीती और धर्म ऐसे सब्जेक्ट हैं जो पक्के दोस्तों के बीच में भी दरार ला सकते हैं, इसलिए इसकी चर्चा छोड़ दो और खाना खाओ, बात वही पर रुक गई। सब ने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे।


अंकल आंटी का बहुत ख्याल रखते थे। सोने के वक्त उन्होंने कहा तुम खिड़की बंद कर दो और ओढ़ लो वरना फिर तुम्हें सर्दी लग जाएगी। आंटी ने कहा तुम अपनी गोली ले लो वरना नींद नहीं आएगी। अंकल ने कहा आज तो नींद आ जाएगी साल में एक ही दिन तो होता है जब मैं गोली लिए बगैर सोता हूं और वह आज का दिन है ।


देर रात तक सिद्धार्थ और आशना बात करते बैठे थे और बाकी के लोग सो गए थे, आंटी और अंकल भी।


सुबह जब नींद खुली तो गाड़ी स्टेशन पर लगने ही वाली थी अंकल जल्दी उठ गए थे, वह फ्रेश होकर आए तो एक दम अलग से दिखे, उन्होंने मुस्लिम टोपी निकाल दी थी दाढ़ी बना ली थी और पेंट शर्ट पहन लिया था। आंटी दरवाजे पर अपना सामान लिए खड़ी थी। गाड़ी रुकी बुजुर्ग महिला-आंटी उतर गई उन्होंने यह तक भी नहीं देखा कि अंकल पीछे सामान लेकर आ रहे हैं या नहीं आ रहे। वो आगे चलने लगी। सिद्धार्थ ने अंकल को सामान उतारने में हेल्प की। सब सामान नीचे उतार कर खड़े थे। एकदूसरे को बाय कह के रिचा, आशना और किंजल निकल गए। अब सिर्फ महेश, फिरोज़ और सिध्दार्थ खड़े थे। इतने में अंकल आए और उन्होंने सिद्धार्थ को चिट्ठी दी और वह भी थोड़ा आगे बढ़ गए। अब सिद्धार्थ वह चिट्ठी पढ़ रहा था। लिखा था.....


सिद्धार्थ तुम्हें लगेगा कि मैं यह चिट्ठी तुम्हें क्यों दे रहा हूं क्योंकि तुम में और मुझ में काफी सारी बातें मिलती है तुम आशना से प्यार करते हो तो बेटा इजहार भी कर लो वरना मेरी तरह पूरी जिंदगी तुम्हें 1 दिन ही मिलेगा । बेटा लव जिहाद जैसा कुछ नहीं होता। होता है तो सिर्फ लव और उसके लिए जिहाद करना कोई बुरी बात नहीं। प्यार वह नहीं होता जो अधूरा रह जाए, प्यार वह होता है जो तुम्हें पूरा करके जाए, तुम्हारे अधूरेपन को भर कर जाए । उसके बाद जो लिखा था वह सिद्धार्थ पढ़कर चकरा गया।


उसने देखा अंकल को लेने के लिए उनका लड़का आया था और वह अंकल के पैर छू रहा था।सिद्धार्थ को पता था मुस्लिम में कभी पैर नहीं छुए जाते और आंटी को लेने के लिए उनका लड़का आया था। दाढ़ी वाला टोपी पहने हुए बिल्कुल मुल्लाजी जैसा। अंकल ने लिखा था मैं हिंदू हूं रामकिशन और तुम्हारी आंटी मुस्लिम जुबैदा । हम दोनों हमारे मजहब की वजह से शादी नहीं कर पाए थे ।हम हिम्मत नहीं जुटा पाए थे मजहब के सामने लड़ने की इसीलिए साल में हम दोनों एक बार मिलते हैं और मैं मुसलमान बनता हूं और आंटी हिंदू । तुम्हारी आंटी को बिंदी लगाने का, चूड़ी पहनने का, सिंदूर से मांग भरने का बहुत शौक है इसलिए वह बिंदी लगाती है, चूड़ियां पहनती है और सिंदूर भी लगाती है । 1 दिन में हम पूरे साल को समेट लेते हैं और अगले साल के उसी 1 दिन के लिए फिर से जिंदगी से अपने आप को भर लेते हैं । उस एक दिन के इंतजार में पूरा साल काट लेते हैं । अपनी चाहत के लिए तुम एक दिन चाहते हो कि पूरी जिंदगी चाहते हो? फैसला तुम्हें करना है । मुझे पता है तुम आशना से प्यार करते हो । सिद्धार्थ अचानक से भागा, पास ही खड़े महेश और फिरोज़ को पता नहीं चला कि वह क्यों भागा?


एस्केलेटर के पास पहुंची आशना के पास जाकर कहा....... तभी ट्रेन की सिटी बजी। और ट्रेन दो जिस्मो के दिलो से गुज़रती हुई चली गई।


जब तक एस्केलेटर से दोनों नीचे पहुंचे तब तक दोनों का ईगो, धर्म, जात-पात के भरम, सब ज़मीन पर आ चुके थे। बाहर खड़े रामचरण और जुबेदा ने दोनों को एक ही ऑटो में घर की और जाते देखा। सिद्धार्थ और आशना की ऑटो एक ही दिशा में गई जबकि रामचरण और जुबेदा की ऑटो दो अलग-अलग रास्तों पर चल दी......
-जिगर बुंदेला
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