Achchhaiyan - 4 in Hindi Fiction Stories by Dr Vishnu Prajapati books and stories PDF | अच्छाईयां -४

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अच्छाईयां -४

भाग – ४

सूरज अब अपने काम में खो गया | कोलेज में कुछ कुछ छात्र आ रहे थे, वे सूरज को देख रहे थे मगर वो कोई पियानो ठीक करनेवाला होगा ऐसा सोच के अपने अपने क्लास की ओर चले जाते थे |

करीब दो घंटे निकल गए... सूरज वो पियानो में फिरसे जान भर देना चाहता था, वो हरएक सूर को सही करके अपना कम कर रहा था.... और आखिरकार उनको सफलता मिल ही गई |

दूरसे एक छोटी लड़की सूरज को ही देख रही थी... वो करीब चार-पांच साल की होगी... उनके हाथोमें छोटी सी बांसुरी थी, शायद वो खिलौने से नहीं मगर संगीत से ज्यादा प्यार करती थी |

सूरज को लगा की अब सारे सूर मिल गए है तो उन्होंने सबसे पहले अपनी प्यारी धून बजाना शुरू किया.... उनकी उंगलिया जैसे जैसे घुमती गई वैसे वैसे सारे कोलेजमें मानो फिर से संगीत की लहर छा गई हो...!! वहा बैठे पंखी भी खुश होकर वे भी उस संगीत से साथ अपना सूर मिलाने लगे..!

सूरज को अब सूर को बदलना था, मगर नया सूर उनके हाथो से काफी दूर था, हालाकि सालो पहले सरगम थी जो उनके साथ मिलके ये आगेवाला मुखड़ा बजाती थी... इस सूर से आगे का सूर सरगम बजाती थी, मगर आज वो यहाँ पर नहीं थी और सरगम के बिना वो सूर रुक गया... फिरसे हवा रुक गई... सूरज अपनी उंगलिया आगे वाले सूर से उठा भी नहीं शकता था और आगे जा भी नहीं शकता था....सामने बैठे पंखी थी मानो इस सूर पर रुक गए...!!!

उसवक्त सूरज को जरुरत थी की कोई आए और आगे का सूर संभाले... मगर वहा कोई नहीं था... सूरज अपना सूर छोड़ना भी नहीं चाहता था... क्या करे...???

सूरज अब अपना सूर छोड़ने ही वाला था तभी वो दूर खडी छोटी लडकी मानो सूरज की उलझन समझ गइ हो वैसे दौड़ के पियानो के पास आई और सही सूर पर अपनी छोटी छोटी उंगलिया रखके आगे का सूर बजाने लगी.....

कोलेज में फिर से वो संगीत... वो धून... वो पंखीओ की आवाझ सबकुछ जो कुछ पल के लिए ठहर गया था वो फिरसे शुरू हो गया |

फिर तो सूरज और वो लड़की दोनोने मिलके वो गीत सही सूर में ख़त्म किया... सूरज को याद आया की यही गीत पर तो उसने सरगम और अपनी टीम के साथ संगीत की विश्व संगीत प्रतियोगिता जीती थी... सालो पहले जब ये गीत बजाथा तो सामने बैठे लाखो प्रेक्षक खड़े हो गए थे और झूम उठे थे...!!

और आखिर में बांसुरी की सुरावली आती थी... ये स्वर बांसुरी के कठिन सूर थे... वो श्रीधर बजाता था.. मगर वो भी आज कहाँ होगा वो सूरज को पता नहीं था..!

मगर वो काम वो छोटी लड़कीने ख़तम किया... उसने अपने छोटे होठ पे बांसुरी रखी और अपनी आँखे बंध कर के सूरावली बजाई.... सूरज उनको सुनते ही अपने दोनों घुटने जमीन पर टैककर उसको सुनने लगा...!

और वो लड़कीने सही सूर में वो मुखड़ा ख़त्म किया... सूरज की आँखों से आंसू निकल आये... वो सालो बाद अपना प्यारा गीत सुन रहा था जो खुदने लिखा था... सालो से उनका संगीत मर चूका था जिसमे आज इस लड़कीने फिर से जान डाल दी.... वो कुछ पल के लिए उनके सामने देखके रोता रहा... और जब गीत ख़त्म हुआ तो सूरजने तुरंत उस प्यारी सी लड़की को अपनी गोदीमें उठा लिया और उसके सर पर प्यारभरी चुम्मी ली |

वहा खड़े छात्रोने एकसाथ तालिया बजाई तो सूरज को पता चला की यहाँ कोलेज के लड़के लड़किया सामने खड़े थे |

‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है ?’ सूरजने उस लड़कीमें अपनापन लगा |

‘सुगम’ उस लड़की की आवाज मीठी और सुरीली थी |

मगर ये नाम सुनते ही सूरज के शरीर में से मानो एक बिजली चली गई, वो सोचने लगा की ये नाम तो मुझे और सरगम को बेहत पसंद था... ये नाम इस लड़की का कैसे ? ‘बेटा, सुगम... इतनी छोटी उम्र में तुम कितने अच्छा बजाती हो..... तुम्हे इनता अच्छा संगीत किसने शिखाया ?’ सूरजने उससे पहचान बनानी शुरू की |

‘मेरी मम्मीने.....!!’ वो लड़की सूरज की गोदमें ऐसे खुशथी मानो लगता की वो सूरज से हिलमिल गई हो |

मगर ये शब्द सुनते ही सूरज की होठो की ख़ुशी चली गई.... ‘तुम्हारी मम्मी का नाम सरगम तो नहीं ....?’ सूरजने ऐसे पूछा की वो अंदर से डर रहा था |

‘जी आपको कैसे पता चला ?’ वो लकड़ी अभी भी सूरज की गोदमे थी |

और ये सुनते ही सूरज के चहेरे का नूर फीका हो गया और आँखे भर आई... वो सुगम से अपनी आँखे छुपाना चाहता था इसलिए इधर उधर देखने लगा, वो सोचने लगा ‘हमारी लड़की होगी और हम उसका नाम सुगम रखेंगे, जिस नाममे लगे की सूरज और सरगम का मेल हो..... सरगमने सालो पहले सूरज से वादा किया था... सूरज को लगा अब तो सारे वादे भी टूट चुके थे.... सरगम जो उनसे केवल दोस्ती का नहीं मगर जिंदगीभर साथ निभायेगी वो भी वादा किया था.... जब वो विश्व संगीत प्रतियोगिता के लिए निकले थे तभी सरगम ने कहा था, तुम ये कोम्पीटीशन जीत लो फिर मुझे भी जीत लोगे... मैंने वो कोम्पीटीशन जीती मगर शायद सरगम को जीत नही शका.... उसने सारे वादे तोड़ दिए... मुझे वापस आनेमें सालो लग गए मगर मैं क्या करता...? सरगमने मेरा इंतज़ार भी नहीं किया..?’ सूरज अपने अन्दर चल रहे तूफान को संभालते हुए सुगम से फिर से बातचीत शुरू की, ‘ कहा है तुम्हारी मम्मी ...?

सुगम भी मानो अपनी मम्मी की शिकायत कर रही हो वैसे बोली, ‘वो दो दिन से मुझे अकेले छोड़ कर चली गई है.. मैं उनसे काफी नाराज हूँ...! वो आये तो आप भी उनको डांटना और कहना की मुझे छोड़कर कही न जाए....और हाँ, आप भी मेरी मम्मी की तरह हो, ये गीत मेरी मम्मी का सबसे प्यारा गीत है और आप भी अच्छा बजाते हो... और आपने ये पियानो ठीक करके अच्छा किया, मेरी मम्मी आपसे बेहद खुश होगी....’

वो कुछ देर रुककर फिर से बोली, ‘ अरेरे... मैं तो आपका नाम पूछना ही भूल गई....!!’ वो चिपड़ चिपड़ ऐसे बोलती थी की सबको प्यारी लगे... बिलकुल सरगम की तरह....!!

सूरज अपना नाम कहने ही वाला था तभी दूर से एक एक आवाज आई, ‘सूरज तुम....!! यहाँ क्यों आये.....?’

वो आवाज पहचानी सी थी और वो शब्द सुनते ही सूरज को लगा की किसीको उसका यहाँ आना अच्छा नहीं लगा हो वैसे कह रहा था.....सूरज ने उस आवाज की तरफ अपना मुंह मोड़ा तो वो हैरान हो गया.....!!!!

क्रमश:..............

डॉ. विष्णु प्रजापति, कड़ी (गुजरात)