Bhige Pankh - 13 in Hindi Fiction Stories by Mahesh Dewedy books and stories PDF | भीगे पंख - 13

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भीगे पंख - 13

भीगे पंख

  • मोहित और सतिया
  • उपसंहार
  • केंद्रीय सचिवालय, दिल्ली मे नियुक्त आई. ए. एस. अधिकारियों की दिनचर्या में प्राय व्यस्तता रहती है -प्रात शीघ्र तैयार होकर आफ़िस के लिये भागना और सायं अंधेरा होने के पश्चात घर लौटना, फिर पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व निभाना। छुट्टी के दिन घर की आवश्यक खरीदारी और बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति में बीत जाते हैं। प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरण पर आकर मोहित का जीवन भी वहां की दिनचर्या में ढल रहा था। रज़िया के साथ हुए अत्याचारों, उसकी मृत्यु एवं इस विषय में केंद्रीय शासन के पास शिकायत पहुंचाने पर उसके दिल्ली को किये गये स्थानांतरण की घटनाओं से मोहित का मन बहुत आहत था; परंतु ऐसी स्थिति में शासकीय सेवकों द्वारा अपनाये जाने वाले मार्ग के अनुरूप वह मन ही मन हालात से समझौता कर रहा था। रज़िया की याद आने से उसके हृदय में कभी कभी टीस उठती थी, परंतु कुछ तो व्यस्तता के कारण और कुछ प्रयत्न करके वह उससे सम्बंधित मीठी-खट्टी यादों को मस्तिष्क के किसी दुर्गम कोने में छिपा देता था। मानव मन की नियति भी तो यही है कि चाहे कितनी भी खु़शी मिले अथवा चाहे कितना बडा़ दुख झेलना पडे़, कुछ अंतराल के पश्चात मन वर्तमान के धरातल पर उतर ही आता है अन्यथा मस्तिष्क अपना संतुलन ही खो दे।

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    समाचार पत्रों से मोहित जान गया था कि सतिया दिल्ली में ही है और राजनैतिक क्षेत्र में चमकते सितारे के रूप में उभर आई है, परंतु इच्छा होते हुए भी अपने दब्बू स्वभाव के कारण वह उससे सम्पर्क न कर सका था- अब सतिया से सम्पर्क रखने पर विमलसिंह के अतिरिक्त मोहित की पत्नी भी शंकित हो सकती थी एवं सतिया के राजनैतिक दल से भिन्न दल का केंद्रीय शासन भी उसके सम्पर्क को षंकालु दृश्टि से देख सकता था। तभी एक दिन ‘सतिया दलित षोशित दल की उपाध्यक्ष चयनित’ शीर्षक समाचार एक दैनिक के मुखपृष्ठ पर छपा था। इसमें सतिया के उपाध्यक्ष चयनित होने के अतिरिक्त सतिया के पूर्व जीवन के विषय में भी लिखा था तथा यह टिप्पणी भी की गई थी कि दलितों के प्रति किये गये अन्याय के विरुद्ध लड़ने की अपनी अप्रतिम क्षमता, एवं ‘युद्ध एवं प्यार में कुछ भी अनुचित नहीं’ तथा ‘परिणाम ही साधन के औचित्य का प्रमाण है’ जैसे सिद्धांतों में विश्वास के माध्यम से सतिया जी ने इतनी अल्पायु मे बडा़ राजनैतिक कद हासिल कर लिया है।

    यह समाचार पढ़कर मोहित का मन सतिया को बधाई देने हेतु उससे सम्पर्क करने का हुआ। उसने 197 डायल कर सतिया, उपाध्यक्ष दलित षोशित दल का फोन नम्बर पूछा और साहस बटोर कर फोन का डायल घुमा दिया,

    ‘‘विमलसिंह बोल रहा हूं।’’- टेलीफोन के स्पीकर में खरखरी सी ध्वनि सुनाई दी और मोहित को ऐसा लगा कि जैसे उसके बिना कुछ बोले ही विमलसिंह जान गया है कि यह मोहित का फोन है, इसीलिये उधर से गुर्रा रहा है। मोहित का साहस जवाब दे गया और बिना कुछ बोले ही उसने माउथपीस को क्रैडिल पर रख दिया था।

    इस घटना के उपरांत मोहित पुन सतिया से सम्पर्क करने का साहस नहीं कर सका, यद्यपि सतिया के विभिन्न राजनैतिक एवं वैयक्तिक समाचार, जो अब प्राय समाचार पत्रों में छपने लगे थे, को वह ढूंढ ढूंढ कर पढ़ता था। कुछ दिन पश्चात मोहित को लंदन के हाई कमीशन में प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया था और फिर वर्षों तक वह विदेशों में नियुक्त रहा। वह विदेश की चकाचैंध में ऐसा रम गया था कि उसके मस्तिष्क में सतिया और रज़िया की यादें क्षणिक हो गईं- बस यदा कदा स्वप्नवत आतीं और एक संक्षिप्त टीस पैदा कर विलुप्त हो जातीं।

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    मोहित जब लम्बे अंतराल के उपरांत वापस दिल्ली में नियुक्त हुआ, तो वह देश का वरिष्ठतम आई. ए. एस. अधिकारी था। उस समय देश की राजनैतिक स्थिति एकदम परिवर्तित हो चुकी थी- और मोहित यह जानकर आश्चर्यचकित था कि हाल में हुए चुनाव में दलित षोशित दल इतनी सीटें जीत गया था कि अन्य दलों को उससे मिलकर सरकार बनानी पडी़ थी और इस मिलीजुली सरकार की मुखिया सतिया चुनी गई थी। मोहित के देश की राजधानी दिल्ली पहुंचने के एक दिन पूर्व ही सतिया ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। प्रधानमंत्री के रूप में सतिया को देखने की कल्पना से मोहित के मन में बडी़ गुदगुदी हो रही थी। मोहित को यह प्रसन्नता भी थी कि अब शासकीय कार्यों के सम्बंध मे उसका सतिया से मिलना स्वत होता रहेगा और उसके मन में यह लालच भी आ रहा था कि कैबिनेट सचिव का सर्वोच्च पद रिक्त होने पर सतिया उसे ही नियुक्त करेगी; परंतु एक असमंजस भी उसे उद्वेलित कर जाता था कि वह अब सतिया को कैसे सम्बोधित करेगा। मोहित ने कार्यभार ग्रहण करने के पश्चात प्रधानमंत्री के वैयक्तिक सचिव को फोन पर कह दिया कि वह प्रधानमंत्री महोदया की सुविधानुसार उनसे साक्षात्कार का समय सुनिश्चित कर सूचित कर दे। मोहित केा साक्षात्कार हेतु आने को बताये गये समय पर जब वह प्रधानमंत्री आवास पहुंचा, उस समय प्रधानमंत्री आवास का प्रतीक्षाकक्ष लगभग पूरा भरा हुआ था। मोहित को यह देखकर पहले तो बुरा लगा था कि सतिया ने उसे अलग से मिलने का समय नहीं दिया था, परंतु फिर यह सोचकर उसे संतोष भी हुआ था कि सतिया को अकेले में किसी नवीन ‘सम्बोधन’ से बुलाने का निर्णय लेने का दुरूह कार्य कम से कम उस दिन टल गया था।

    ‘‘नमस्कार मैडम! बहुत बहुत बधाई।’’ का समवेत स्वर प्रधानमंत्री के आवास के प्रतीक्षा कक्ष में गूंजा था, जब प्रधानमंत्री महोदया ने पाश्र्वस्थित कमरे से उस कक्ष में प्रवेश किया था। सभी प्रतीक्षारत अधिकारी और नेतागण प्रधानमंत्री को अपनी शक्ल औरों से पहले दिखाने और अपनी बघाई सुनाने को आतुर प्रतीत हो रहे थे। वरिष्ठ अधिकारी होने के कारण मोहित प्रधानमंत्री के बैठने के लिये निर्धारित कुर्सी के काफी़ निकट ही था और झिझकते हुए उसके मुंह से भी धीरे से ‘मैडम’ का सम्बोधन ही निकला था। प्रधानमंत्री महोदया ने एक संक्षिप्त नमस्कार में सबका उत्तर दे दिया था- मोहित का भी। और फिर वह अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गईं थीं। वह वहां उपस्थित अपने दल के उच्चस्तरीय नेताओं और कुछ अधिकारियों से बात करने लगीं थीं। मोहित देख रहा था कि सतिया अब भरे पूरे बदन की प्रौढ़ महिला हो गई थी और उसके हाव भाव में सफलताजनित विश्वास चमक रहा था। उसके व्यवहार से पास में बैठे व्यक्ति के स्वाभिमान को चूर चूर करने की एक अदम्य ललक झलकती थी। मोहित को लग रहा था कि सतिया जानबूझकर अन्य व्यक्तियों को तो निबटा रही थी परंतु मोहित की ओर मुखातिब नहीं हो रही थी। मोहित यह भी देख रहा था कि सतिया सवर्णाें को बातचीत में बहुत कम समय देती थी और अपनी जाति के व्यक्तियों के साथ मुस्कराकर देर तक बात करती थी। जब कमरे में केवल एक व्यक्ति और रह गया और फिर भी सतिया ने मोहित से बात नहीं की तो उसके मन में उपेक्षित होने का भाव उत्पन्न होने लगा था कि तभी उस व्यक्ति को विदाकर सतिया मोहित की ओर देखकर नेत्रों से प्रेम परोसते हुए बोली थी,

    ‘‘कहो, कैसे हो मोहित?’’

    सतिया के शब्दों में इतना अपनापन और इतनी मिठास थी कि मोहित के मन की खीझ प्रासन्नता में परिवर्तित हो गईं थी। उसके होठों पर स्वाभाविक स्मित आ गई थी और उसने उत्तर दिया था,

    ‘‘अच्छी तरह हूं, मै...डम। आप को बहुत बधाई।’’

    मोहित अकेले में सतिया केा ‘मैडम’ सम्बोधित करने में झिझका अवश्य, परंतु चाहते हुए भी उसे ‘सतिया’ सम्बोधित करने का साहस न कर सका था। मोहित का स्वभाव ही ऐसे जोखिम उठाने का नहीं था, और फिर प्रशासनिक अधिकाीरयों की दिनचर्या ऐसी रहती है कि आगा-पीछा देखने के बाद ही कदम रखना उनके स्वभाव में बस जाता है। सतिया को मोहित के मुंह से ‘मैडम’ सम्बोधन चाहे अटपटा लगा हो, परंतु उससे उसकी आत्मतुष्टि अवष्य हुई थी, और उसने बिना कुछ अटपटापन जताये ही कहा था,

    ‘‘बडे़ दिनों बाद मिले?’’

    ‘‘मैं बहुत वर्षों से विदेश में नियुक्त था। अभी इसी सप्ताह ही वापस आया हूं।’’- मोहित के मन में यह बात कौंध गई कि वह पिछली मुलाकात में सतिया द्वारा पुन आने के आमंत्रण के बावजूद उससे मिलने नहीं गया था, अत उसने अपनी बात स्पष्टीकरण सा देते हुए कही थी।

    इस पर सतिया पुन मुस्करा दी थी परंतु वह कुछ कहती उसके पहले ही पी. आर. ओ. ने आकर सहयोगी दल के नेता के आगमन की सूचना दे दी थी और सतिया ने उन्हें तुरंत बुलाने हेतु आदेश दे दिया था। मोहित को लगा कि उसे अब जाना चाहिये और वह खडा़ होकर नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़कर चला आया था। सतिया इस दौरान उसे स्निग्धभाव से देखते हुए मुस्कराती रही थी।

    सतिया के व्यवहार में आत्मीयता के स्पष्ट प्रदर्शन को मोहित ने परिलक्षित कर लिया था और वह अपने कार्यालय लौटकर उसपर विभिन्न दृष्टिकोणों से सोच रहा था। सतिया के विषय में समाचार पत्रों में उसके सींग मारने वाले और विशेषत सवर्णों को नीचा दिखाने वाले स्वभाव के उदाहरण वह प्रतिदिन पढ़ता रहता था, अत अपने प्रति सतिया द्वारा बचपन के अपनत्व को स्वीकार कर लेने से मोहित का मन विशेष आह्लादित था। एक परिपक्व ब्यूरोक्रेट होने के नाते उसके मन में यह आश्वासन भी घर कर रहा था कि वर्तमान कैबिनेट सचिव के पद से हटने पर सतिया उसे ही कैबिनेट सचिव बनायेगी। प्रत्येक आई. ए. एस. अधिकारी का सेवाकाल के प्रारम्भ से ही कैबिनेट सचिव के पद पर आसीन होने का सपना रहता है और मोहित ने तो सदैव सत्यनिष्ठा से जनसेवा की थी, अत अपना ज्येष्ठताक्रम आ जाने के कारण कैबिनेट सचिव के पद पर नियुक्ति का उसका अधिकार भी बनता था। समाचार पत्रों में ऐसे अनुमान भी प्रकाशित होने लगे थे कि प्रधान मंत्री शीघ्र ही कैबिनेट सचिव को बदलेंगी और अपनी पसंद के अधिकारी की नियुक्ति करेंगी। किसी किसी समाचार पत्र में तो ऐसे सम्पादकीय भी प्रकाशित हो रहे थे कि प्रधान मंत्री द्वारा शीघ्र ही कैबिनेट सचिव और दिल्ली के पुलिस कमिष्नर को बदला जायेगा और अनुमान है कि ज्येष्ठता एवं औचित्य पर ध्यान न देकर नियम कानून को ताक पर रखकर अपने लिये काम करने वाले अधिकारियांे को इन पदों पर नियुक्त किया जायेगा। अनेक अवसरवादी आई. ए. एस. एवं आई. पी. एस. अधिकारी उससे अपनी सिफा़रिश करवाने में लग गये थे और स्वयं अपने को उसका सबसे बडा़ स्वामिभक्त बताते हुए अपनी नियुक्ति का अनुरोध करने लगे थे। मोहित सदैव एक स्वाभिमानी अधिकारी रहा था और 35 वर्ष की शासकीय सेवा के पश्चात भी उसका स्वाभिमान इतना अशेष नहीं हुआ था कि वह सतिया के समक्ष ऐसी याचना करता अथवा अपनी सिफा़रिश करवाता। वह चुपचाप अपना काम कर रहा था, परंतु आशान्वित अवश्य था कि जब भी वर्तमान कैबिनेट सचिव बदले जायेंगे, उसे ही उस पद पर नियुक्त किया जायेगा।

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    पांच दिन तक प्रधान मंत्री अपना मंत्रिमंडल गठित करने में व्यस्त रहीं और उसके अगले दिन ‘कैबिनेट सचिव हटाये गये’ शीर्षक समाचार सुबह-सुबह देश के सभी समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर छपा था। मोहित ने प्रातकालीन चाय पीते हुए पढा़ कि कैबिनेट सचिव को गतरात्रि में स्थानांतरण आदेश पकडा़या गया जिसमें अगली पूर्वान्ह ही कार्यभार छोड़ने का आदेश भी था, परंतु उनके स्थान पर किसी की नियुक्ति नहीं की गई थी। उत्तराधिकारी की नियुक्ति का आदेश न होने से मोहित को अपनी कैबिनैट सचिव के पद पर नियुक्ति के विषय में आश्ंाका उत्पन्न होने लगी थी, क्योंकि उसके वरिष्ठतम होने पर भी उसे कैबिनैट सचिव नियुक्त करने का आदेश पारित न होना स्पष्टत यह इंगित करता था कि किसी अन्य नाम पर भी विचार हो रहा है।

    उस दिन मोहित अपने कार्यालय में चिंतित एवं क्षुब्ध होकर बैठा था- कभी कभी उसके मन में विचार आता था कि वह सतिया से मिले और अपने ज्येष्ठतम होने एवं अपना उत्तम सेवा का रिकार्ड होने की बात कहे, परंतु उसका स्वाभिमान उसे सतिया के पास कुछ मांगने हेतु जाने से रोक देता था। उसी दिन अपरान्ह चार बजे मोहित के इंटरकाम का बज़र बजा। उस समय मोहित अपने कार्यालय में अधिकारियों की एक मीटिंग कर रहा था और उसने अपने पी. ए. को आदेश दे रखा था कि मीटिंग के दौरान उसे डिस्टर्ब न किया जाय। इस निदेश के बावजूद बज़र बजने से मोहित के माथे पर क्रोध की छाया उभर आई थी, परंतु वह माउथपीस उठाकर पी. ए. से कुछ कहता, उससे पहले ही बज़र दुबारा बज उठा था। मोहित समझ गया कि कोई अत्यंत आवश्यक कार्य आ पडा़ होगा और वह अपने को संयत कर बोला,

    ‘‘क्या बात है?’’

    ‘‘सर, माननीया प्रधान मंत्री ने कहलाया है कि आप आज रात उनसे मिलें। मिलने का समय व स्थान उनके वैयक्तिक सचिव बतायेंगे।’’- पी. ए. ने इंटरकाम पर सूचना दी।

    मेहित ने अविलम्ब प्रधान मंत्री के वैयक्तिक सचिव को फोन किया,

    ‘‘प्रधान मंत्री महोदया कितने बजे और कहां मिलेंगीं?’’

    वैयक्तिक सचिव ने उत्तर दिया,

    ‘‘सर वह अभी तो राश्ट्पति के साथ हैं और फिर कई महत्वपूर्ण एप्वांइंटमेंट्स हैं। भोजनोपरांत षांति से महत्वपूर्ण फा़इलों को निपटाने हेतु वह प्रायवेट बंगले में चली जायेंगीं। लगभग ग्यारह बजे रात्रि तक वहां पहुंच जाने का अनुमान है। उन्होने कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर आवश्यक वार्ता हेतु आप को वहीं मिलने को कहा है।’’

    मोहित ने पूछा कि क्या उन्होने बताया है कि वह किस विषय पर वार्ता करना चाहेंगीं। वैयक्तिक सचिव ने उत्तर दिया,

    ‘‘सर, उन्होने कुछ बताया नहीं है, परंतु आप जानते ही हैं कि आजकल कैबिनेट सचिव की नियुक्ति आदि अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय लम्बित हैं। मेरा अंदाज़ा है कि उन्हीं पर बात करनी होगी।’’

    यह सुनकर मोहित को लगा कि हो न हो कैबिनेट सचिव की नियुक्ति से सम्बंधित ही कोई बात होगी, परंतु फिर शंका हुई कि इस हेुत उससे वार्ता की क्या आवश्यकता हो सकती है।

    अधिकारियों की मीटिंग समाप्त होने पर मोहित अपने घर आ गया और बाथरूम जाकर भली भांति स्नान किया। फ्रे़श होकर गिलास में एक पेग भरकर पलंग पर लेटकर चुसकी लेने लगा। टी. वी. को रिमोट से औन कर अंग्रेज़ी की एक फ़िल्म देखने लगा। पेग समाप्त होने पर उसने साढ़े नौ बजे खाना खाया। खा पीकर कपडे़ बदले और यह सोचकर कि उसके मुंह से मद्य की महक न आये, मुंह में इलायची रखकर और कपडों़ पर सेंट डालकर वह प्रायवेट बंगले के लिये कार से चल पडा़।

    बंगला पहंुचते पहुंचते ग्यारह बज चुके थे और वहां इतना सुनसान था कि बंगले के गेट पर पहुंचकर मोहित को संदेह हुआ कि सम्भवत प्रधान मंत्री अभी वहां नहीं पहुंचीं हैं। विस्तृत बाउंडी्-वाल के बाहर यहां वहां खडे़ संतरियों के अतिरिक्त बंगले के लम्बे-चैडे़ परिसर में कोई दिखाई नहीं दे रहा था। मोहित ने गेट पर गाड़ी रुकने पर वहां खडे़ संतरी से कहा,

    ‘‘क्या अंदर प्रधान मंत्री जी हैं? मैं सचिव मोहित शर्मा हूं। मुझे प्रधान मंत्री जी ने काम से बुलाया है।’’

    संतरी ने एडी़ से एडी़ मिलाकर सैल्यूट करते हुए कहा,

    ‘‘जी सर, हैं। आप के आने पर अंदर भेजने को कहा है।’’ और गेट खोल दिया।

    पोर्च में कार से मोहित को उतारकर डा्इवर कार को गेट के बाहर बाउंडी् वौल के किनारे पार्क करने ले गया और मोहित ड्ाइंग-रूम के खुले दरवाजे़ का पर्दा हटाकर अंदर आ गया। डा्इंग रूम की बत्ती बुझी हुई थी परंतु बाहर लान में जलने वाली बत्तियों के कारण उसमें हल्का सा प्रकाश था। वहां किसी को न पाकर मोहित ने कुछ देर प्रतीक्षा की और फिर अपने आगमन की सूचना देने हेतु मुख्य कक्ष के बंद दरवाजे़ पर हल्की सी दस्तक दी। अंदर से सतिया की आवाज़ आई,

    ‘अंदर आ जाओ मोहित।’

    मोहित दरवाजे़ को हाथ से ढकेलकर अंदर प्रवेश कर गया। मोहित के अंदर प्रवेश करते ही एयरंडीशंड कमरे का स्प्रिंगदार दरवाजा़ अपने आप बंद हो गया। मोहित ने अपने को मुख्य कक्ष के सिटिंग रूम में पाया। वह एक गद्देदार सोफे़ पर बैठने का उपक्रम कर ही रहा था कि उस कमरे से सटे हुए बेडरूम से सतिया की आवाज़ फिर सुनाई दी,

    ‘मोहित यहां आ जाओ।’

    मोहित ने सुन रखा था कि सतिया कभी कभी अपने घर के अंदर के कमरों में खा़स नेताओं एवं अधिकारियों को बुलाकर सलाह मशविरा करती है अथवा फा़इलें निबटाती है। फिर भी बेडरूम का पर्दा हटाते हुए वह एक क्षण को झिझका; परंतु फिर साहस कर अंदर प्रवेश कर गया। अंदर कमरे का दृश्य देखकर मोहित किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो रहा था। कमरे के बीचोबीच एक विशालकाय डबल-बेड पडा़ था जिस पर मखमली बेडकवर बिछा हुआ था। दरवाजे़ की तरफ़ देखती हुई सतिया उस पर पीछे पीठ टिकाये बैठी हुई थी। सतिया लकालक सफ़ेद रेशमी बंडी और हल्के नीले रंग की तहमदनुमा लुंगी पहने हुई थी। लुंगी में उसकी टांगें लगभग पूरी ढकी हुईं थीं, परंतु बंडी का उूपरी बटन खुला होने के कारण उसके वक्षद्वय बंडी से बाहर निकल पड़ने को व्याकुल से प्रतीत हो रहे थे। उसने हल्का सा मेक-अप कर रखा था और जूडे़ में बेले के फूलों की गोल वेणी बांध रखी थी। वहां का दृश्य देखकर मोहित को लगा कि कहीं अंदर बुलाये जाने की बात वह ग़लत तो नहीं सुन गया है और उल्टे पांव वापस होने को था कि सतिया की खनकती आवाज़ सुनाई दी,

    ‘‘खडे़ क्यों हो? बैठो मोहित।’’

    मोहित औपचारिक सा नमस्कार करके पलंग के पास पहले से रखी कुर्सी पर बैठ गया और अपने को सामान्य बनाये रखने के प्रयत्न में बोला,

    ‘‘आप के पी. एस. ने बताया था कि आप ने किसी ज़रूरी काम से तुरंत बुलाया है।’’

    मोहित यहंा पूर्ण एकांत में भी सतिया को तुम सम्बोधित न कर सका था।

    उत्तर में सतिया मुस्कराते हुए बोली थी,

    ‘‘हां मोहित, ज़रूरी काम से ही बुलाया है, पर ऐसी जल्दी क्या है? कितने समय बाद तो मिले हैं? तुमसे मिलकर कितनी खट्टी मीठी यादें हरी हो गईं हैं। क्या तुम अपने गांव के दिन भूल गये? तुम दिल्ली में दुबारा मिलने क्यों नहीं आये थे और इतने दिनों कहां कहां रहे?’’

    सतिया के शब्दों से अपनापन बरस रहा था और मोहित को लगा कि यह तो वही भयाकुल नेत्रों वाली मोहित को छूने का अधिकार पाने को व्याकुल सतिया है। वह आश्वस्त होकर सतिया को आपबीती ऐसे सुनाने लगा था जैसे किसी नन्हें बच्चे को कहानी सुना रहा हो; उसी तरह सतिया भी मोहित को निहारते हुए नन्हें बच्चे के नेत्रों में प्रस्फुटित उत्सुकता के चाव से उसके होठों से निकले एक एक शब्द को आत्मसात कर रही थी। फिर मोहित के चुप होने के पूर्व ही सतिया अचानक पूछ बैठी थी,

    ‘‘मोहित! इस बीच क्या तुम्हें मेरी याद कभी नहीं आयी?’’

    सतिया के शब्दों में इतनी मिठास थी कि मोहित को इसका उत्तर देने में झेंप लग रही थी और उसे इस बात का एकदम कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था कि उसने इस बीच सतिया से सम्पर्क क्यों नहीं रखा था। सतिया के अपनत्व ने उसमें ढाढ़स पैदा कर दिया था कि वह खुलकर सतिया से अपने मन की बात कह सके, अत वह भावुक होकर बोला था,

    ‘‘सतिया, क्या कभी कोई इंसान अपने बचपन को भुला सकता है? परिस्थितिवश तुम चाहे मुझसे दूर दूर ही रही हो, परंतु मेरे हृदय में मेरे बचपन के साथियों में तुमसे निकट कभी कोई नहीं रहा है। तुम जब अचानक गांव छोड़कर बिना किसी को खबर किये अपने माता-पिता के साथ कहीं चली गईं थीं, तब मुझे ऐसा लगा था कि इस विशाल संसार में मेरी सबसे प्रिय वस्तु खो गई है और कई रातों को मेरा तकिया आंसुओं से गीला होता रहा था। फिर तुम अकस्मात दिल्ली में मिल गईं थीं और मुझे लगा था कि मेरा बचपन फिर लौट आया है। हां, तुम्हारे नेता विमलसिंह जी केा देखकर अवश्य मुझे घबराहट होती थी और तुमसे बार बार मिलने आने का मेरा साहस नहीं होता था, परंतु आई. ए. एस. में चुने जाने पर दिल्ली छोड़ने से पूर्व मैं तुम्हारे कमरे पर गया था, परंतु वहां ताला लगा होने और किसी के न मिलने से निराश होकर लौट आया था। फिर दिल्ली में पिछली नियुक्ति के दौरान तुम्हारे उपाध्यक्ष चुने जाने के समय मैने तुम्हें बधाई देने के बहाने तुमसे टेलीफोन मिलाया था, परंतु उधर से विमलसिंह जी की खरखराती आवाज़ सुनकर घबरा गया था। विमलसिंह जी की आवाज़ से मुझे लगा था कि मेरे बिना बोले ही वह मुझे पहिचान गये हैं और दुबारा फोन करने का मेरा साहस जवाब दे गया था। उसके कुछ दिन बाद मेरी नियुक्ति विदेश में हो गई थी और दिल्ली छूट गया था, परंतु वहां भी जब कभी मुझे मेरा बचपन याद आया है तो तुम सबसे पहले याद आई हो।’’

    सतिया मोहित की मनमोहक बातों में डूबी हुई थी कि उसी समय उसका अस्तित्व भूत से वर्तमान में उसी तरह आ गया जैसे मछली देर तक पानी में रहने के पष्चात सांस लेने को पानी के उूपर आ जाती है और वह बोल पड़ी थी़,

    ‘‘मोहित, तुम जानते हो मैने कैबिनेट सचिव को उनके पद से क्यों हटा दिया है?’’

    और फिर मोहित के नेत्रों में एकटक देखते हुए अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं देने लगी थी,

    ‘‘जिससे तुम्हें कैबिनेट सचिव बना सकूं।’’

    यह कहते कहते सतिया के मुखारबिंद पर अभी तक विद्यमान कोमल भाव तिरोहित हो गये थे और उनका स्थान गर्व के भाव ने ले लिया था। उस गर्वीली स्मित को मुख पर बिखेरे हुए वह मोहित को निहारने लगी थी। मोहित सतिया के इतने अपनत्वपूर्ण व्यवहार से अभिभूत था और इस असमंजस में पड़ गया था कि धन्यवाद, जो आत्मीयमा के बजाय औपचारिकता का द्योतक होता, कहे अथवा नहीे। इस मनस्थिति में वह भी अनायास सतिया को एकटक देख रहा था। सतिया मोहित की उस दृष्टि का अर्थ अपने विजय अभियान का चरमोत्कर्ष- अर्थात मोहित का उसके समक्ष समर्पण- समझने लगी थी और ज्यों ज्यों वह अपने इस विचार पर आश्वस्त होती जा रही थी, त्यों त्यों बचपन से उसके मन में कुलबुलाती मोहित को स्पर्श कर, उससे चिपटकर एवं उसमें समाकर प्यार करने की तृष्णा व्यग्र होती जा रही थी। उसका मुंह लाल हो रहा था और उसका वक्ष धैंाकनी सा धधकने लगा था।

    जब वह अवश होने लगी थी, तो उसने भर्राये गले से यह कहते हुए ‘मोहित तुम अब इतने नादान तो न बनो कि तुम्हें इस समय यहां बुलाने का अर्थ भी न समझ सको’ हाथ बढा़कर मोहित को पलंग पर खींच लिया था।

    पलंग पर गिरते हुए मोहित का चेहरा सतिया के चेहरे के बिल्कुल निकट आ गया था और वह सतिया के नेत्रों में कामेच्छा का अथाह सागर उमड़ता हुआ देख रहा था। जब तक सतिया मोहित से बीते दिनों की बातें करती रही थी, तब तक मोहित सतिया की आत्मीयतापूर्ण बातों से उत्कंठित होता रहा था, तथापि सतिया द्वारा अकस्मात इतनी उद्दाम वासना के प्रदर्शन से वह हतप्रभ हो गया था। मोहित अपने स्वभाव के अनुसार अनजान उफनाते सागर में गोता लगाने से सदैव घबरा जाता था। उसके संस्कारगत सुरक्षातंत्र अकस्मात जागरूक हो गये और उसे पारिवारिक, सामाजिक एवं नैतिक भयों ने आ कर घेर लिया था; और अपने को डूबने से बचाने का यत्न सा करता हुआ वह एक झटके से उठकर कमरे से बाहर आ गया था।

    दूसरे दिन मोहित से काफी जूनियर एक दलित आई. ए. एस. अधिकारी की नियुक्ति कैबिनेट सचिव के पद पर हो गई थी।

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    मोहित, सतिया ओर रज़िया तीनों ही ‘भीगे पंख’ के पक्षी थे और तीनों ही अपनी अपनी लडा़ई हार गये थे- मोहित एक सफल ब्यूरोक्रेट न बन सका, सतिया मोहित का समर्पण प्राप्त न कर सकी और रज़िया जीवन भर हारते हारते अपना जीवन ही हार गईं।

    महेश चंद्र द्विवेदी