wahh re tarifen in Hindi Moral Stories by Singh Srishti books and stories PDF | वाह रे तारीफें

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वाह रे तारीफें

प्रिया आज भी कॉलेज में झगड़ा करके आयी और घर पर आते ही सारा सामान तोड़ फोड़ करने लगी, आँखों में तो आग बरस रही है और हाथ पैरों में झुलझुलाहट, मानो आज ही पूरी दुनिया तबाह कर देगी। पूरा दिन सबकी डांट दिन भर सबके ताने “प्रिया ये मत करो, प्रिया वो मत करो, कितनी बतमीज़ हो गयी हो, तुममें ज़रा सी भी अक़्ल नही है ,कब सुधरोगी”ये सब सुन सुनकर परेसान हो चुकी थी। अब उसका स्वभाव ही चिड़चिड़ा हो गया था और हो भी क्यू न, आख़िर है तो एक 17 साल की लड़की ही । यह उम्र ही ऐसी होती है जब सही रास्ते और अच्छे साथियों की जरूरत होती है।


प्रिया का अब पढ़ने में भी कुछ खास मन नही लगता है।इसी वर्ष 12 वीं की परीक्षा देकर कॉलेज में प्रवेश लिया है।कॉलेज में भी उसको कुछ खास दोस्त नही मिले क्योंकि वो प्रिया को समझ ही नही पाये इसलिए प्रिया उनसे दूर ही रहती है। अकेलेपन में प्रिया का पढ़ने लिखने में और भी रूचि नहीं रही।


वैसे प्रिया की ज़िंदगी में  एक अच्छे दोस्त को छोड़कर और किसी चीज़ की कमी नहीं है। प्रिया अमीर बाप की इकलौती बेटी है। जिसके पास न तो पैसों की कमी है न ही खूबसूरती की। खूबसूरती तो इतनी की मानो स्वर्ग से अपसरा ने धरती पर जन्म लिया हो। यूँ बड़ी बड़ी आँखों, गुलाबी होंठ, गोरा रंग, लंबा कद और काले लंबे घुंघराले बाल। इन सब के अलावा आकर्षक छवि उसकी पहचान थी।


प्रिया कॉलेज से आने के बाद शाम के वक्त कोचिंग भी जाती थी । फिर वहां से आकर खाना पीना कर सो जाती थी। एक दिन जब प्रिया कोचिंग में थी तभी वहां एक राहुल नाम का लड़का आया। वह प्रिया के साथ ही कोचिंग में पढ़ने लगा।उसने हर रोज प्रिया का बरताव को देखा, फिर भी वह उससे प्यार करने लगा। अब उसके ही ख़्वाबो में डूबा रहता है, फ़िर उसने तय किया कि वह प्रिया को अपने दिल की बात कह देगा, परन्तु उसकी हिम्मत नही हो रही थी।


फ़िर वह धीरे से प्रिया के पास बड़ी हिम्मत करके गया। उसने जाते ही उसकी तारीफ़ करते हुए कहा “प्रिया आज तुमने जो प्रश्न किया वो सच में बहुत अच्छा था।” प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा “शुक्रिया” राहुल और बात करने की उत्सुकता में कहने लगा “वैसे आप बहुत अच्छी है और सुन्दर भी, अगर आपको कोई तकलीफ़ न हो तो क्या मुझसे दोस्ती करोगी?” प्रिया ने पहले तो उसको भरपूर अपनी बड़ी बड़ी आँखों से घूरा, यूँ गाल पर हाथ रखे हुए चुपचाप ऊपर से लेकर नीचे तक देखती रही और फ़िर अचानक से हाथ बढ़ाते हुए बोली “ठीक आज से हम दोनों दोस्त हुए।” राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा “शुक्रिया” और दोनों अपने अपने घर आ गए।


आज रात दोनों को नींद कहां आनी थी यूँ तो इनको लेटे हुए करीब एक घंटा होने को है पर दोनों की आँखों में नींद तो बहुत दूर कुछ और ही चल रहा है। दोनों एक दूसरे के बारे में सोंच रहे थे। राहुल के मन में प्रिया से हाथ मिलाने की छवि चल रही थी तो वही प्रिया इस बात से खुश थी की किसी ने पहली बार उसकी तारीफ़ की और दोस्त मिल गया है।


अगले दिन फ़िर जब क्लास में दोनों एक दूसरे से मिले तो दोनों ही सीट पर एकसाथ बैठ गए। राहुल ने प्रिया की तारीफ़ करते हुए कहा “ प्रिया तुम कितनी सुन्दर हो, तुम्हरा कोई जवाब ही नही है, तुम्हरें आगे तो बड़ी से बड़ी हीरोइन भी फेल है। तुम्हरीं ये सुन्दर आँखे, ये होंठ ये बाल सब कुछ कितना सुन्दर है। लगता है तुमको ही देखता रहूँ।” प्रिया को तो कुछ समझ ही नही आ रहा था पर वह बहुत खुश थी और बोली “अरे बस बस ठीक है, शुक्रिया”


प्रिया को ऐसे अपनी तारीफ सुनना बहुत अच्छा लग रहा था।राहुल से पहलेकिसी ने भी नही किया था तो प्रिया को स्वाभाविक राहुल पसंद आ गया था। राहुल प्रिया का स्वभाव जान चुका था इसलिए वह उसकी खुशी के लिए ढेरों तारीफ़ करना और प्रिया का मनोबल बढ़ाता था। दोनों एक दूसरे समझ गए और प्रेम की गाड़ी चल पड़ी। दोनों एक दूसरे के साथ ख़ुशी से रहने लगे। धीरे धीरे प्रिया न जाने कब समझदार हो गई और गुस्सा करना भी छोड़ दिया।


तारीफ़ को आमतौर पर मक्खन लगाना, चापलूसी करना आदि नाम से ही जाना जाता है परंतु कई बार तरीफ करना भी जरुरी है। तारीफ़ करवाना किसे नहीं पसंद है। इससे आपका मनोबल भी बढ़ता है जो की इस कहानी में प्रिया के साथ हुआ। इसलिए सोंच समझ कर तारीफ़ जरूर करें इसमें पीछे न हटें, सामने वाला आपके प्रति अच्छा अनुभव रखेगा। ###

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सुबह के 6 बजे और जैसे ही अलार्म ने आवाज़ दी तो साहब उठ बैठे। ये कोई सरकारी दफ़्तर में साहब या बाबु नही हैं इनका तो नाम ही साहब तिवारी है और एक चलती फिरती कंपनी में काम करते हैं। पहले तो खूब अंगड़ाइयां ली और फिर एक आवाज़ दी “कोई चाय पिलायेगा क्या?” बाहर से आवाज़ आयी, “पहले नहा लीजिये और नाश्ता तैयार है साथ में कर लेना” साहब ने अपने अंदाज़ में बालों पर हाथ फेरा और एक जमुहाई ली। हाथ की उंगलियां चटकाई और हाथ पैर को व्यायाम की स्थिति में ले जाते हुए और धीरे धीरे गुनगुनाते हुए बालकनी पर पहुंचे।


वहाँ बैठे बैठे अख़बार उठाया और कहने लगे “देखें ज़रा क्या ख़बर है आज की? अरे आज भी वही सड़कों की हालत और खून खराबे की ही खबर है।न जाने क्या हो गया है आज के लोगो को और इस देश को?क्या होगा भगवान ही जाने” अख़बार मेज़ पर पटकते हुए साहब ने आवाज़ दी, “चाय गरम करो मैं नहाकर आता हूँ।” साहब नहा धो तैयार होकर नाश्ता करके ऑफिस के लिए चल दिए।


जैसे ही साहब ऊपर से नीचे सोसाइटी कंपाउंड में पहुंचे तो उनकी मुलाकात सोसाइटी के सेकेट्री साहब से हुई। साहब ने उनकी तारीफ शुरू करते हुए तान छेड़ा “क्या बात है सेकेट्री साहब आज बड़े ही सुंदर लग रहे हो मानो आज अभी आपकी बारात निकलने वाली है इतना तैयार हो कर सुबह सुबह कहा से आ रहे हैं?”


सेकेट्री साहब: धन्यवाद, अरे नही पास के मंदिर गये थे और आज हमारी शादी की सालगिरह है न तो बस बीवी बच्चों के साथ घूमने फिरने का प्लान है।


“अच्छा क्या बात है ,चलिए शादी की सालगिरह मुबारक हो और खूब घूमिये फिरिये और हमे भी कभी घुमाइयेगा” मुस्कराते हुए साहब ऑफिस के लिए चले गए।


साहब गाना गुनगुनाते हुए और बाइक की चाभी घुमाते हुए ऑफिस पहुंचे।आज साहब का मूड बड़ा ही खुश है और उसी ख़ुशी मिज़ाज़ में साहब ने एक आवाज़ लगायी “और श्यामलाल कैसे हो, घर में सब कुशल मंगल तो है?” शयमलाल साहब के ऑफिस में चपरासी है। जो हमेशा तारीफ और  साहब के प्रेम भाव का भूखा है। साहब ऑफिस में सबके प्यारे हैं न जाने कौन कौन इनको अपना दोस्त मानता है लगभग सभी शायद ही कोई ऐसा हो जो इनसे नाख़ुश हो।इनकी वाणी में तो न जाने कौन सा ऐसा जादू है जो ऑफिस में सबको दीवाना बना दिया है फिर चाहे कोई महिला कर्मचारी हो या ख़ुद साहब के बॉस।


साहब: बॉस आपकी वजह से सिर्फ आपकी वजह से आज हमारी कंपनी अच्छा काम कर रही है वरना कब की डूब गयी होती।


बॉस: अरे नही, यह सब तो आप लोगों की मेहनत का नतीजा है।


साहब:  नही बॉस आप जैसा मार्गदर्शन करने वाला, इतना पढ़ा लिखा होशियार, ज्ञानी, मालिक मिलना तो हमारे अच्छे कर्मों का ही नतीज़ा है।हम तो धन्य हो गए आपके साथ काम करके, जीवन भर आपकी ही सेवा करने की इच्छा रखता हूँ।


ऐसे ही न जाने कितनी तारीफों के फूल बांधते हुए साहब ने अपने बॉस के दिल में कब जगह बना ली कोई नही जान पाया। अब तो साहब की गाड़ी ही निकल पड़ी थी। आराम से आना जाना और बॉस के गुणगान कर तारीफों के पुल बांधना।

छुटियां लेनी हो या कभी ऑफिस से घर जल्दी जाना हो साहब को बस बॉस को एक बार बताने की देर है। अब साहब तो मानो खुद तुलसीदास और बॉस को राम बनाकर उनकी भक्ति भाव में लग गए। उनकी प्रशंसा कर अपनी फाइल रूपी भवसागर से पार हो जाते हैं।

वर्ष के अंत में अपनी प्रोफाइल रिपोर्ट में सबसे ज्यादा उपस्थिति, ईमानदार, और मेहनती आसानी से लिखवा लिया जाता है।साहब की तो लाइफ ही सेट हो गयी।


तारीफों का आजकल बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक प्रयोग करते हैं। तारीफ कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। आजकल कुछ लोग तारीफों के सहारे बिना मेहनत किये और बिना काबिलियत के तरक्की कर रहे हैं।ये लोग काबिल और मेहनती लोगों के अवसर पर ग्रहण बन जाते हैं।हमें आज के समाज को जागरूक करने की जरूरत है।तारीफों पर नही मेहनत और लगन पर तरक्की देनी चाहिए।