Lekhani in Hindi Poems by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | लेखनी

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लेखनी

1.वो आँख हीं क्या कि जिसमे ना हो कोई ख्वाब ,
वो लेखन हीं क्या कि जिसमे ना हो कोई आग।


2.मेहनत के सारे फुल ऐसे हीं नही फल गए,
गिरे तो हम भी थे मगर गिरकर संभल गए।


3.जिस प्यार और जंग में सब जायज है,
वो ना मोहब्बत जायज है, न जंग जायज है।


4.तरक्की के पैमाने पे देश यूँ चढ़ता रहा.
इंसानियत गिरती रही इन्सान बढ़ता रहा।


5.अखबार में आए ये तय नहीं है,
हादसा तो है मगर समय नहीं है।


6.जा तुझे माफ किया,क्या हुआ जो सितम ढाती है,
एक तू हीं तो है,जो अंत तक निभाती है।


7.कल्प नद पर मेरे पद चाप,
ए कविता तुझसे ये प्राप्त।


8.अजीब है अंदाज
आदमी के प्यास की भी,
कभी समंदर कम पड़ जाता है
कभी आंसू भारी पड़ जाते हैं।


9.अहम का था बना वो, वहम में हिल गया,
मिट्टी से न जुड़ा था , मिट्टी में मिल गया।


10.खुदा जाने कैसी अजब तेरी प्यास थी,
तुझसे तो बेहतर , तेरी तलाश थी।

11.मेरी चाल पे किंचित ना हो, तुम भी यूँ हैरान,
हार की गलियों से ही चलकर बनते लोग महान।

12.सोते तो हो ठीक , पर इतना रहे याद,
रात की नींद चुरा न ले कहीं दिन के ख्वाब।

13.तुममें बस इतना क़सूर छोड़ दो,
खुबसूरत तो हो बस गुरुर छोड़ दो।

14.हम नहीं कहते हमसे ना गिला करो,
पर खतम हो रंजिशें, खुल के मिला करो।

15.अलार्म के बदले जिम्मेवारियों से जगने लगा ,
कल तक जो बच्चा था, बुढा दिखने लगा।

16.चवन्नी में खुद को क्यूँ करते खराब?
कुछ तो तेरी जात का रखते हिसाब।

17.आजादी के बाद देश की बदल गयी तस्वीर,
बोरी थी चावल जितने की , नहीं मिले अब खीर।

18.चख के भी भला स्वाद , बताऊँ क्या ज़माने को,
जहर नहीं होता , पिलाने के लिए।

19.ये क्या अदा की तूने, दर्द की सौगात,
मैंने तो बस यूँ ही, तेरा राजे दिल चाहा था।


20.इस तरह सौदा हुआ गरीब का अमीर से,
खरीदी इसने अमीरी खुद के जमीर से।


21.उल्फत उसी से नफरत उसी से,
शिकायत है जिससे मोहब्बत उसी से।


22.जो होना अन्जाम वो हो ना सका,
तू ज़ी ना सका मैं मर ना सका।


23.अलमारी से झाँक के रोते गीता और कुरान,
मंदिर मस्जिद राम पे आखिर मरते क्यों इंसान?


24.ना इंतेेेजार ना कोई मुहूरत है,
मौत भी क्या इतनी बदसूरत है?


25.वाद, विवाद व प्रतिवाद से नहीं किसी के उलझन हल ,
अर्थपूर्ण संवाद न हो तो क्या कोई वार्ता देती फल?


खींच तान, रस्सा , कस्सी से देव ना दानव हुए लभित ,
याद करो सब सागर मंथन , कैसे अमृत हुआ फलित।


26.जो मेरे लिए अमृत शायद तेरे लिए जहर हो,
मेरी काली सी रात क्या पता तेरी दोपहर हो।
नकल करते हो ठीक है पर रहे हमेशा याद ,
मेरे लिए जो विस्मय क्या पता तेरे लिए कहर हो।


27.आफिस में रहता वो ऐसे,
जीभ बीच दाँतों के जैसे।


28.ज्यों पंछी का खुले गगन में नही कोई पग छाप,
ठीक वैसे हीं बुद्ध पुरुषों के कहाँ होते पद चाप।


29.ऐ लेखनी मेरी ये तेरा मुझको कैसा वरदान,
ज्ञान बाँटती जग में सारा और मुझे देती अभिमान।


30.तेरे इश्क़ में है तुझसे नाराज भी,
वो कैद में पड़ा हुआ आजाद भी।


31.ना तेरा हुआ अभी कहीं ना तेरा कभी रहा होगा,
तारों से भी कहीं कोई क्या तूने राज कहा होगा?


32.कहाँ उसे ढूंढे रे बंदे ,
शहर शहर और गाँव,
वो ईश्वर तो यही बसा,
भूखे नंगों के पाँव।


33.महीने की रोटी और चुटकी कमाई से,
उठाओगे कैसे तुम नखरे भौजाई के?


34.तेरे झूठ पे भी हमको न हो सके एतबार,
तुम्ही कहो कौन सी मिट्टी के बने हो यार।


35.काश कोई इतना सीखा दे मुझे,
झूठा हो कोई तो झूठा हीं दिखे।


36.तेरा मैं था कभी सहारा,
बेकदरी से पर मैं हारा।


38.इन हाथों का भगवन नही कोई जवाब,
बंध जाए तो तर्पण खुले तो नमाज।


39.सुखी अँतड़ी सूखे पेट क्षुधा व्यथित कंगाल,
तुम्हीं कहो सजाये कैसे वो पूजा की थाल?


40.मेरा मन हीं रहा न मेरा,
जब तेरी यादों ने घेरा।


41.तेरे दर पे इंसाँ मिटते क्यों कौम की लड़ाई में,
खुदा कुछ तो बचा रखो तुम अपनी खुदाई में।


42.याद करने की हद से गुजर जाता है जैसे कोई याद ,
ईश्क ठीक वैसे ही आज मेरे जेहन में शामिल है ।


43.हाथी तो मुफ्त ही में है बदनाम
अपने दो दो दांतों के वास्ते,
आदमी के मुंह में तो क्या
पेट में भी दांत होते है।


अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित