Afia Sidiqi ka zihad - 6 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 6

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 6

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(6)

1993 में आफिया ने पहला सेमेस्टर खत्म होने के बाद, छुट्टियों में परिवार को मिलने जाने का मन बना लिया। ग्रीष्म अवकाश प्रारंभ हुआ तो उसने टिकट खरीदी और अगले ही दिन पाकिस्तान पहुँच गई। उसके कराची पहुँचने के दो दिन बाद उसका मामा एस.एच. फारूकी अपनी पत्नी सहित उसको मिलने आ पहुँचा। दोपहर के भोजन के बाद पूरा परिवार ड्राइंग रूम में बैठा बातों में मशगूल हुआ पड़ा था।

“अब्बू, आप देखने में तो बीमार बिल्कुल नहीं लगते, पर फोन पर मुश्किल से बोलते हो ?“ आफिया ने हँसते हुए कहा।

“भाई साहब, बिल्कुल तंदरुस्त हैं। ये तो तुझे यहाँ बुलाने के लिए बहाना घड़ा होगा।“ समीप बैठा फारूकी भी हँसा।

“बीमार को आफिया बेटा क्या है। इस उम्र में तो वैसे ही कोई न कोई बीमारी चिपटी रहती है।“ आफिया के पिता ने ढीला-सा उत्तर दिया। इसके बाद अन्य घरेलू बातें चल पड़ीं।

“अब तो फौज़िया बेटी भी अमेरिका की तैयारी कर रही लगती है।“ फारूकी की बेगम ने बात बदली।

“हाँ जी, दाखि़ला तो हो गया है। बस, अब जाने ही तैयारी ही करनी है।“

“क्या पढ़ रही है फौज़िया बेटी ?“

“जी, डॉक्टरी।“

“बहुत अच्छा है। आजकल अपने लड़के-लड़कियाँ धड़ाधड़ अमेरिका जाकर डॉक्टर, नर्स बन रहे हैं। बड़े फ़ख्र वाली बात है यह तो।“ फारूकी ने गर्व से फौज़िया की ओर देखते हुए कहा।

“मगर कुछेक लोग पाकिस्तान के नाम को वहाँ जाकर धब्बा भी लगा रहे हैं।“ सुलेह सद्दीकी ने चोट की।

“तुम किस की बात करते हो ?“ इस्मत ने चुप्पी तोड़ी।

“बिलोचिस्तान के उस अल बलोची परिवार के लड़के रम्जी यूसफ की। जिसने वहाँ किसी बड़ी इमारत के पॉर्किंग लाट में बम धमाका करके कितने ही लोगो को मारा। लोग समझते नहीं कि जो देश हमको इतनी सहूलियतें दे रहा है, हमारी अगली पीढ़ी के लिए कितने अच्छे पढ़ाई के अवसर मुहैया करवा रहा है, उसी को तुम ध्वस्त करने में लगे हो।“ सुलेह सद्दीकी थोड़ी नफ़रत में बोला।

“क्या पता है जी, सच क्या है। हम अमेरिका के कहने पर तो किसी को दोषी नहीं मान सकते।“ इस्मत ने गोलमोल-सा जवाब दिया।

“पर वहाँ हमारे ऐसे लोग भी तो हैं जो समाज सेवा का काम कर रहे हैं। अपनी आफिया भी तो समाज सेवा के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है।“ फारूकी की बेगम बोली।

“यह तो अच्छी बात है। समाज सेविका माँ की बेटी, समाज सेवा न करेगी तो और क्या करेगी।“ फारूकी ने आफिया को और उसकी माँ को सराहा।

“आफिया, वहाँ हो रही ऐसी तोड़-फोड़ की कार्रवाइयों के बारे में वहाँ के लोगों के क्या विचार हैं ?“

“अंकल, मैं और मेरी सहेलियाँ, हम तो ज्यादा चैरिटी का काम करते हैं। हमें इन बातों का ज्यादा पता नहीं लगता। पर एक बात ज़रूर है कि सिर्फ़ अपने लोगों को ही दोष न दो। क्योंकि उन्हें ऐसा करने के लिए मज़बूर भी तो पश्चिम ही करता है। अब बास्निया में ही ले लो। वहाँ मुसलमानों पर इतने अत्याचार हो रहे हैं कि अल्लाह ही जानता है। मेरे पास वीडियो कैसिटें हैं जिनमें आप देखोगे कि कैसे वहाँ हमारे लोगों पर अत्याचार हो रहे हैं। कैसे हमारी बहन-बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार होते हैं। ये कैसिटें देखकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं।“

“पर यह कैसे संभव है कि जिस वक़्त बलात्कार हो रहे थे, उस वक़्त तुम्हारे लोगों ने वो कैसिटें या मूवियाँ बनाई। तू तो ऐसे बता रही है जैसे किसी फिल्म की सूटिंग की कैसिटों की बात कर रही हो।“ सुलेह सद्दीकी नाराज़ होकर आफिया की ओर देखते हुए बोला। इस्मत को घरवाले की यह बात अच्छी न लगी। पर इसका जवाब आफिया ने ही दिया। वह बोली, “जो जिहादी वहाँ लड़े रहे हैं, वे ऐसी घटनाओं को कैमरे में कै़द कर लेते हैं। ताकि आप जैसे पश्चिम के भक्तों को सच दिखलाया जाए।“

“मैं किसी पश्चिम-वश्चिम का भगत नहीं हूँ। मगर सच्चाई तो सच्चाई ही है न। पहले तू यह बता कि तेरे पास जो कैसिटें हैं, ये किस ग्रुप ने बनाई हैं। फिर मैं आगे बात करूँगा।“

“अब्बू, यह अधिकांश काम मुस्मिल ब्रदरहुड का किया हुआ है। इस वक़्त जिहाद में सबसे अधिक योगदान वही दे रहे हैं।“ इतना कहकर आफिया अपनी कॉपी पलटने लगी।

“यह मुस्लिम ब्रदरहुड ही असली झगड़े की जड़ है। तेरी ये वीडियो कैसिटें देखने से पहले ही मैं बता देता हूँ कि यह सब प्रोपेगंडा है। मुसलमानों को भड़काने के लिए ऐसे काम तो ब्रदरहुड मुद्दत से करता आ रहा है।“

पति की बात सुनकर इस्मत ने आफिया की ओर देखा और उसे चुप रहने का इशारा किया। अगले पल कमरे में चुप्पी-सी छा गई। सभी को चुप-सा देखकर फौज़िया बोली, “अब्बू, इस मुस्लिम ब्रदरहुड की असलीयत क्या है ? मेरा मतलब यह किसने शुरू किया और इसका निशाना क्या है ?“

“इसके बारे में फौज़िया बेटी, मैं तुझे बताता हूँ।“ फारूकी ने गला साफ़ करते हुए खंखारा और फिर फिर बोलने लगा -

“बहुत पहले मिस्र के एक मशहूर बुद्धिजीवी ‘हसन अल बन्ना’ ने इस पार्टी बनाई थी। उसके इरादे बहुत नेक थे। उस वक़्त अपने आसपास ब्रितानिया ने सबको गुलाम बना रखा था। सभी देश ब्रितानिया की कालोनियाँ बनाकर रख दिए थे। इन कालोनियों के लोग जो गाढ़े पसीने की कमाई करते थे, ब्रितानवी उसी कमाई पर ऐश करते थे और हमारे लोगों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार होता था। हसल अल बन्ना की इस नई बनाई पार्टी, मसलन ब्रदरहुड ने नारा दिया कि आओ लोगो हम सब मिलकर इन ब्रितानवी लोगों को यहाँ से भगा दें और कुरान हमारा संविधान हो। उसके कहने का भाव था कि ऐसा राज्य हो जहाँ का राज-प्रबंध और कानून व्यवस्था वगैरह मज़हबी अकीदे के अनुसार हो। अपने हकों के लिए लड़ना मज़हब का काम माना जाए और इसको जिहाद समझकर लड़ा जाए। उस वक़्त ब्रदरहुड ब्रितानिया के इतना खिलाफ़ था कि इसने दूसरी बड़ी जंग में जर्मनी का पक्ष लिया क्योंकि वह ब्रितानिया के खिलाफ़ लड़ रहा था। जंग बंद होने के बाद जब इज़राइल स्टेट बना तो मुस्लिम ब्रदरहुड ने सबसे पहले इसका विरोध किया। इसी कारण पहली अरब इज़राइल जंग में मिस्र मुख्य पार्टी था। हालांकि अरब उस जंग में हार गया, पर ब्रदरहुड की धूम मच गई। जब ब्रितानिया यहाँ से चला गया तो मुस्लिम ब्रदरहुड अपनी ही सरकार के खिलाफ़ हो गया। सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी। फिर, यह अन्य मुल्कों में फैलने लगा। आज हालात ये हैं कि हरेक अरब मुल्क में इसकी शाखाएँ हैं, पर तकरीबन सभी देशों ने इस पर पाबंदी लगा रखी है। क्योंकि आजकल ये इंतहापसंदों के कब्ज़े में है और बहुत ही हिंसक हो गया है।“

“जब इतना ख़तरनाक है तो यह किसी देश की मदद के बग़ैर अपना वजूद कैसे कायम रख सकता है ?“ इस्मत ने टेढ़ा सवाल किया।

“ऐसा नहीं है। कई देशों के यह फिट बैठता है। सउदी अरब का उदाहरण ले लो। वहाँ का राज घराना वहाबी है जो सुन्नी और शिया दोनों के खिलाफ़ है। वह अपनी वहाबी शाखा को फैलाने के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड की मदद करता है। असल में, सबसे अधिक सउदी अरब ही ब्रदरहुड को उठाता है।“

“इसका मतलब, बाकी सारी दुनिया पागल है जो ब्रदरहुड का पक्ष लेती है।“ इस्मत गुस्से में बोली। इसके बाद वहाँ हो रही बहस में तल्ख़ी आने लगी। फारूकी ने जाने की इजाज़त मांगी और दोनों मियाँ-बीवी उठकर चल पड़े।

इस्मत और फौज़िया उन्हें विदा करने के लिए बाहर निकल गईं। पीछे आफिया और उसका पिता रहे गए। सुलेह सद्दीकी आफिया के सर पर हाथ फेरते हुए बोला, “बेटी, तू अपनी पढ़ाई में ध्यान दे। तूने क्या लेना है इस चैरिटी वगै़रह से।“

“अब्बू, यह तो दीनवाला काम है। अम्मी ने भी तो सारी उम्र यही सब किया है। फिर आप मुझे इस तरफ से क्यों रोकते हैं ?“

“क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह असली चैरिटी नहीं है।“

“और क्या है यह ?“

“असली चैरिटी वह होती है जो वास्तव में ज़रूरतमंदों की मदद करें, पर आजकल जितनी भी चैरिटी हो रही हैं, वे असल में जिहाद के नाम पर लड़ रहे आतंकवादियों की मदद कर रही हैं।“

“अब्बू प्लीज़, उन्हें आतंकवादी न कहो, नहीं तो मैं नाराज़ हो जाऊँगी।“ आफिया उठकर खड़ी हो गई।

“तू यूँ गुस्सा न हो, मेरी बात सुन।“ पिता ने आफिया की बांह पकड़कर उसको फिर से बिठा लिया।

“तू जिहाद का मतलब समझती है ?“

“कुछ कुछ समझती हूँ और बाकी आप समझा दो।“ आफिया रूखे स्वर में बोली।

“देख बेटा, ये लोग पवित्र कुरान में से उतने ही लफ्ज़ उठा लेते हैं जितने इनको ठीक बैठते हैं। सारी कुरान को पढ़ा जाए तो असली मतलब कुछ और निकलता है।“

“क्या निकलता है असली मतलब ?“ आफिया की अभी भी त्यौरियाँ चढ़ी हुई थीं।

“मुहम्मद साहिब ने फरमाया है कि इन्सान की ज़िन्दगी में नौ जिहाद और हैं और यह लड़ाई वाला जिहाद दसवें नंबर पर आता है। पहले ये हैं - जैसे गुस्सा, क्रोध, लालच, लोभ, मोह और काम वगै़रह। जो लोग इन नौ जिहादों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, सिर्फ़ वही दसवा जिहाद लड़ने के काबिल समझे जाते हैं। क्या तुझे लगता है कि आज के जिहादियों ने इन पर काबू पाया हुआ है।“

आफिया चुप रही। वह कुछ न बोली तो उसका पिता फिर बोला, “मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ। जंग के मैदान में मुहम्मद साहिब के साथ उनका एक रिश्तेदार जीमल लड़ रहा था। उसने लड़ते हुए अपने दुश्मन को नीचे ज़मीन पर गिरा लिया और उसकी छाती पर चढ़ बैठा। वश न चलता देख नीचे पड़े दुश्मन ने उसके मुँह पर थूक किया। इस पर एकदम गुस्से में आकर जमील ने तलवार उठाई और दुश्मन का गला काटने को आगे बढ़ा। तभी उसके अंदर कुछ कौंधा और उसने तलवार दूर फेंक दी। वह दुश्मन की छाती पर से भी उठ खड़ा हुआ। नीचे पड़े दुश्मन ने कहा कि अब छोड़ क्यों दिया मुझे, मार क्यों नहीं देता। यह सुनकर उसने मालूम है क्या कहा ?“

“क्या कहा ?“

“वह बोला, अभी तो मैं अपने आपको ही मार नहीं पाया, किसी दूसरे को मैं क्या मारूँगा। उसके कहने का संकेत उसे आए क्रोध की ओर था। मतलब यह है कि अभी तो मैं अपने गुस्से को ही नहीं मार सका। इतना कहकर वह जंग के मैदान से बाहर चला गया।“

आफिया ने पिता की बात तो सुनी, पर अधिक दिलचस्पी न दिखलाई। उसकी ओर देखता सुलेह बोला, “आफिया बेटी, पुण्य-दान करना कोई बुरा काम नहीं है। पर इसके लिए सारी ज़िन्दगी पड़ी है। अभी तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। जब पढ़-लिखकर ज़िन्दगी में कामयाब हो गई तो जितना चाहे चैरिटी के लिए काम करते रहना।“

“अब्बू, जो काम करने को आदमी का दिल आज कर रहा है, उसके लिए वह आगे की ज़िन्दगी का इंतज़ार क्यों करे। और मैंने पहले भी कहा है कि यह कोई बुरा काम नहीं है।“

“देख आफिया, मैंने तेरी अम्मी को सारी उम्र यह काम करते हुए देखा है। मैं यह भी जानता हूँ कि ये सभी जिहादी इसी चैरिटी के रास्ते ही जिहादी बनते हैं। आखि़र में सभी के तार जिहाद से ही जाकर जुड़ते हैं। यह तो एक लपलपाती आग है। इस तरफ़ जाता हर राह बरबादी का राह है। इधर जो भी गया, भस्म हो गया। इतना ही नहीं, जो इसके करीब से गुज़रा, वह भी झुलस गया।“

“अब्बू, मैं समझती हूँ सब। आप कोई फिक्र न करो।“

“बस बेटी, कुछ ऐसा करने के बारे में सोचना भी नहीं जिससे मेरी और खानदान की इज्ज़त को बट्टा लगे।“

“ठीक है अब्बू।“ इतना कहते हुए आफिया उठकर चली गई। सुलेह उसको जाते हुए देखता रहा। उसको आफिया की बातों में से उसके अंदर की तपिश महसूस हो रही थी। यही नहीं, उसको अपने पुत्र का जब भी हूस्टन से फोन आता था तो वह भी हमेशा यही फिक्र ज़ाहिर करता था कि कहीं आफिया राह से भटक ही न जाए। क्योंकि उसके बताये अनुसार उसको पता चलता रहता था कि आफिया उन चैरिटियों के लिए काम करती है जो किसी न किसी जिहाद की मदद कर रही हैं।

शाम के वक़्त इस्मत, आफिया और फौज़िया को लेकर घूमने निकल गई। वह अपने जान-पहचान वाले घरों में आफिया को मिलवा लाई। उसका विचार था कि लोगों में उसकी इस बात के कारण धाक जम जाए कि उसकी बेटी कितनी बड़ी समाज-सेविका है और धर्म के लिए बहुत बड़ा काम कर रही है। अगले कई दिन अनेक जन-समूहों में आफिया के उसने भाषण भी करवाए। हर जगह श्रोता उससे बहुत प्रभावित हुए। वह हर भाषण के दौरान बॉस्निया में चल रहे घरेलू युद्ध में मरने वाले मुसलमानों की बात करती थी। इन जन-समूहों में वह मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों की वीडियो भी दिखाती थी। ये सब जन-समूह बड़े परिवारों की ओर से आयोजित करवाए जाते थे। ये वे परिवार थे जो राजनीतिक लोगों के बहुत करीब थे। इन्हीं दिनों एक दिन इस्मत ने शैरेटन होटल में आफिया का भाषण करवाया तो एक स्त्री इस्मत को एक तरफ ले गई। उसका नाम जाहिरा खां था। असल में, वह अपने पुत्र अमजद खां के लिए वधु खोज रही थी। आफिया को देखकर उसको लगा कि इस लड़की से अच्छी बहू तो उसको मिल ही नहीं सकती। इधर उधर की बातें करते हुए उसने इस्मत को खान परिवार के घर आयोजित कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया। वह बहाने से आफिया को अपने पुत्र से मिलाना चाहती थी। फिर, उस दिन जाहिरा खां के घर भाषण भी हुआ और आफिया की अमजद के साथ मुलाकात भी हुई। लेकिन बाद में अमजद ने अपनी अम्मी को बताया कि लड़की तो उसको पसंद है, पर उसका भाषण और अन्य बातें उसको व्यर्थ लगती हैं। जाहिरा खां को लगा कि चलो, अमजद लड़की को पसंद करता है, यही बहुत है। उसने अमजद से कहा कि वह और सोच ले। इस दौरान वह सद्दीकी परिवार से बात चलाएगी। आफिया की छुट्टियाँ समाप्त हो चुकी थीं। जिस दिन उसको जाना था, उस दिन एअरपोर्ट पर विदा करते समय इस्मत उसको एक तरफ़ ले गई और गले मिलते हुए बोली, “आफिया, तू जल्दी से जल्दी अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस लौट आ। यहाँ तेरे करने के लिए बहुत कुछ है। मुझे तेरी काबलियत पर भी शक नहीं है। तू बहुत ऊँचा मुकाम हासिल करेगी।“

“अम्मी, मैं ऐसा कौन-सा मोर्चा मारूँगी।“ आफिया ने माँ की बात को हँसी में टाल दिया।

“तू किसी दिन राजनीति का चमकता हुआ सितारा होगी। अगर भुट्टो परिवार की लड़की बेनज़ीर इतने बड़े ओहदे पर पहुँच सकती है तो मेरी बेटी क्यों नहीं। तू बस यूनिवर्सिटी की अपनी पढ़ाई खत्म करके यहाँ आ जा और राजनीति शुरू कर। तुझे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। मैं तेरे अंदर का जोश देख रही हूँ। बस, तू मेरी बात पर ग़ौर कर।“

“ठीक है अम्मी।“ इतना कहते हुए आफिया सामान उठाकर चल पड़ी और चैकिंग वगैरह से गुज़र कर हवाई जहाज में जा बैठी। फ्लाइट अमेरिका के लिए रवाना हुई तो आफिया के दिल में से माँ-बाप द्वारा दी गई नसीहतें भाप की तरह उड़ गईं। दूसरे दिन वह अपनी यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में पहुँच गई।

इस बार जब वह यहाँ पहुँची तो उसके अंदर का जोश ठाठें मार रहा था। इसका बड़ा कारण था कि पाकिस्तान में जहाँ कहीं भी उसने लेक्चर दिया था, हर जगह उसकी भरपूर तारीफ़ हुई थी। हरेक ने उसको इस्लाम की सच्ची बेटी कहकर सराहा था। इसके अलावा, वह खुद भी सोचने लगी थी कि उसको जिहाद में आगे बढ़कर काम करना चाहिए। इन सभी बातों ने उसके अंदर एक नई शक्ति भर दी।

उसने अमेरिका पहुँचते ही जोशोखरोश के साथ काम प्रारंभ कर दिया। वह एम.एम.ए. की मीटिंगें नियमित रूप से करवाने लगी। चैरिटी के काम में दिलचस्पी बढ़ा दी। एक दिन उसको सुहेल मिलने आया। बातें करते हुए वे दोनों पॉर्क की ओर निकल गए।

“कैसी रहीं तेरी छुट्टियाँ ?“ सुहेल ने बात छेड़ी।

“बहुत बढ़िया।“

“तेरे अब्बू का क्या हाल है अब ?“

“ठीक है। बस, दिल का रोग होने के कारण कमज़ोरी बहुत आ गई है।“

“तेरी अम्मी के चैरिटी के काम कैसे चलते हैं ?“

“अम्मी के तो ठीक चल रहे हैं, पर यहाँ के मुझे सही नहीं लगते।“

“वो कैसे ?“

“मेरे जाने के बाद सब कुछ सुस्त-सा हो गया लगता है।“

“तू आ गई है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। हमें लोगों को आकर्षित करने के लिए अच्छे वक्ताओं की ज़रूरत है।“

“बुलाओ फिर, देर किस बात की है।“

“मैंने इंतज़ाम किया है। इसबार कैनेडा से कैथरीन बल्क को बुलाया है। तुझे मालूम ही है कि वह बोलती है तो आग बरसती है।“

“हाँ, मैंने उसकी किताब ‘सोशियल जस्टिस इन अमेरिका’ पढ़ी है। उसके ख़याल बहुत ऊँचे हैं। पर एक बात है।“

“वह क्या ?“

“उसको हम आम वक्ताओं के सामने नहीं बुला सकते। उसके विचार आम लोगों की समझ में नहीं आने वाले। बल्कि कई बार तो वे उसकी बातों को उलट ले जाते हैं।“

“फिर इसका हल क्या है ?“

“मैंने यह सोचा है कि हम एक अलग संगठन बना लें। जो बिल्कुल गुप्त हो। उसकी बैठकों में जिहाद को पूरी तरह समर्पित लोग ही आएँ।“

“यह बिल्कुल ठीक है। साथ ही इस बात से मुझे याद आया कि बॉस्निया में जिहादियों की कमी पड़ती जा रही है। हमें वहाँ लड़ने के लिए जिहादी चाहिएँ।“

“यह बात मैंने पहले ही सोच ली थी। इसके लिए मैंने अपनी गुप्त ई-मेल में मैसिज़ भी डाल दिया है कि हमें बॉस्निया के पाक जिहाद के लिए शहीदों की ज़रूरत है। इसके बहुत सारे जवाब भी आए हैं।“

“यह तो तुमने बहुत अच्छा किया। तुम्हारी और क्या योजनाएँ हैं ?“

“मैं चाहती हूँ कि चिकागो में चैरिटी के लिए काम कर रहे ग्लोबल रिलीफ़ फाउंडेशन और बैनेवोलैंस इंटरनेशनल फाउंडेशन की यहाँ भी ब्रांचें खोली जाएँ। इस तरह चैरिटी के अवसर बढ़ जाएँगे और बॉस्निया में चल रहे जिहाद के लिए धन की कमी भी नहीं रहेगी। तुझे पता ही होगा कि वहाँ हथियारों के लिए पैसा चाहिए।“

“यह तो ठीक है। दोनों ही चैरिटी यहीं शुरू कर लेते हैं। कुछ और ?“

“मैंने लड़कियों के ग्रुप को हथियार चलाने की ट्रेनिंग के मंतव्य से एक क्लब ज्वाइन करवाया है। खुद भी वहाँ बंदूक आदि चलाने का प्रशिक्षण ले रही हूँ। इसके अलावा...।“ आफिया ने बात बीच में ही छोड़ ऊपर आकाश की ओर देखा। बादल बरसने लगे थे। वह दौड़कर समीप की एक इमारत के छज्जे के नीचे जा खड़े हुए।

“इसके अलावा, मैं यहाँ की एक...।“ आफिया फिर से बोलने लगी ही थी कि सुहेल ने मुँह पर उंगली रखते हुए उसको चुप रहने का इशारा किया। आफिया ने चुप होकर अपने आसपास देखा। उसको याद आया कि यहाँ हरेक बिल्डिंग के किसी न किसी कोने में कैमरे लगे होते हैं जो बातों को भी रिकार्ड करते हैं। उसने दूसरी साधारण-सी बात शुरू की। करीब पंद्रह मिनट बाद बारिश बंद हो गई तो वे बाहर निकलकर क्रॉसवाक पर चलने लगे। आसपास झांकते हुए आफिया ने बीच में छोड़ी पहले वाली बात पुनः शुरू की।

“हाँ, मैं कह रही थी कि मैंने यहाँ की एक ऐसी मस्जिद के इमाम के साथ राबता कायम किया है जो यहाँ की जेलों में मुसलमान क़ैदियों को हर हफ़्ते धार्मिक शिक्षा देने जाता है। मैं उसके माध्यम से बहुत सारी अंग्रेजी में तर्ज़ुमा हुई किताबों को मुसलमान कै़दियों तक पहुँचा रही हूँ। इस तरह उनके अंदर भी जिहाद की चिंगारी सुलगेगी...।“ बात करते करते आफिया चुप हो गई, क्योंकि कोई करीब से गुज़र रहा था। थोड़ा रुककर वह फिर बोलने लगी, “इससे अलावा, मैं किताबों की पुरानी दुकानों से अमेरिकी मिलेट्री मैनुअल खरीद रही हूँ ताकि उन्हें अपने मुजाहिदीनों को भेजा जा सके। उन्हें अमेरिकियों के खिलाफ़ लड़ने के समय इनसे मदद मिल सके।“

“आफिया, तू तो बहुत आगे की सोचती है। जो कुछ तू कर रही हो वो तो साधारण व्यक्ति सोच भी नहीं सकता। तेरी इस अमेरिकी मिलेट्री मैनुअल वाली बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। पर ज़रा संभालकर चलना क्योंकि अगर किसी को थोड़ा-सा भी शक हो गया तो काम खराब हो जाएगा। तेरा यह काम बगावत माना जाएगा। तू बस...।“ तभी, सुहेल का फोन बजने लगा। फोन ऑन करके वह बात सुनने लगा। कई मिनट बात होने के बाद वह आफिया की ओर आते हुए उदास स्वर में बोला, “असल में, किसी घर के भेदी ने ही सारा काम बिगाड़ा था।“

“क्या !“

“आज फिर अलकीफा के कई मेंबरों की गिरफ्तारियाँ हुई हैं। युनाइटिड नेशन्ज़ बिल्डिंग, बड़े पुल और कई सुरंगों को नुकसान पहुँचाने के आरोप लगाकर इन मेंबरों को पकड़ा गया है। असल में, भीतरी सूत्रों से पता चला है कि जिस दिन शेख उमर अब्दुल रहमान ने ढाई लाख अमेरिकियों को मारने का फतवा जारी किया था, उस दिन वहाँ कोई ऐसा मुसलमान भी था जो कि एफ.बी.आई का मुख्बिर था। उसी के कारण सारी बात का भेद खुला और वही आगे चलकर आज वाली गिरफ्तारियों का कारण बना।“

“ऐसे गद्दारों का क्या किया जाए ?“ आफिया की भवें सिकुड़ गईं।

“इनका हल वही है जो एक दुश्मन का है। पर यहाँ यह काम बहुत कठिन है।“

“अच्छा मैं चलता हूँ। जब तक थोड़ी शांति नहीं हो जाती, तब तक बचकर रहने की ज़रूरत है।“

सुहेल चला गया तो आफिया हॉस्टल की ओर चल पड़ी।

(जारी…)