फैसला हो चुका था। प्यार पर सिद्धांत की जीत हुई। जबरन सुदीप का प्यार पाने की कोशिश में मोक्षा पहले से ही टूट गई थी। और अब सिद्धांतो की बलि चढ़कर वो सुदीप को नहीं पाना चाहती थी।
बेशक मोक्षा के माता पिता को उनकी बेटी के फ़ैसले पर गर्व था पर इस फ़ैसले से मोक्षा अंदर से मरने लगी थी, उसकी जीने की इच्छा ख़त्म होने लगी थी।
मोक्षा अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी। हर बार उसकी आंखे सुदीप की याद में नम हो जाती। मोक्षा के माता पिता जानते थे उनकी बेटी के मन और मस्तिष्क में एक ऐसा युद्ध मचा था जहां हर तरफ से घायल मोक्षा की भावनाएं और आत्मा हो रही थी।
इसी लिए उन्होंने तय किया था कि अब मोक्षा के लिए एक साथी चुनने का वक़्त आ गया है सो उन्होंने अपने रिश्तेदरों में मोक्षा के लिए अगर कोई सही घर और वर हो तो उसकी इत्तेला करने को कहा था।
कुछ समय बाद उनको उनके ही दरज्जे का परिवार मिल गया जहां उन्होंने मोक्षा के रिश्ते की बात चलाई तब तक मोक्षा भी थोड़ा संभल चुकी थी और उसने भी हालातों के आगे ख़ुदको झुकाना ही मुनासिब समझा।
यहां सुदीप का भी उसके माता पिता की मर्जी से कहीं और रिश्ता तय हो चुका था और ये बात मोक्षा को अनीश से पता चली सो उसने भी अब अपने माता पिता की मर्जी से शादी के लिए हामी भर दी थी।
मोक्षा को देखने मेघ और उसके घरवाले आए। बातचीत के दौरान मेघ और मोक्षा ने इकदुजे को अपनी पसंद नापसंद के बारे में अपने पढ़ाई और फ्यूचर विज़न के बारे में काफी कुछ बताया।
दोनों के परिवार वालों को बात समझ में आई, मेघ और मोक्षा को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ती नहीं थी सो जल्द से जल्द मंगनी की रस्म की गई और शादी की तारीख भी कुछ ही महीनों बाद की तय की गई।
मोक्षा खुश थी के अब कम से कम उसके मा बाप को उसकी वजह से तकलीफ़ नहीं होगी और वो भी ख़ुश रहे पाएंगे। मोक्षा अब भी सुदीप को पूरी तरह भुला नहीं पाई थी पर उसने अब ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का मन बना लिया था।
उसने मेघ को पूरी तरह से अपनाने का संकल्प लें लिया ताकि उसके गुज़रे कल का असर उसके आनेवाले भविष्य पर ना पड़े। और उसके परिवावालों का सर कभी शर्म से ना झुके।
भविष्य के गर्भ में क्या रखा था तो सिर्फ ईश्वर ही जानता था पर अब देखना था के मोक्षा ख़ुद से किए इस वादे को कितनी शिद्दत से निभा पाती हैं। जानने के लिए पढ़ते रहिए हम हैं अधूरे...
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