आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद
हरमहिंदर चहल
अनुवाद : सुभाष नीरव
(5)
अल कीफा की मीटिंग में हिस्सा लेने मार्लेन और आफिया एकसाथ पहुँचीं। यह मीटिंग किसी के घर पर हो रही थी। मीटिंग शुरू होने से पहले आफिया और मार्लेन एक तरफ़ खड़ी होकर बातें कर रही थीं कि तभी आफिया के कानों में आवाज़ पड़ी।
“सलाम वालेकम, हमशीरा।“
आफिया ने पीछे मुड़कर देखा। सामने रम्जी यूसफ खड़ा था। वह बड़े उत्साह के साथ बोली, “अरे ! वालेकम सलाम! मेरा ख़याल है, हम उस दिन इकट्ठे एक ही फ्लाइट पर आए थे।“
“मार्लेन तेरा क्या हाल है ?“ रम्जी यूसफ ने आफिया की फ्लाइट में एक साथ आने वाली बात पर कोई ध्यान न दिया।
“जी, ठीक है। तुम सुनाओ।“
“और, बसम का फोन वगैरह आया था ?“
“हाँ, फोन तो उसका आता ही रहता है। कह रहा था कि बास्निया की घरेलू जंग ख़तरनाम रूप अख्तियार करती जा रही है।“
“यह घरेलू जंग नहीं, यह मुसलमानों को खत्म करने की योजनाबद्ध स्कीम है। इस स्कीम में सारी दुनिया, मुसलमानों के खिलाफ़ हो चुकी है। ख़ैर...।“ वह बात बीच में ही छोड़ता हुआ किसी अन्य के पास जाकर बातें करने लगा। फिर मीटिंग शुरू हो गई। आज का मुख्य एजेंडा था- बास्निया में चल रहा जिहाद। अन्य चर्चाओं के अलावा इस बात पर सहमति प्रकट की गई कि वहाँ के जिहाद में यतीम हो रहे बच्चों और विधवाओं के लिए फंड इकट्ठा करने की आवश्यकता है। इसके लिए एक नया संगठन ‘रिलीफ इंटरनेशनल’ शुरू करने का निर्णय लिया गया। इसके सारे कामकाज और लोगों से इसके लिए फंड एकत्र करने की जिम्मेदारी आफिया ने ले ली। मीटिंग खत्म होने के करीब थी जब एक व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखे, उसके पीछे पीछे चलता शेख उमर रहमान कमरे में दाखि़ल हुआ। सभी ने खड़े होकर, झुककर सलाम कहा। शेख ने हाथ के इशारे से सभी को बैठने के लिए कहा और अपनी सोटी इधर-उधर घुमाते हुए सोफा ढूँढ़कर आराम से बैठ गया।
“सभी जिहादियों का आज की मीटिंग में स्वागत है। मैं अधिक बातें नहीं करूँगा। बस, मुझे इतना ही याद करवाना है कि तुम्हें अपना फर्ज़ हर वक़्त याद रहना चाहिए।“
वह बोलते बोलते चुप हो गया। कमरे में मुकम्मल चुप्पी छाई हुई थी। कोई ऊँचा साँस भी नहीं ले रहा थ। उसने पलभर रुककर आगे बोलना शुरू किया, “यह दुनिया क़ाफ़िरों से भरी पड़ी है। जब तक इन सबका सफाया नहीं हो जाता, तब तक धरती पर शांति नहीं हो सकती। यह मुकम्मल शांति तभी होगी, जब चारों ओर इस्लामी झंडा फहरेगा। मैं बेशक देख पाने में असमर्थ हूँ, पर क़ाफ़िरों की प्रगति हर वक़्त मेरे मन की आँखों के सामने रहती है। ये कुछ ही दूरी पर इन क़ाफ़िरों की आसमान छूती इमारतें मेरे दिल में कांटे की तरह चुभती हैं। काश कि कोई...।“ वह चुप होकर आगे की बात वहीं दबा गया। सभी समझ गए कि उसका इशारा वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टॉवरों की ओर था। कुछ देर बेजान पुतलियाँ इधर-उधर घुमाने के बाद वह फिर बोला, “इन क़ाफ़िरों के दोहरे मापदंड देखो। इन्होंने जापान में बम फेंककर करीब सवा दो लाख लोग एक हफ़्ते में मार दिए। हमारे फिलिस्तीनी भाइयों की लड़ाई को ये टैरेरिज़्म बताते हैं। ज़रा सोचो कि असली टैरेरिस्ट कौन हुआ ? अपने हकों के लिए लड़ने वाला या निर्दोष लोगों को एटम बमों से मारने वाला। ख़ैर, पाक फतवा जारी हो चुका है। उस पर अमल करना हर सच्चे मुसलमान का फर्ज़ है।“ इतना कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ। जो व्यक्ति उसको लेकर आया था, उसने आगे बढ़कर शेख की बांह पकड़ ली और अंदर की ओर ले चला। इसके बाद मीटिंग बर्खास्त हो गई। सभी उठकर चलने लगे। आफिया और मार्लेन भी बाहर आ गईं। आफिया देख रही थी कि हर कोई मीटिंग में से उठ आया है, परंत रम्ज़ी यूसफ, मुहम्मद सालेमाह और एक व्यक्ति पीछे ही रुक गए थे। वहाँ से वे दोनों चल पड़ीं, पर रास्ते में उनके बीच अधिक बातचीत न हुई। आफिया चुप थी, पर उसका मन चुप नहीं था। वह सोच रही थी कि शेख उमर अब्दुल रहमान ने जो फतवे के बारे में कहा था, वह अवश्य ही कोई अहम बात होगी। उसने मन में यह बात भी आ रही थी कि रम्ज़ी, दूसरे साथियों सहित वहीं क्यों रुक गया। उसको इस बात का अफ़सोस हो रहा था कि यदि कोई ज़रूरी बात है तो उसको भी इस बारे में बताया जाना चाहिए था। उसको लगा कि शायद उस पर अभी पूरा भरोसा नहीं किया जा रहा। उसका मन कह रहा था कि वह इस प्रकार पीछे हटने वालों में से नहीं है। वह तो अगली कतार की जिहादी है। इस प्रकार सोचते हुए पता ही नहीं चला कि कब उसका हॉस्टल आ गया। मार्लेन उसको उतार कर आगे बढ़ गई।
इसके सप्ताहभर बाद आफिया दोपहर के समय समाचार देख रही थी, जब वह उछल कर खड़ी हो गई। ख़बर ही ऐसी थी जिसने उसका रोम रोम उत्साह से भर दिया था। सी.एन.एन. समाचार दे रहा था, “वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर की पॉर्किंग में बम धमाका। जिसमें करीब आधा दर्जन लोग मारे गए और सैकड़ों ज़ख़्मी हो गए।“
यह ख़बर सुनते ही आफिया के कान फटाक फटाक से खुल गए। उसको याद आ गया कि उस दिन मीटिंग में शेख उमर ने जो फतवे वाली बात कही थी, वह इसी काम को लेकर थी। फिर साथ ही उसको यह ख़याल भी आया कि रम्ज़ी यूसफ और उसके दो साथी मीटिंग के बाद शायद इसी काम के लिए रुके थे जो कि आज वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में घटित हुई है। उसने कई मित्रों को फोन किए, पर कहीं से कोई पक्की जानकारी न मिली। उसने सुहेल को फोन किया तो उसने कहा कि वह उसको अगले दिन मिलेगा।
अगले रोज़ शाम के समय आफिया और सुहेल कार में बैठकर किसी नए पॉर्क में चले गए। वहाँ पहुँचकर सुहेल ने बात शुरू की, “शेख साहिब ने फतवा जारी किया था कि कम से कम ढाई लाख अमेरिकी लोगों को एकसाथ एक ही एक्शन में मारा जाए। इसके लिए रम्ज़ी यूसफ की जिम्मेदारी लगाई गई थी। रम्ज़ी ने अपने साथ ख़ास दोस्त मुहम्मद सालेमाह को लिया। वैसे वह इसकी तैयारी पहले से ही कर रहे थे। उन्होंने किसी अन्य दोस्त के घर, गैराज में पंद्रह सौ पौंड का बम तैयार कर रखा था। फिर 26 फरवरी के दिन मुहम्मद सालेमाह ने ट्रक किराये पर लिया और बम उसमें टिका दिया। लंच के समय वह ट्रक में बैठ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की ओर चल पड़े। ट्रक के पीछे ही एक अन्य मित्र ने अपनी कार लगा ली। बम कहाँ रखना है, इसकी निशानदेही रम्ज़ी पहले ही कर चुका था। उन्होंने ट्रक नॉर्थ टॉवर की पॉर्किंग के बी ब्लॉक में जा खड़ा किया। ट्रक खड़ा करने के बाद रम्ज़ी ने बम के पलीते को आग लगाई और दौड़कर साथ आई दोस्त की कार में जा बैठा। वहाँ से कार स्टार्ट करके वे भाग निकले। इसके कुछ मिनट के बाद वहाँ बहुत जबरदस्त धमाका हुआ जिसने सारा लोअर मैनहंटन हिलाकर रख दिया। पर अफ़सोस कि जो सोचा गया था, वह न हो सका।“
“वह क्या ?“ चुपचाप सुहेल की बात बात सुन रही आफिया ने हैरान होकर पूछा।
“रम्ज़ी यूसफ का ख़याल था कि यह बम इतना शक्तिशाली है कि इससे नॉर्थ टॉवर ध्वस्त हो जाएगा। इतना ही नहीं, बल्कि यह ढहते हुए साउथ टॉवर को भी अपने साथ गिरा देगा। उसका विचार था कि उसका यह काम दोनों टॉवरों को धरती पर बिछा देगा और यहाँ काम करने वाले सारे लोग मारे जाएँगे। पर अफ़सोस, उसकी मंशा पूरी न हुई। सिर्फ़ पाँच-छह लोग ही मरे हैं।“
“अल्लाह उसकी इन टॉवरों को गिराने की मंशा ज़रूर पूरी करेगा। पर सुहेल, रम्ज़ी हमारी कौम का हीरो है। वह असली जिहादी है। हमें ऐसे ही जिहादियों की ज़रूरत है।“
“अल्लाह, सब इच्छाएँ पूरी करेगा। बस, अपना काम है कि अपने राह पर चलते रहें।“ इतना कहते हुए सुहेल गाड़ी बैक करने लगा।
“हम लोगों को अधिक से अधिक लड़ाकू भर्ती करने चाहिएँ।“ आफिया ने अपनी बात कही।
“आगे आगे देखना कि क्या होता है। वैसे तू भी जिहाद के लिए बहुत कुछ कर रही है।“
“सुहेल अगर सूच पूछो तो मेरा मन भी करता है कि मैं भी फ्रंट पर जाकर लडूँ।“
“नहीं, लड़ाई में हरेक का अपना अपना काम होता है। तू जो कर रही है, यही सही है। बस आगे बढ़ती चल।“
वे बातें करते हुए वापस लौट आए।
अगले दिन मुहम्मद सालेमाह पकड़ा गया। उसके गिरफ्तार होने की देर थी कि जर्सी सिटी के अल कीफा सदस्यों में अफरा-तफरी मच गई। कितने ही और सदस्य पकड़े गए और कितने ही अंडरग्राउंड हो गए। यह मामला यहीं नहीं रुका। पुलिस बॉस्टन शहर में भी पहुँच गई और वहाँ के कई अल कीफा सदस्य पुलिस की गिरफ्त में आ गए। उधर रम्जी यूसफ ने धमाके वाले दिन ही शाम को पाकिस्तान की फ्लाइट ले ली। जब तक उसका नाम बाहर आया, तब तक वह बिलोचिस्तान में अपने घर पहुँच चुका था। अगले दिन वह पेशावर के उन सुरक्षित ठिकानों की ओर निकल गया जहाँ कि अल कायदा और अन्य संगठनों के जिहादी बड़े आराम से बिना किसी भय से रह रह थे।
धड़ाधड़ हुई अल कीफा की गिरफ्तारियों ने तहलका तो मचा दिया, पर सदस्यों के हौसले और अधिक बुलंद हो गए। वे सोचते थे कि उन्होंने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया है और आगे चलकर वे इससे भी अधिक काम कर सकते हैं। आफिया का भी हौसला बुलंद हो गया। उसने अपने इंटरनेट वाले इश्तहार में लिखा कि इन पकड़े गए सदस्यों के कोर्ट केसों के लिए धन इकट्ठा किया जाए। पुलिस के दबाव के कारण अल कीफा का दफ़्तर बंद कर दिया गया। इसके अधिकतर सदस्य बॉस्टन शहर में जा पहुँचे। उन्होंने अल कीफा का नाम छोड़कर एक नया संगठन बना लिया जिसका नाम था - केयर इंटरनेशनल। न्यूज़ लैटर अल्हसम और अल्हसम वैब साइट केयर इंटरनेशनल से जोड़ दिए गए। इनके माध्यम से मुस्लिम समाज से बड़े ज़ोशोख़रोश के साथ फंड की अपील की गई। दिनों में ही लाखों डॉलर एकत्र हो गया। इससे सभी सदस्यों के हौसले बुलंदियाँ छूने लगे। इन्हीं दिनों ही एक दिन आफिया ने अख़बार में रम्जी यूसफ के विषय में पूरा लेख पढ़ा। लिखा था - “नॉर्थ टॉवर बम धमाके के प्रमुख दोषी को एफ.बी.आई. की मोस्ट वांटिड लिस्ट में डालने के बाद उसका पीछा किया गया। शीघ्र ही पता लग गया कि वह अपने पुश्तैनी घर क्वेटा में रह रहा है। पाकिस्तानी पुलिस की मदद से उसको पकड़ने की योजना बनाई गई। पर जब तक पुलिस की टीम वहाँ पहुँचती, तब तक वह वहाँ से फरार हो गया था। लगता है कि उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. के अंदर गहरे सम्बंध हैं। उसके इस घर से मिले काग़ज़ों से यह भी जानकारी मिली कि उसका असली नाम अब्दुल बसत करीम है। बम धमाका करने से बाद वह इसी नाम के पासपोर्ट से पाकिस्तान पहुँचा था। इसके अतिरिक्त उसके घर से मिले चित्रों में कई बड़े लोगों के साथ खींचे गए फोटो भी मिले। जिनमें जनरल जिया उल हक, उसका पुत्र इजाज उल हक और प्रधान मंत्री नवाज शरीफ जैसी शख़्सियतें भी शामिल हैं। इससे पता चलता है कि वह पाकिस्तान राजनीतिज्ञों के कितना करीब है। उम्मीद है कि वह पेशावर के एरिये में पहुँच चुका है। इसके अलावा, और भी बहुत सारी गुप्त जानकारी मिली है।“
आफिया ने अख़बार एक तरफ रख दिया और सुहेल की कही बात को लेकर सोचने लगी। सुहेल ने ही उसको बताया था कि पेशावर सारे जिहादियों का एक बहुत बड़ा अड्डा है। वहाँ कोई बाहरी व्यक्ति तो क्या, खुद पाकिस्तानी सरकार भी नहीं जा सकती। आफिया को लगा कि अच्छा ही हुआ कि रम्जी यूसफ पुलिस के हाथ नहीं आया। यदि वह पकड़ा जाता तो पता नहीं फिर और कितनी गिरफ्तारियाँ होती। तभी आफिया का फोन बजा। उसने फोन ऑन किया तो दूसरी तरफ उसका भाई था जो कि हूस्टन से बोल रहा था।
“आफिया, क्या हो रहा है ?“
“भाई जान, कुछ नहीं, बस खाली बैठी हूँ।“
“मैंने कराची फोन किया था, अब्बा की तबियत कुछ ढीली है।“
“क्यों ? क्या हुआ अब्बू को ?“ आफिया एकदम घबरा गई।
“नहीं, इतना फिक्र वाली बात तो नहीं है। वैसे तुझे पता ही है कि वह हाई ब्लॅड प्रैशर के मरीज़ हैं। अब, दिल की बीमारी भी शुरू हो गई है।“
“उन्हें कहो कि यहाँ आकर इलाज करवाएँ। यहाँ हर बीमारी का बेहतर इलाज है।“
“मैं तो बहुत बार कहकर देख चुका हूँ, पर वो मानते ही नहीं। तू बात करके देखना।“
“मैं करती हूँ फोन आज ही। और अम्मी तो ठीक है न ?“
“अम्मी बिल्कुल ठीक है। फौज़िया भी कह रही है कि अमेरिका पढ़ने आना है।“
“अच्छा है, यहाँ आ जाए। सभी इकट्ठा हो जाएँगे।“
“इकट्ठा कहाँ होंगे ? मैंने तुझे कितना कहा, हूस्टन न छोड़, पर तूने मेरी बात नहीं मानी। ऐसे ही वो भी अपनी मर्ज़ी ही करेगी।“
“भाई जान, कोई बात नहीं। मैं यहीं ठीक हूँ। वो हो सकता है, तुम्हारे पास रह जाए।“
“आफिया और तो सब ठीक है, पर मुझे तेरा एक बात से बड़ा फिक्र रहता है।“
“भाई जान, वह क्या ?“
“तुम्हारा बॉस्टन शहर आजकल ख़बरों में खूब रहता है। सुनते हैं कि वहाँ बड़े जिहादी घूम रहे हैं। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की पॉर्किंग में धमाके वाले केस के साथ ही बॉस्टन जुड़ा हुआ है। तू इस तरफ से बचकर रहना।“
“नहीं भाई जान, ऐसी कोई बात नहीं है। मेरा इन लोगों से कोई लेना-देना नहीं है। मैं तो सिर्फ़ चैरिटी तक ही सीमित हूँ।“ आफिया ने झूठ बोला तो डर भी गई कि उसका भाई उसकी घबराहट को न जान जाए। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। मुहम्मद अली आगे बोला, “आफिया, यह काम चैरिटी से ही शुरू होता है। जितने भी जिहादी देख रहे हैं, ये पहले चैरिटी में ही काम करते थे। वहीं इनका वास्ता असली जिहादियों से पड़ता है। तू मेरी बहन खुद को बचा कर रखना। मैं तो कहता हूँ कि तूने क्या लेना है चैरिटी वगैरह से। तू चुपचाप अपनी पढ़ाई कर।“
“हाँ, भाई जान। मैं आगे की क्लासें लेने के बारे में सोच रही हूँ। तुम्हारे साथ भी सलाह करनी है कि कौन-सी क्लासें लूँ।“ आफिया बात को पढ़ाई की ओर ले गई और चैरिटी वाली बात टाल गई। वे बातें कर ही रहे थे कि बीच में आफिया की दूसरी कॉल आ गई। उसने फोन के स्क्रीन पर देखते हुए बोली, “भाई जान, मैं तुम्हें फिर फोन करती हूँ। मेरा कोई फोन आ रहा है।“ उसने दूसरी तरफ फोन ऑन करते हुए ‘हैलो’ कहा। उधर, मार्लेन थी। वह घबराई हुई आवाज़ में बोली, “आफिया, बहुत बुरा हुआ।“
“क्या हो गया ?“
“शेख उमर अब्दुल रहमान गिरफ्तार हो गए।“
“या अल्लाह !“ आफिया ने फोन काट दिया और सिर पकड़कर बैठ गई। अगले दिन सभी अख़बारों की मुख्य ख़बर थी कि नॉर्थ टॉवर की पॉर्किंग वाले बम धमाके का मुख्य सूत्रधार, अंधा शेख उमर अब्दुल रहमान पकड़ा गया।
(जारी…)