आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद
हरमहिंदर चहल
अनुवाद : सुभाष नीरव
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आफिया, मैसाचूसस स्टेट के लोगन इंटरनेशनल एअरपोर्ट बॉस्टन पर उतरी। वहाँ से वह टैक्सी लेकर मैसाचूसस इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी अर्थात एम.आई.टी. की ओर चल पड़ी। टैक्सी बॉस्टन शहर की सड़कों पर दौड़े जा रही थी और आफिया अपने ही ध्यान में गहरी डूबी हुई थी। उसको पहली नज़र में ही बॉस्टन शहर भा गया। उसको बॉस्टन शहर बहुत सुंदर लगा। पता ही नही लगा कि टैक्सी कब यूनिवर्सिटी के नज़दीकी होटल में जा रुकी। टैक्सी ड्राइवर के बुलाने पर आफिया विचारों की गुंजल से बाहर निकली। किराया चुकता करके उसने सामान उठा लिया। होटल में कमरा लेकर सामान वगैरह वहाँ टिकाकर वह यूनिवर्सिटी की ओर चल पड़ी। अंदर जाते ही उसने देखा कि हर तरफ़ विद्यार्थी झुंडों में घूम रहे थे। उसने इधर-उधर नज़रें दौड़ाईं। उसको कोई भी लड़की पंजाबी पहरावे में न दिखाई दी जबकि उसने स्वयं सलवार-कमीज़ पहन रखी थी और सिर पर चुन्नी ले रखी थी। उसको अपना आप पराया-सा न लगा। अपितु उसको अपनी भिन्नता पर गर्व अनुभव हुआ। दफ़्तर जाकर उसने दाखि़ले वगैरह का शेष बचा काम निपटाया। फिर वह नज़दीकी लड़कियों के हॉस्टल मकार्मिक हॉल चली गई। उम्मीद के उलट उसको थोड़ा-सा पेपर वर्क पूरा करने के उपरांत ही कमरा मिल गया। दफ़्तर से कमरे की चाबी लेकर वह लिफ्ट से कमरे में पहुँची। ऊँची-लम्बी इमारत की बीसवीं मंज़िल पर उसका कमरा था। कमरा खोलकर वह अंदर आ गई और पिछली खिड़की में से उसने नीचे झांका। उसका मन बागबाग हो उठा। बाहर हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही थी और चार्सल दरिया, हॉस्टल की इमारत के साथ ही लगकर बहता था। काफी देर खड़ी वह कुदरत के नज़ारे का आनंद लेती रही। फिर होटल जाकर अपना सामान उठा लाई।
अगले दिन से ही वह पढ़ाई में डूब गई। उसके घर वाले चाहते थे कि वह डॉक्टर बने, पर उसका विचार कुछ और ही था। पहले वह पुलिटिकल साइंस पढ़ना चाहती थी। घरवालों के अधिक ज़ोर देने पर उसने साइंस और मैथ की कक्षाएँ ले लीं। आफिया हालांकि छोटे कद और हल्के शरीर की दुर्बल-सी लड़की थी, पर उसका चेहरा-मोहरा बहुत प्रभावशाली था। उसका समूचा व्यक्तित्व दूसरे को मोह लेता था। अपने काम में मस्त रहने और पढ़ाई में बहुत ही होशियार होने के कारण शीघ्र ही अपने प्रोफेसरों की चहेती बन गई। हॉस्टल में थोड़ी जान-पहचान बढ़ने के बाद उसने मुसलमान लड़कियों को जोड़ने का काम प्रारंभ कर दिया। यहाँ दूसरे धर्मों की लड़कियाँ अधिक थीं। पर वह उनसे दूरी बनाकर रखती थी। विशेष तौर पर यहूदी लड़कियों से तो वह बिना मतलब के बातचीत भी नहीं करती थी। आहिस्ता आहिस्ता उसने वहाँ अपना एक ग्रुप बना लिया। वह मुसलमान लड़कियों के साथ धर्म पर चर्चा करने लगी। परंतु अधिकांश लड़कियों का धर्म से अधिक सरोकार नहीं था। वे तो अमेरिकन ज़िन्दगी में घुलमिल गई प्रतीत होती थीं। आफिया ने उन्हें धर्म की शिक्षा का वास्ता दे देकर अपने हिसाब से सीधे राह पर लाने का प्रयत्न शुरू कर दिया। इसमें वह काफी हद तक सफल भी रही। फिर वह अपने ग्रुप को संग लेकर साझे काम करने लगी। जैसे कि कालेज कैंपस की सफाई वगैरह। इसके अलावा, वह हर सप्ताह लगभग चालीस घंटे बिना किसी वेतन के कालेज के साझे कामों में लगाती थी। अवसर मिलते ही वह गरीब इलाकों के स्कूलों में जाकर बच्चों के लिए मुफ्त साइंस फेयर वगैरह लगाने लगी। इस प्रकार वह शीघ्र ही सभी की नज़रों में आ गई। कालेज में उसका अक्स एक अच्छी होशियार और समाजसेवी छात्रा का बन गया। परंतु निजी तौर पर वह हमेशा धर्म के साथ जुड़े कामों को पहल देती। वह जब अपने ग्रुप की लड़कियों के साथ बैठकें करती तो हमेशा इस बात पर ज़ोर देती कि गै़र-मुसलमानों से दूर रहा जाए। उनके साथ दोस्ती न की जाए। पर उनके साथ व्यवहार करते समय बहुत ही प्रेमपूर्वक मीठी बोली में बात करने का दिखावा किया जाए। उसके समाजसेवा वाले कामों के कारण उसको दो बार ईनाम मिला। वैसे तो पढ़ाई के हर क्षेत्र में ही वह बहुत अच्छी थी, पर कंप्युटर में तो उसका इतना नाम बन गया कि कभी कभी तो कई प्रोफेसर भी उसकी मदद ले लेते। अब तक मुस्लिम स्टुडेंट्स एसोसिएशन जिसको कि आम तौर पर एम.एस.ए. कहा जाता था, में वह काफी आगे बढ़ गई थी। वह एम.एस.ए. के माध्यम से मुसलमान छात्रों के हकों के बारे में सभी को जागरूक कर रही थी। कालेज अथॉरिटी के साथ मिलकर वह मुसलमान विद्यार्थियों की ज़रूरतें भी पूरी करने के लिए ज़ोर डालती रही थी। यहाँ तक कि कालेज कैंपस के छोटे रेस्टोरेंटों में उसने हलाल मीट की प्रयोग शुरू करवाने के लिए अथॉरिटी को मना लिया ताकि मुसलमान विद्यार्थी अपने धार्मिक अकीदे के अनुसार हलाल मीट की इस्तेमाल कर सकें। इसके अतिरिक्त उसने हॉस्टलों में पृथक कमरों की सुविधा मुहैया करवा ली जहाँ कि मुसलमान विद्यार्थी नमाज़ अदा कर सकें। जैसे जैसे वह एम.एस.ए. के माध्यम से मुसलमान विद्यार्थियों की ज़रूरतों के लिए सक्रिय हो रही थी, वैसे वैसे उसका नाम प्रसिद्ध होता जा रहा था। मुसलमान विद्यार्थियों में उसको बहुत इज्ज़त के साथ देखा जाता था। कट्टर धार्मिक लड़के उसको ट्रू सिस्टर कहकर बुलाने लग पड़े थे। इसी दौरान उसकी मुलाकात सुहेल लैहर से हुई। सुहेल के माता पिता इंडिया से थे, पर वो जिम्बावे में जन्मा था। पेशे के तौर पर वह इंजीनियर था। सुहेल की मार्फ़त वह एम.एस.ए. के अंदरूनी क्षेत्र में आ गई। जब उसने एम.एस.ए. के भीतरी विद्यार्थियों की सोच सुनी तो वह बड़ी प्रसन्न हुई। उसको लगा कि यही असली जगह है जहाँ रहकर वह अपने धर्म की अधिक से अधिक सेवा कर सकती है। असल में, यह ग्रुप एम.एस.ए. की अगली कतार की लीडरशिप था जो कि आम तौर पर परदे के पीछे रहता था। एम.एस.ए. की अगली बैठक में अपनी बारी आने पर वह बोलने लगी, “हमें यहाँ इस्लाम की अधिक से अधिक शिक्षा देनी चाहिए। क्योंकि यही एक ढंग है अल्लाह की रहमतों को हासिल करने का। हमें सभी विद्यार्थियों के लिए जुम्मे की नमाज़ कालेज कैंपस में पढ़ने के लिए ज़रूरी कर देनी चाहिए। अपने आसपास के लोगों का विश्वास जीतकर उनको इस्लाम धर्म में लाने के लिए यत्न करना चाहिए। इंशा अल्ला ज़रा सोचो कि वो दिन कितना किस्मतवाला होगा जब अमेरिका में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में इस्लाम का झंडा फहरेगा। इसके अलावा आज और बहुत कुछ करने वाला है...।” उसने अपनी बात रोककर श्रोताओं की ओर देखा। सभी बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे। ज़रा रुक कर वह फिर बोलने लगी, “आज संसार में बहुत कुछ घटित हो रहा है। जगह जगह मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। यह क्यों हो रहा है। क्योंकि हम मुसलमान अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं। हम भूल गए हैं कि हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है - जिहाद। हरेक को आज दुनिया के अलग अलग हिस्सों में चल रहे जिहाद में अपनी हैसियत के अनुसार हिस्सा लेना चाहिए। असली मुसलमान वो हैं जो फ्रंट पर लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं। पर फिर भी हम उतना तो कर ही सकते हैं जो उनके काम में मदद बन सके। उदाहरण के लिए हम जिहाद में शहीद हो रहे हमारे भाइयों के बच्चों और उनकी विधवाओं को संभाल सकते हैं। उसके लिए चैरिटी संस्था बनाकर फंड एकत्र करने की आवश्यकता है। हमें अधिक से अधिक चैरिटी एकत्र करनी चाहिए।”
जब तक उसने अपना भाषण समाप्त किया, तब तक वह एम.एस.ए. की अगली पंक्ति के लीडरों की नज़रों में आ चुकी थी। सभी उससे प्रभावित हुए थे। वे समझ गए कि जिस लड़की की वह एक अरसे से प्रतीक्षा कर रहे थे, वह आज उन्हें मिल गई है। मीटिंग ख़त्म होने पर वह बाहर निकली और सुहेल के साथ कार में बैठ गई। सुहेल ने कार आगे बढ़ाई तो आफिया ने बात प्रारंभ की, “सुहेल वो एक कोने में बैठी गोरी अमेरिकन लड़की कौन थी ?“
“उसका नाम मार्लेन अर्ल है।”
“मतलब वह अमेरिकन है ?“
“हाँ है तो अमेरिकन ही, पर...।“
“पर क्या ?“
“उसने धर्म परिवर्तन करके इस्लाम धर्म अपना लिया है। अब वह पक्की मुसलमान है।”
“किसके प्रभाव से उसने मुस्लिम धर्म अपनाया है ?“
“इस बात को छोड़ो, पर तुम्हें बताऊँ कि उसका पति बसम कुंज बहुत बड़ा जिहादी है। उसने कई जिहादों में लड़ाई लड़ चुका है।”
“अच्छा !“
इसके बाद आफिया चुप हो गई। उसके मन में आ रहा था कि वह कितना किस्मत वाला होगा जिसने मार्लेन का धर्म परिवर्तन करवाया होगा। दूसरा उसको मार्लेन पर इस बात से भी गर्व महसूस हुआ कि उसका पति जिहादी है और फ्रंट पर बंदूक उठाकर लड़ाई में हिस्सा लेता है।
“चुप क्यों हो गईं ?“ सुहेल ने आफिया को ख़यालों में गुम देखकर उसकी चुप्पी तोड़ी।
“नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। मैं तो सोच रही थी...।”
“क्या सोच रही थी तुम ?“
“मैं तो यह सोच रही थी कि...।”
“अच्छा सुहेल, एक बात और बता।” आफिया ने पहली बात बीच में ही छोड़ते हुए बात बदली।
“हाँ हाँ पूछ।“
“वो जो तेरे संग बैठा था, वह कौन है ? जो पूरी मीटिंग के दौरान बिल्कुल ही नहीं बोला।”
“उसका नाम...।” सुहेल ने बात बीच में ही छोड़ते हुए गौर से आफिया की ओर देखा। पल भर रुककर वह फिर बोला, “उसका नाम रम्जी यूसफ है। वह अल कीफा का कभी न थकने वाला एक बड़ा वर्कर है।”
“अल कीफा ?“ आफिया ने अल कीफा का नाम सुना तो था, पर उसके विषय में पूरी जानकारी नहीं थी।
“तुम्हें अल कीफा के बारे में बता ही देता हूँ।” सुहेल ने एक बार फिर ध्यान से आफिया की ओर देखा और मन में सोचा कि यह लड़की हमारे कॉज़ के लिए बहुत ही वफ़ादार साबित होगी। और इसके साथ हर बात साझी कर लेनी चाहिए।
“अल कीफा अपने ही बहन-भाइयों का संगठन है। यह बातों में नहीं, बल्कि एक्शन में विश्वास रखती है। अपनी सभी मस्जिदों और जिहादी सर्किलों में इसका बहुत ज़ोर है। पर ये खुलकर सामने नहीं आता। इसका नेता गुलबदन हेकमत्यार है।“
“जो अफ़गानिस्तान का वार लोर्ड है ?“ आफिया बीच में ही बोल उठी।
“हाँ वही। शुरुआत उसने की थी। पर अब यह सब तरफ फैल चुकी है। मुस्लिम समाज इसको बहुत ज्यादा मान देता है और इसको आर्थिक मदद भी बहुत मिलती है। परंतु कई बार यही आर्थिक सामर्थ्य झगड़े का कारण भी बन जाता है। तुमने पिछले दिनों मुस्तफा शलेबी के क़त्ल के बारे में सुना ही होगा ?“
“हाँ, पता है मुझे। वही जिसका कोई भेद ही नहीं खुल सका।”
“वह क़त्ल अल कीफा के पास पड़े मिलियन डॉलर का फंड लेकर ही हुआ था। अल कीफा के ही एक मैंबर को शक हो गया कि शलेबी पैसे की हेराफेरी करता है। पर मैं ऐसा नहीं मानता। शलेबी को मारकर किसी ने सही नहीं किया। उस जैसा धार्मिक और अकीदे वाला कोई हो ही नहीं सकता।”
“वह कैसे ?“ आफिया को जिज्ञासा हुई।
“उसने अल कीफा के लिए या समझ लो कि समूचे जिहाद के लिए बहुत काम किया है। वही शेख उम्र अब्दुल रहमान को अमेरिका लाने में कामयाब हुआ था।”
“शेख उम्र वही है न जो कि मिस्र से है ? जो बचपन से अंधा है ?“
“हाँ वही। वह बहुत बड़ा धार्मिक फिलासफ़र है। अमेरिका को उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। पर वह मिस्र के कट्टर जिहादियों में से एक है। सारे मुस्लिम समाज में उसका रुतबा बहुत ऊँचा है। कोई भी उसकी बात का विरोध नहीं कर सकता। काश ! तू कभी उसको सुने तो...।”
“मुझे उसके फ़ल्सफ़े का पता है।” आफिया को याद आया कि पिछले दिनों ही उसको किसी ने शेख उम्र की वीडियो दिखाई थी। वीडियो में सुने शेख के शब्द उसके मन में घूमने लगे, “हर मुसलमान का एक ही धर्म है कि गै़र मुसलमानों को ख़त्म कर दो। दुनिया पर कोई भी ऐसा न रहे जो मुसलमान न हो। लोगों को समझा-बुझाकर मुसलमान बनाने से बेहतर यह है कि उनका खातमा करो। जितनी जल्दी गै़र मुसलमानों का सफाया होगा, उतनी जल्दी ही हम दुनिया पर इस्लाम का झंडा फहरा सकेंगे। इसके अलावा हर मुसलमान का यह भी धार्मिक फर्ज़ है कि वो कई शादियाँ करके अधिक से अधिक बच्चे पैदा करे ताकि हमारी गिनती काफ़िरों से अधिक हो जाए।”
“तू मेरी बात सुन रही है न ?“
“हाँ-हाँ, मेरा ध्यान तेरी बात की ओर ही है।” आफिया ने ख़यालों में से निकलते हुए सुहेल की बात का हुंकारा भरा।
“हमे शेख उम्र जैसे धार्मिक रहनुमा की ज़रूरत है।”
“पर...।” आफिया ने उसकी बात काटी।
“हाँ, बता ?“
“पर, यह रम्जी यूसफ फिर आज एम.एस.ए. की मीटिंग में क्या कर रहा था ?“
“असल में सभी बातों का तुम्हें आहिस्ता आहिस्ता पता चल जाएगा। कई मैंबर दोनों तरफ काम करते हैं। जैसे कि मार्लेन का पति बस्म कुंज है। वह दोनों तरफ का मैंबर है।“
“आजकल वह कहाँ है ? क्योंकि वह आज मार्लेन के साथ तो कहीं दिखा नहीं ?“ बात फिर दूसरी तरफ चली गई।
“उसकी भी लम्बी कहानी है। वह लिबनान का जन्मा पला है। वह वहीं से किसी धार्मिक संगठन से वजीफा लेकर यहाँ पढ़ने आया था। बॉस्टन यूनिवर्सिटी से उसने ग्रेज्युएशन की। यहीं वह जिहादी लीडरों के सम्पर्क में आया। फिर वह अल कीफा का सरगरम मैंबर बन गया। उन्हीं दिनों उसने मार्लेन से शादी की और उनके एक बच्ची हो गई। फिर वे दोनों पाकिस्तान चले गए। वहीं से बस्म तो जिहाद में लड़ने की खातिर बार्डर पार करके अफ़गानिस्तान चला गया और मार्लेन अपनी बच्ची के साथ पेशावर के उस इलाके में रही जहाँ कि सभी जिहादियों के परिवार रहते हैं। वहीं बस्म लड़ाई के दौरान सख़्त ज़ख्मी हो गया और उसको सर्जरी के लिए यहाँ अमेरिका वापस आना पड़ा। मार्लेन और बस्म यहाँ आकर कुछ देर रहे। जब बस्म पूरी तरह ठीक हो गया तो वह फिर जिहाद की लड़ाई में हिस्सा लेने लिबनान पहुँच गया। वहाँ से वह आगे बास्निया चला गया। आजकल वह बास्निया में ही लड़ रहा है।“
तभी आफिया का हॉस्टल आ गया था। बातों का सिलसिला बंद हो गया। सुहेल आफिया को हॉस्टल पर उतार कर वापस चला गया। आफिया अपने कमरे की ओर जाती हुई मार्लेन और बस्म कुंज के बारे में सोचे जा रही थी। उसको वह एक सच्चा मुसलमान जोड़ा लगा जो कि पूर्णरूप में जिहाद को समर्पित था। उसको मार्लेन अच्छी लगने लगी। देर रात तक भी वह उनके बारे में सोचती रही। अगले कुछ दिनों में ही उसने मार्लेन के साथ अच्छी दोस्ती गांठ ली।
आफिया की पढ़ाई के विषय में किसी कोई शंका नहीं थी। सब जानते थे कि वह इतनी होशियार है कि वह कोई भी विषय चुन ले, पर हमेशा पहले नंबर पर आएगी। इन्हीं दिनों में उसने एक पर्चा लिखा जिसका नाम था - ‘इस्लामीजेशन इन पाकिस्तान एंड इट्स इफेक्ट्स ऑन वुमन।’ इस पर्चे के कारण उसको एम.आई.टी. ने कैरल विल्सन अवार्ड से सम्मानित किया जिसमें पाँच हज़ार डॉलर का नकद ईनाम शामिल था। इस ईनाम से खुश हुई आफिया 1992 का ग्रीष्म अवकाश बिताने के लिए पाकिस्तान चली गई। उन्हीं दिनों पाकिस्तान में हदूद लॉ के बारे में शोर मचा हुआ था। ह्युमन राइट्स जैसे संगठनों का कहना था कि यह लॉ न सिर्फ़ औरत की आज़ादी को कुचल रहा है अपितु इसने तो औरत जाति को भी कुचल कर रख दिया है। इस कानून को घड़ने में मुफ़्ती मुहम्मद तकी उस्मानी ने बड़ी मेहनत की थी। मुफ्ती उस्मानी आफिया के परिवार का धार्मिक रहनुमा था। इस कारण आफिया को उन्हीं दिनों चल रहे शोर-शराबे में दिलचस्पी हो गई। उसने मुफ्ती साहिब का पक्ष लेने का निर्णय ले लिया। वह यह पक्ष इस कारण नहीं ले रही थी कि इसको घड़ने वाला मुफ्ती उस्मानी था बल्कि इस कारण कि उसकी अपनी सोच थी कि इस्लाम ने जो भी पाबंदियाँ स्त्रियों पर लगाई हैं, वे मुसलमान स्त्री के लिए सही हैं। इनको मानते हुए ही वह अपने धर्म का सही पालन कर सकेगी। इस अरसे के दौरान वह जिस किसी भी बड़े लीडर को मिली, हर कोई उसके विचारों से प्रभावित हुआ। क्योंकि एक औरत होकर वह औरतों की ओर से चलाए जा रहे संघर्ष के उलट थी। उसके शुभचिंतकों में पहले पाकिस्तानी डिक्टेटर जिया उल हक का पुत्र इयाज़ उल हक भी था। उस वक़्त पाकिस्तान की राजनीति में भी फेरबदल हो चुका था। बेनज़ीर भुट्टो की जगह नवाज शरीफ की पार्टी सत्ता में आ चुकी थी और वह मुल्क का प्रधान मंत्री था। सरकार के बदल जाने से और चाहे सब कुछ बदल गया हो, पर एक बात नहीं बदली थी। वह थी पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई. का एजेंडा। इसके तत्कालीन प्रमुख जावेद नासिर का विचार था कि पाकिस्तान को दुनिया के किसी भी हिस्से में चल रहे जिहाद की अधिक से अधिक मदद करनी चाहिए। इसी एजेंडे के अधीन वह बास्निया में चल रहे गृह युद्ध में जिहादियों की मदद कर रहा था। इसके अलावा यह एजेंसी फिलिपीन्ज़, रशिया के कई हिस्सों में चल रहे जिहाद और चीने के सिनज्यांग प्रांत में चल रहे संघर्ष में भी ऊपरोक्त नीति अपना रही थी। हर जिहाद में अरब अफ़गानों के जत्थे लड़ रहे थे। ये वही लोग थे जो अफ़गानिस्तान की जंग के समय अमेरिका की ओर से रशिया के विरुद्ध लड़े थे। जब वहाँ लड़ाई ख़त्म हो गई तो इन्हीं जत्थों के लीडर अपने लड़ाकों को दुनिया के अन्य क्षेत्रों की ओर ले गए। इन्हीं लीडरों में से सबसे अधिक उभरकर बाहर आ रहा लीडर उसामा बिन लादिन था। इसके अतिरिक्त बलोचिस्तान का एक बड़ा और बहुत ही अमीर परिवार जिहाद में मुख्य भूमिका निभा रहा था। उसको अल बलोची के नाम से जाना जाता था। यह सारा परिवार काफी पहले पाकिस्तान से कुवैत चला गया था। परंत 1990 के इर्द गिर्द यह पुनः पाकिस्तान में लौट आया और आजकल जिहाद में बढ़-चढ़कर भाग ले रहा था। इस परिवार के प्रमुख का नाम खालिद शेख मुहम्मद था जिसका सभी उसके निक नाम अर्थात के.एस.एम. के रूप में जानते थे। रम्जी यूसफ इसी के.एस.एम. का भतीजा था।
खै़र, अपनी छुट्टियाँ बिताकर आफिया वापस अमेरिका आ गई। जब वह लोगन इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर उतर कर कस्टम वगैरह की क्लीयरेंस के लिए लाइन में लगी हुई थी तो उसने देखा कि साथ वाली लाइन में खड़ा कोई व्यक्ति उसकी ओर बड़े गौर से देख रहा था। उसने दिमाग पर ज़ोर डालकर याद करने की कोशिश की कि इस आदमी को उसने पहले कहाँ देखा था, पर उसको कुछ याद न आया। वह गर्दन झुकाकर सोचने लगी। फिर उसके दिमाग में अचानक कुछ कौंधा और उसने तुरंत ही साथ वाली लाइन की ओर देखा। तब तक वह व्यक्ति आगे निकल गया था। आफिया मन ही मन बोली, ‘ओह, यह तो रम्जी यूसफ है जिसको उस दिन एम.एस.ए. की मीटिंग में देखा था।’
(जारी…)