1.जाने कितने अरमानों को खंगाला मैंने,
बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला मैंने.।
2.अगर मस्जिद में तू है , मंदिर में तू है ,
मंदिर में मस्जिद में नफरत फिर क्यूँ है?
3.रौशनी में भी उजाला ठहरता नहीं,
अंधियारा अजीब है , पिघलता नहीं।
4.मन के सन्नाटे को खोल कभी,
दिल के दरवाजे से बोल कभी।
5.तोड़ के जोड़ के मन्नत के धागे को,
दे भी दोगे क्या तुम नसीब में अभागे को।
6.जो दौड़े हीं नहीं किसी भीड़ में यकीनन,
वो क्या जाने हार कि खुमारी क्या चीज है।
7.बेहतर हीं था जो वो दाग दे गया,
ठंडा था दिल मेरा आग दे गया।
8.अदालत जाने से संभल जाते जो लोग,
मयखाने में फिर क्यों जल जाते हैं लोग।
9.इस शहर के इंसान जाने कैसे हज़ार में,
प्लास्टिक के फूल बिके ईत्र के बाजार में।
10.शहद से मीठा समंदर से गहरा,
तेरी ईन नागिन सी जुल्फों का पहरा।
11.मेरे गाँव से कहीं, बदतर ये शहर है,
कि पेट में है दाँत, दाँतों में जहर है।
12.ख़्वाहिशों और चादरों में कुछ इस तरह अमन रखा,
ना चादरें लम्बी रखी ना ख़्वाहिशों को दफ़न रखा।
13.न पूछ हमसे हमने क्या इस दिल में पाले हैं,
कि सर से पाओं तलक छालें हीं छालें हैं।
14.समंदर का होकर हवा की बातें करना क्या,
जो करते नहीं याद उन्हें दिल मेें रखना क्या।
15.कुछ दिखता नहीं, कुछ दिखाई न पड़ता,
कुछ तन का अंधेरा , कुछ मन का अँधेरा।
16.तुम भी गजब हो हथियार ले आते हो,
काँटे हैं दिल मे , तलवार ले आते हो ।
17.जबसे मेरा मुझमें घटने लगा है,
तबसे तू मुझमें बढ़ने लगा है।
18.लाख कह ले तू अशफ़ाक हूँ मैं,
मैं राख हूँ मिट्टी की ख़ाक हूँ मैं।
19.चलते है वो अक्सर बहारों में ऐसे,
पढ़ते हैं खबर कोई अखबारों में जैसे।
20.मुश्किल से उसको पगार मिला आज,
दो दिन का जीवन बेज़ार मिला आज।
21.धँसी हुई आँखे, सूखे हुए पंजर और जो तन्हाई है,
ये कुछ और नहीं बूढ़े की पूरे उम्र की कमाई है।
22.नीर नहीं भावों की सरिता,
अद्भुत है कवि तेरी कविता।
23.आँखों हीं से आँखों में करते जो बातें,
दिल से फिर होती ना क्यों मुलाकातें।
24.कई सालों जंग-ए-आजादी मिली है,
फ़ादासी, जेहादी, बर्बादी मिली है।
25.कुछ इस तरह से जिंदगी, कट गयी चलते हुए,
तुझे हीं ढूंढना था, तेरे घर मे रहते में रहते हुए।
26.चाँद को छू लेने को, मुल्क तो बेताब है,
मुश्किल कि कर्ज में डूबा हुआ फैयाज़ है.
फैयाज़:दानी
27.अजीब है ख़ुदा तू , तेरी ख़ुदाई भी,
तू भी साथ में और मेरी तन्हाई भी।
28.ना मय के लिए ना मयखाने के लिए,
जुनून-ए-जिगर है मर जाने के लिए।
29.प्रेम मधुर रस तुम बरसाओ ,
यूँ बैठे न आग लगाओ।
30.ना तख़्त के लिए, ना ताज के लिए,
मैं लिखता हूँ रूह की आवाज़ के लिए।
31.जमाने की बात भुलाने से उठा,
सोचता हूँ क्यों मैखाने से उठा?
32.रागी से बेहतर, विरागी से बेहतर,
न धन से अकड़ता न धन को पकड़ता।
33.ये झूठ की बीमारी तुझे हो मुबारक,
मैं सच का पुजारी, अनाड़ी सही।
34.जब भावना पे संभावना का प्रभाव होता है,
तब रिश्तों में संवेदना का अभाव होता है।
35.सूरज तो निकलता है रोज हीं मगर,
तूने आँखे खोली और दीदार हो गया।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित