Afia Sidiqi ka zihad - 3 in Hindi Fiction Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 3

Featured Books
Categories
Share

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 3

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(3)

डेल्टा एअरलाइन्ज़ का जहाज़ नीचे होने लगा तो आफिया ने नीचे धरती की ओर गौर से देखा। उसको कुछ भी नज़र न आया। नीचे धुंध की चादर-सी बिछी हुई थी। जहाज़ नीचे होता गया, पर नीचे अभी कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। आफिया ने महसूस किया जहाज़ काफ़ी नीचे पहुँच गया है। फिर उसको मद्धम-सी रोशनियाँ दिखाई देने लगी और तभी जहाज़ लैंड कर गया। एक झटका-सा लगा और जहाज़ रन-वे पर दौड़ने लगा। जहाज़ की गति धीमी हुई तो आफिया ने बाहर की तरफ देखा। बाहर रात का अँधेरा पसरा हुआ था और हर तरफ गहरी धुंध छाई हुई थी। तभी, जहाज़ टर्मिनल पर जा लगा। वह कस्टम वगैरह में से निकलकर बाहर आई तो सामने उसका भाई मुहम्मद अली उसका इंतज़ार कर रहा था। उसके साथ उसका कोई दोस्त प्रतीत होता एक गोरा लड़का था। आफिया भाई के संग घर चली गई। उसके भाई का हूस्टन यूनिवर्सिटी के करीब ही अपना अपार्टमेंट था। वह वहीं रहकर पढ़ा था और अब आर्चीटेक्ट का काम कर रहा था। सभी उसको मुहम्मद कहकर बुलाते थे। अगले पाँच सात-दिन तो आफिया की थकान ही नहीं उतरी। उसका मन पीछे अपने माँ-बाप के लिए बहुत उदास था। वह दिन भर अपार्टमेंट में ही पड़ी रहती थी। टी.वी. वगैरह की उसको पूरी समझ नहीं थी और न ही उसको टी.वी. देखना पसंद था। फिर मुहम्मद उसको यूनिवर्सिटी ले गया और उसकी पढ़ाई के बारे में मालूम किया। सारी जानकारी लेकर आफिया ने कक्षाओं में जाना प्रारंभ कर दिया। परंतु अभी भी उसका मन यहाँ पूरी तरह नहीं लग पा रहा था। वह घर के अंदर ही घुसी रहती। फिर आहिस्ता-आहिस्ता उसका मन बहलने लगा। इसका बड़ा कारण था कि यहाँ मुस्लमान विद्यार्थियों बहुत बड़ी संख्या में थे। वह कइयों के करीब होने लगी। अपने स्वाभाव के अनुसार आफिया हरेक के साथ धर्म के विषय में चर्चा अवश्य करती। इसी बीच उसने देखा कि उसके भाई के अपार्टमेंट में बहुत सारे विद्यार्थी आते थे। वहाँ मुस्लमान विद्यार्थियों की समस्याओं के बारे में चर्चा चलती रहती थी। उसका भाई मुस्लिम कम्युनिटी का उभरता लीडर था। ऐसे समय वह पिछले कमरे में चली जाती। वह सबके बीच नहीं बैठती थी। इसी दौरान उसने देखा कि उसके भाई का वह दोस्त लड़का जो कि उसके अमेरिका आने वाले दिन उसके भाई के संग एअरपोर्ट पर आया था, वह भी अपार्टमेंट में बहुत आता-जाता था। उसका नाम जॉर्ज था। जॉर्ज जब भी आता तो आफिया उससे एकतरफ हो जाती। जबकि जॉर्ज हमेशा उसके साथ कोई बात करना चाहता। वह उसके साथ पहली बार तब बोली जब एक दिन मुहम्मद ने जॉर्ज के आने पर उसको कमरे में बुलाया। उसने बताया कि जॉर्ज उसका बहुत ही गहरा दोस्त है और वह उसके साथ बेझिझक बातचीत कर सकती है। फिर वह जॉर्ज के साथ थोड़ा-बहुत खुलने लगी। जॉर्ज उसको फ्रेंड कहकर बुलाता तो उसको यह सम्बोधन अच्छा न लगता। फिर जॉर्ज उसको सिस्टर कहकर बुलाने लगा तो वह जॉर्ज के साथ पूरी तरह खुल गई। वह उसके साथ धर्म को लेकर लम्बी बहसें करती। इन बहसों के दौरान जॉर्ज देखता कि वह हर समय मुस्लिम धर्म की ही प्रशंसा करती थी। दूसरे धर्मों की वह अधिक कद्र नहीं करती थी। जॉर्ज बहुत बार क्रिश्चियन धर्म के बारे में बहुत कुछ समझाता, पर वह किसी बात से सहमत न होती। वह हर बहस के समय मुस्लिम धर्म को ऊँचा और असली धर्म कहती। जॉर्ज ने एक बात ज़रूर देख ली थी कि आफिया धर्म के बारे में बहुत गहरी जानकारी रखती है और उसके अंदर दूसरों को अपने प्रभाव के अधीन लाने की योग्यता है। मुहम्मद के कई दोस्त तो पहली बार में ही उसका प्रभाव स्वीकार कर लेते थे। आफिया के अन्य रिश्तेदार भी हूस्टन में रहते थे। किसी न किसी त्योहार के दिन सभी इकट्ठे होते रहते थे। जॉर्ज इन सभी को जानता था और सबके साथ व्यवहार करता था। इसलिए बाद में जाकर आफिया उसके संग पूरी तरह खुल गई। वह खुलकर बहसें करते। एक दिन जॉर्ज मुहम्मद के अपार्टमेंट में आया तो उसने देखा कि आफिया चुपचाप एक तरफ बैठी हुई थी। घर में गहरी चुप छाई हुई थी।

“क्या बात है सिस्टर, आज इतनी उदास है ?“ जॉर्ज ने पूछा।

“जॉर्ज, आज घर याद आ रहा है। खास तौर पर अम्मी।”

“न तू टी.वी. देखती है। न कोई किताब वगैरह पढ़ती है। फिर अकेली बैठी उदास ही होगी न।”

“इसी कारण मैं टी.वी. नहीं देखती और न ही कुछ पढ़ती हूँ।”

“मतलब ?“ जॉर्ज हैरान हुआ।

“क्योंकि यह बातें सिर्फ़ वक़्तकटी के लिए हैं। ये इन्सान का वक़्त पास ही नहीं करवातीं, बल्कि बर्बाद भी करती हैं। इसीलिए इन बातों की हमारे धर्म में मनाही है।”

“खाली समय में फिर और क्या करना चाहिए।”

“अल्लाह की इबादत करो, या फिर सामाजिक भलाई के लिए काम करो।”

“अगर तुम टी.वी. नहीं देखोगे, कोई अखबार नहीं पढ़ोगे तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि संसार में क्या हो रहा है ?“

“तेरे जैसों से पता चल ही जाता है कि संसार में क्या चल रहा है।” इतना कहकर आफिया हँस पड़ी। उसकी यह बात सुनकर जॉर्ज हैरान न हुआ। क्योंकि उसने पहले ही देख लिया था कि जो आजकल की युवा पीढ़ी कर रही है, आफिया उन बातों से कोसों दूर है। वह टी.वी. नहीं देखती, संगीत नहीं सुनती, कोई उपन्यास वगैरह नहीं पढ़ती और किसी लड़के के साथ घूमने जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। उसके लिए बस दो ही बातें ज़रूरी थीं - अपनी पढ़ाई या फिर धर्म। वह कुछ देर चुप रहकर बोला -

“सिस्टर, तुम्हें मैं एक सलाह दूँ। तू टी.वी. वगैरह पर समाचार वगैरह अवश्य देख लिया कर। इससे इन्सान को इतना पता लगता रहता है कि हमारे आसपास क्या घट रहा है।”

“क्यों ? कुछ ख़ास हो रहा है आसपास ?“ आफिया ने बात फिर मज़ाक में डाल दी।

“तुम्हें नहीं पता कि आज क्या हुआ है ?“

“नहीं तो।”

“इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया है।”

“क्या !“ आफिया ने हैरान होते हुए जॉर्ज की तरफ़ देखा। वह एकदम सकते में आ गई।

“हाँ, यह सच है। पिछले कई दिनों से झगड़ा चल रहा था, यह तो तुम जानती ही होगी। पर आज सद्दाम हुसैन सारी दुनिया के रोकने के बावजूद न रुका और उसने कुवैत पर चढ़ाई कर दी।”

“सद्दाम हुसैन तो बुच्चड़ है, यह सभी जानते हैं, पर कुवैत के शेख भी कम नहीं।”

“सिस्टर, कुवैत का इसमें क्या कसूर है ?“ जॉर्ज उसकी बात सुनकर हैरान हुआ।

“ये जितने भी डिक्टेटर, सुल्तान और ख़लीफे हैं, ये सभी शैतान हैं। सभी मुसलमान धर्म को नुकसान पहुँचा रहे हैं। इन सबका ही खात्मा होना ज़रूरी है।”

“फिर, तेरे ख़याल में अब क्या होना चाहिए ?“

“पहले सद्दाम का टंटा साफ़ किया जाए। उसके बाद इन डिक्टेटरों का सफाया हो।”

“कौन करेगा यह सब ?“

“लोग।” इतना कहकर आफिया ने जॉर्ज की तरफ़ देखा।

“लोग यहाँ कुछ नहीं कर सकते। इस वक़्त किसी बड़ी शक्ति की ज़रूरत है जो सद्दाम को नकेल डाले।“

“मतलब ?“

“मतलब यह है कि अमेरिका ने इराक को कह दिया है कि वह अपनी फौजें कुवैत से बाहर निकाले। नहीं तो फिर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे।”

“अमेरिका यहाँ बीच में कहाँ से आ गया। यह अरब मुल्कों का आपसी मामला है।” आफिया तुरन्त बात का रुख बदल गई।

“तुम्हें नहीं मालूम, इराक तो कुवैत से भी आगे सऊदी अरब पर भी हमला करने की तैयारी किए जा रहा है। यदि उसको न रोका गया तो...।”

“मुझे यह सब एक साज़िश लगती है।” जॉर्ज की बात बीच में ही काटते हुए आफिया बोली।

“साज़िश ! मतलब ?“

“अमेरिका शैतान की पार्टी है। आज यह दुनिया में किसी को भी टिक कर बैठने नहीं देता। हर देश के घरेलू मामलों में दख़ल देता रहता है। यहाँ भी इसने कोई न कोई शरारत की होगी।”

“मैं यह बात नहीं मानता। मुझे तो अमेरिका ऐसा करता कहीं दिखाई ही नहीं देता।”

“दूर जाने की ज़रूरत ही नहीं। मेरे अपने मुल्क पाकिस्तान की बात कर लेते हैं। वहाँ वही होता है जो अमेरिका को अच्छा लगे। मुल्क पर राज करने वाला कोई भी हो, उसको अमेरिका की बात माननी पड़ती है। असल में, हमारे मुल्क के सभी सियासतदान अमेरिका के पिट्ठू हैं। अपनी राजगद्दी बचाने के लिए वे कोई भी समझौता कर सकते हैं। ऐसा ही शेष देशों में हो रहा है। अरब देशों में अमेरिका एक दूसरे को लड़ा कर अपना मतलब निकाले जाता है।”

“पर हम बात इराक की कर रहे हैं।” जॉर्ज ने उसको टोका।

“ठीक है, इराक की सही। पहले तो अमेरिका इराक को इरान के खिलाफ़ उठाए रहा। इतने साल की इरान-इराक लड़ाई में इसने इराक की पूरी हिमायत की। अब वह लड़ाई ख़त्म हो गई तो इसने अपना अगला एजेंडा शुरू कर लिया।”

“सिस्टर, तू फिर मसले से दूर जा रही है। हमला, इराक ने कुवैत पर किया है न कि अमेरिका ने।”

“जॉर्ज, मैं सब जानती हूँ। पिछले कई महीनों से यह हल्ला चल रहा था। इराक ने अमेरिका के पास शिकायत भी की थी कि उसका कुवैत के साथ किसी इलाके को लेकर झगड़ा है। पर अमेरिका ने यह कहकर पल्लू झाड़ लिया कि यह तुम्हारा आपसी मामला है, जैसे चाहो सुलझाओ। वह इसमें नहीं पड़ेगा। असल में, यह कहकर अमेरिका ने इराक को एक किस्म की हल्लाशेरी दी थी कि वह जो मर्जी में आए, करे, अमेरिका बीच में नहीं आएगा। सद्दाम ने भी उसका इशारा समझ लिया और अवसर मिलते ही कुवैत पर चढ़ाई कर दी। इराक के ऐसा करते ही अमेरिका अपनी बात से पलट गया। असल में, अमेरिका चाहता था कि किसी न किसी प्रकार इराक कोई कदम उठाए और उसको बीच में पड़ने का अवसर मिले। अब देख ले, अमेरिका के मन की हो गई। इराक को रोकने के लिए उसने सऊदी अरब को आगे लगा लिया।”

“सिस्टर आफिया, पहले यह बता कि तू इराक के उठाये इस कदम के हक में है कि इसके विरोध में ?“

“मैं इसके बिल्कुल खिलाफ़ हूँ। मैं तो यहाँ तक कहती हूँ कि इस बुच्चड़ सद्दाम का खात्मा हो और इराक के लोगों का उससे पीछा छूटे। अकेला वही नहीं है, जैसा कि मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि अरब मुल्कों के सारे डिक्टेटरों और शेखों का खात्मा ज़रूरी है। ऐसा होने पर ही इस्लाम तरक्की कर सकता है। पर यह मामला मुसलमान लोगों का अपना है। मैं चाहती हूँ कि वे खुद ही इसे सुलझाएँ। अमेरिका को हमारे लोगों के मसलों में दख़ल देने की कोई आवश्यकता नहीं है।”

“जो भी है सिस्टर, पर एक बात तय है कि कुछ ही दिनों में अमेरिकी फौजें सऊदी अरब की ओर कूच कर देंगी।” जॉर्ज ने चुटकी मारते हुए हँसकर कहा।

“ऐसा कभी नहीं होगा। मुसलमान लोग ऐसा नहीं होने देंगे।”

“यह तो समय ही बताएगा, पर अब मैं चलता हूँ। मुहम्मद को बता देना कि जॉर्ज आया था।” इतना कहकर जॉर्ज बाहर निकल गया, पर आफिया चिंता में डूब गई। उसके मन-मस्तिष्क को इराक वाले मसले ने घेर लिया। दिल से हालांकि वह चाहती थी कि सद्दाम का सफाया हो जाए, पर वह यह भी नहीं चाहती थी कि अमेरिका इस बात में दख़ल दे। उसने जब से होश संभाला था, उसने घर में अमेरिका के खिलाफ़ होती बातें ही सुनी थीं। उसने अफ़गानिस्तान वाला सारा मसला अपने सामने घटित होते देखा था। वह सोचा करती थी कि अपना काम निकालने के लिए पहले तो अमेरिका ने पाकिस्तान को आगे लगा लिया। जब सोवियत यूनियन हार गया तो अमेरिका ने अपने ही उन दोस्तों का सफाया कर दिया जिन्होंने अफ़गानिस्तान की लड़ाई में उसका साथ दिया था। ख़ास करके उसको जिया उल हक वाला हादसा बहुत चुभता था। उसकी अपनी सोच यह थी कि हवाई हादसा अमेरिकी सी.आई.ए. ने करवाया था जिसमें जिया उल हक की मौत हो गई थी। उसके परिवार का अभी भी जिया उल हक के परिवार से गहरा वास्ता था। ख़ासकर उसके पुत्र इजाज उल हक के साथ। ख़ैर, जॉर्ज और आफिया की इस मुलाकात के कुछ दिन पश्चात ही वे फिर मुहम्मद के अपार्टमेंट में बैठे थे। आज मुहम्मद भी वहीं था।

“देख ले जॉर्ज, अमेरिका ने सऊदी अरब की पवित्र धरती गंदी कर दी।” बात मुहम्मद ने शुरू की।

“मुहम्मद, दूसरा कोई राह भी तो नहीं। यदि अमेरिका वहाँ न जाता तो इराक आगे ही बढ़ता जाता।”

“सब चालें हैं। जो कुछ भी हो रहा है, इस सबका जिम्मेदारी अमेरिका ही है।” आफिया बातचीत में हिस्सा लेते हुए बोली।

“असल में अमेरिका को तो बड़ी मुश्किल से मौका हाथ लगा है, अरब देशों में जाकर अड्डा जमाने का। अमेरिका कब से बहाना तलाश रहा था, वह उसको इराक ने दे दिया। अब नहीं अमेरिका वहाँ से कभी निकलने वाला।” मुहम्मद बोला।

“नहीं, मेरे ख़याल में ऐसा नहीं होगा। अमेरिका ने इराक को कहा है कि वह कुवैत में से निकल जाए। मुझे लगता है कि यह सब अमरिका ने उसको डराने के लिए किया है। इस प्रकार इराक वापस चला जाएगा तो अमेरिका भी अपनी फौजें वापस बुला लेगा।”

“जॉर्ज, ऐसा कभी नहीं होने वाला। अमेरिका ने न कभी पहले मुसलमानों की परवाह की है और न अब करेगा।”

“सिस्टर, सऊदी अरब के किंग के कहने पर ही तो अमेरिका ने फौजें वहाँ एकत्र की हैं। वह भी मुसलमान ही है।”

“जॉर्ज, तू मुझे वही बातें बार बार दोहराने को पता नहीं क्यों उकसाता रहता है कि ये शेख, किंग और डिक्टेटर सब शैतान हैं। जब तक ये जिंदा हैं, तब तक मुसलमानों का भला नहीं हो सकता।”

“जॉर्ज, वैसे तो तू बहुत फड़ें मारता रहता है कि क्रिश्चियन अहिंसा में विश्वास रखते हैं। पर अब बता कि यह सब क्या हो रहा है। अब वहाँ जाकर मुसलमान लोगों का क़त्लेआम करने लगे हो तो अहिंसा का उसूल कहाँ है ?“ मुहम्मद को गुस्सा आ गया लगता था।

“अपने तौर पर तो मैं अब भी खून-खराबे के खिलाफ़ हूँ। पर ये मुसलमान ही हैं जो अमेरिका को ऐसा करने के लिए विवश करते हैं।”

“तुम यूँ क्यों नहीं कहते कि ताकतवर का हर जगह ज़ोर चलता है।”

“यह तो है ही। हम दुनिया की सबसे बड़ी ताकत हैं। जो चाहे करें।” जॉर्ज ने हँसी में कहा। परंतु मुहम्मद इस बात का गुस्सा मान गया। दाँत पीसते हुए वह बोला, “जॉर्ज, अगर एक लफ़्ज भी आगे बोला तो मैं तुझे उठाकर बाहर फेंक दूँगा।”

“हम सुपर पावर हैं, हमें कौन छेड़ सकता है।” जॉर्ज फिर हँसी की रौ में बोला। इससे मुहम्मद को और अधिक गुस्सा आ गया। वह उठता हुआ बोला, “तू अभी मेरे घर से निकल जा।”

“यह घर तेरा ही नहीं, यह मेरी इस लिटिल सिस्टर का भी है। मैं नहीं जाने वाला यहाँ से।” जॉर्ज आफिया की ओर देखता हुआ बोला।

“ठीक है फिर, मैं ही यहाँ से चला जाता हूँ। कुएँ में गिरे तू और तेरा अमेरिका।” मुहम्मद उठकर चल पड़ा। आफिया शांत चित्त उसकी ओर देखती रही। जब वह अपार्टमेंट में से बाहर निकल गया तो आफिया बोली, “एक सच्चे मुसलमान को इतना गुस्सा शोभा नहीं देता।”

“चलो, कोई बात नहीं। वह मेरा जिगरी दोस्त है। जब गुस्सा शांत होगा, खुद ही लौट आएगा।”

इसके पश्चात आफिया और जॉर्ज आगे घटित होने वाली घटनाओं पर चर्चा करते रहे। देर रात जॉर्ज अपने घर चला गया। अगली मुलाकात के समय मुहम्मद और जॉर्ज में सुलह हो गई। उसके बाद काफी कुछ अकल्पित घटित हो गया। अमेरिकी फौजों ने हमला करके इराक को कुवैत में से बाहर धकेल दिया। इतना ही नहीं, अमेरिका ने इराकी फौजों की कमर तोड़कर रख दी। लड़ाई बंद होने के उपरांत इराक को वापस लौट रही इराकी फौजों का सफाया किया गया। जंगबंदी उसूलों की परवाह किए बग़ैर अमेरिकी फौजों ने इराकियों को मारने में कोई झिझक न दिखलाई। सब कुछ टी.वी. पर दिखाया जा रहा था। उस दिन आफिया बहुत ज्यादा चुप थी। जॉर्ज के पास गर्दन झुकाये बैठी थी। मुहम्मद ने चुप्पी तोड़ी।

“जॉर्ज, देख लिया अपने अमेरिका का असली चेहरा ?“

“हाँ, यह बहुत ही बुरा हुआ। मैं इस सबके खिलाफ़ हूँ।”

“इन्होंने कुवैत से इराक वापस लौट रही निहत्थी फौजों पर गोलाबारी करके लाखों सिपाही मार दिए। अभी कहते हैं कि हमने यह सब कुछ विश्व-शांति के लिए किया है।”

“टी.वी. वालों ने तो उस रास्ते का नाम ही डैथ हाई-वे रख दिया है जिधर से इराकी फौजें लौट रही थीं। अंधाधुंध बमबारी करके तकरीबन तीन लाख फौजी मार गिराये गए हैं। यह सब कुछ मनुष्यता के नाम पर धब्बा है। मेरा अब यहाँ रहने को जी नहीं करता।” आफिया बुझे मन से बोली।

“फिर सिस्टर अब किधर जाओगी ? क्या पाकिस्तान लौट जाने का इरादा है ?“

“नहीं जॉर्ज, वापस तो मैं नहीं जाऊँगी, पर मैंने किसी दसरे शहर की ओर जाने का मन बना लिया हैं।”

“दूसरा शहर कौन-सा ?“

“पिछले महीने मैं मैसाचूसस इंस्टीच्यूट आफ टेक्नोलॉजी में दाखि़ले के लिए अप्लाई किया था। वहाँ मुझे दाखि़ले के साथ साथ मुझे तो स्कॉलरशिप भी मिल गई है।”

“अच्छा तू एम.आई.टी. की बात कर रही है। पहले तुमने इस बात की भनक ही नहीं पड़ने दी। पर तुम्हें इस तरह यहाँ से नहीं जाना चाहिए।”

“नहीं जॉर्ज, मुझे अब यहाँ नहीं रहना।” आफिया वैसे ही गर्दन झुकाये बोली।

“सिस्टर, ऐसा न कर। तेरे बिना हमारा दिल नहीं लगेगा।” जॉर्ज ने उसको झिंझोड़ा। वास्तव में वह आफिया को सगी बहन से भी अधिक प्यार करता था।

“मैं फै़सला कर चुकी हूँ।”

“मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा।” जॉर्ज का मोह बोला, पर आफिया ने उसकी बात की ओर ध्यान नहीं दिया।

अगले दिन उनके बीच फिर बात हुई तो आफिया ने अपना यहाँ से जाने का इरादा दोहराया। जॉर्ज ने उसको यहीं रुक जाने के लिए कहा। काफी देर उनके बीच बहस चलती रही।

“जो चाहे कर, पर आफिया तू यहाँ से न जा।” जॉर्ज अपनी बात पर अड़ा रहा। आफिया कुछ पल उसके चेहरे की ओर देखती रही और फिर बोली, “जॉर्ज, तू मुझे इतने अपनेपन से क्यों रोक रहा है ?“

“क्योंकि मैं तुम्हें रियल सिस्टर के तौर पर प्यार करता हूँ।”

“वह तो मैं समझती हूँ पर...।” आगे आफिया ने बात बीच में ही छोड़ दी।

“पर क्या ?“

“तू मुझे यहाँ रखने के लिए क्या कर सकता है ?“

“कुछ भी, जिससे तुझे खुशी मिले।”

“पक्की बात है।” आफिया ने जॉर्ज के चेहरे पर निगाहें गड़ा दीं।

“हाँ-हाँ, मैं अपनी लिटिल सिस्टर के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।”

“तो फिर ऐसा कर।”

“बता।”

“तू क्रिश्चियन धर्म छोड़कर मुसलमान बन जा।”

उसकी बात सुनकर जॉर्ज के मुँह पर ताला लग गया और वह अंदर तक हिल उठा। उसको मुहम्मद ने कई बार बताया था कि यदि कोई मुसलमान किसी अन्य धर्म के इन्सान को मुस्लिम धर्म में ले आए तो उससे बड़ा पुण्य का कार्य कोई हो ही नहीं सकता। मुहम्मद के साथ वह बहुत अधिक खुला हुआ था इसी कारण मुहम्मद उसके साथ हर बात कर लेता था। पर धर्म बदलने के लिए उसने कभी नहीं कहा था। परंतु आज वही बात आफिया के मुँह से सुनकर वह हैरान रह गया। वह आफिया की बात सुनकर लगे सदमे में से बाहर आया तो उसने ध्यान से आफिया की ओर देखा। वह मन ही मन सोचने लगा, ‘यह जो दिखाई देती है, वह यह नहीं है। यह असल में कुछ और ही है। इसको किसी की भावनाओं की परवाह नहीं है। इसको सिर्फ़ अपने धर्म से प्यार है। दूसरी कोई भी बात इसके लिए मायने नहीं रखती। शायद इसका अपना सगा भाई मुहम्मद भी इसको अच्छी तरह नहीं जानता।’ अपने आप से बातें करता जॉर्ज दरवाज़ा खोलकर घर से बाहर निकल गया।

(जारी…)