Vaham in Hindi Poems by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | वहम

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वहम

1.रेत के समंदर सी दुनिया में हम हैं,
पता भी चले कैसे ये कैसा भरम है?


2.जब भी आते हो , कहर लाते हो।
गाँव मे मेरे क्यों, शहर लाते हो?


3.मीलों की सफर न तूफानों ने मारा ,
मुझको तो मेरे अरमानों ने मारा।
पंखों में मेरे ना ताकत कोई कम थी,
अनचाहे थे मेरे उड़ानों ने मारा।


4.क्या करूँ कि दिल बदलता नहीं,
औरों को गिरा के संभलता नहीं।


5.क्या खूब हो दर्द को जताते भी नहीं,
बताते भी नहीं, छुपाते भी नहीं।


6.देख के गधा चकराया,
ये चोटी वाली दीदी,
भुल हुई कैसे ईश्वर से,
सर में पुंछ लगा दी?


7.ये ठीक हीं तो था कि अपनी जात में रहा,
ख़ुद की बात में रहा हाँ मैं औक़ात में रहा।


8.बदगुमानी न कर कि अमीर है तू,
बिक तेरा जमीर है , फकीर है तू।


9.यूँ हीं दिल अपना आवारा न था,
दिल मे जो था वो हमारा न था।
समंदर की मौजों से दुश्मनी रही,
सफर में तो था , किनारा न था।


10.वकीलों का जीवन, न जीत में, हार में,
जीते हैं बार में, या पीते हैं बार में।


11.माना कि थोड़े नटखट थोड़े बेहिसाब होते हैं,
दादा की नजरों में तो बच्चे नवाब होते हैं।


12.उठा न सके पिता किताबों का भार।
वोही देखो चल पड़ा खींचने परिवार।


13.दुनियादारी का सबक भी अजीब है "अमिताभ"
कि चोरी भी करना तो ईमान की बात करते हुए।


14.नारी कुल रीति सदा चली आई,
जान जाई पर बहस न जाई।


15.न सोने की जंजीर न पिंजरे का आराम,
परिंदे को क्या चाहिए दो मुट्ठी आसमान।


16.बदल जाता है बुरा वक्त भी यकीनन,
ये आदमी बुरा हीं संभलता नहीं।


17.कैसे संभालूं मुल्क को, खतरे में है,
शकुनियों की नसल हर कतरे में है।


18.तुम मौसम के माफ़िक़ बदलते रहे,
हम थे जमीं फकत संभलते रहे।


19.दो बूँद मोहब्बत तरसते जब लोग,
आँखों से बहकर बरसते तब लोग।


21.है ईश्वर मैं कैसे पाऊँ मेरे सपनों का भारत,
ना हतभागी ना हन्ता ना आक्रांता हो ना आहत।


22.जरूरतों हसरतों के दरमियाँ ये जिंदगी,
किस किसको सोचूँ मैं किसको मनाऊं।


23.मापना है दरिया, तो भांपो हवा का रुख,
लहरों से लड़कर, पार हुआ नहीं जाता।


24.अपनी औलाद को इंसान बनाने में,
टूटते है माँ बाप अक्सर जमाने में।


25.लौकी पे मुफ्त धनिया थमा देता है,
सब्जीवाले से अमीर कहाँ देखा है।


26.बदन पे उसके कमीज नही थी,
सुना है उसको तमीज नहीं थी।


27.वो किस्सा तो था, कहानी नहीं था,
पत्थर सी आँखों थी, पानी नहीं था।


28.तुझे आसमां भी कम है पाने के लिए,
उसे मरना पड़ता है चार दाने के लिए।


29.वो कैसे थे रिश्ते, वो क्या तहजीब थे,
नफ़रतों के दमन में घाव वो अजीब थे।


30.अच्छा है बुरा है रफ़्तार में तो है,
जैसा भी है अख़बार में तो है।


31.ईमानदारी का घमंड,
बेईमानी से भी ज्यादा नुकसानदेह है।


32.अपनी शराफत का नाम खूब हुआ,
आदमी शरीफ था बदनाम खुद हुआ।


33.नफ़रतों के दामन में कहर बन सलता है,
ख़ुदा बन घाव तेरे शहर में यूँ फलता है।


34.दर्द भी है तेरा दवा भी तो दे,
घाव भी क़ुबूल है सदा तो दे।


35.जुबाँ से चलकर दिल पर फिसल जाएगी,
मुखबिरी भी आखिर कहाँ तक ले जाएगी।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित