film review SIMBA in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | सिम्बा फिल्म रिव्यू

Featured Books
Categories
Share

सिम्बा फिल्म रिव्यू

फिल्म रिव्यू – ‘सिम्बा’… मनोरंजन के नाम पे परोसी गई बासी खीचडी

(Film Review by: Mayur Patel)

रोहित शेट्टी. ये नाम जहेन में आते ही एक टिपिकल मसाला फिल्म का ख्याल आता है जिसमें नाच-गाना हो, ऐक्शन का ओवरडोज हो, कॉमिडी हो, फनी डायलोग्स हो, थोडा-बहोत रोमांस हो और बिना सिर-पैर वाली एक कहानी हो. शेट्टी निर्देशित 'सिम्बा' में ये सब है लेकिन फिर भी ये एक अच्छी मनोरंजक फिल्म नहीं बन सकी. चलिए जानते है क्यूं...

अब रोहित शेट्टी की फिल्म है तो ईस में मोटी-तगडी कहानी ढूंढने की कोशिश तो हम नहीं कर सकते, लेकिन कहानी के नाम पे क्या वही चालीस साल पुराने ड्रामेटिक चोंचले पेश करना जरूरी था? एक लडकी है जिसका बलात्कार करके उसे मार दिया जाता है और अपना हिरो फिर उसका बदला लेने निकलता है. भैया रोहित, आखीर कितनी बार दर्शको के सर पे ये घिसीपीटी फोर्म्यूला मारोगे? अब जब की दर्शक महिलाओं के शोषण पर ‘पिंक’ जैसी बहेतरिन फिल्म देख चुके है, तो आपको वाकई में लगता है की आपकी ‘सिम्बा’ में दर्शक रेप जैसे क्राईम की वही बासी ट्रिटमेन्ट को सराहेंगे..? बोलिवुड में ‘सिंघम’ के फन्नी अवतार ‘सिम्बा’ को प्रस्तुत करना ही था तो आपको कोई और विषय नहीं मिला जो आपने ईसे चुना. शेट्टी की ही ‘सिंघम’ का ‘स्पिनओफ’ है ये फिल्म, लेकिन ईसमें कुछ सीन तेलुगु फिल्म ‘टेम्पर’ से भी उठाए गये है, और कुछ दिल्ही में घटे ‘निर्भया रेप केस’ से भी कोपी किया गया है.

चलो मान लेते है की जिस प्रकार से देश में आएदिन रेप की घटनाएं घटती रहेती है तो ये मुद्दा आज भी समाज में प्रस्तुत हैं, लेकिन भैया रोहित, जो मुद्दा लिया है उसे असरकारक ढंग से पेश भी तो करना चाहिए. यहां न तो विक्ट्म के कोई ईमोशन दर्शक के दिल को छु पाते है, न किसी कलाकार को यादगार कहा जा सके ऐसा परफोर्मन्स देने का मौका मिला है. सभी बस वेकार में चिल्लमचील्ली करते रहेते है. फिर वो चाहे पुलिसवाले हो, या उनके घरवाले, वकील हो या फिर... यहां तक के जज भी अपनी कुर्सी की गरिमा भूलकर चीखते रहते है. शेट्टी साहब को लगता है की कलाकारों से जोर जोर से डायलोग्स बुलवाने से कोमेडी होती है, लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता. ‘गोलमाल’ सिरिज में एसा होता होगा, यहां नहीं... ‘सिम्बा’ के ईन्टरवल पोईंट तक कोमेडी की फूलझ्डियां फूटती रहती है, लेकिन सेकन्ड हाफ में फिल्म सिरियस होने लगती है और वही घिसा-पिटा ड्रामा शुरू हो जाता है, जो न तो बांधे रखता है, न ईमोशनली कनेक्ट कर पाता है...

सिम्बा बने रणवीर सिंह का काम काफी अच्छा है. सलमान खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन ने अपनी मसाला फिल्मों में जो किरदार निभाये हैं, उन किरदारों को मिक्सर में पीसकर एकरस कर दिया जाए तो जो कोकटेल बनेगा वो ‘सिम्बा’ है, एसा कहा जा सकता है. अपने सिनियर अभिनेताओं की हीरोगिरी की अच्छी नकल रणबीर ने की है. उनकी चाल-ढाल, लुक, संवाद अदायगी तारिफ के काबिल है, लेकिन कभी कभी वो ओवर ध टोप भी चले जाते है. सिम्बा की प्रेमिका शगुन बनी सारा अली खान के खाते में वही सब करना आया है जो शेट्टी की फिल्मों में हिरोईनें आम तौर पर करती हैं. खूबसूरत दिखना, गाने गाना, नाचना और हिरो के पीछे खडे रहकर उसका साथ देना. सारा ने ये सब ठीक से किया है. उनकी स्क्रीन प्रेजन्स जोरदार है और रणवीर के साथ केमेस्ट्री भी मजेदार लगती है. विलन धुर्वा रानाडे बने सोनू सूद को भी विलनगिरी में पासिंग मार्क्स दिए जा सके ऐसा काम उन्होंने किया है. सहायक भूमिकाओं में कलाकारों की पूरी फौज मौजुद है, लेकिन एक भी किरदार याद रहे ऐसा नहीं है.

फिल्म के अन्य पहलूओं की बात करें तो, शेट्टी का निर्देशन फिल्म की कहानी के जितना ही औसत है. गाने ठीकठाक है और वो भी ईसलिए क्यूंकी दो हिट गाने रिमेक किए गये है. यहां पर भी नया करने की कोशिश नहीं की गई. भई, जब पूरी फिल्म ही चोरी के, उधार के माल से बनी हो तो म्युजिक नया बनाने की महेनत क्यूं की जाए? डायलोग्स कहीं कहीं छाप छोडते है, तो कहीं कहीं वेअसर हो जाते है. एकशन सीन्स में कुछ भी नयापन नहीं है. फिल्म को बेकार में 2 घंटे 45 मिनट तक खींचा गया है, जबकी ईसे आसानी से 2 घंटे में निपटाया जा सकता था.

फिल्म के आखिर में डीसीपी बाजीराव सिंघम (अजय देवगन) की एंट्री होती है और सिनेमा होल सीटीओं से गूंज उठता है. उनके अलावा एक और सरप्राइज सुपरस्टार भी है ‘सिम्बा’ में जो फिल्म की आखरी फ्रेम में दिखते है, ईस प्रोमिस के साथ की अगले साल ‘सिम्बा’, ‘सिंघम’ और ‘सूर्यवंशी’ एक साथ शेट्टी की नई फिल्म में धमाका करने आ रहे है. लगता है की होलिवुड के मार्वेल युनिवर्स और डीसी युनिवर्स की तरहा रोहित भी अपने स्टाईल का एक अलग ही ‘शेट्टी युनिवर्स’ बनाने की फिराक में है.

बहेरहाल, बलात्कार जैसे संवेदनशील विषय पर एक सशक्त संदेश देने में पूरी तरह से खरी नहीं उतरनेवाली ईस ‘सिम्बा’ को मेरी ओर से मिलेंगे 5 में से 2 स्टार्स. शेट्टी की हर फिल्म की तरह ‘सिम्बा’ में भी दिमाग लगाने की कोशिश नहीं करेंगे तो शायद ये फिल्म थोडी-बहोत पसंद आयेगी.