Picnic par katl in Hindi Short Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पिकनिक पर कत्ल

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पिकनिक पर कत्ल

सरवर खान ने बारहवीं मंज़िल पर स्थित अपने ऑफिस की काँच की खिड़की से बाहर देखा। सुबह का वक्त था। सड़क पर लोगों का एक रेला चल रहा था। किसी को काम पर पहुँचने की जल्दी थी तो कोई नाइट ड्यूटी के बाद घर पहुँच कर आराम करना चाहता था। सब कहीं ना कहीं जाने की जल्दी में थे।
तभी इंटरकॉम की घंटी बजी। सरवर ने स्पीकर का बटन दबाया।

"सर कोई अल्ताफ अंसारी आपसे मिलने आए हैं।"

"भेज दो..."

सरवर अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। कुछ ही क्षणों में कोई पैंतालीस पचास साल का एक व्यक्ति कमरे में आया। सामने कुर्सी पर बैठते हुए बोला।

"अस्सलाम अलैकुम.."

"वालेकुम सलाम। कहिए क्या खिदमत कर सकता हूँ आपकी।"

सरवर ने सलाम का जवाब देते हुए पूँछा।

"सरवर साहब आप माने हुए जासूस हैं। आपके पास मैं अपना केस लेकर आया हूँ।"

"बताइए क्या केस है ?"

"मेरे इकलौते बेटे नदीम की हत्या का। वह अभी महज़ सोलह साल का था।"

अपनी बात कहते हुए अल्ताफ अंसारी के चेहरे पर उभरा दर्द सरवर के दिल को भी चीर गया। स्वयं को संभाल कर सरवर बोले।

"बहुत अफसोस हुआ। पूरी बात तफ्सील से बताएं।"

अल्ताफ अंसारी ने एक आह भर कर कहा।

"मेरा बेटा नदीम सिटी पब्लिक स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ता था। वह अपने क्लास के कुछ लड़कों के साथ मनका झील के पास जो जंगल है वहाँ पर पिकनिक मनाने गया था। लौटते समय उसके साथ के लड़कों ने उसे गायब पाया। उन्होंने हमें सूचना दी तो हम पुलिस के साथ वहाँ पहुँचे। पुलिस ने तलाश की तो उसकी लाश जंगल में एक गढ्ढे में मिली। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हिसाब से सर के पिछले हिस्से में चोट लगने से मौत हुई है। पुलिस का मानना है कि नदीम जब गढ्ढे में गिरा तो वहाँ पड़े पत्थर से उसका सर टकराया। जिससे उसकी मौत हो गई। पुलिस ने जाँच पूरी करने के बाद इसे एक हादसा माना है। लेकिन मुझे यह मामला हत्या का लगता है।"

सरवर ध्यान से सारी बात सुन रहे थे। वह बोले।

"आपको यह हत्या का मामला क्यों लगता है ?"

"जनाब मेरा बेटा नदीम इस छोटी सी उम्र में ही बहुत समझदार था। जहाँ सभी पिकनिक मना रहे थे उस जगह को छोड़ कर भला वह जंगल के अंदर गढ्ढे के पास क्यों जाता। गया भी होगा तो वह इतना लापरवाह नहीं होता कि गड्ढे में गिर जाए।"

"वो ठीक है अल्ताफ मियां। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि किसी उत्सुकता के कारण वह वहाँ गया हो और सचमुच हादसे का शिकार हो गया हो।"

"सरवर साहब होने को तो कुछ भी हो सकता है। लेकिन एक बाप का दिल इसे हादसा मानने को हरगिज़ तैयार नहीं है। मैं बड़ी उम्मीद के साथ आपके पास आया हूँ। मेरे बेटे की मौत का सही कारण जाने बिना मुझे सुकून नहीं मिलेगा।"

सरवर कुछ सोंचने लगे। अल्ताफ ने आगे कहा।

"मेरे लिए आपकी महंगी फीस जुटाना आसान नहीं है। स्टेश्नरी का छोटा सा कारोबार है। पर किसी भी कीमत पर मैं अपने इकलौते बेटे के मरने की सही वजह जानना चाहता हूँ।"

"आपको मेरे कुछ सवालों का जवाब देना होगा।"

"जी पूँछिए।"

"यह पिकनिक स्कूल की तरफ से नहीं थी।"

"जी सही कहा। कुछ लड़कों ने आपस में मिल कर प्लान बनाया था। उस रोज़ स्कूल की छुट्टी थी। वैसे तो नदीम किसी भी बात की ज़िद नहीं करता था। पर पिकनिक पर जाने की हठ पकड़ कर बैठ गया। कह रहा था कि मैं आप लोगों की सारी बातें मानता हूँ। आप लोग इतनी सी बात नहीं मान सकते। हम भी उसकी ज़िद के आगे झुक गए। अब सुरैया उसकी अम्मी को बस यही अफसोस रहता है कि उसे जाने क्यों दिया।"

"कुल कितने लड़के थे। क्या सबको आप जानते थे।"

"जी गए तो कुल मिला कर आठ लड़के थे। हम तो बस उसके दो दोस्तों गुरुप्रीत और राजीव को जानते थे। दोनों नदीम के बचपन के दोस्त थे। घर भी आना जाना था।"

"गए कैसे थे ?"

"नदीम ने बताया था कि एक लड़के अनीस ने अपने पापा से बात कर ली थी। वह अपने ड्राइवर के साथ टोयटा इनोवो से उन्हें भेजने को तैयार थे। सब उसी के घर पहुँच कर वहाँ से जाने वाले थे।"

सरवर खान ने लड़कों के नाम व अन्य जानकारियां नोट कर लीं। उन्होंने अल्ताफ अंसारी को तसल्ली दी कि वह जल्द से जल्द इस केस की तह तक जाने का प्रयास करेंगे।

***

जब सरवर खान अल्ताफ अंसारी से बात कर रहे थे तब उनका सहायक रंजन मैसी ऑफिस में दाखिल हुआ। रंजन अठ्ठाइस साल का एक आकर्षक नौजवान था। उसने रिसेप्शन पर बैठी सुनीता को गुड मार्निंग कहा तो उसने घड़ी की ओर इशारा किया।

"जानता हूँ कि देर हो गई। इतने दिनों से उस किडनैपिंग केस ने नींद उड़ा रखी थी। उसके साल्व होने के बाद कल चैन की नींद आई। अब कुछ दिन चैन रहेगा।"

सुनीता ने हंस कर कहा।

"ऐसा लगता तो नहीं है। सर अपने केबिन में किसी क्लाइंट से बात कर रहे हैं। शायद नया केस आ गया।"

"ये सर की प्रसिद्धी भी चैन नहीं लेने देती।"

ठीक उसी समय अल्ताफ अंसारी केबिन से निकल कर बाहर आए। सरवर खान भी साथ थे।

"बस अब आपसे ही उम्मीद है। सच को सामने ले आइए।"

"आप निश्चिंत रहें।"

अल्ताफ अंसारी चले गए। सरवर के साथ ही रंजन भी उनके केबिन में घुस गया। सरवर अपनी सीट पर बैठ गए। दराज़ खोल कर सिगरेट केस से एक सिगरेट निकाली। वह उसे सुलगाने ही वाले थे कि रंजन ने टोंक दिया।

"सर ये क्या ??"

सरवर ने फौरन सिगरेट वापस रख दी। उनकी बेटी शीबा ने उनसे वादा लिया था कि वह सिगरेट नहीं पिएंगे। दरअसल उसकी एक सहेली के पापा कैंसर से मर गए थे। तब से वह घबरा गई थी। उसने सरवर से कहा था कि अब वह सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाएंगे। सरवर उठे और सिगरेट केस डस्टबिन में फेंक दिया।

"शुक्रिया रंजन...तुमने सही समय पर टोंक दिया।"

कुर्सी पर बैठते हुए रंजन बोला।

"सर आप शीबा को बहुत चाहते हैं।"

"हर बाप अपनी औलाद को चाहता है।"

उनकी बात सुन कर रंजन के मन में टीस सी उठी। पर उसे दबा कर उसने पूँछा।

"सर ये श्रीमान जो अभी गए क्या केस लेकर आए थे ?"

"अल्ताफ अंसारी नाम है उनका। वह भी अपनी औलाद की खातिर आए थे। उनके सोलह साल के बेटे नदीम की मौत हो गई। पुलिस ने इसे एक हादसा माना है पर अंसारी साहब को यह कत्ल लगता है।"

सरवर ने रंजन को केस की सारी जानकारी देने के बाद कहा।

"अब इस केस के लिए कमर कस लो। पहले मुझे पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी लाकर दो।"

"ओके सर..."

कह कर रंजन काम के लिए चला गया। सरवर केस के बारे में सोंचने लगे। पंद्रह सोलह साल के आठ लड़के पिकनिक पर जाते हैं। उनमें से एक की मौत रहस्यमय तरीके से हो जाती है। आखिर क्या हुआ होगा ? सरवर सोंच रहे थे कि तफ्तीश की शुरुआत कहाँ से की जाए। अल्ताफ अंसारी ने उन्हें बताया था कि पुलिस की तरफ से इस केस के जाँच अधिकारी भास्कर रे थे।
सरवर भी कभी पुलिस फोर्स का हिस्सा थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण केस साल्व किए थे। ऐसे ही एक केस के दौरान पांव में गोली लगने के कारण घुटने के नीचे से पैर काटना पड़ा। पुलिस फोर्स छोड़नी पड़ी पर हिम्मत नहीं हारी। अब अपने अनुभव का प्रयोग एक जासूस के रूप में कर रहे थे। भास्कर रे उनके पुराने साथी थे। सरवर ने उन्हें फोन कर मिलने का समय मांगा।
उसी दिन शाम को वह भास्कर से मिलने उनके घर पहुँच गए। उन्होंने भास्कर को केस के बारे में बताया।

"देखो भाई सरवर पुलिस ने केस के बारे में सही से छान बीन की है। यह हादसा ही है। सब पंद्रह सोलह साल के लड़के हैं। अच्छे घरों से हैं। किसी को कोई बुरी आदत भी नहीं है। भला वो क्यों ऐसा करेंगे।"

"उन लड़कों ने ना सही पर वहाँ और लोग भी तो थे। उनमें से किसी ने कत्ल किया होगा।"

"देखो जिस समय यह हादसा हुआ वहाँ उन लड़कों के अलावा केवल तीन परिवार ही थे। उनसे भी बातचीत हुई पर किसी पर ऐसा शक नहीं हो सकता है। यह केस तो आइने की तरह साफ है। तुम इस पर वक्त ही बर्बाद करोगे।"

सरवर गंभीर हो गए। भास्कर एक अच्छे ऑफिसर थे। केस पर पूरे मनोयोग से काम करते थे। सरवर सोंच रहे थे कि कहीं अल्ताफ बेटे के लिए अपनी मोहब्त के कारण जज़्बाती होकर तो नहीं सोंच रहे। खुद भी पुलिस फोर्स का हिस्सा रह चुके थे। पुलिस की जाँच पर उन्हें पूरा यकीन था। पर दूसरी तरफ उन्हें अल्ताफ की बात में भी सच्चाई लग रही थी। जो भी हो उन्होंने अंसारी को सच तक पहुँचने का वादा दिया था। अब उन्हें केस को लेकर आगे बढ़ना ही था। इस केस की तह तक पहुँचने का इरादा लेकर वह वहाँ से आ गए।

***

अगले दिन अपने ऑफिस में वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख रहे थे। सर के पिछले हिस्से में लगी चोट को ही मौत का कारण बताया गया था। पर उसमें एक चीज़ पर सरवर की निगाह गई। नदीम के दाहिने हाथ पर कंधे और कोहनी के बीच नील के निशान थे। जैसे किसी ने मजबूती के साथ उसके हाथ को पकड़ा हो। इसका मतलब था कि गड्ढे में गिरने से पहले नदीम का किसी के साथ संघर्ष हुआ था। सरवर को अब यकीन हो गया कि केस आइने की तरह साफ हरगिज़ नहीं है। वह फौरन केस को साल्व करने के लिए मुस्तैद हो गए। उन्होंने रंजन को केबिन में बुला कर कहा।

"रंजन यह केस जितना सीधा दिखता है उतना है नहीं। तुम ऐसा करो इन सातों लड़कों से मिल कर उस दिन पिकनिक पर क्या हुआ पता करने की कोशिश करो। इसके अलावा इनके बारे में पता करो कहीं कोई ऐसी बात पता चले जो हमारे काम की हो।"

अपनी बात कह कर सरवर ने रंजन को लड़कों के नाम और उनके पतों की लिस्ट दे दी। रंजन उसे लेकर अपने काम पर निकल गया। उस लिस्ट में सात नाम थे। गुरुप्रीत, राजीव, वंश, शाहरुख, स्टीवन। आखिरी दो नाम साहिल और अनीस के थे जो चचेरे भाई थे। रंजन ने शुरुआत नदीम के दोस्त गुरुप्रीत और राजीव से करने का मन बनाया।
गुरुप्रीत और राजीव एक ही सोसाइटी में रहते थे। रंजन ने राजीव को बात करने के लिए गुरुप्रीत के घर पर ही बुला लिया था। गुरुप्रीत की बीजी ने तीनों के पीने के लिए कोल्ड ड्रिंक भिजवाया। अपना गिलास उठाते हुए राजीव ने कहा।

"हमने तो पुलिस को पहले ही सब कुछ बता दिया था। अब आप क्या पूँछना चाहते हैं।"

रंजन ने उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा।

"पुलिस ने इस केस को दुर्घटना मान कर बंद कर दिया था। लेकिन नदीम के पापा को यह कत्ल लगता है। इसलिए वो प्रसिद्ध जासूस सरवर खान यानि की मेरे बॉस के पास यह केस लेकर आए। मेरे बॉस को भी इस केस में कुछ गड़बड़ नज़र आई। अब वह सच का पता करना चाहते हैं। तुम लोग बस उस दिन जो कुछ भी हुआ वह बताओ। छोटी से छोटी बात भी।"

कहानी की शुरुआत गुरुप्रीत ने की।

"सर नदीम मेरा और राजीव का अच्छा दोस्त था। हमारे क्लास में पढ़ने वाला अनीस मेरा दोस्त था। उसी ने पिकनिक का प्लान बनाया था। मैंने ही उससे कहा था कि वह नदीम को भी हमारे साथ ले चले। अनीस ने कहा कि वह एडजस्ट कर लेगा। नदीम ने अपने घरवालों से ज़िद की और वह मान गए। हम सब अनीस की टोयटा इनोवो से पिकनिक पर गए। गाड़ी अनीस का ड्राइवर गुड्डू चला रहा था।"

गुरुप्रीत अपना ड्रिंक पीने के लिए रुका तो राजीव ने बात आगे बढ़ाई।

"सर उस दिन अधिक भीड़ नहीं थी। दरअसल स्कूल बंद थे पर ऑफिस खुले थे। हमारे अलावा कुछ और लोग परिवार के साथ आए थे। वहाँ पहुँच कर कुछ समय हमने मनका झील में बोटिंग की उसके बाद पिकनिक मनाने लगे। कुछ देर गेम्स वगैरह खेले। उसके बाद खाया पिया। फिर सब अपने अपने हिसाब से पिकनिक का मज़ा लेने लगे। गुरुप्रीत अपनी स्केचबुक लेकर बैठ गया। मैं चटाई पर लेट गया। पर मेरी आँख लग गई। कुछ देर बाद गुरुप्रीत ने मुझे जगा कर कहा कि हम सब चलने की तैयारी कर रहे थे लेकिन नदीम कहीं नहीं दिख रहा। यह सुन कर मैं भी परेशान हो गया। सबके साथ नदीम को खोजने लगा। आसपास के लोग भी मदद के लिए आगे आए पर वह कहीं नहीं मिला। हमने नदीम के पापा को खबर दी। वह पुलिस के साथ वहाँ पहुँच गए। पुलिस ने सारे इलाके को छान कर नदीम की लाश गड्ढे से निकाल ली। हम सबको नदीम की मौत से बहुत दुख हुआ।"

रंजन उनकी बात बहुत ही गौर से सुन रहा था। वह बोला।

"ये बताओ पिकनिक पर नदीम सारा समय क्या तुम लोगों के साथ था। उसके व्यवहार में तुम लोगों को कुछ अजीब दिखा।"

इस बार फिर गुरुप्रीत ने जवाब दिया।

"वैसे तो हम सब एक ही क्लास के थे पर नदीम जल्दी सबसे घुलमिल नहीं पाता था। पिकनिक पर भी वह हमारी वजह से गया था। सारा समय वह मेरे और राजीव के साथ था। उस दौरान हमने कुछ भी अजीब नहीं देखा। वह हमारे पास ही बैठा था। जैसा राजीव ने बताया वह सो गया। मैं स्केच बनाने में व्यस्त हो गया। उसी बीच ना जाने कब वह कहीं चला गया। हाँ शाहरुख ने बताया था कि उसने नदीम को जाते देखा था। पर वह कहाँ जा रहा था इस पर उसने ध्यान नहीं दिया। यह बात उसने पुलिस को भी बताई थी।"

गुरुप्रीत और राजीव से रंजन ने कुछ और बातें कीं किंतु कुछ पता नहीं चला। रंजन ने बाकी के पाँच लड़कों से भी बात की। उनका भी कहना था कि नदीम सारा समय गुरुप्रीत और राजीव के साथ था। अचानक वह गड्ढे में कैसे गिर गया कहा नहीं जा सकता है। शाहरुख वाली बात भी सबने बताई। शाहरुख का कहना था कि उसने नदीम को उठ कर जाते देखा लेकिन उस समय वह स्टीवन के साथ बात कर रहा था। उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। रंजन ने सभी लड़कों के बारे में अन्य जानकारियां भी जुटाईं। चार दिन बाद वह सारी जानकारियों के साथ सरवर के सामने उपस्थित हो गया।

***

अपने ऑफिस में बैठे सरवर केस के बारे में सोंच रहे थे। रंजन ने जो भी सूचनाएं एकत्र की थीं उनसे किसी भी लड़के पर शक नहीं किया जा सकता था। सबने एक जैसी कहानी सुनाई थी। किसी के बयान में कोई अंतर नहीं था।
सरवर का ध्यान बार बार पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताए गए नील के उस निशान पर जा रहा था जो नदीम के दाहिने हाथ पर पाया गया था। वह विचार कर रहे थे कि इस तरह का निशान तभी संभव था जब नदीम से उम्र व ताकत में बड़ा कोई व्यक्ति उसके हाथ को ज़ोर से पकड़ कर दबाए। इसका अर्थ यही था कि वहाँ मौजूद अन्य लोगों में से ही कोई कत्ल का गुनहगार है। सरवर खान ने भास्कर रे को फोन कर पूँछा कि क्या उन्हें नदीम की मौत वाले दिन पिकनिक स्पॉट पर मौजूद अन्य लोगों से लिए गए बयान की कॉपी मिल सकती है। भास्कर ने कहा कि कल रंजन को उनके ऑफिस में भेज कर कॉपी मंगा लें।
अगले दिन सरवर की मेज़ पर वह फाइल मौजूद थी। सरवर उस दिन वहाँ मौजूद लोगों के बयान को पढ़ रहे थे। कत्ल वाले दिन वहाँ उन लड़कों के अलावा तीन परिवार थे। पहला मखीजा दंपति उनके तीन बेटे दो बहुएं और परिवार के तीन बच्चे। मदन कुशवाहा उनकी पत्नी व दो बेटे। तीसरे थे रमेश चंद्रा उनकी बीवी आर्पिता और पाँच साल की बच्ची।
सरवर ने सभी परिवारों के बयान पढ़े। तीनों परिवारों का कहना था कि वह अपने में ही व्यस्त थे। उन्होंने उन लड़कों पर अधिक ध्यान नहीं दिया। जब लड़के नदीम को तलाश रहे थे तब मदन कुशवाहा और मखीजा परिवार के बेटे भी उनके साथ थे। लेकिन रमेश चंद्रा की पत्नी अर्पिता के बयान पर सरवर का ध्यान अटक गया।
अर्पिता ने बयान दिया था कि जिस समय नदीम को लेकर हलचल उठी ठीक उसी समय उसकी बेटी दौड़ते हुए गिर गई। वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। इसलिए उसका सारा ध्यान अपनी बेटी पर था। वह उसे चुप कराने लगी। लेकिन वह रोए जा रही थी। कहीं बच्ची को गंभीर चोट ना लगी हो सोंच कर वह अपने पति रमेश को खोजने लगी। वह उसे जंगल की ओर से आता दिखाई दिया। रमेश ने बताया कि वह नेचर कॉल के लिए थोड़ा एकांत में गया था। सरवर खान के दिमाग ने इसी बात को पकड़ा कि रमेश भी जंगल की तरफ गया था। कुछ देर इस बिंदु पर सोंचने के बाद सरवर ने तय किया कि वह एक बार वारदात की जगह का मुआयना करेंगे।
सरवर और रंजन वारदात की जगह पर बड़े ध्यान से एक एक चीज़ को देख रहे थे। वहाँ से सरवर को दो ऐसी चीज़ें मिलीं जिससे उन्हें लगा कि शायद वह सच्चाई के निकट पहुँचने वाले हैं। उन्होंने रंजन को रमेश के बारे में पता करने का काम सौंप दिया।

***

रमेश चंद्रा का नीलम, पन्ना, गोमेद जैसे नगों का कारोबार था। लेकिन इस समय उसका अपना समय बहुत खराब चल रहा था। उसकी पत्नी अपनी बच्ची के साथ मायके चली गई थी। बात तलाक तक आ गई थी। रमेश पर इस समय कर्ज़ भी था।
वह सरवर के ऑफिस में बैठा था। सरवर उसके सामने बैठे सवाल कर रहे थे।

"यह चेन तुम्हारी है ?"

सरवर के हाथ में सोने की एक चेन थी जिसमें आर (R) अक्षर का लॉकेट था। रमेश ने चेन को देख कर चेन उसकी होने से इंकार कर दिया।

"पर इसमें जो लॉकेट है वह तुम्हारे नाम का पहला अक्षर है।"

"सर आर (R) से तो ना जाने कितने नाम शुरू होते हैं। वैसे भी मुझे चेन अंगूठी वगैरह पहनने का शौक नहीं है।"

"आप जंगल के अंदर क्या करने गए थे ?"

"मैं जंगल के अंदर नहीं गया था। मैंने बताया था कि मैं नेचर कॉल के लिए बस थोड़ एकांत में गया था।"

सरवर खान अपनी कुर्सी से उठे। रमेश के पास आकर बोले।

"आप अपना रुमाल देंगे।"

सरवर की यह बात सुन कर रमेश को बहुत आश्चर्य हुआ।

"दीजिए...अपना रुमाल दीजिए।"

सरवर ने अपनी बात दोहराई। रमेश ने बिना कुछ कहे अपना रुमाल निकाल कर दे दिया। सरवर ने फौरन रुमाल के कोने में देखा। उसके बाद अपनी मेज़ की दराज़ से एक और रुमाल निकाला। यह रुमाल मिट्टी से सना था। दोनों रुमालों के कोने पर भी आर (R) अक्षर कढ़ा था।

"चेन आपकी ना सही पर यह रुमाल तो आपका ही है। इससे तो आप इंकार नहीं कर सकते हैं। यह वारदात की जगह से कुछ ही दूर पर पड़ा मिला है। इसका मतलब तो आप जंगल के अंदर गए थे।"

रुमाल देख कर रमेश के चेहरे का रंग बदल गया। वह परेशान हो गया।

"अब बताउए आपमे नदीम को क्यों मारा ?"

यह सुनते ही रमेश घबरा कर बोला।

"हाँ मैं जंगल के अंदर गया था। लेकिन मैंने नदीम को नहीं मारा। मैं तो उसे जानता भी नहीं था। फिर उसे क्यों मारता ?"

"तो वहाँ क्या कर रहे थे। सही सही बताइए।"

कोई चारा ना देख रमेश ने कहा।

"कुछ पलों की मेरी कमज़ोरी मेरे जीवन का श्राप बन गई। बात आठ महीने पहले शुरू हुई। मैंने अपने ऑफिस में एक रिसेप्शनिस्ट रखी थी। उसका नाम सोनम था। वह बहुत आकर्षक थी। उसके खुले व्यवहार के कारण मैं उसकी तरफ आकर्षित होने लगा था। एक दिन वह मुझे अपने घर ले गई। वहाँ हम दोनों ही खुद पर काबू नहीं रख सके।"

रमेश कुछ रुक कर बोला।

"मैं डर रहा था कि वह जो कुछ उसके साथ हुआ के लिए मुझे दोषी ठहराएगी। पर उस दिन के बाद वह ऑफिस भी नहीं आई। मैंने सोंचा चलो अच्छा है। लेकिन करीब एक महीने बाद अचानक एक दिन वह मेरे ऑफिस आई। उसने अपने मोबाइल पर एक वीडियो दिखाया। मेरे होश उड़ गए। उस दिन हमारे बीच जो हुआ था उसने उसे रिकॉर्ड कर लिया था। उस वीडियो को लेकर वह मुझे ब्लैकमेल कर पैसे ठगने लगी। धीरे धीरे उसका लालच बढ़ने लगा। उसने मुझसे एक साथ पाँच लाख रुपए मांग लिए। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे। वह मुझे धमकाने लगी कि वह मेरी पत्नी को सब बता देगी।"

रमेश की आँखें छलक आईं। दिल का दर्द आवाज़ में उतर आया।

"उस दिन वह अचानक ही पिकनिक पर आ धमकी। उसे देखते ही मैं घबरा गया। इत्तेफाक से उस समय अर्पिता मेरी बेटी को गोद में लेकर अपनी माँ से फोन पर बात कर रही थी। मैंने सही मौका देखा और उसे जंगल के अंदर ले गया। वह मुझसे पैसों का तकाज़ा करने आई थी। मैं उसे समझाने की कोशिश कर रहा था मैं इंतज़ाम कर रहा हूँ। जल्दी ही उसे पैसे दे दूँगा। लेकिन उसके बाद वह वीडियो डिलीट कर मुझे कभी परेशान नहीं करेगी। वह कह रही थी कि उसे अगले दिन ही पैसे चाहिए। नहीं तो वह सारा भांडा मेरी बीवी के सामने खोल देगी। घबराहट के कारण मुझे बहुत पसीना आ रहा था। उसे पोंछने के लिए रुमाल निकाला होगा जो वहीं गिर गया। बड़ी मुश्किल से समझा कर उसे वहाँ से भेजा।"

"क्योंकी नदीम ने सब कुछ सुन लिया इसलिए आपने उसे मार दिया।"

यह सुन कर रमेश तड़प उठा।

"सर मैंने नदीम को नहीं मारा है...उसने मेरा क्या बिगाड़ा था। मेरे अंदर अगर किसी को मारने की हिम्मत होती तो सोनम को मार देता। मेरा घर बर्बाद कर दिया उसने। मुझसे पैसे भी ले लिए और मेरी पत्नी को सब कुछ बता दिया। मेरी ज़िंदगी तबाह कर दी।"

रमेश अपने पर काबू नहीं रख सका और रोने लगा। सरवर ने उसे पानी पिलाया और चुप कराया।

"सर नदीम के साथ जो हुआ उसके लिए मैं नहीं कोई और जिम्मेदार है।"

सरवर को भी यकीन हो गया था कि रमेश सच बोल रहा है। रमेश के जाने के बाद वह पुनः इस केस पर विचार करने लगे। कोई कड़ी थी जो छूट रही थी। कोई शख्स जिस पर किसी का ध्यान ना गया हो। सोंचते हुए अचानक एक नाम उनके जेहन में कौंधा। उन्होंने फौरन रंजन को बुलाया।

"रंजन इस केस में एक नाम है जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। तुम उसके बारे में पता करो।"

जो नाम सरवर ने बताया उसे सुन कर रंजन को भी आश्चर्य हुआ। वह फौरन अपने काम में जुट गया। जो जानकारियां रंजन ने एकत्र कीं वह उसे अपराधी साबित करने के लिए बहुत थीं।

***

गुड्डू अपनी खोली में टीवी देख रहा था तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने पुलिस को देख कर उसके होश उड़ गए। गिरफ्तार कर उसे थाने ले जाया गया। वहाँ सरवर खान भी मौजूद थे।

"आप लोग मुझे पकड़ कर क्यों लाए हैं ?"

सरवर खान ने सीधा सवाल किया।

"तुमने नदीम को क्यों मारा ?"

"मैंने उसे नहीं मारा। वह तो हादसा था।"

"तो फिर तुम्हारी चेन वारदात की जगह पर क्यों मिली ?"

सरवर ने चेन उसके मुंह के सामने कर दी। चेन देखते ही गुड्डू परेशान हो गया। पर उसे छिपा कर बोला।

"यह मेरी नहीं है। वैसे भी इसमें आर (R) का लॉकेट है। मेरा नाम तो गुड्डू है।"

"तो फिर तुमने अपने बाज़ू पर आर (R) का टैटू क्यों बनवाया है ?"

सरवर ने उसकी आस्तीन ऊपर कर उसे टैटू दिखाते हुए कहा। गुड्डू चुप हो गया। सरवर ने कहा।

"क्योंकी तुम्हारी गर्लफ्रेंड का नाम रज़िया है। इसलिए तुम उसके नाम के अक्षर वाला लंकेट पहनते थे। मेरे सहायक रंजन ने तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया है। अब तुम खुद बताओ नहीं तो पुलिस मार मार कर सब उगलवा लेगी।"

गुड्डू टूट गया। उसने नदीम की हत्या की बात कुबूल कर ली। उसने पुलिस को सारी बात बताई।
गुड्डू छोटे से शहर से जब इस महानगरी में आया तो यहाँ की चकाचौंध में खो गया। अनीस के पिता जलीस रिज़वी के यहाँ से उसे जो तनख्वाह मिलती थी वह उसके बढ़ते शौक पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसी बीच रज़िया से उसका अफेयर हो गया। वह उसे रिझाने के लिए मंहगे तोहफे देता था। जिसके कारण उस पर कर्ज़ चढ़ गया। इस कर्ज़ के कारण ही उसे ड्रग पैडलर बनना पड़ा। जलीस रिज़वी को उनकी जगह पर पहुँचाने के बाद वह चुपचाप ड्रग्स सप्लाई करने चला जाता था।
उस दिन भी पिकनिक स्पॉट पर उसे पास के एक कॉलेज के लड़के को ड्रग्स देनी थी। वह वहीं माल लेने आने वाला था। ताकि कोई देख ना ले गुड्डू उसे जंगल के अंदर ले गया। पर इत्तेफाक से नदीम ने उसे ड्रग्स सप्लाई करते देख लिया। यही नहीं वह सारी बात अनीस रिज़वी को बताने की धमकी देने लगा। इस पर गुड्डू ने उसे रोकना चाहा। उसी हाथापाई में उसकी चेन निकल कर गिर गई। गुड्डू ने नदीम के दाहिने हाथ को मजबूती से पकड़ कर अपनी ओर खींचा। वह उसे रोक रहा था। तभी धक्के से नदीम गड्ढे में गिर गया। उसका सर पत्थर से टकराया। घबरा कर गुड्डू भाग आया। गुड्डू के वहाँ से भागने के कुछ देर बाद रमेश सोनम को लेकर वहाँ पहुँचा।
बाद में पुलिस को नदीम की लाश मिली। गुड्डू अपनी चेन को लेकर परेशान था। पर पुलिस को वहाँ चेन नहीं मिली और नदीम की मौत का कारण हादसा बता कर केस बंद कर दिया गया। गुड्डू ने भी चेन की फिक्र छोड़ दी।
सरवर खान ने नदीम के कत्ल का केस सुलझा दिया था। अल्ताफ अंसारी को उनका बेटा तो वापस नहीं मिल सकता था पर यह तसल्ली अवश्य हुई कि उनके बेटे का कातिल सलाखों के पीछे है।

***