क्यों कुछ लोग वीर सावरकर को गलत समझते हैं, आखिर उन्होंने ऐसा क्या किया ?
बहुत सोचने और विचारने के बाद मुझे लगा की यह इतिहास की कम जानकारी के वजह से नहीं है यह एक साजिश है एक ऐसी साजिश जो यह नहीं चाहती कि ऐसे लोगों का नाम भी इस देश की आजादी के नाम से जुड़ा जाए या इस देश पर मरने वालों के नाम के साथ जुड़ा जाए।
और जो नहीं चाहते वह ऐसा सिर्फ वीर सावरकर के साथ ही नहीं कर रहे हैं वह हर उस योद्धा हर उन हुतात्माओं के बारे में करना चाहते हैं जो उनके हिसाब से नहीं चला, या जिन्होंने अपनी अलग राह बनाई और उस राह से आजादी की लड़ाई लड़ी।
कांग्रेस के लोग जब आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे उस वक्त एक अलग विचारधारा वाले लोग जब कांग्रेस के विचारधारा से अपने आप को दूर रखना चाहते थे वे सभी अपने अपने स्तर से आजादी की लड़ाई को लड़ रहे थे।
उनमें से ही एक वीर सावरकर भी थे जिन्होंने अपनी लड़ाई के लिए एक अलग रास्ता चुना।
लंदन जाकर इंडिया हाउस में ठहरना और वहां पर भारत की आजादी के लिए भारत को गुलाम बनाने वालों के गढ़ में जाकर उन से लोहा लेना और वीर सावरकर की ही प्रेरणा से उनके मित्र मदनलाल ढींगरा द्वारा एक अंग्रेज सर विलियम कर्जन वाइली को गोली मारना जो इतिहास में दर्ज है और कोई संदेह नहीं।
यह वही वीर सावरकर थे जिन्होंने अंग्रेजों की आंख में धूल झोंककर समुद्र में कूदकर और उसे लांघकर फ्रांस चले गए।
यह वही वीर सावरकर थे जिनके भाई गणेश उर्फ बाजीराव जिन्होंने काला पानी का सजा काटते-काटते अपनी जान गवा दी।
और यह वही वीर सावरकर थे जिन्होंने 11 साल काला पानी का सजा काटा मगर उसके बाद भी उन्हें देशद्रोही और अंग्रेजों के चाटुकार की ही संज्ञा दी जा रही है।
दया याचिका का विश्लेषण
दया याचिका में सावरकर का कहना था कि अंग्रेजों द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदमों से उनकी संवैधानिक व्यवस्था में आस्था पैदा हुई है. इसके साथ उन्होंने घोषणा की थी कि वे अब हिंसा पर यकीन नहीं करते ।।
अब आप ही बताइए मित्रों , इस दया याचिका से एक साधारण व्यक्ति को क्या समझना चाहिए यही कि वीर सावरकर अंग्रेजों के चाटुकार थे या फिर उन्होंने माफी मांग कर अपने आपको जेल से बाहर निकालने के लिए गलत कदम उठाया, और यह काम ना करते हुए उन्हें जेल में ही रहना चाहिए था और वही पर मर जाना चाहिए था, तब वह शायद देशभक्त कहलाते कुछ लोगों के नजर में।
महात्मा गांधी जी भी और उनके सभी अनुयाई लोग अंग्रेजों के संविधान में आस्था रखते थे तो आस्था रखने वाले देशद्रोही तो नहीं हुए ना ,तो वीर सावरकर जी कैसे हो।
महात्मा गांधी और उनके अनुयाई हिंसा में यकीन नहीं करते थे और इसी रास्ते पर चलने के लिए याचिका डालने वाले वीर सावरकर देशद्रोही कैसे हो गए ।
सबसे बड़ी बात जिस दया याचिका की बात कुछ लोग बोलते हैं कि बुरा था उन लोगों को आज यह जानना चाहिए की उनकी दया याचिका को अंग्रेजो के समक्ष लाने में तत्कालीन कांग्रेस, महात्मा गांधी, विट्ठल भाई पटेल एवं बाल गंगाधर तिलक का बहुत बड़ा योगदान था और उन्होंने अंग्रेज सरकार से बिना शर्त छोड़ने की बात कही थी।
और आज वीर सावरकर को इस नकारात्मक नजरिए से देखा जा रहा है जैसे वह इस देश के दुश्मन हो ।
दुष्प्रचार के कारण
वीर सावरकर जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे मगर वह एक हिंदूवादी नेता के रुप में देखे जाते थे मगर हिंदूवादी नेता इस देश के कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं में खटकती आई है, और उन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं का वर्चस्व बने रहने के लिए किसी दूसरे नेता का आ जाना और उनके वर्चस्व को कमजोर करना ही सबसे बड़ा अपराध है वीर सावरकर का , इस अपराध के वजह से उनके विरोधियों ने एवं उनके विरोधी नेताओं ने वीर सावरकर का दुष्प्रचार करना शुरू किया ।
और सबसे खतरनाक पहलू यह है कि कुछ इतिहासकार और प्रचार के माध्यम जिसे आज मीडिया कहते हैं वे सभी लोग हमारे भारत के असली इतिहास के साथ छेड़खानी कर उसे अपने हिसाब से बनाते गए ताकि देश की जनता देश के ही सेवकों की देशभक्ति पर सवालिया निशान लगाते रहे।।
मेरे इस लेख से किसी पर भी कोई सवाल उठाने की कोई मंशा नहीं है मगर सच्चाई इस से हटकर भी नहीं है।।
लेखक : रितेश कश्यप
@meriteshkashyap