Meri Samaj Sudharak, prarna dayak Rechnae. in Hindi Poems by Rudra S. Sharma books and stories PDF | मेरी समाज सुधारक, प्रेरणा दायक काव्य रचनाएँ। - वीरो का संघर्ष स्वतंत्रता के लिए

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मेरी समाज सुधारक, प्रेरणा दायक काव्य रचनाएँ। - वीरो का संघर्ष स्वतंत्रता के लिए

केंद्रीय भाव
रचनाकार-रुद्र संजय शर्मा

प्रथम काव्य रचना में झाँसी की रानी जिन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था उनके उस वीर रूप का वर्णन किया है जब वह योद्ध के लिए प्रस्थान करती है। यह मेरी पहली काव्य रचना थी। जिस में मैंने कुछ परिवर्तन कर प्रस्तुत किया है।
【यह रचना का  मैंने ३(3) वर्ष पहले 9 वी कक्षा में किया था परंतु तब अनजान था ।पता नहीं था कैसे ,कहा प्रकाशित करु?】
एवं दूसरी कविता में मैंने दूसरे स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करने वाली वीर सुभाष चंद्र बोस जी की सेना[ आज़ाद हिंद फौज] के युद्ध प्रस्थान का वर्णन किया है। 

【 मेरा इन दोनों  रचनाओं का निर्माण करने का लक्ष्य आपके अंतःकरण में राष्ट्र प्रेम की भावना को जन्म देना है। जिसे आप सभी भी राष्ट्र के हित में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में संभव हो सके। राष्ट्र के  लिए भविष्य में कुछ ना कुछ कर सके।मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप प्रथम स्वतंत्रता संग्राम एवं दूसरे  स्वतंत्रता संग्राम मैं संघर्ष करने वाले महान क्रांतिकारियों के बलिदान को समझेंगे एवं उनकी वीरता पर गर्व करेंगे उनसे नि:संदेह प्रेरणा भी लेंगे एवं अपने राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण योगदान देंगे। इतना कहकर अपनी वाणी को विराम देता हूँ और आप सभी से जय हिंद कहता हूँ।】


【१】

राष्ट्र प्रेम की ताकत


आंखों में आजादी की ज्वाला,
मुंह पर जय भवानी का नारा।
हाथ में खून से लतपत तलवार था,
सभी फिरंगी को पछाड़ने की है उसने ठाना।

अरे!एक-एक को वह मार देगी,
हर एक को चीर फाड़ देगी।
अरे फिरंगी मर जाएगा,
अगर सिंहनी दहाड देगी।

कट-कट कर वह मारती जाती,
हात किसी के वह न आती ।
सन् सत्तावन की तलवार के आगे,
बारूद और गोली टिक ना पाती।

चमकती बिजली की तरह वह छाई है,
अपने प्रिय तुर्ग पर सवार हो वह आई है।
आवाम के उर में आजादी की ज्वाला सिलगाई है,
विश्व को उसने  नारी शक्ति दिखलाई है।

आवाम की जननी,
धरती की बेटी,
अंग्रेजों के लिए काली कहलाई रे,
अपने संघर्ष के कारण वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई कहलाई वह।

हम आभार प्रकट करते हैं,
उस वीरांगना रानी का।
जिसने अपना लहू बहा कर आजादी का मतलब बताया,
हमें आजादी से रहना सिखलाया।
     -✍रुद्र संजय शर्मा
    जय जननी!?✍???




【२】

आज़ाद हिंद फौज






माटी को चूम चले शेर जंग जीतन को,
छाती को तान पिस्तौल में छह की छह डाल।
मचाने को अंग्रेजी खेमे में बवाल ,
चले अंग्रेजों के काल ,लेकर माता रन चंडी का आशीर्वाद।

मुख पर वीरों के तेज था।
मन में राष्ट्र के प्रति प्रेम था।
देख कर रहा था उनकी वीरता विश्व सारा ।
कर रहा था उनकी सराहना।

उनके तन को चीर फाड़ डाला,
टुकड़ों -टुकड़ों में बांट डाला।
उनकी अस्थियों को पीस डाला,
उनको तबाह करके ही माना।

कुछ बने रुद्र के क्रुद्ध अवतार।
किया उनके लहू से स्नान ,
किया उनका लहू पान ,
अपनी प्रतिशोध की प्यास को किया शांत।

लिया वीरों ने भगत सिंह का प्रतिशोध ।
जहन्नुम सी बर्बरता से करवाया ग्लानि बोध। वीरों ने अंग्रेजों को कश्मकश में डाला।
फिरंगी सोच रहे थे किन से पड़ गया पाला।

वर्षों पहले आजाद ने भी ,
इनको असमंजस में डाला था ।
आज़ाद ही था जो अंग्रेजों के ,
कभी ना पकड़ में आया था।

अरे मूछों पर ताव देते,
अंग्रेजों को देते घाव।
स्वाभिमान की कमी न थी ,
मुख पर वीरो के मरने समय।
  

जय जननी !

-✍रुद्र संजय शर्मा