salib in Hindi Short Stories by Namita Gupta books and stories PDF | सलीब

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सलीब

                 विशंभर दयाल के बड़े बेटे की शादी के 8 साल के बाद जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ तो उन्होंने सोचा की बहू - को इतने वर्षों के बाद जुडवाँ बच्चों का जन्म हुआ है तो वह दोनों लोग अपने बच्चों को कैसे सभालेगे । मैं उनके पास चला जाता हूं जिससे  उनको थोड़ा सहयोग मिल जाएगा , क्योंकि दोनों ही जॉब करते हैं  ।  बहू कैसे  घर औंर नौकरी दोनों जिम्मेदारी को कैसे संभाल पाएगी ,? उन्होंने अपनी नौकरी को त्यागपत्र देकर बेटा बहू के कहने पर उनके घर चले आए और  तन ,मन से बच्चों की देखभाल करने लगे । बहू भी  स्वस्थ होनै पर अपने ऑफिस जाने लगी । विशंभर दयाल जी बच्चों की देखभाल करने लगे । बच्चों को क्या खाना है ?क्या पीना है? क्या दवाइयां देनी है? बच्चों ने कब गीला किया ?गीले कपड़े बदलना ,सूखे  कपडे पहनाना  । दूध की बोतल तैयार करके देना , खिलाना ,बाहर  घुमाना यह सारे काम की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं ही अपने कंधे पर उठा रखी थी  । तन मन से बच्चों को बड़े ही प्यार से पालन पोषण कर रहे थे और बेटा बहू भी निश्चिंत रहते थे । वैसे तो मेड लगी थी  लेकिन फिर भी बच्चों का कार्य उन्हें आनंद से भर देता था । इसी बहाने से वह अपने बच्चों के बचपन को फिर से जी रहे थे ।
                 विशंभर नाथ जी को आए हुए 8 महीने से ऊपर हो गए थे बच्चे भी थोड़ा बड़े हो गए थे और वह खेलने लगे थे और अपने दादाजी को अच्छे से पहचानने लगे थे । विशंभर दयाल जी का सारा दिन कब, कैसे बीत जाता था उन्हें पता ही नहीं चलता था ? एक दिन  विशंभर दयाल जी दूध  की बोतल बनाने के लिए किचन में जा रहे थे तभी उन्होंने बहू को बेटे से झगड़ते हुए सुना बहू कह रही थी  - "हम कब तक पापा को बर्दाश्त करेंगे ।पापा तो हाथ, पैर काट के यहीं पर पड़ गए हैं । कई महीने हो गए अब तो उनको अपने घर चले जाना चाहिए । न जाने क्यों  पापा अपने घर  जाते हैं । बच्चों को हम और मेड मिलकर पाल लेंगे ।  उनका यहां रहना  है अब हमे पसंद नहीं हैं। हम इतनी जिम्मेदारियां नहीं उठा पाएंगे । विशंभर दयाल ने सुना उनके हाथ कांप गए । जैसे किसी ने हथौड़े से उनके दिल को  चूर  -चूरकर दिया हो । 
              कहां तो वह बेटा -बहू औंर बच्चों के  प्यार में उनकी सेवा देखभाल रखने के लिए आए थे ।बहू उनको बोझ समझ कर  बेटे से लड़ रही थी । विशंभर दयाल के दिल को यह गवारा नहीं हुआ । उनका स्वाभिमान जाग उठा । उन्होंने तुरंत ही निश्चय किया कि जब बेटा ,बहू  स्वयं सब सभाल सकते है तो मेरा यहां पर क्या काम । उन्होंने बोतल बनाकर बच्चों के मुँह मे लगा दी औंर मेड से उनका ख्याल रखने के लिए कहकर , विशंभर दयाल ने  अपना सामान झटपट बैग में पैक किया । बैग उठाकर बाहर आते हुए बोले - "बेटा बहुत दिन हो गया यहां रहते हुए । अब मैं  घर जाना चाहता हूं । अब तुम लोग खुद भी बच्चों की  देखभाल कर सकते हो।"
             बेटे ने रोकना चाहा तो उन्होंने  मना करते हुए -- "बेटा जो मां बाप- बच्चों को पाल पोस कर इतना बड़ा कर सकता है ,उन्हें समर्थ बना सकता है ।वह उनके लिए बोझ कब और कैसे बन जाता है ? पता नहीं लेकिन बच्चे मां बाप के लिए कभी बोझ नहीं बनते यह हमेशा याद रखना "। यह कहते हुए वह घर से बाहर निकल गए ।
      नमिता ' प्रकाश'