शांतनु
लेखक: सिद्धार्थ छाया
(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)
पन्द्रह
“हां...” शांतनु ने इतना ही जवाब दिया|
“क्या हुआ था?” अनुश्री ने पूछा|
“ब्रेस्ट केन्सर... दो साल पहेले ही...” शांतनु ने वाक्य को अधुरा छोड़ दिया|
“सेड... पेरेन्ट के जाने से कितना दुःख होता है, मुझे भी उसका अनुभव है|”
“हमम... पप्पा ने बहुत सेवा की और डॉक्टर्स ने भी काफ़ी कोशिश की पर आखिर वही हुआ जो होना था|” शांतनु के स्वर में निराशा थी|
“आई नो... अंकल भी अकेले हो गए होंगे ना? तुम तो जॉब और फ्रेंड्ज़ में इन्वोल्व हो गए पर वो?” अब अनुश्री का एक और नया रूप शांतनु देख रहा था|”
“हां, मम्मी की सेवा करने के लिये ही उन्हों ने करीबन पांच साल पहेले रिटायरमेंट ले लिया था| अगर मम्मी जिन्दा होती तो आज भी पप्पा जॉब कर रहे होते|” शांतनु ने कहा|
“हमम.. और अंत में अंकल को दोनों में से कुछ भी नहीं मिला| होता है शांतु... यही लाइफ़ है| मेरे पापा तो अचानक ही हम सबको छोड़ कर चले गए| मैं सिर्फ़ पन्द्रह साल की थी और भाई अभी अभी इंजीनियरिंग कोलैज के फ़र्स्ट ईयर में ही थे|” अनुश्री ने अपनी बात शुरू की|
“ओह! क्या हुआ था उनको? इफ़ यु डोन्ट माइंड!” शांतनु को अनुश्री के पिता की मृत्यु का कारण जानने की इच्छा हुई|
“वो एक एन्काउंटर में शहीद हुए थे|” अनुश्री ने कहा, उसके चहेरे पर गर्व और निराशा के मिश्रित भाव थे|
“ओह रियली?” अब शांतनु को और भी जानने की उत्सुकता हुई|
“हां, शायद तुम्हें याद होगा, आज से कुछ आठ साल पहले अम्बाजी के बीहड़ों में चार आतंकवादी एक एनकाऊंटर में मारे गए थे| उस एनकाउंटर में गुजरात पुलिस की टीम मेरे पापा ए सी पी धीरेश महेता लीड कर रहे थे| तीन आतंकवादीयों को तो उनकी टीम ने पहुँचते ही आधे घंटे में मार दिया था, पर एक आतंकवादी घायल हो कर छिप गया था| साले ने पीछे से पापा पर गोलियां बरसाई और पापा वहीँ...|” अनुश्री की आँखे नम हुई पर वो जबरदस्ती अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर बोली|
“ओह... वेइट मैं आपके लिये पानी लाता हूँ|” कह कर शांतनु खड़ा होने लगा|
“नो...नो... शांतु तुम बैठ जाओ, आई एम फाइन| मुझे मेरे पापा पर गर्व है, पर उनके शहीद होने के बाद उनकी मौत पर जो गंदी राजनीती खेली गई, उस पर मुझे कई बार दुःख होता है|” अनुश्री ने अपनी बात जारी रखी|
“हाँ, मुझे थोडा बहुत पता तो है, मैंने अख़बार में पढ़ा था|” शांतनु अनुश्री को बोलने देना चाहता था|
“एक पार्टी के लोगों ने पूरा एनकाऊंटर को फ़ेक बता कर मेरे पापा को शहीद मानना तो दूर उन पर मनगढंत आरोप लगा कर उनके और उनकी टीम के खिलाफ़ केस कर दिया| पापा के खास मित्र पुजारा अंकल और उनके जैसे अन्य छ: ऑफिसर्स आज आठ साल से देश के दुश्मनों को खत्म करने की सज़ा भुगतने के लिये जेल में बंद हैं| पापा का पीएफ और ग्रेच्युटी जब तक केस खत्म न हो तब तक रोक दिया गया है| भाई ने पढ़ना छोड़ मोबाइल और टीवी रिपेयर कर के और मम्माने पार्ट टाइम एकाउंट्स लिख कर और पांच साल कठोर महेनत कर के मुझे पढाया| मेरे मनपसन्द टूरिज्म सब्जेक्ट में डिप्लोमा का कोर्स करवाया| एक किसी खास संप्रदाय को बुरा न लगे इस लिये एक खास पार्टी का एक भी नेता मेरे घर तक नहीं आया| तो उसके विरोधी दल? जब उसको वोट्स चाहिये तब हर चुनाव में पापा का नाम उछाल देता है| पता है? मुझे भी बचपन से पुलिस ऑफिसर बनने की और पुलिस जीप चलाने की बहुत इच्छा थी, पर पापा के साथ जो हुआ और उसका अनुभव करने के बाद...शांतु...मेरा मन बदल गया|” अनुश्री बगैर रुके बोल रही थी और शांतनु को भी उसे रोकने की इच्छा नहीं हो रही थी, पर अब अनुश्री रुकी|
“पर कोमन पीपल आज भी धीरेश सर को शहीद और देशभक्त पुलिस ऑफिसर मानते है अनु, बिलीव मी|” शांतनु को उस एनकाउंटर के बारे में काफ़ी मालूमात थी उसका उसने इस्तमाल किया|
“आई नो, पर उससे हमारी स्ट्रगल में कोई फ़र्क नहीं पड़ा| पर हाँ आज सुवासभाई जो भी है वो अपनी मेहनत से है और मुझे उन पर नाज़ है|” अनुश्री की मुस्कान उसके मूड बदलने का सिग्नल था|
शांतनु ने भी थम्बज़ अप की निशानी की, अनुश्री को स्माइल दिया और अचानक वो बगैर कुछ कहे खड़ा हुआ और किचन में जा कर फ्रिज़ में से ठंडे पानी की बोतल और ग्लास ले कर आया| लिविंग रूम में आ कर उसने बोतल खोली और पानी को ग्लास में डाल कर अनुश्री की ओर बढ़ाया| अनुश्री उसके सामने मुस्कुराई|
“थैंक्स शांतु, नाओ आई बैडली नीडेड दिस...” कह कर अनुश्री ग्लास में से गटागट पानी पीने लगी| शांतनु और कुछ बोले बगैर अनुश्री के ग्लास के ख़ाली होने का इंतजार करता रहा|
“और दूँ?” अनुश्री के ग्लास को ख़ाली करते ही शांतनु ने पूछा|
“हाँ, आधा ग्लास प्लीज़...” अनुश्री ने फ़िरसे पानी माँगा और शांतनु ने बिलकुल आधा ग्लास उसको भर कर दिया|
अनुश्री के ग्लास ख़ाली करते ही शांतनु उसे किचन में रखने गया और ख़ाली हुई आधी बोतल भर दी| शांतनु ग्लास धोने जा ही रहा था की ग्लास के किनारे उसको अनुश्री के होंठो की हल्की सी छाप दिखाई दी...और वो उसे थोड़ी देर देखता ही रहा| शांतनु ग्लास के उस भाग को अपनी आँखों के सामने लाया और अनुश्री के होंठों की छाप को बड़े ध्यान से देखता रहा| थोड़ी देर ऐसे ही अनुश्री के होंठों की छाप को देखते रहने के बाद ग्लास के उस हिस्से को अपने होंठों के करीब लाया और थोड़ी देर ऐसे ही खड़ा रहा...सोचता रहा और फ़िर हिम्मत हार गया और किचन सिंक के नलके को ज़ोर से चला कर उसने ग्लास को धो दिया और उसकी जगह पर रख दिया|
“शांतु, ऑलरेडी पाने बारह बज चुके हैं, अब सो जाते हैं|” शांतनु के किचन में से आते ही अनुश्री बोली|
“श्योर, चलिये, मैं रूम का एसी चालू कर देता हूँ|” शांतनु अनुश्री को अपने कमरे की और ले जाते हुए बोला|
“थैंक्स, पर मुझे उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी| एक तो मुझे उसकी आदत नहीं है और दूसरा आज पूरा दिन बारिश हुई है इस लिये अब काफ़ी ठंडक हो गई है| मुझे पंखा चलेगा|” अनुश्री ने हंस कर कहा|
“ओके, एज़ यु से| आपने किचन तो देखा ही है इस लिये अगर रात को प्यास लगे तो फ्रिज़ में सारी बोतलें भरी हुई है, और कुछ चाहिये तो मैं यहाँ लिविंग रूम में ही सो रहा हूँ, बेझिझक जगा दीजियेगा|” शांतनु अनुश्री को सूचना देते हुए कह रहा था|
“पक्का, तुम मेरी ज़रा भी फ़िक्र मत करो, आई वील बी फाइन और सुनो, मैंने साड़े छे बजे का अलार्म सेट किया है, मैं तुम्हें जगा दूं फ़िर हम दोनों तुंरत ही मेरे घर चले जायेंगे| कल फ़िर जॉब पर भी तो जाना है? अच्छा है की हम दोनों हो सके उतनी जल्दी घर पहुँच जाएँ|” अनुश्री ने कहा|
“डोन्ट वरी अनु, मैंने तो छ: बजे का ही अलार्म सेट किया है, मैं भी पप्पा के साथ ही जाग जाऊँगा| आप आराम से साड़े छे बजे उठियेगा|” शांतनु ने अनुश्री को कहा|
“धैट्स ग्रेट! शांतु!” अनुश्री बोली|
“हमम?? फ़िरसे?” शांतनु ने चेहरे पर जूठा गुस्सा ला कर कहा|
“हा...हा...हा... गुड नाईट|” अनुश्री ने हंसते हुए जवाब दिया और शांतनु के कमरे के बाथरूम में चली गई|”
शांतनु ने बैड पर से एक्स्ट्रा चद्दर और तकिया लिया और फ़िर उसने कमरे की लाईट बंद की और नाईट लैम्प ओन किया और फ़िर पंखा चालू कर और कमरे का दरवाज़ा हल्का सा बंद कर लिविंग रूम में चला आया| यहाँ वो एक बड़े से सोफ़े पर सोया और सुबह छ: बजे का अलार्म सेट किया| सारे दिन की घटनाओं को याद करते करते उसे कब नींद आ गई उसका शांतनु को ख़ुद को भी पता नहीं चला|
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सुबह के छ: बजते ही शांतनु का अलार्म बज उठा और शांतनु जाग गया| देखा तो किचन की लाईट ऑलरेडी जल रही थी| ज्वलंतभाई आज और भी जल्दी उठ गए थे और चाय बना रहे थे| शांतनु किचन की ओर जा ही रहा था की...
“गुड मोर्निंग शांतनु|” पीछे से अनुश्री की मीठी सी आवाज़ सुनाई दी|
“अरे? आप जाग गई?” शांतनु की आवाज़ में सुस्ती थी|
“हाँ यार फ़िर मैंने भी सोचा की आधे घंटे में क्या फ़र्क पड़ता है? इस लिये मैंने भी छ: बजे का ही एलार्म सेट कर दिया, ताकी थोडा जल्दी घर जा सकूं ना?” अनुश्री को अब घर पहुँचने की सच में जल्दी थी वो शांतनु समझ रहा था|
“गुड मोर्निंग लेडीज़ एंड जेंटलमैन!! शांतनु आप जल्दी से ब्रश कीजिये और चाय पी कर अनुश्री को उनके घर छोड़ आइये|” ज्वलंतभाई ने शांतनु को लगभग ऑर्डर देते हुए कहा|
“हाँ पप्पा, सिर्फ़ पांच मिनट|” शांतनु अनुश्री को देख कर बोला|
“कोई प्रॉब्लम नहीं शांतनु, बारिश रात से ही बंद है, इस लिये मुझे कोई भी परेशानी नहीं, टेक योर ओन टाइम|” अनुश्री ने कहा|
शांतनु अपने कमरे के बाथरूम में गया और ब्रश कर के बहार आया| डाइनिंग टेबल पर शांतनु, अनुश्री और ज्वलंतभाई ने चाय पी और फ़िर शांतनु और अनुश्री, अनुश्री के घर जाने के लिये तैयार हुए|
“अंकल, एक प्लास्टिक बैग मिलेगी? मेरे कल के कपड़े और रेनकोट के लिये?” अनुश्री ने पूछा|
“हाँ हाँ, क्यों नहीं?” ज्वलंतभाई इतना बोल कर अपने कमरे में गए और एक बड़ी सी प्लास्टिक बैग ला कर अनुश्री को दी|
अनुश्री शांतनु के कमरे में गयी और बाथरूम में एक तरफ़ छोड़े हुए अपने कपड़ों को लिया और फ़िर गैलेरी से अपना रेनकोट लिया और बेग में रखा|
“चलें?” शांतनु की ओर देख कर अनुश्री बोली|
“ज़रूर, क्यूँ नहीं?” अनुश्री घर छोड़ कर जाये ऐसा शांतनु नहीं चाहता था, पर वो संभव नहीं था यह बात भी वो अच्छे से जनता था|
बाइक पर अनुश्री को ले कर शांतनु उसके घर की ओर चल पड़ा| रास्तेभर कई स्थानों पर अभी भी थोडा बहुत जलभराव था जिस से पता चलता था की कल कितनी हद तक पानी इस इलाके में भरा हुआ होगा|
करीब बीस मिनट बाद शांतनु और अनुश्री अनुश्री के घर पहुंचे| आंगन में ही अनुश्री के मम्मा अनुश्री का इंतजार कर रहे थे और अनुश्री को देख कर उनके चेहरे पर जो मुस्कान आयी उसने शांतनु को धरित्रीबेन की याद दिला दी| शांतनु जब भी कोलेज या अन्य किसी जगह से देर से घर लौटता था तब वो भी इसी तरह शांतनु का इंतजार अपने घर के दरवाज़े पर घंटो खड़े रह कर करती थी और शांतनु की पहली झलक से उनके चहेरे पर भी ऐसी ही बड़ी सी मुस्कान आ जाती थी|
“आइये, आइये...” अनुश्री के मम्मा ने कहा| उनकी आवाज़ सुन कर सुवास भी घर से बाहर आंगन में आया|
“थैंक्स अ लोट शांतनु, अगर आप नहीं होते तो अनु को बहुत तकलीफ़ होती| मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूं?” सुवास ने शांतनु को गले लगा लिया|
“अरे, इस में थैंक्स कैसा? मैं अनुश्री का मित्र हूँ|” शांतनु ने भी विवेक किया|
“पर इस ज़माने में ऐसे मित्र भी कहाँ मिलते हैं? मुश्किल मैं सब अपने बारे में ही सोचते हैं|” अनुश्री के मम्मा ने कहा, जवाब में शांतनु सिर्फ़ मुस्कुराया|
“आइये, चाय पीते हैं|” सुवास ने कहा|
“सुवासभाई, फ़िर कभी सही? मैंने अभी अभी घर पर चाय पी है, और अभी नहाना भी बाकी है, प्लस जॉब पर भी जाना है|” शांतनु ने सौजन्यतापूर्ण तरीके से अपनी बात रखी|
“ठीक है, तो मैं आपको फ़ोर्स नहीं करूंगा, पर आप को मेरी एक बात तो माननी ही होगी|” सुवास ने कहा|
“जी, बिलकुल, कहिये|” शांतनु ने जवाब दिया|
“इस रविवार को शाम को आप हमारे घर आइये और आपके पापा को भी लाइये, साथ में चाय नाश्ता करते हैं|” सुवास के स्वर में आग्रह था|
“ठीक है, अगर बारिश नहीं होगी तो ज़रूर आयेंगे|” शांतनु ने कहा|
“उस दिन बारिश नहीं होगी शांतनु, मुझे पता है, तुम ज़रूर आना, मुझे तुम्हारे पापा को भी धन्यवाद कहना है|” अनुश्री के मम्मा ने कहा|
“पक्का!! तो मैं चलूं?” शांतनु ने अनुश्री के मम्मा से घर जाने की इजाज़त मांगी|
“रविवार के लिये हाँ की है इस लिये जाने देता हूँ|” सुवास ने हंस कर शांतनु से हेन्ड्शैक करते हुए कहा|
इस सारी चर्चा के दौरान अनुश्री अपने मम्मा को पीछे से लिपटी हुई थी और ज़रा सा झुक कर उनके बायें कंधे पर अपना चेहरा गडाये हुए चुपचाप खड़ी थी| उसके चेहरे पर लगातार मुस्कान थी और वो बार बार शांतनु को ही देख रही थी इस बात को शांतनु ने भी नोटिस की और मन ही मन वो खुश भी हुआ|
शांतनु जब अनुश्री के मम्मा के पैर छू कर जाने लगा तब अनुश्री उसके पीछे दरवाज़े तक आयी|
“बाय एंड टेक केयर शांतु, ऑफ़िस में मिलते हैं| अनुश्री ने अपने पावरहाउस स्माइल के साथ शांतनु को विदा दी| कल रात को भले ही अनुश्री का मूड ठीक हो गया था पर घर आने के साथ ही अनुश्री उसके असली अंदाज़ में लौट कर वापस आ गयी थी|
“बाय, यु टू टेक केयर|” कह कर शांतनु ने अपनी बाइक को किक मारी...
“अकेला गया था मैं, न आया अकेला...मेरे संग संग आया तेरी यादों का मेला...” गीत गुनगुनाता हुआ शांतनु अपने घर की ओर चल पड़ा|
क्रमश: