Mera pahla anubhav in Hindi Biography by Deepak Singh books and stories PDF | मेरा पहला अनुभव....

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मेरा पहला अनुभव....

सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार ।
 जब मैं मातृभारती पर आया तो मुझे इसके लेख बहुत पसंद आये । नये लेखको के लिए यह बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है। मुझे भी लिखने का बहुत शौक था लेकिन अब वो बीती बात हुई। आज काफी दिनों बाद फिर सोचा मैं भी फिर से प्रयत्न करूं और अपनी कहानी साझा करु क्योंकि आज बहुत महत्वपूर्ण दिन है। आज मुझे बहुत खुशी है कि मैं यह लेख लिख रहा हूं। आज ही के दिन ये लेख क्यों महत्वपूर्ण है और क्या महत्वपूर्ण ता है, यह मैं आपको कहानी के अंत में बताऊंगा।
   सभी की जिंदगी में हमेशा कोई ना कोई अनुभव आता ही रहता है, लगभग जिस वक्त तक इंसान समझ लायक होता है उसकी जिंदगी में बहुत सारे अनुभव आके गुजर चुके होते हैं, जिनका हमें पता भी नहीं चलता । क्योंकि हम तब इतने अनुभवी नहीं होते। वैसे तो जिंदगी का प्रत्येक अनुभव अपने आप में अद्भुत होता है लेकिन वो अनुभव हमारी जिंदगी में बहुत बदलाव कर जाता है या यूं कहें कि वह अनुभव बदलाव करने के लिए ही होता है और वह बहुत महत्वपूर्ण होता है।
 ऐसा ही मेरा एक अनुभव है जो मैं आप सभी साथियों के साथ साझा करना चाहता हूं। आशा करता हूं सभी को पसंद आएगा और आपका प्यार रहा तो ऐसे ही अनेकोनेक अनुभव आप लोगों के साथ साझा करता रहूंगा।
  बात उस समय की है जब मन नासमझी की दहलीज पार ही किया था और समझदारी की ओर बढ़ ही रहा था कि वो मेरी जिंदगी में आया । वो मुझे ऐसे मिला जैसे कोई मेरा अपना ख्वाब मेरी आंखों के सामने से गुजरा था। मैं बस एक पल उसे देख कर नजरअंदाज कर आगे बढ़ गया था। लेकिन उस एक छोटे से पल की छोटी सी मुलाकात में हीं(मेरे तरफ से) वह मुझे पसंद आ गया था। मैं थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि लगा कुछ पीछे छूट गया है। शायद बहुत कुछ पीछे  छूट गया था मैं ठहरा और मैंने अपने साथ वालों को भी ठहरने को कहा हालांकि जिस ओर हम जा रहे थे बस वहां पहुंचने से ठीक पहले ही हम रुक गए। सब से बचाते हुए मैंने उसकी ओर देखा अमूमन ऐसा होना चाहिए था, कि वह पलट कर देखता। लेकिन उसने नहीं देखा। मैं भी पागल शायद क्या से क्या सोच समझ बैठा था।  सभी के सवालों के बीच की क्यों रोका था, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए, खुद को समझाते हुए कि शायद कोई वहम था, आगे बढ़ चला।
 कहानियां अभी खत्म नहीं हुई। अब मैं वहां पहुंच चुका था जहां हम सभी को जाना था। हमारी उस उम्र में थोड़ी मौज मस्ती करते हुए थोड़ा सा समय बीता ही था, कि मुझे फिर से ये अनुभव हुआ कि कोई है। यहां वहां नजर फेरी कोई नजर नहीं आया। मैं अपने मन से फिर सवाल कर बैठा, ऐसा दोबारा क्यों? बस दिल जवाब देने वाला ही था कि वो फिर से नजर आया और इस बार मैने ही उसे नहीं देखा उसने भी हमें देखा था। दिल बाग बाग हो गया। उसे देखकर नहीं बल्कि उस बात का जवाब पाकर जो मैं अपने दिल से पूछ बैठा था। क्योंकि इस बार एक तरफ से नहीं दोनों तरफ से बात आगे बढ़ी थी। अफसोस बस इस बात का था कि बात ना हो पाई थी। मेरे लिए वो पहला अनुभव था। इससे पहले कभी कुछ नहीं हुआ था। मैं थोड़ा सा सोच में था। थोड़ा डरा हुआ भी था, कि अब आगे क्या होगा । थोड़ी देर बाद उसके बारे में पता किया तो उसके बारे में पता चला थोड़ी सी खुशी हुई को थोड़ा सा गम भी, खुशी इस बात की उसके बारे में जानकारी मिली थी और गम इस बात का कि कुछ ऊपर-नीचे था। मैं एक छोटे से कस्बे का लड़का था, स्टैंडर्ड क्या होता था शायद मुझे उस समय इतना पता नहीं था, या यूं कह लो शायद मै उस समय किन्हीं और चीजों को ऊंचा स्टैंडर्ड समझता था। नासमझ जो था मैं। बाद में और अनुभवों से पता चला कि स्टैंडर्ड लोगों की सोच और बातों में होना चाहिए, जरूरत की चीजों और सामानों में नहीं ।
इच्छा हुई उससे बात करने की लेकिन दिमाग ने गवाही नहीं दी। वहां काफी सारे लोग थे मैं डरा हुआ था हालांकि मैं चाहता तो अपना संदेश किसी कबूतर के माध्यम से पहुंचा सकता था।  और वह ऐसा कबूतर भी मेरे साथ था और मैं यह भी जानता था कि वह मेरा संदेश सही सलामत पहुंचा भी देगा लेकिन दिल ने सोचा बात हम तक ही रहे तो अच्छा है। उस समय समाज की बदनामी हमें मंजूर नहीं थी।  क्योंकि मैं अपनी और खासकर उस इंसान की छवि खराब नहीं करना चाहता था।  तो बस दिल को समझा बुझाकर शांत कर ही रहा था। उस समय बस उसे देखने और देखते ही रहने कि चाह थी। इसी कशमकश आंखें उसे खोज रही थी और मैं भी।  लेकिन कुछ समय बाद वो मेरी आंखों से ओझल हो चुका था। मैं उस रात यहां- वहां पागलों की तरह उसे खोज रहा था और खुद को कोश रहा था, कि इंसान को इतना भी भोला नहीं होना चाहिए कि वह अपनी बात किसी से कह ना सके।
 उसको बहुत खोजा लेकिन अब वह नहीं था। मन हताश हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने एक ही झटके में शरीर से आत्मा अलग कर दी हो। ऐसा लगा बहुत कुछ बाकी रह गया हो। 
बहुत सारे अनुभव उसके बाद मेरी जिंदगी में आए लेकिन यह मेरा पहला अनुभव था, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। मुझे कहने लायक बना दिया था। उस दिन  बहुत कुछ बाकी जो रह गया था ।
चलो अब आपको आज के दिन इस लेख को लिखने का महत्वपूर्ण कारण बताता हूं।
मेरे गणना से जिस दिन यह लेख प्रकाशित होगा , वह एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होगा, क्योंकि उस दिन  हमारी शादी की सालगिरह होगी। और इसे हम दोनों और केवल हम दोनों बड़े शौक से मनाते हैं इस मौके पर मैं उसे ढेर सारी बधाई देता हूं और मातृभारती के प्रकाशकों का आभार व्यक्त करता हूं, कि उन्होंने मुझे इस तरीके से प्रेरित कर उस दिन यह लेख लिखवाया था, और आज के दिन प्रकाशित किया ।
 सधन्यवाद !